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Tuesday, April 21, 2009

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खतरे में नैनीताल: दरक सकता है बलिया नाला!

-करोड़ों खर्च होने के बाद भी भू-स्खलन का खतरा आशंका: कई गांव की करीब 20 हजार आबादी आ सकती है खतरे की जद में -भाजपा विधायक ने शासन को लिखी चिट्ठी, आशंका जताई हल्द्वानी: बलिया नाला एक बार फिर नैनीताल के लिए खतरा बन गया है। नाले के आसपास पहाड़ों में पड़ी दरारें बढ़ती जा रही हैैं। साथ ही धीमी गति से भू-स्खलन भी हो रहा है। खतरा नजर भले ही न आ रहा हो मगर बरसात के समय तबाही मचा सकता है। भाजपा विधायक ने भी भयावह होती स्थिति से शासन को अवगत करा दिया है। नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध झाील का लुत्फ उठाने देश ही नहीं बल्कि विश्वभर के लोग हर साल और हर समय आते हैैं। इस झाील में पानी संतुलन से अधिक न हो, इसके लिए बलिया नाला निकाला गया है। जो झाील से ब्रेबरी पुल तक है। यह नाला अंग्र्रेजों ने निकाला था। इस नाले में होकर झाील का पानी रानीबाग में आकर गौला नदी में मिलता है। चार साल पहले इस नाले को 15.56 करोड़ के प्रोजेक्ट से तैयार किया गया है। बावजूद इसमें भू-स्खलन की स्थिति बनी रहने से इसकी गुणवत्ता पर उंगलियां उठा रही है। सिंचाई विभाग के सूत्र बताते हैैं कि वीरभट्टी, कृष्णापुर, रहीश होटल का क्षेत्र, राजकीय इंटर कालेज और आलूखेत में पड़ी दरारें अभी तक ज्यों की त्यों हैैं। यह हाल गरमी के समय में है। यह हाल बढ़ती आबादी और आवागमन से बढ़ते बोझा से पैदा हो रही है। स्थिति से भाजपा विधायक खडग़ सिंह बोहरा ने भी शासन को अवगत करा दिया है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि बलिया नाला नैनीताल की नींव है। उसमें करोड़ों खर्च के बावजूद भू-स्खलन की स्थिति बनी हुई है। नाले की तली और साइडें वीरभट्टी तक पक्की है। नाले की बुनियाद और उसके दोनों ओर की पहाडिय़ों का भारी कटाव व धसाव अभी भी हो रहा है, जो नैनीताल के लिए कभी खतरा बन सकता है। इस स्थिति को गंभीरता से लिए बिना अगर झाील संरक्षण योजना या फिर जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत कार्य कराये जा रहे हैैं, तो वह सभी कार्य व्यर्थ हैं। इधर, राज्य उद्यमिता विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष डा.रमेश पांडे ने फोन पर बताया कि आधा दर्जन इलाके खतरे में हैैं। इस बाबत तत्कालीन कांग्र्रेस सरकार में उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखकर दिया था, जिसमें उन्होंने रोप-वे की तर्ज पर स्वीडन अथवा और कहीं विदेश के इंजीनियर बुलाकर मजबूती से काम कराने की मांग की गई थी। इंसेट:::::::::शासन ने मांगी डीपीआर हल्द्वानी: सिंचाई विभाग उत्तर परिक्षेत्र के मुख्य अभियंता एबी पाठक भी नाले की कमजोरी स्वीकारते हैैं। उनका कहना है कि झाील से लेकर करीब डेढ़ किमी तक नाले का तल कुछ साल पहले पक्का कर दिया था। बाकी हिस्सा कच्चा है। जहां पहाड़ कमजोर हैैं वहां भू-स्खलन की स्थिति से हालत चिंताजनक हो जाती है। विभाग पूरी नजर रखे हुए है। शासन ने भी बलिया नाले की डीपीआर मांगी है, इस पर जल्द अध्ययन कर रिपोर्ट भेजी जा रही है।

-छोटे गधेरों में पनचक्की से बनाई जाए बिजली

बड़े बांधों का विरोध किया सुंदरलाल बहुगुणा : पर्यावरणविद् पद्मभूषण सुंदर लाल बहुगुणा का कहना है कि पहाड़ की चोटियों पर पानी ले जाना चाहिए, उनके ढालों पर पेड़ लगाने चाहिए और बड़े बांधों के बजाय छोटे-छोटे गाड-गधेरों में पनचक्की से बिजली पैदा की जानी चाहिए। (धार ऐंच पाणी, ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला) उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ रहे सभी सियासी दलों के एजेंडा भी यह बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बांध पानीकी स्थायी समस्या का तात्कालिक हल है। रविवार को देहरादून के जीएमएस रोड स्थित एक होटल में 'चुनाव और हिमालय संसाधन एवं नीति' विषय पर पत्रकार वार्ता में सुंदर लाल बहुगुणा ने कहा कि राजनीति ही सब कुछ तय करती है, इसलिए चुनाव में आम जनता को जल, जंगल, जमीन के मुद्दों के सकारात्मक हल के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव डालना चाहिए। राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण के मुद्दे न होना चिंता की बात है। उन्होंने देश में प्रकृति से सामंजस्य बनाती एक हिमालय नीति की जरूरत पर बल दिया। सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा ने कहा कि राजस्व बढ़ोतरी के लिए शराब को प्रोत्साहन देने का विरोध करना चाहिए। पद्मश्री डा.अनिल जोशी ने कहा कि देश में अब तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना के लिए मूल प्राकृतिक संसाधनों के बजाय औद्योगिक वृद्धि, कृषि को आधार बनाया जाता रहा है। इस परंपरा को तोड़ते हुए जंगल, पानी, नदियों को जीडीपी का आधार बनाया जाना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो देश के जीडीपी में हिमालय की भागीदारी 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हो जाएगी, मगर अफसोस कि राजनीतिक दल देश की आर्थिक, सामाजिक व सीमा की सुरक्षा करने वाले हिमालय पर ध्यान नहीं देते हैं। ंने कांग्रेस तथा यूपीए के खिलाफ भाजपा के मुददों के रूप में गिनाया।

क्या होगा दिवाकर के इस्तीफे का हश्र

सरकार से समर्थन वापसी पर जल्द फैसले के नहीं हालात सरकार में रहते हुए भी सरकार से बाहर रहने की उत्तराखंड क्रांति दल की रणनीति! उक्रांद नेता दिवाकर भट्ट ने मंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया है पर इसे मंजूरी नहीं मिली है। उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापसी की बात तो कर रही है पर पार्टी के नेता लोकसभा चुनाव को पहली प्राथमिकता बता रहे हैैं। जाहिर है कि इस मुद्दे पर जल्द फैसले के हालात नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इस इस्तीफे क्या हश्र होगा और चुनाव तक कोई तस्वीर साफ होगी या नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस समय सूबे की भाजपा सरकार बहुमत के अंतिम पायदान पर खड़ी है। ऐसे में साथ चल रहे लोगों की सियासी चालें भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं। काबीना मंत्री दिवाकर भट्ट को गत दिवस अचानक ही नैतिकता याद आ गई और उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे डाला। मजेदार बात यह है कि उक्रांद के एक मात्र मंत्री ने इस्तीफा दे दिया पर पार्टी नेताओं के पास सरकार से समर्थन वापसी के मुद्दे पर निर्णय लेने को समय ही नहीं है। कहा जा रहा है कि उनके लिए लोकसभा चुनाव पहली प्राथमिकता है। इसके पीछे मंशा चाहे जो भी हो पर इतना साफ है कि उक्रांद इस मामले में कोई जल्दबाजी के मूड में नहीं है।पहले बात यूकेडी की। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या यह भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश है और अगर ऐसा है तो इस इस्तीफे का हश्र क्या होगा। अगर लोकसभा चुनाव होने तक उक्रांद नेताओं को समर्थन वापसी पर निर्णय का वक्त नहीं मिला तो यह क्षेत्रीय दल सरकार से बाहर होकर भी सरकार के साथ रहेगा। ऐसे में चुनाव में प्रचार के वक्त उक्रांद नेताओं के पास भाजपा पर तीखे प्रहार करने का मौका होगा। यानि मंशा 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे' वाली कहावत पर काम करने की है। अब यही स्टैंड पर कायम रहता है तो क्या यह माना जाएगा कि उसके रणनीतिकारों की नजर में वोटर के पास सोचने-समझाने की शक्ति नहीं और उक्रांद गठबंधन धर्म के साथ ही प्रतिपक्षी का धर्म भी निभाना चाहता है, लेकिन क्या यह मुमकिन है। इस सबके अलावा इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र बिंदु दिवाकर भट्ट की रणनीति क्या है, इसे लेकर भी कयास ही लगाए जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कुछ अर्सा पहले उन पर इस्तीफे का भारी दबाव था तब उन्होंने न केवल इससे किनारा कर लिया था बल्कि परोक्ष रूप से अपनी ही पार्टी को चेतावनी भी दे डाली थी।अब एक नजर भाजपा पर, यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं लगता कि बहुमत की कगार पर खड़ी भाजपा में ऐन चुनाव के वक्त इस राजनैतिक घटनाक्रम से कोई खलबली नजर नहीं आ रही है। जाहिर है कि या तो पार्टी सब कुछ मैनेज करने को इस कदर भरोसेमंद है कि उसे सरकार के भविष्य की कोई चिंता ही नहीं, या फिर उसकी नजर में यह परिणति उक्रांद के अंदरूनी संघर्ष की है, जिसे नियंत्रित करना पार्टी की खुद की ही जिम्मेदारी है।---पहले विभाग से दिया था इस्तीफादेहरादून: लगता है दिवाकर को इस्तीफे से खासा लगाव है। आठ माह पहले ही दिवाकर ने इसी तरह अचानक ही खाद्य विभाग से इस्तीफा दे दिया था। कई रोज तक राजनीतिक नाटक चला और दिवाकर विभाग संभाले रहे। चर्चा है कि इस बार भी कहीं ऐसा ही तो नहीं होने वाला। ---------उक्रांद से चल रही है बातचीत: डा.जैन राज्य सरकार अपने दम पर अभी भी बहुमत में : भाजपा के प्रदेश सह प्रभारी डा.अनिल जैन ने कहा कि प्रदेश सरकार पर कोई संकट नहीं है। संख्या बल के आधार पर भाजपा अपने दम पर बहुमत में है। वैसे उक्रांद के साथ भी बातचीत चल रही है।प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत में डा.जैन ने कहा कि मौजूदा 68 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 35 विधायक हैं। दो निर्दलियों का भी समर्थन है। यूकेडी से भी बातचीत चल रही है। ऐसे में कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।उन्होंने कहा कि पहले फेज के चुनाव ने भाजपा तथा एनडीए खेमे को खुश होने का मौका दिया है, लालू यादव की तरह कुछ और लोग हैं जिन्हें झाल्लाते हुए देखा जा सकता है। उन्होंने एक बार फिर से भाजपा के मुद्दों को गिनाया। उन्होंने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों के काले धन को वापस लाने में आखिर किसे दिक्कत हो सकती है। यूपीए का उत्तराखंड के साथ सौतेला व्यवहार और आतंकवादी हमलों को उन्होंने कांग्रेस तथा यूपीए के खिलाफ भाजपा के मुददों के रूप में गिनाया।

प्रदेश में हर साल बढ़ जाते हैं ५००० पेंशनरपेंशन बिल अब १००० करोड़

देहरादून। बढ़ता पेंशन बिल भी अब सरकार के आर्थिक मोरचे पर परेशानी का सबब बन रहा है। रिटायर होने वाले कर्मियों की सं2या में तेजी से इजाफा होने का अनुमान है। ऐसे में सरकार को पेंशन केलिए ही खासी धनराशि जुटानी पड़ सकती है। पेंशन रिवीजन के कारण ही सरकार को करीब ३०० करोड़ का अतिरि1त आर्थिक व्यय भार वहन करना पड़ रहा है।छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों के लागू होने के बाद से ही पेंशन पर करीब ४० प्रतिशत का इजाफा हुआ है। एरियर को छोड़ भी दिया जाए तो पेंशन पर ही हजार करोड़ से अधिक का व्यय भार है। यह राशि आने वाले समय में तेजी से बढ़ेगी। वि8ा विभाग के अनुमान के मुताबिक २००९-१० में ही करीब ४००० सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत हो जाएंगे। इतने कर्मियों का पेंशन व्यय भार तो बढ़ेगा ही। खास बात यह है कि प्रदेश में प्रति वर्ष औसत ५००० पेंशनर बढऱहे हैं। २०१५ तक पेंशनरों की सं2या सवा ला2ा के करीब होगी। प्रदेश में इतने ही राज्य कर्मचारी भी हैं। इस समय करीब ९० हजार हैं और इनपर देयता भी १०३६ करोड़ बन रही है। राज्य गठन के समय करीब ४४ हजार पेंशनर राज्य में थे और देयता भी करीब १४५ करोड़ की ही बनी थी। साफ है कि पेंशन बिल भी आर्थिक मोरचे पर सरकार को परेशान कर सकते हैं। हालांकि, शासन का मानना है कि लगातार बढ़ रहे इस वर्ग को बोझा न मानकर संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए। १९, अप्रैलइस बार कष्टकारी नहीं होगी बदरी-केदार यात्राअधिकांश स्थानों पर सड़क निर्माण का कार्य हुआ पूरा अमर उजाला 4यूरोदेहरादून। बदरी-केदार धाम की यात्रा के लिए इस बार यात्रियों को खराब रास्तों की समस्या से नहीं जूझाना होगा। पूरे रूट पर केवल कुछ किमी के टुकड़े को छोड़ दिया जाए तो शेष यात्रा को निरापद बना दिया गया है। यही नहीं, पिछले सालों की तुलना में यात्रा मार्ग पर इस साल जोखिम भी कम हो गया है। हालांकि, प्रदेश में ५०० से अधिक स्थल चिक्षित किए गए थे। इनमें यात्रा रूट के अधिकांश स्थानों पर सुरक्षा उपाय भी पूरे कर लिए गए हैं। चार धाम यात्रा शुरू होने में मात्र एक सप्ताह बचा है। इस बीच यात्रा मार्ग को दुरुस्त किये जाने का काम भी अंतिम चरण में हैं। पिछले कुछ सालों से यात्रा मार्ग की हालत काफी बिगड़ी हुई थी। डलब लेन होने के कारण जगह-जगह निर्माण कार्य चल रहा है। प्रशासन को भी यात्रा सीजन के दौरान मार्गों के खराब हालत को लेकर खासी मुसीबत उठानी होती है। पिछला यात्रा सीजन तो जैसे-तैसे निपटने के बाद शासन और प्रशासन के स्तर पर यात्रा मार्ग को दुरुस्त करने के निर्देश जारी होते रहे हैं। हालांकि, अभी पूरा मार्ग पर काम समाप्त नहीं हुआ है। लेकिन स्थितियां पिछले साल के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति में है। मंडलायु1त की ओर यात्रा प्रशासन की ओर से यात्रा शुरू होने से पूर्व अधिकांश स्थलों पर काम पूरा करने का दबाव बना हुआ है। यह माना जा रहा है कि यात्रियों के लिए इस बार की यात्रा पिछले साल की तरह कष्टकारी नहीं होगी।

प्रोटीन की खान हैं पहाड़ी अनाजनई टिहरी।

अल्पप्रयुक्त होने वाले मंडुवा, रामदाना एवं झांगोरा जैसे अनाज अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहे हैं। इनका प्रयोग बिस्कुट बनाने से लेकर हलुवा, क्रिस्पीज, गुलगुला, बड़ी और पापड़ बनाने में भी होने लगा है।मंडुवे का उपयोग पहले रोटी बनाने के लिए होता था। इसकी रोटी काली सी होती है। रानीचौरी परिसर के वैज्ञानिकों ने इसकी ब्रीड में परिवर्तन किया है। जिससे मंडुवे की रोटी भी गेहंू की तरह हो गई है। मंडुवे के बिस्कुट की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह मंडुवे में अधिक पोषक तत्व होना है। रामदाने का हलवा भी गुणकारी मानते हुए वैज्ञानिकों ने इसे बहुत अच्छा बताया है। झांगोरा से स्नै1स, क्रिस्पजी, पापड़ आदि भी बनाए जा रहे हैं। पर्वतीय परिसर के कृषि वैज्ञानिक प्रो.एम द8ाा एवं डा. विजय यादव बताते हैं कि किसानों को मोटे अनाजों से वैज्ञानिक विधि के आधार पर नए दौर के भोज्य पदार्थं बनाने की जानकारी देने से उनकी आय बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि परिसर की ओर से परंपरागत फसलों से बने व्यंजनों की प्रतियोगिता में स्वाद, रंग और स्वरूप के आधार पर किए गए मूल्यांकन में भी इनका प्रतिशत बहुत अच्छा रहा है।

-गढ़वाल फिल्म से शुरू किया फिल्मों का सफर -माया नगरी में अलग पहचान बनाना चाहती है चारु -दर्शिल सफारी के साथ कर रही है एक फिल्म बालीवुड में देहरादून की एक और बाला ने दस्तक दी है। गढ़वाली फिल्म 'ब्यो' से शुरुआत करने वाली चारु शर्मा इन दिनों मशहूर फिल्म निर्देशक प्रियदर्शन के साथ 'बम-बम बोले' में अपनी अभिनय कला के जौहर दिखा रही हैं। इस फिल्म में 'तारे जमीन पर' फेम दर्शिल सफारी मुख्य भूमिका में हैं। रविवार को देहरादून में पत्रकारों से बातचीत में चारु ने बताया कि उन्होंने कैरियर की शुरूआत गढ़वाली फिल्म 'ब्यो' से की थी। इसके बाद वह चंडीगढ़ में एयरलाइंस कंपनी से जुड़ गई। वहां उनकी मुलाकात मनोज अग्रवाल से हुई। जिन्होंने उसे अपनी फिल्म 'शाबाश' में लीड रोल दिया। यह फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। मनोज अग्रवाल ने ही चारु को प्रियदर्शन से मिलाया। जिन्होंने उसे फिल्म 'बमबम बोले' में रोल दिया। चारू कहती हैं कि यह रोल आमिर खान के उस रोल की तरह है, जो उन्होंने तारे जमीन पर फिल्म में किया था। इससे पूर्व वह साउथ की दो फिल्मों व विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित छोटे परदे पर आने वाली एक शार्ट फिल्म 'शोहरत, नफरत और शो-बिज' में अपनी कला के जौहर दिखा चुकी हैं। वह बचपन से ही अमिताभ बच्चन, आमिर खान और श्रीदेवी की फैन रही हैं। अपनी मेहनत पर विश्वास करने वाली चारु का मानना है कि बालीवुड में यूथ को काफी स्ट्रगल करना पड़ता है। फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के लिए कोई शार्टकट नहीं होता। इसके लिए कड़ी मेहनत जरूरी है। प्रारंभिक शिक्षा जीजीआईसी इंटर कालेज राजपुर रोड और ग्रेजुएशन डीएवी पीजी से करने वाली चारू की माता हेमवंती शर्मा जूनियर हाई स्कूल में शिक्षिका हैं। उनसे बड़ी दो बहनें हैं तथा भाई सबसे छोटा है।


खतरे में नैनीताल: दरक सकता है बलिया नाला!

-करोड़ों खर्च होने के बाद भी भू-स्खलन का खतरा आशंका: कई गांव की करीब 20 हजार आबादी आ सकती है खतरे की जद में -भाजपा विधायक ने शासन को लिखी चिट्ठी, आशंका जताई हल्द्वानी: बलिया नाला एक बार फिर नैनीताल के लिए खतरा बन गया है। नाले के आसपास पहाड़ों में पड़ी दरारें बढ़ती जा रही हैैं। साथ ही धीमी गति से भू-स्खलन भी हो रहा है। खतरा नजर भले ही न आ रहा हो मगर बरसात के समय तबाही मचा सकता है। भाजपा विधायक ने भी भयावह होती स्थिति से शासन को अवगत करा दिया है। नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध झाील का लुत्फ उठाने देश ही नहीं बल्कि विश्वभर के लोग हर साल और हर समय आते हैैं। इस झाील में पानी संतुलन से अधिक न हो, इसके लिए बलिया नाला निकाला गया है। जो झाील से ब्रेबरी पुल तक है। यह नाला अंग्र्रेजों ने निकाला था। इस नाले में होकर झाील का पानी रानीबाग में आकर गौला नदी में मिलता है। चार साल पहले इस नाले को 15.56 करोड़ के प्रोजेक्ट से तैयार किया गया है। बावजूद इसमें भू-स्खलन की स्थिति बनी रहने से इसकी गुणवत्ता पर उंगलियां उठा रही है। सिंचाई विभाग के सूत्र बताते हैैं कि वीरभट्टी, कृष्णापुर, रहीश होटल का क्षेत्र, राजकीय इंटर कालेज और आलूखेत में पड़ी दरारें अभी तक ज्यों की त्यों हैैं। यह हाल गरमी के समय में है। यह हाल बढ़ती आबादी और आवागमन से बढ़ते बोझा से पैदा हो रही है। स्थिति से भाजपा विधायक खडग़ सिंह बोहरा ने भी शासन को अवगत करा दिया है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि बलिया नाला नैनीताल की नींव है। उसमें करोड़ों खर्च के बावजूद भू-स्खलन की स्थिति बनी हुई है। नाले की तली और साइडें वीरभट्टी तक पक्की है। नाले की बुनियाद और उसके दोनों ओर की पहाडिय़ों का भारी कटाव व धसाव अभी भी हो रहा है, जो नैनीताल के लिए कभी खतरा बन सकता है। इस स्थिति को गंभीरता से लिए बिना अगर झाील संरक्षण योजना या फिर जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत कार्य कराये जा रहे हैैं, तो वह सभी कार्य व्यर्थ हैं। इधर, राज्य उद्यमिता विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष डा.रमेश पांडे ने फोन पर बताया कि आधा दर्जन इलाके खतरे में हैैं। इस बाबत तत्कालीन कांग्र्रेस सरकार में उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखकर दिया था, जिसमें उन्होंने रोप-वे की तर्ज पर स्वीडन अथवा और कहीं विदेश के इंजीनियर बुलाकर मजबूती से काम कराने की मांग की गई थी। इंसेट:::::::::शासन ने मांगी डीपीआर हल्द्वानी: सिंचाई विभाग उत्तर परिक्षेत्र के मुख्य अभियंता एबी पाठक भी नाले की कमजोरी स्वीकारते हैैं। उनका कहना है कि झाील से लेकर करीब डेढ़ किमी तक नाले का तल कुछ साल पहले पक्का कर दिया था। बाकी हिस्सा कच्चा है। जहां पहाड़ कमजोर हैैं वहां भू-स्खलन की स्थिति से हालत चिंताजनक हो जाती है। विभाग पूरी नजर रखे हुए है। शासन ने भी बलिया नाले की डीपीआर मांगी है, इस पर जल्द अध्ययन कर रिपोर्ट भेजी जा रही है।

-छोटे गधेरों में पनचक्की से बनाई जाए बिजली

बड़े बांधों का विरोध किया सुंदरलाल बहुगुणा : पर्यावरणविद् पद्मभूषण सुंदर लाल बहुगुणा का कहना है कि पहाड़ की चोटियों पर पानी ले जाना चाहिए, उनके ढालों पर पेड़ लगाने चाहिए और बड़े बांधों के बजाय छोटे-छोटे गाड-गधेरों में पनचक्की से बिजली पैदा की जानी चाहिए। (धार ऐंच पाणी, ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला) उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ रहे सभी सियासी दलों के एजेंडा भी यह बात होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बांध पानीकी स्थायी समस्या का तात्कालिक हल है। रविवार को देहरादून के जीएमएस रोड स्थित एक होटल में 'चुनाव और हिमालय संसाधन एवं नीति' विषय पर पत्रकार वार्ता में सुंदर लाल बहुगुणा ने कहा कि राजनीति ही सब कुछ तय करती है, इसलिए चुनाव में आम जनता को जल, जंगल, जमीन के मुद्दों के सकारात्मक हल के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव डालना चाहिए। राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण के मुद्दे न होना चिंता की बात है। उन्होंने देश में प्रकृति से सामंजस्य बनाती एक हिमालय नीति की जरूरत पर बल दिया। सुंदरलाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा ने कहा कि राजस्व बढ़ोतरी के लिए शराब को प्रोत्साहन देने का विरोध करना चाहिए। पद्मश्री डा.अनिल जोशी ने कहा कि देश में अब तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना के लिए मूल प्राकृतिक संसाधनों के बजाय औद्योगिक वृद्धि, कृषि को आधार बनाया जाता रहा है। इस परंपरा को तोड़ते हुए जंगल, पानी, नदियों को जीडीपी का आधार बनाया जाना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो देश के जीडीपी में हिमालय की भागीदारी 40 प्रतिशत से भी ज्यादा हो जाएगी, मगर अफसोस कि राजनीतिक दल देश की आर्थिक, सामाजिक व सीमा की सुरक्षा करने वाले हिमालय पर ध्यान नहीं देते हैं। ंने कांग्रेस तथा यूपीए के खिलाफ भाजपा के मुददों के रूप में गिनाया।

क्या होगा दिवाकर के इस्तीफे का हश्र

सरकार से समर्थन वापसी पर जल्द फैसले के नहीं हालात सरकार में रहते हुए भी सरकार से बाहर रहने की उत्तराखंड क्रांति दल की रणनीति! उक्रांद नेता दिवाकर भट्ट ने मंत्री पद से इस्तीफा तो दे दिया है पर इसे मंजूरी नहीं मिली है। उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापसी की बात तो कर रही है पर पार्टी के नेता लोकसभा चुनाव को पहली प्राथमिकता बता रहे हैैं। जाहिर है कि इस मुद्दे पर जल्द फैसले के हालात नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इस इस्तीफे क्या हश्र होगा और चुनाव तक कोई तस्वीर साफ होगी या नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस समय सूबे की भाजपा सरकार बहुमत के अंतिम पायदान पर खड़ी है। ऐसे में साथ चल रहे लोगों की सियासी चालें भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं। काबीना मंत्री दिवाकर भट्ट को गत दिवस अचानक ही नैतिकता याद आ गई और उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे डाला। मजेदार बात यह है कि उक्रांद के एक मात्र मंत्री ने इस्तीफा दे दिया पर पार्टी नेताओं के पास सरकार से समर्थन वापसी के मुद्दे पर निर्णय लेने को समय ही नहीं है। कहा जा रहा है कि उनके लिए लोकसभा चुनाव पहली प्राथमिकता है। इसके पीछे मंशा चाहे जो भी हो पर इतना साफ है कि उक्रांद इस मामले में कोई जल्दबाजी के मूड में नहीं है।पहले बात यूकेडी की। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या यह भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश है और अगर ऐसा है तो इस इस्तीफे का हश्र क्या होगा। अगर लोकसभा चुनाव होने तक उक्रांद नेताओं को समर्थन वापसी पर निर्णय का वक्त नहीं मिला तो यह क्षेत्रीय दल सरकार से बाहर होकर भी सरकार के साथ रहेगा। ऐसे में चुनाव में प्रचार के वक्त उक्रांद नेताओं के पास भाजपा पर तीखे प्रहार करने का मौका होगा। यानि मंशा 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे' वाली कहावत पर काम करने की है। अब यही स्टैंड पर कायम रहता है तो क्या यह माना जाएगा कि उसके रणनीतिकारों की नजर में वोटर के पास सोचने-समझाने की शक्ति नहीं और उक्रांद गठबंधन धर्म के साथ ही प्रतिपक्षी का धर्म भी निभाना चाहता है, लेकिन क्या यह मुमकिन है। इस सबके अलावा इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र बिंदु दिवाकर भट्ट की रणनीति क्या है, इसे लेकर भी कयास ही लगाए जा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कुछ अर्सा पहले उन पर इस्तीफे का भारी दबाव था तब उन्होंने न केवल इससे किनारा कर लिया था बल्कि परोक्ष रूप से अपनी ही पार्टी को चेतावनी भी दे डाली थी।अब एक नजर भाजपा पर, यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं लगता कि बहुमत की कगार पर खड़ी भाजपा में ऐन चुनाव के वक्त इस राजनैतिक घटनाक्रम से कोई खलबली नजर नहीं आ रही है। जाहिर है कि या तो पार्टी सब कुछ मैनेज करने को इस कदर भरोसेमंद है कि उसे सरकार के भविष्य की कोई चिंता ही नहीं, या फिर उसकी नजर में यह परिणति उक्रांद के अंदरूनी संघर्ष की है, जिसे नियंत्रित करना पार्टी की खुद की ही जिम्मेदारी है।---पहले विभाग से दिया था इस्तीफादेहरादून: लगता है दिवाकर को इस्तीफे से खासा लगाव है। आठ माह पहले ही दिवाकर ने इसी तरह अचानक ही खाद्य विभाग से इस्तीफा दे दिया था। कई रोज तक राजनीतिक नाटक चला और दिवाकर विभाग संभाले रहे। चर्चा है कि इस बार भी कहीं ऐसा ही तो नहीं होने वाला। ---------उक्रांद से चल रही है बातचीत: डा.जैन राज्य सरकार अपने दम पर अभी भी बहुमत में : भाजपा के प्रदेश सह प्रभारी डा.अनिल जैन ने कहा कि प्रदेश सरकार पर कोई संकट नहीं है। संख्या बल के आधार पर भाजपा अपने दम पर बहुमत में है। वैसे उक्रांद के साथ भी बातचीत चल रही है।प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत में डा.जैन ने कहा कि मौजूदा 68 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 35 विधायक हैं। दो निर्दलियों का भी समर्थन है। यूकेडी से भी बातचीत चल रही है। ऐसे में कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।उन्होंने कहा कि पहले फेज के चुनाव ने भाजपा तथा एनडीए खेमे को खुश होने का मौका दिया है, लालू यादव की तरह कुछ और लोग हैं जिन्हें झाल्लाते हुए देखा जा सकता है। उन्होंने एक बार फिर से भाजपा के मुद्दों को गिनाया। उन्होंने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों के काले धन को वापस लाने में आखिर किसे दिक्कत हो सकती है। यूपीए का उत्तराखंड के साथ सौतेला व्यवहार और आतंकवादी हमलों को उन्होंने कांग्रेस तथा यूपीए के खिलाफ भाजपा के मुददों के रूप में गिनाया।

प्रदेश में हर साल बढ़ जाते हैं ५००० पेंशनरपेंशन बिल अब १००० करोड़

देहरादून। बढ़ता पेंशन बिल भी अब सरकार के आर्थिक मोरचे पर परेशानी का सबब बन रहा है। रिटायर होने वाले कर्मियों की सं2या में तेजी से इजाफा होने का अनुमान है। ऐसे में सरकार को पेंशन केलिए ही खासी धनराशि जुटानी पड़ सकती है। पेंशन रिवीजन के कारण ही सरकार को करीब ३०० करोड़ का अतिरि1त आर्थिक व्यय भार वहन करना पड़ रहा है।छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों के लागू होने के बाद से ही पेंशन पर करीब ४० प्रतिशत का इजाफा हुआ है। एरियर को छोड़ भी दिया जाए तो पेंशन पर ही हजार करोड़ से अधिक का व्यय भार है। यह राशि आने वाले समय में तेजी से बढ़ेगी। वि8ा विभाग के अनुमान के मुताबिक २००९-१० में ही करीब ४००० सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत हो जाएंगे। इतने कर्मियों का पेंशन व्यय भार तो बढ़ेगा ही। खास बात यह है कि प्रदेश में प्रति वर्ष औसत ५००० पेंशनर बढऱहे हैं। २०१५ तक पेंशनरों की सं2या सवा ला2ा के करीब होगी। प्रदेश में इतने ही राज्य कर्मचारी भी हैं। इस समय करीब ९० हजार हैं और इनपर देयता भी १०३६ करोड़ बन रही है। राज्य गठन के समय करीब ४४ हजार पेंशनर राज्य में थे और देयता भी करीब १४५ करोड़ की ही बनी थी। साफ है कि पेंशन बिल भी आर्थिक मोरचे पर सरकार को परेशान कर सकते हैं। हालांकि, शासन का मानना है कि लगातार बढ़ रहे इस वर्ग को बोझा न मानकर संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए। १९, अप्रैलइस बार कष्टकारी नहीं होगी बदरी-केदार यात्राअधिकांश स्थानों पर सड़क निर्माण का कार्य हुआ पूरा अमर उजाला 4यूरोदेहरादून। बदरी-केदार धाम की यात्रा के लिए इस बार यात्रियों को खराब रास्तों की समस्या से नहीं जूझाना होगा। पूरे रूट पर केवल कुछ किमी के टुकड़े को छोड़ दिया जाए तो शेष यात्रा को निरापद बना दिया गया है। यही नहीं, पिछले सालों की तुलना में यात्रा मार्ग पर इस साल जोखिम भी कम हो गया है। हालांकि, प्रदेश में ५०० से अधिक स्थल चिक्षित किए गए थे। इनमें यात्रा रूट के अधिकांश स्थानों पर सुरक्षा उपाय भी पूरे कर लिए गए हैं। चार धाम यात्रा शुरू होने में मात्र एक सप्ताह बचा है। इस बीच यात्रा मार्ग को दुरुस्त किये जाने का काम भी अंतिम चरण में हैं। पिछले कुछ सालों से यात्रा मार्ग की हालत काफी बिगड़ी हुई थी। डलब लेन होने के कारण जगह-जगह निर्माण कार्य चल रहा है। प्रशासन को भी यात्रा सीजन के दौरान मार्गों के खराब हालत को लेकर खासी मुसीबत उठानी होती है। पिछला यात्रा सीजन तो जैसे-तैसे निपटने के बाद शासन और प्रशासन के स्तर पर यात्रा मार्ग को दुरुस्त करने के निर्देश जारी होते रहे हैं। हालांकि, अभी पूरा मार्ग पर काम समाप्त नहीं हुआ है। लेकिन स्थितियां पिछले साल के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति में है। मंडलायु1त की ओर यात्रा प्रशासन की ओर से यात्रा शुरू होने से पूर्व अधिकांश स्थलों पर काम पूरा करने का दबाव बना हुआ है। यह माना जा रहा है कि यात्रियों के लिए इस बार की यात्रा पिछले साल की तरह कष्टकारी नहीं होगी।

प्रोटीन की खान हैं पहाड़ी अनाजनई टिहरी।

अल्पप्रयुक्त होने वाले मंडुवा, रामदाना एवं झांगोरा जैसे अनाज अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहे हैं। इनका प्रयोग बिस्कुट बनाने से लेकर हलुवा, क्रिस्पीज, गुलगुला, बड़ी और पापड़ बनाने में भी होने लगा है।मंडुवे का उपयोग पहले रोटी बनाने के लिए होता था। इसकी रोटी काली सी होती है। रानीचौरी परिसर के वैज्ञानिकों ने इसकी ब्रीड में परिवर्तन किया है। जिससे मंडुवे की रोटी भी गेहंू की तरह हो गई है। मंडुवे के बिस्कुट की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। इसकी वजह मंडुवे में अधिक पोषक तत्व होना है। रामदाने का हलवा भी गुणकारी मानते हुए वैज्ञानिकों ने इसे बहुत अच्छा बताया है। झांगोरा से स्नै1स, क्रिस्पजी, पापड़ आदि भी बनाए जा रहे हैं। पर्वतीय परिसर के कृषि वैज्ञानिक प्रो.एम द8ाा एवं डा. विजय यादव बताते हैं कि किसानों को मोटे अनाजों से वैज्ञानिक विधि के आधार पर नए दौर के भोज्य पदार्थं बनाने की जानकारी देने से उनकी आय बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि परिसर की ओर से परंपरागत फसलों से बने व्यंजनों की प्रतियोगिता में स्वाद, रंग और स्वरूप के आधार पर किए गए मूल्यांकन में भी इनका प्रतिशत बहुत अच्छा रहा है।

-गढ़वाल फिल्म से शुरू किया फिल्मों का सफर -माया नगरी में अलग पहचान बनाना चाहती है चारु -दर्शिल सफारी के साथ कर रही है एक फिल्म बालीवुड में देहरादून की एक और बाला ने दस्तक दी है। गढ़वाली फिल्म 'ब्यो' से शुरुआत करने वाली चारु शर्मा इन दिनों मशहूर फिल्म निर्देशक प्रियदर्शन के साथ 'बम-बम बोले' में अपनी अभिनय कला के जौहर दिखा रही हैं। इस फिल्म में 'तारे जमीन पर' फेम दर्शिल सफारी मुख्य भूमिका में हैं। रविवार को देहरादून में पत्रकारों से बातचीत में चारु ने बताया कि उन्होंने कैरियर की शुरूआत गढ़वाली फिल्म 'ब्यो' से की थी। इसके बाद वह चंडीगढ़ में एयरलाइंस कंपनी से जुड़ गई। वहां उनकी मुलाकात मनोज अग्रवाल से हुई। जिन्होंने उसे अपनी फिल्म 'शाबाश' में लीड रोल दिया। यह फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। मनोज अग्रवाल ने ही चारु को प्रियदर्शन से मिलाया। जिन्होंने उसे फिल्म 'बमबम बोले' में रोल दिया। चारू कहती हैं कि यह रोल आमिर खान के उस रोल की तरह है, जो उन्होंने तारे जमीन पर फिल्म में किया था। इससे पूर्व वह साउथ की दो फिल्मों व विक्रम भट्ट द्वारा निर्देशित छोटे परदे पर आने वाली एक शार्ट फिल्म 'शोहरत, नफरत और शो-बिज' में अपनी कला के जौहर दिखा चुकी हैं। वह बचपन से ही अमिताभ बच्चन, आमिर खान और श्रीदेवी की फैन रही हैं। अपनी मेहनत पर विश्वास करने वाली चारु का मानना है कि बालीवुड में यूथ को काफी स्ट्रगल करना पड़ता है। फिल्म इंडस्ट्री में सफलता के लिए कोई शार्टकट नहीं होता। इसके लिए कड़ी मेहनत जरूरी है। प्रारंभिक शिक्षा जीजीआईसी इंटर कालेज राजपुर रोड और ग्रेजुएशन डीएवी पीजी से करने वाली चारू की माता हेमवंती शर्मा जूनियर हाई स्कूल में शिक्षिका हैं। उनसे बड़ी दो बहनें हैं तथा भाई सबसे छोटा है।


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