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Saturday, April 9, 2011

लो भाई साहिब मुख्या मंत्री जी गुस्से में हैं आज कल

लेटीबुंगा (नैनीताल): मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' के विकास यात्रा की गाज दो फार्मेसिस्टों पर जा गिरी। डॉ.निशंक ने ड्यूटी के प्रति लापरवाह इन दोनों फार्मेसिस्टों के निलंबन का आदेश देते हुए सुदूर क्षेत्रों में सरकार की मंशा के अनुरूप चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने में नाकाम सीएमओ को भी तत्काल हटाने का फरमान सुना दिया। इसके अलावा पर्यटन व प्राकृतिक लिहाज से उर्वर मुक्तेश्वर-भटेलिया व रामगढ़ क्षेत्र में बिल्डरों के अवैध अतिक्रमण पर तल्ख तेवर अपनाते हुए मुख्यमंत्री ने डीएम को जांच कमेटी गठित कर सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए।
मुख्यमंत्री डॉ.निशंक शुक्रवार को धारी धारी ब्लॉक के सुदूर लेटीबूंगा गांव में जनता दरबार के जरिए ग्रामीणों से सीधे रूबरू हुए। जनसुनवाई के दौरान ओखलकांडा ब्लॉक के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जोस्यूड़ा में पटरी से उतर चुकी चिकित्सा व्यवस्था का मुद्दा जोरशोर से उठा। मुख्यमंत्री को बताया गया कि फार्मेसिस्ट की तैनाती न होने से मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है।
इस पर डॉ.निशंक ने सीएमओ डॉ.डीएस गब्र्याल से इसका कारण पूछा। सीएमओ ने अवगत कराया कि जोस्यूड़ा केंद्र में वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर माह में दस-दस दिन के लिए दो फार्मेसिस्टों को मरीजों की देखरेख का जिम्मा सौंपा गया है। मगर दोनों डं्यूटी पर नहीं पहुंचते। इससे खफा मुख्यमंत्री ने डीएम शैलेश बगौली को दोनों फार्मेसिस्टों को निलंबित कर व्यवस्थाएं दुरुस्त करने में अक्षम रहने पर सीएमओ को भी हटाने का फरमान सुना डाला।
मुक्तेश्वर-भटेलिया व रामगढ़ क्षेत्र में बिल्डरों द्वारा ग्रामीणों के हक-हकूक को ताक पर रख अतिक्रमण की शिकायत को मुख्यमंत्री ने खासी गंभीरता से लिया। उन्होंने डीएम से जांच कमेटी गठित कर त्वरित कार्रवाई को कहा।
इसके अलावा डॉ.निशंक ने लेटीबूंगा में हिमगिरी स्टेडियम के निर्माण को 20 लाख रुपए की घोषणा करते हुए भीमताल में कुमाऊं विवि परिसर को भी हरी झंडी दी। साथ ही भीड़ापानी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना को डीएम से सर्वेक्षण कराने को कहा। मुख्यमंत्री ने सड़क, बिजली, पानी व स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सुनने के साथ ही एक-एक कर लोनिवि, वन, विद्युत, जल संस्थान, शिक्षा तथा समाज कल्याण विभाग के अफसरों से योजनाओं की प्रगति का ब्योरा तलब किया।

क्या हैं कोतवाल की खामियां.....और क्या मिली सजा यह सही या गलत है फैसला आप करें.....

भले ही कोतवाल कैलाश पंवार अपनी ईमानदारी और स्ट्रेट फारवर्ड व्यवहार के लिए जाने जाते हों, मगर अपने गुस्से के चलते वह हमेशा विवादों में घिरे रहते हैं। कभी व्यापारियों से भिड़ंत, तभी सत्ताधारी नेताओं, अन्य राजनीतिक दलों के नेता हो या फिर आमजन। पहले भी इसी गुस्से के चलते उन्हें कई बार हटाने की मांग हुई।
व‌र्ल्ड कप जीत के जश्न में खलल डालने वाले शहर कोतवाल कैलाश पंवार अब एक माह तक लोगों के साथ आचार व व्यवहार का सलीका सीखेंगे। इसके लिए वह बाकायदा महीनेभर पुलिस लाइन में ड्यूटी बजाएंगे। उन्हें यह भी सिखाया जाएगा कि कब और कहां किस आधार पर निर्णय लेना चाहिए। साथ ही, अविवेकपूर्ण निर्णयों के दुष्परिणाम से भी अवगत कराया जाएगा। राजधानी में पुलिस की छवि सुधारने के लिए इस तरह का यह पहला मामला है।
भारतीय टीम के व‌र्ल्ड कप जीत का जश्न घंटाघर पर मना रही भीड़ पर दो अप्रैल की रात्रि कोतवाल कैलाश पंवार ने लाठीचार्ज कर दिया था। इस दौरान भगदड़ मच गई। भीड़ ने भी पुलिस पर पथराव किया। रात दो बजे तक चले एक घटनाक्रम में दर्जनों बच्चे, महिलाएं, पुरुष, मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मी घायल हुए। मामले में शासन ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे। एसएसपी जीएस मर्तोलिया ने एसपी (देहात) गिरीश चंद्र ध्यानी को जांच सौंपी। गुरुवार देर रात एसपी ध्यानी ने रिपोर्ट एसएसपी को सौंपी दी। घटना के लिए शहर कोतवाल कैलाश पंवार के अविवेकपूर्ण फैसले व माहौल के इरादे को न भांप पाने को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि यदि कोतवाल अपने गुस्से को काबू कर लेते तो घटना रोकी जा सकती थी।
एसएसपी जीएस मर्तोलिया ने सजा स्वरूप कोतवाल पंवार को लाइन से संबद्ध करने के आदेश दिए। एसएसपी ने बताया कि कोतवाल को पुलिस लाइन में पब्लिक के साथ बातचीत व व्यवहार करने का सलीका सिखाया जाएगा। उनके स्थान पर फिलहाल एसएसआइ राम कुमार जुयाल कोतवाली का चार्ज देखेंगे।
योग से करेंगे तनाव कम
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, प्रशिक्षण के दौरान कोतवाल को तनाव व गुस्सा कम करने के लिए योग सिखाया जाएगा। वह रोजाना सुबह दो घंटे योग का प्रशिक्षण भी लेंगे।

हम भाजपा के सभी मुख्यमंत्री सब एक है ....हे जनता आप सुन लो बस

देहरादून: जल्द ही प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक अपने दो पूर्ववर्तियों भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद्र खंडूड़ी संग एक राह पर चलते नजर आएंगे। आगामी 15 मई से आरंभ हो रही एक महीने की जन आशीर्वाद यात्रा में ये तीनों दिग्गज एक साथ शामिल होकर राज्य के सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचेंगे। माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान ने राज्य विधानसभा चुनाव से ऐन पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आपसी मतभेद-मनभेद समाप्त करने और जनता को यह कहा जायेगा कि हम सब एक ही हैं...
भाजपा को यृं तो मतबूत सांगठनिक नेटवर्क की पार्टी माना जाता है लेकिन उत्तराखंड के संदर्भ में यह विडंबना रही है कि यहां राज्य गठन के तुरंत बाद से ही भाजपा अलग-अलग ध्रुवों में बंट गई। पार्टी के अंदरूनी मतभेदों का आलम यह रहा कि एक साल के भीतर ही राज्य के पहले और तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को कुर्सी गंवानी पड़ी। स्वामी के बाद मुख्यमंत्री बने भगत सिंह कोश्यारी लेकिन अंतरिम सरकार के लगभग सवा साल का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। माना गया कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के श्रेय के बावजूद पार्टी के अंतर्कलह के कारण जनमत ने भाजपा को नकारा।
भाजपा ने इससे भी सबक नहीं लिया क्योंकि वर्ष 2007 में जब पार्टी फिर सत्ता में आई तो अंतरिम सरकार के दौरान की कहानी दोहराई जाने लगी। आलाकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी को राज्य की कमान सौंपी तो पार्टी में धड़ेबाजी के कारण उन्हें लगभग सवा दो साल में ही मुख्यमंत्री पद से रुखसत होना पड़ा। खंडूड़ी के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री बने डा. रमेश पोखरियाल निशंक। उस समय लगा कि प्रदेश भाजपा में स्थिरता आएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। डा. निशंक को अपने अब तक के लगभग दो साल के कार्यकाल में पार्टी के भीतर तमाम तरह की चुनौतियों से रूबरू होना पड़ा और यह स्थिति अब भी कायम है।
अब क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव निकट हैं तो आलाकमान ने पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को चुनावी संभावनाओं के लिहाज से खतरनाक मान सभी दिग्गजों को एक साथ लाने की पहल की है। एक महीने की जन आशीर्वाद यात्रा में कोश्यारी, खंडूड़ी और निशंक साथ-साथ चलेंगे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के मूुताबिक मौजूदा सीएम व दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा प्रदेश अध्यक्ष व कई पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के साथ ही संगठन के वरिष्ठ लोग इसमें शिरकत करेंगे। 

सरकार ने राज्य के बेरोजगारों और युवाओं की मुराद पूरी कर दी

देहरादून: सरकार ने राज्य के बेरोजगारों और युवाओं की मुराद पूरी कर दी। विद्यालयी शिक्षा में सहायक अध्यापकों और प्रवक्ता पदों पर सीधी भर्ती में राज्य के अभ्यर्थी ही नियुक्ति पाएंगे। इसमें पेश आने वाली अड़चन को दूर कर उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के विनियम में संशोधन किया गया है।
प्रदेश के सबसे बड़े महकमे शिक्षा में रोजगार के अवसर अन्य महकमों की तुलना में काफी ज्यादा हैं। समूह-ग के पदों में भर्ती में राज्य के युवाओं को वरीयता देने और इसके लिए स्थायी निवास प्रमाण पत्र के साथ ही स्थानीय सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण को अनिवार्य किया जा चुका है। शिक्षा महकमे में इस व्यवस्था को लागू करने में मौजूदा विनियम आड़े आ रहे थे। प्रशिक्षित बेरोजगारों के साथ ही शिक्षकों के संगठन राज्य के युवाओं को ही शिक्षकों की भर्ती में वरीयता देने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने यह मांग पूरी कर दी। इसके लिए बोर्ड के विनियम-2009 में संशोधन कर विद्यालयी शिक्षा परिषद विनियम 2011 लागू किया गया है।
उप्र की तर्ज पर लागू विनियम में अभी तक इस बाबत प्रावधान नहीं किया गया था। अब मूल विनियम के उप नियमों में यह प्रावधान शामिल किया गया है। माध्यमिक शिक्षा अपर सचिव ऊषा शुक्ला ने इस बाबत शासनादेश जारी किया है। इसके मुताबिक समूह-ग के सहायक अध्यापक एवं प्रवक्ता पदों पर सीधी भर्ती के लिए वही अभ्यर्थी पात्र होंगे, जिसका नाम राज्य के सेवायोजन कार्यालय में पंजीकृत हो और अभ्यर्थी के लिए राज्य की परंपराओं-रीतियों का ज्ञान और प्रदेश में विद्यमान विशिष्ट परिस्थितियों में नियुक्ति के लिए जरूरी होगा। इसमें मान्यताप्राप्त संस्थाओं में नियमित रूप से कार्यरत शिक्षकों के लिए सीधी भर्ती के आवेदन में सेवायोजन कार्यालय में पंजीकरण आवश्यक नहीं होगा। सरकार हाल ही में प्रवक्ताओं, एलटी शिक्षकों के रिक्त पदों पर जल्द नियुक्ति की घोषणा कर चुकी है। प्राइमरी शिक्षकों के रिक्त 2200 पदों पर भर्ती में भी उक्त प्रावधान अनिवार्य किया गया है। अध्यापक पात्रता परीक्षा के शासनादेश में भी यह प्रावधान जोड़ा जा चुका है।

काशीपुर जिला बने पर गदरपुर इसमें शामिल न हो...गदरपुर वासिओं की मांग

काशीपुर को जिला घोषित किए जाने की सुगबुगाहट को देखते हुए गदरपुर के व्यापारियों के कान खड़े हो गए हैं। व्यापारियों को इस बात का डर है कि काशीपुर को जिला घोषित किए जाने पर गदरपुर को भी उसमें शामिल कर दिया जाएगा। उन्होंने मांग की है कि गदरपुर को किसी भी सूरत में काशीपुर में शामिल न किया जाए।
ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि मुख्यमंत्री के आगमन पर संभवत: काशीपुर को जिला घोषित कर दिया जाएगा। ऐसा हुआ तो गदरपुर भी काशीपुर जिले में शामिल किया जा सकता है। इन्हीं अटकलों को देखते हुए यहां के व्यापारियों ने विरोध का एलान किया है।
शुक्रवार को व्यापार मंडल अध्यक्ष अशोक छाबड़ा ने जारी एक बयान में कहा कि गदरपुर क्षेत्र अलग विधानसभा क्षेत्र है। इस विधानसभा में करीब एक लाख की आबादी है। क्षेत्रवासियों के अधिकांश व्यापारिक, सामाजिक कार्य रुद्रपुर से जुड़े हैं और क्षेत्र रुद्रपुर के निकट भी है। उन्होंने कहा है कि यदि काशीपुर जनपद बने तो वे इसका स्वागत करेंगे, लेकिन गदरपुर क्षेत्र ऊधम सिंह नगर जनपद में ही रहना चाहिए। छाबड़ा ने कहा कि यदि गदरपुर को काशीपुर जनपद के साथ जोड़ा गया तो इसका कड़ा विरोध किया जायेगा। श्री छाबड़ा ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री द्वारा अपने कार्यक्रम में काशीपुर जिले की घोषणा की जाती है, तो उक्त मांग को ध्यान में रहते हुए करनी चाहिए।

लो भाई काशीपुर पुलिस का यह कारनामा देखो

काशीपुर: एक व्यक्ति ने धोखाधड़ी कर फर्जी व्यक्ति को न्यायालय में पेश कर जेल भेजने का आरोप लगाया है। पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर रिपोर्ट दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी है।
ग्राम गुलजारपुर निवासी भगत सिंह पुत्र स्वर्ण सिंह ने धारा 156, 3 के तहत न्यायालय में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर एक मामले में धोखाधड़ी कर फर्जी व्यक्ति को न्यायालय में प्रस्तुत कर जेल भेजने का आरोप लगाया। सिंह ने न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में कहा कि उसके द्वारा सुमित पाल, देवेंद्र पाल, सोहन सिंह, ग्राम बहादरपुर, जसपुर निवासी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी पुत्र सरजीत सिंह व कथित स्वार, रामपुर निवासी गुरप्रीत उर्फ गोपी पुत्र मोहन सिंह आदि के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। ग्राम बहादरपुर, जसपुर निवासी गुरप्रीत उर्फ गोपी, जो सुमित का रिश्तेदार व भगत सिंह के साथ मारपीट का आरोपी है। आरोप लगाया कि पुलिस से सांठगांठ कर ग्राम बहादरपुर, जसपुर निवासी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी के स्थान पर स्वार रामपुर निवासी गुरप्रीत को पेश कर जेल भेज दिया। पुलिस ने न्यायालय के आदेश पर रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी।

आवासीय भवनों व कालोनी का नाम दीनदयाल नगर रखने का आदेश

काशीपुर . केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाने वाली आइएचएसडीपी व बीएसयूपी योजना में बनने वाले आवासीय कालोनी का नाम बदलेगा। राज्य सरकार ने योजना के आवासीय भवनों व कालोनी का नाम दीनदयाल नगर रखने का आदेश दिया है।
आइएचएसडीपी एवं बीएसयूपी शहरी गरीबों के लिए छत उपलब्ध कराने की योजना है। इसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत, राज्य सरकार की 10 प्रतिशत व योजना के तहत लाभांवित होने वाले पात्र को 10 प्रतिशत देना पड़ता है। इस योजना के तहत राज्य में हरिद्वार, नैनीताल, पौड़ी, श्रीनगर, विकास नगर, मसूरी, मंगलौर, लंडौरा, हल्द्वानी, लालकुंआ, कालाढूंगी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत, किच्छा, जसपुर, काशीपुर, दिनेशपुर, महुआखेड़ागंज, महुआडाबरा नगर पंचायत व नगर पालिकाओं में आवासीय भवन तथा कालोनी निर्माण कार्य शामिल किए गए हैं। प्रमुख सचिव एस राजू ने बीती 17 मार्च को योजना में शामिल नगर पालिकाओं तथा नगर पंचायतों को पत्र भेजकर इन आवासीय भवनों व कालोनी का नाम दीनदयाल नगर करने के आदेश दिए हैं। पत्र में कहा गया है कि इन आवासीय कालोनी के नामकरण के संबंध में आवश्यक कार्यवाही करते हुए कालोनी के बाहर सूचना बोर्ड व सूचना पट लगाए जाएं। इसके तहत काशीपुर में मोहल्ला अल्ली खां, टांडा उज्जैन व लक्ष्मीपुर पट्टी में भवन निर्माण किए गए हैं। नगर पालिका अधिशासी अधिकारी नजर अली ने बताया कि राज्य सरकार से इस संबंध में पत्र प्राप्त हुआ है। जल्द एसडीएम व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक कर नामकरण व बोर्ड लगाने की प्रक्रिया पूरी कर दी जाएगी।


वनों के संरक्षण और संव‌र्द्धन पर दिया बल

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हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रौढ़ सतत् शिक्षा एवं प्रसार विभाग के तत्वावधान में पर्यावरण एवं वन विषय पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने वनों को ग्रामीण समाज की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताते इनके संरक्षण एवं संव‌र्द्धन पर बल दिया।
सतत् शिक्षा केंद्र ओजली में आयोजित गोष्ठी को गढ़वाल वन प्रभाग के प्रतिनिधि के रुप में संबोधित करते लोक कलाकार घनानंद गगोडिया ने कहा कि वनों की सुरक्षा एवं विकास के बिना पहाड़ों में स्वच्छ और खुशहाल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का जंगलों से नजदीकी संबंध है। जंगलों के अंधाधुंध विनाश के कारण मनुष्य धीरे-धीरे वनों से दूर हो रहा है। यही कारण है कि गांवों में चारे, पानी, ईंधन की कमी और भूस्खलन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

प्रौढ़ सतत शिक्षा केंद्र के विभागाध्यक्ष प्रो. एसएस रावत ने कहा कि पिछले पचास वर्षो में वनों का सबसे अधिक विनाश हुआ है। विकास की बलि चढ़ने के कारण पर्यावरण पर भी इसका असर देखा जा सकता है। उन्होंने ग्रामीणों से पौधारोपण और वनों के संरक्षण की अपील की। तक्षशिला अकादमी के निदेशक नवीन प्रकाश नौटियाल ने ग्रामीण युवाओं से पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज प्रतिस्पद्र्धा के इस दौर में वनों से संबंधित कई तरह के रोजगार युवाओं के लिए मौजूद हैं। ग्राम प्रधान कुसमा देवी ने वनों के संरक्षण में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम का संयोजन रामकिशन पांडेय और संचालन डॉ. राकेश भंट्ट ने किया। कार्यक्रम में महिला मंगल दल, युवक मंगल दल, पंचायत सदस्यों समेत ग्रामीण मौजूद रहे।
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Thursday, April 7, 2011

पहाड़ सी ज़िंदगी में महिलाओं का ये हौसला!

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  • प्रवीन कुमार भट्ट
पहाड़ सी ज़िंदगी में महिलाओं का ये हौसला!देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने इस साल साढ़े अट्ठारह करोड़ के जेंडर बजट का ऐलान किया है। सरकार के मुताबिक यह बजट पिछले साल से चार सौ करोड़ अधिक है। सरकार ने जेंडर बजट महिलाओं की आवश्यकताओं और लैंगिक समानताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया है। इस बार के जेंडर बजट के लिए 26 विभागों का चयन किया गया है। महिलाओं के शैक्षिक, सामाजिक, राजनैतिक उन्नयन के लिए अनेक योजनाएं केंद्र सरकार ने भी लागू की हैं। राज्य में महिला पंचायत प्रतिनिधियों के प्रशिक्षण के लिए ही करोड़ों रूपये खर्च किये जा रहे हैं, बावजूद इसके कि इन योजनाओं के परिणामों की कोई गारंटी नहीं है। दूसरी ओर कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें न तो किसी जेंडर बजट की आवश्यकता है और न किसी योजना की। इन महिलाओं ने अपने बूते ही आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल पूरे होने पर महिला समाख्या ने राज्य की ऐसी 19 महिलाओं को सम्मानित कर उनका हौसला बढ़ाया।
नैनीताल जिले के सिराफ्यल गांव की हेमा को जब महिला समाख्या के मंच पर सम्मानित किया जा रहा था तो उसकी मुस्कुराहट सब कुछ बयां कर रही थी। अठ्ठारह साल की हेमा का परिचय यह है कि वह आज एक कुशल मैकेनिक है। आम तौर पर पुरूषों के लिए मुफीद समझा जाने वाला यह काम किसी महिला के लिए इतना आसान नहीं था। हेमा के पिता मैकेनिक का काम करते थे, इस पेशे से उसका रिश्ता बस इतना ही था, लेकिन पिता की तबीयत बहुत खराब रहने लगी और उनके साथ दुकान जाकर हेमा टायर जोड़ना, ट्यूब में हवा भरना, गाड़ी के पुर्जों और नटों को कसना सीखने लगी और अब हेमा कुशलता से एक पुरूष मैकेनिक के बराबर काम करती है। हेमा का कहना है कि पिता की दुकान होने के नाते दुकान में आना-जाना तो बहुत आसान था, लेकिन जैसे ही उसने दुकान में काम करना शुरू किया, लोगों ने तरह-तरह की बातें करनी शुरू कर दीं जिनकी परवाह किए बिना वह अपने कार्य में लगी रही जिसके परिणाम स्वरूप वह आज आत्मनिर्भर है।
पौड़ी के बीरोंखाल ब्लाक के डांग गांव की मीरा देवी भी इस पीढ़ी के समाज को रास्ता दिखा रही है। मीरा का विवाह उसके शराबी पिता ने उससे 22 साल बड़े श्याम लाल से कर दिया था। मीरा प्रारंभ से पति को लोहारी के काम में सहायता करती थी, लेकिन 2007 में पति की मृत्यु के बाद मीरा ने लोहारी के काम को मजबूती से संभाल लिया और आज कुल्हाड़ी, कुदाल, दराती बनाने, धार लगाने का काम कुशलता से करती है। मीरा लोहारी के काम से दो बच्चों का पालन पोषण कुशलता से कर रही है। इसी जनपद की गोदांबरी देवी के संघर्ष और आत्मनिर्भरता की कहानी भी मीरा और हेमा जैसी ही है। गोदांबरी का विवाह 11 साल की अल्पायु में ही हो गया था। वर्तमान में गोदांबरी का पति शंकर सिंह, दिल्ली में एक प्राईवेट कंपनी में नौकरी करता है। बहुत कम आय होने के कारण उसके सामने पांच बच्चों वाले परिवार का पालन पोषण मुश्किल था। ऐसे में गोदांबरी ने पहाड़ में सबसे कठिन और पुरूषों के लिए सुरक्षित समझे जाने वाले राज मिस्त्री का काम सीखा। परिस्थितियां विपरित होने के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और आज वह घरों की दीवारों, रास्तों और खड़ंजों की चिनाई आसानी से कर लेती है उसने अपनी आजीविका का इसे पेशा बना लिया है।
पौड़ी की मुन्नी देवी अपने पति की मृत्यु के बाद आजीविका चलाने के लिए सफलतापूर्वक पशुओं का व्यापार कर रही है। टिहरी की मकानी देवी ने पति के दूसरा विवाह करने के बाद घर छोड़ दिया और मायके में आकर रहने लगी। यहां उसने परिवार के पुश्तैनी पेशे ढोल दमऊ बजाने को आजीविका का साधन बनाया तो बहुत विरोध हुआ। इसके बाद मकानी देवी ने ढोल बजाना नहीं छोड़ा और आखिर समाज को उनकी जिद के आगे झुकना पड़ा। वर्तमान में मकानी ढोल बजाने का काम कर चार बच्चों का परिवार पाल रही है। चंपावत की ममता ने आटा चक्की खोलकर अपने परिवार को आर्थिक स्वावलंबन की ओर कदम बढ़ाया है तो देहरादून की रजिया बेग देश की पहली महिला है जिन्हें किसी भी राज्य काउंसिल की अध्यक्ष बनने का गौरव मिला है। पांच बहनों और दो भाईयों के बीच पली बढ़ी रजिया का समय भी कठिनाईयों भरा रहा है लेकिन आज वह एक सफल महिला वकील और समाजसेवी हैं। रजिया बेगम भी संभवतः उत्तराखंड राज्य की अकेली ऊर्जा निगम में रजिस्टर्ड बिजली ठेकेदार हैं। दुगड्डा की रजिया के पति का देहांत तब हुआ जब वह केवल 28 साल की थी। इन्होंने भी पति की मृत्यु के बाद उनके काम को नहीं छोड़ा बल्कि सफलता पूर्वक उसे आगे बढ़ा रही हैं। मूल रूप रामगढ़ नैनीताल की देवकी देवी नानकमत्ता में सुनार की दुकान चला रही है। सुनार के काम में उसकी दक्षता का नतीजा है कि दूर-दूर से ग्राहक उसके पास आते हैं।
आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में काम कर रही मोहिनी देवी की दास्तान किसी की भी आंखें खोलने के लिए काफी है। रामनगर के नवरदारपुरी गांव की मोहिनी के पिता शराब के आदी थे उनकी इस कमजोरी का फायदा उठाकर दूसरे शराबी भी घर में आते जाते थे। इनमें से एक दूर के रिश्ते का मामा भी था जो मोहिनी के साथ छेड़खानी करने से भी बाज नहीं आता था। एक बार तो स्थिति यह हुई कि घर में कोई न होने पर वह मामा घर में घुस आया और उसने मोहिनी के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की। कामयाब न होने पर वह मारपीट पर उतर आया। मोहिनी ने बचाव में घर में रखी बंदूक निकालकर उस पर गोली चला दी जिससे उसकी मृत्यु हो गई। मोहिनी ने आत्म सर्मपण कर दिया जहां से उसे हल्द्वानी जेल भेज दिया गया। इस दौरान पुलिस ने भी उसे उत्पीड़ित किया। इसी दौरान पुलिस की एक महिला अधिकारी उसके सहयोग के लिए आगे आई। जिसकी मदद से छह महीनों के भीतर ही मोहिनी की जमानत हो गई। चंद्रा नामक उस महिला पुलिस अधिकारी की मदद से मोहिनी ने 10वीं की परीक्षा भी पास की और बरेली के शेखर अस्पताल में सहायिका के रूप में काम करने लगी। इसी दौरान मोहिनी ने 12 वीं की परीक्षा पास की और आंगनबाड़ी सहायिका में काम करना शुरू किया। मोहिनी का कहना है कि महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव और हिंसा अभी भी उसी रूप में जारी है। महिलाएं भले ही नए-नए मुकाम हासिल कर रही हैं लेकिन आज भी उन्हें उतना ही दोयम समझा जाता है।
महिला समाख्या ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल पूरे होने पर ‘हम हों, हिंसा न हो’ विषय पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया था। महिला होने की सरहदों को पार कर मिसाल कायम करने वाली 19 महिलाओं को सम्मानित किया गया। उत्तराखंड राज्य के विभिन्न जिलों की ये महिलाएं अपने परिवार के साथ ही समाज के लिए भी सक्रिय हैं। सम्मेलन में प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका मैत्रेयी पुष्पा, सामाजिक कार्यकर्ता राधा बहन, उमा भट्ट, कमला भट्ट, जया श्रीवास्तव आदि ने महिला हिंसा पर अपने विचार रखे। पूरे प्रदेश से 300 से अधिक महिलाओं ने कार्यक्रम में भाग लिया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि हम हों हिंसा न हो ऐसा कैसे हो सकता है? हिंसा होगी और हम भी होंगी। अगर महिला होगी और हिंसा नहीं होगी तो कहना पड़ेगा कि पुरुष व्यवस्था बदल गई। पुष्पा ने कहा कि व्यवस्था बदलने की बहुत सारी कोशिशें हो रही हैं। जैसे-जैसे यह कोशिशें तेज होती हैं वैसे ही हिंसा भी तेज हो जाती है, क्योंकि पुरुष भी इस बदलाव को जल्दी से स्वीकार नहीं कर सकते। सम्मानित महिलाओं की सराहना करते हुए मैत्रेयी ने कहा कि संघर्षों को एक दिन मुकाम जरूर मिलता है, जबकि राधा बहन ने अपने संबोधन में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली आवश्यक बताई जो महिलाओं को शिक्षित करने के साथ ही समझदार भी बनाए।
महिला दिवस पर यमकेश्वर की मुन्नी देवी, टिहरी गढ़वाल की मकानी देवी, बाराकोट की ममता जोशी, देहरादून की रजिया बेग, दुगड्डा की रजिया बेगम, नानकमत्ता की देवकी देवी, रामनगर की मोहिनी देवी, नैनीताल की दीपा पलड़िया, टिहरी की संदली देवी, चंपावत की नीमा देवी, उत्तरकाशी की कौशल्या देवी, रामप्यारी और हीरामणी के साथ ही उधमसिंह नगर की दो बहनों शांति और चंद्रा को भी सम्मानित किया गया। इन सब के पीछे कठिन दौर और आत्मनिर्भरता का संघर्ष है।
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Wednesday, April 6, 2011

आम आदमी के लिए मुसीबत बनी 139 सेवा

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व्यवस्था बेहतरी के लिए की गई थी, लेकिन अब वह आम आदमी के लिए परेशानी का सबब बन गई है। रेलवे की 139 पूछताछ सेवा आम यात्री के लिए सहूलियत कम, मुसीबत ज्यादा बन गई है। लोकल ट्रेनों के बारे में इस नंबर से बिल्कुल भी जानकारी नहीं मिल पा रही।
रेल आरक्षण से लेकर आगमन-प्रस्थान व टिकट कन्फर्म होने की जानकारी देने के लिए रेलवे ने सेंट्रलाइज-139 पूछताछ सेवा शुरू की। इसे वर्षो से चली आ रही 131 सेवा को खत्म कर लागू किया गया। जिस तरह 131 पूछताछ सेवा से लोगों को सही जानकारी नहीं मिल पाती थी, उसी तर्ज पर यह नए नंबर की सेवा भी है। यही नहीं, 139 सेवा पहले से भी जटिल है। नई सेवा शुरू करने से पहले रेलवे ने अनेक दावे किए थे। 139 पूछताछ सेवा में कस्टमर अधिकारी से बात करने की सुविधा देने की बात कही गई, लेकिन यह दावा खोखला निकला। साथ ही लोकल पैसेंजर सेवा के बारे में जानकारी नहीं मिल पा रही।
स्थानीय यात्री राकेश प्रजापति का कहना है कि यह सेवा पूरी तरह फेल है। सेंट्रलाइज सेवा की जटिल प्रक्रिया के चलते आम यात्री को ट्रेनों के आगमन-प्रस्थान की जानकारी नहीं मिल पा रही। हरिद्वार से ऋषिकेश जाने वाली पैसेंजर ट्रेन के बारे में जानकारी लेने पर पूछताछ सेवा से कोई जवाब नहीं मिलता। कस्टमर केयर अधिकारी से बातचीत के लिए विकल्प ही नहीं बनाया गया।
आवास विकास कॉलोनी निवासी राजीव त्रिपाठी का कहना है कि गाड़ी का नंबर पता न होने पर स्टेशन कोड पूछा जाता है, जिसके बारे में जानकारी नहीं होती। इस बारे में स्टेशन अधीक्षक समरेंद्र गोस्वामी का कहना है कि यात्रियों को परेशानी न हो इसके लिए स्टेशन पर भी पूछताछ सेवा है। यात्रियों को हर जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है।
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टिकाऊ खेती व मिश्रित वनों के संरक्षण पर जोर

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विकासखंड प्रतापनगर के अंर्तगत पट्टी रैका के ग्राम कंगसाली में आयोजित कृषि एवं बागवानी प्रशिक्षण शिविर में पहाड़ की लघु स्तरीय सघन टिकाऊ खेती और मिश्रित वनों पर जोर दिया गया।
हेनंब गढ़वाल विवि श्रीनगर के तत्वाधान में आयोजित शिविर में मुख्य वक्ता डॉ.मोहन सिंह पंवार ने कहा कि उत्तराखंड के गांवों में औद्योगिक कृषि और पारिवारिक कृषि और व्यापारिक कृषि को बढ़ावा देने की जरूरत है। इस मौके पर विधायक प्रतिनिधि तोता सिंह रावत ने कहा कि गांवों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाए रखने में सदियों में स्थानीय ग्रामीणों का ही अधिक योगदान रहा है, लेकिन वर्तमान में आजीविका के संसाधनों की कमी के कारण गांवों से पलायन हो रहा है जिसे जंगल और जमीन के सुनियोजित सतत उपयोग द्वारा पुर्नजीवित किया जा सकता है। शिविर में कृषक समूह की सुधा देवी ने कहा कि क्षेत्र में महिलाओं के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हर स्तर पर नीति निर्माण में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी हो। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अपने जीवन स्तर में सुधार के लिए जागृत होकर योजनाओं में सक्रिय भागीदारी निभानी होगी। इस मौके पर उत्तम सिंह भंडारी, मीना पंवार, धन सिंह, विजय लाल, आशाराम मंमगाई, मनोज परमार, भूपेंद्र सिंह, यशोदा रतूड़ी, भगवान सिंह खरोला, केदार सिंह, शोला देवी, सोना देवी, गुड्डी देवी, बिंद्रा देवी, लक्षमी देवी, सविता देवी, उर्मी देवी, आशा देवी, रणजीत सिंह, पुलमा देवी, गोदांबरी देवी, कोरा देवी, शांता देवी, कौशल्या देवी सहित कई लोग मौजूद थे।
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फूली बुरांश जांदू मैता अब ऐगे रंगीलू चैता

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प्रसिद्ध जागर गायिका बसंती बिष्ट व उनके साथियों ने पारंपरिक गढ़वाली व कुमांऊनी गीतों की यादगार प्रस्तुति के साथ नव संवत्सर का स्वागत किया। देर रात तक चले गीत संगीत के दौर का स्थानीय कला प्रेमियों ने भरपूर लुत्फ लिया।
नव संवत्सर 2068 के आगमन पर यूनिवर्सिटी यूथ क्लब ने ऐतिहासिक गोला पार्क में संगीत संध्या का आयोजन किया। प्रसिद्ध जागर गायिका बसंती बिष्ट ने नंदा देवी के जागर के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने गढ़वाल और कुमांऊ में नव वर्ष और चैत के आगमन पर गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीतों की प्रस्तुति देकर वाह-वाही लूटी। उन्होंने 'लगी बडूली मी जांदू मैता, अब ऐगे रंगीलू चैता', 'हिट सुआ कौथिग, तेरी झबरी बजी छमाछम', 'कैलाश मां होला हेमवंत राजा' और 'पंचनाम देवा' समेत विभिन्न गीतों को अपना स्वर दिया। डोंर, थकुली और हुड़के की धुनों पर दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देर रात तक झूमते रहे। साथी कलालाकर संजय पांडे ने 'हे जीत रंचना, असंति का पारा' व 'चल फुल्यारी फूलों का' और अमित सागर ने 'जै दुर्गे, दुर्गा भवानी' और 'पंडो खेला पासौं' जैसे गीत प्रस्तुत कर दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। रमेश कुमार मिश्रा ने बांसुरी, शांतिभूषण ने तबले व ढोलक, आनंद लाल शाह ने हुड़का और जीत सिंह बिष्ट ने थाली पर संगत दी। कार्यक्रम के आयोजन में ईशान डोभाल, तरुणा रावत, सुधीर जोशी, विभोर बहुगुणा, महेंद्र पंवार, यतिंद्र बहुगुणा समेत क्लब के अन्य सदस्यों ने योगदान दिया।
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