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Saturday, March 19, 2011

सूखे व प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का संकल्प

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बाजपुर: सामाजिक सद्भावना एवं जागरूकता अभियान के स्वयं सेवकों ने होली के त्योहार पर जल संरक्षण मुहिम के तहत नयी पहल की है। उन्होंने सूखे व प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का संकल्प लिया।
अभियान के संयोजक राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता जगतार सिंह बाजवा ने कहा कि विश्व भर में पानी के स्रोतों में कमी आ रही है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग दो करोड़ गैलन पानी होली के दिन बर्बाद हो जाता है। इतने पानी से कई बड़े शहरों की साल भर के पानी की जरूरत पूरी हो सकती है। विश्व में जल संरक्षण एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है। विभिन्न देश व समाजिक संस्थाएं जल संरक्षण पर जोर दे रही हैं। भविष्य में जल संकट की संभावना को देखते हुए प्रत्येक नागरिक को जल संरक्षण के प्रति गंभीर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि देशभर में सामाजिक सद्भावना एवं जागरूकता अभियान से जुड़े स्वयंसेवक होली के दिन सूखे व प्राकृतिक रंगों गुलाल आदि से होली खेलेंगे व अपने-अपने क्षेत्र में जल बर्बादी को रोकने के लिए जन जागरण करेंगे। जल संरक्षण का संकल्प लेने वालों में राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता गुरदीप सिंह राणा व प्रवीन कुमार (बाजपुर), सुदेश कुमार (जम्मू), विश्व रंजन (बिहार), राजीव कुमार (हरियाणा), सीमा शबनम (उड़ीसा), केवल सिंह (पंजाब), बबली देवी (मणीपुर), गोमर बसर (अरुणाचल प्रदेश), एस गवई (महाराष्ट्र), कुमारी रानी (सिक्किम) आदि शामिल हैं।
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जमाने की बंदिशों पर भारी पड़ा प्यार

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रुड़की : जमाना भले ही प्रेम विवाह को तरजीह न देता और प्रेमी जोड़े की राह में तमाम रोड़े अटकाता हो, लेकिन रुड़की के गांव में एक प्रेमीजोड़े ने जो किया वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। प्यार में अक्सर लड़कियां परिजनों के दबाव में जबरन भगाने या अपहरण जैसा आरोप लगाकर युवक को सलाखों के पीछे डलवा देती हैं, लेकिन इस कहानी में ऐसा कुछ नहीं हुआ। दोनों ने पहले घर से भागकर एक मंदिर में शादी रचाई और खुद कोतवाली में पहुंचकर पूरी कहानी पुलिस को बतायी। हालांकि पुलिस में युवक के खिलाफ उक्त युवती को बहला फुसलाकर भगा ले जाने का आरोप लगाया था। ऐसे में पुलिस ने इस जोड़े को अदालत के समक्ष पेश किया। अदालत में भी युवती ने वही बयान दोहराये, जो पुलिस के समक्ष कहा था।
दरअसल गंगनहर कोतवाली अंतर्गत प्रीत विहार कॉलोनी निवासी रेनू दस मार्च को लापता हो गई थी। रेनू के पिता ने सुनहरा गांव निवासी कन्हैया पुत्र कुंवरपाल पर बेटी को बहला फुसलाकर अपहरण कर ले जाने का आरोप लगाया था। पुलिस तभी से दोनों की तलाश कर रही थी। गंगनहर कोतवाली प्रभारी निरीक्षक जसवीर सिंह पुंडीर ने बताया कि लापता युवती व आरोपी युवक की पुलिस ने काफी तलाश की। इस दौरान पुलिस को पता चला कि दोनों पिछले काफी समय से एक दूसरे से प्रेम करते थे। गुरुवार को लापता युवती व आरोपी युवक खुद ही कोतवाली में आ गए। युवती ने बताया कि वह अपनी मर्जी से युवक के साथ गई थी। दोनों ने भागने के बाद एक मंदिर में शादी की। दोनों बालिग हैं। इस पर पुलिस ने युवती के परिजनों को भी उसके आने की सूचना दे दी। युवती का मेडिकल कराया गया। इसके बाद उसे अदालत में पेश किया गया। जहां पर युवती ने बेखौफ होकर बताया कि वह युवक से प्रेम करती है। अपनी मर्जी से ही वह युवक के साथ गई थी। दोनों ने मंदिर में शादी की है। दोनों ही बालिग हैं और पति-पत्‍‌नी के रुप में एक साथ रहना चाहते हैं। युवती ने अपने पिता के बजाए पति के साथ जाने की इच्छा जताई। सभी पहलुओं को देखते हुए अदालत ने रेनू को उसके पति कन्हैया की सुपुर्दगी में दे दिया।
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भूकंप के विनाश को बुलावा दे रहा विकास

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उत्तरकाशी : भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र होने के बावजूद जिले में बहुमंजिला इमारतों का निर्माण बदस्तूर जारी है। भूकंपरोधी तकनीक और भवन निर्माण के जरूरी मानकों को ताक पर रखकर बन रहे कंक्रीट के ढांचे, कभी भी कहर बरपा सकते हैं।
उत्तरकाशी में वर्ष 1991 में आये भूकंप को शायद ही कोई भूला सका हो, लेकिन इससे किसी ने सबक नहीं लिया। भूकंपीय दृष्टि से जोन चार व पांच में शामिल जनपद के हर नगरीय क्षेत्र में ऊंची होती इमारतें, भूकंपरोधी तकनीक अपनाने जैसी बातों का मखौल उड़ा रही हैं। जिला मुख्यालय के विनियमित क्षेत्र में ही स्थिति बेहद नाजुक है। भवन निर्माण के लिये नक्शा पास करवाना पड़ता है। इसके लिये कुछ मानक रखे गये हैं, लेकिन इनका किस तरह से पालन होता है। इसका अंदाजा नगर क्षेत्र की स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। हालात बेकाबू होने के बावजूद विनियमित क्षेत्र प्राधिकरण या भवन निर्माण के लिये एनओसी जारी करने वाली नगर पालिका ने अभी तक किसी भी गलत निर्माण के खिलाफ कार्यवाही नहीं की है। ग्रामीण क्षेत्रों में विनियमित क्षेत्र की तरह भवन निर्माण पर कोई निगरानी नहीं है। इसके चलते उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में शहर का रूप ले रहे जोशियाड़ा की स्थिति और भी खराब हो चली है। यहां ऊंची इमारतों की घनी बस्तियां देखने में खौफ पैदा करती हैं। इनके बीच मानकों के अनुरूप ना तो दूरी छोड़ी गई है और ना ही प्लाट पर खाली जगह। यही स्थिति नगर पंचायत बड़कोट, ग्रामीण क्षेत्र चिन्यालीसौड़, नौगांव व पुरोला की भी है। इस संबंध में जिला आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ देवेंद्र पेटवाल बताते हैं कि आपदा न्यूनीकरण केंद्र की ओर से इस दिशा में प्रचार प्रसार किया जा रहा है, लेकिन स्थिति काबू होने में समय लगेगा। इसके लिये जागरुकता बेहद जरूरी है। जिला भूगर्भ विशेषज्ञ प्रदीप सेमवाल बताते हैं कि भूगर्भ में सैंज गांव के निकट से मेन सेंट्रल थ्रस्ट गुजरता है, जबकि धरासू के निकट से नार्थ अल्मोड़ा सेंट्रल थ्रस्ट गुजरता है। ये दोनों बड़े थ्रस्ट जोन कभी भी सक्रिय हो सकते हैं। इसके चलते बड़े भूकंप की स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसी स्थिति में भवन निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक के मानकों को अनदेखा करना घातक होगा।
भूकंपरोधी तकनीक के मानक (पर्वतीय क्षेत्र)
-भवन की ऊंचाई 12 मीटर से अधिक ना हो
-दो भवनों के बीच न्यूनतम तीन मीटर की दूरी
-प्लाट के साठ फीसदी हिस्से पर ही निर्माण हो
-भवन में नींव पर्याप्त गहरी मजबूत बनाई जाए
-भवन के बिम व कालम आरसीसी के बने हों
-हर जोड़ पर मानक के अनुरूप सरिया का उपयोग
'जिला मुख्यालय के विनियमित क्षेत्र में प्राधिकरण के तहत भवन निर्माण पर सख्ती से नजर रखी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिये अभी तक इस तरह का कोई विधिक प्रावधान नहीं हुआ है। आपदा प्रबंध एवं न्यूनीकरण केंद्र की ओर से तहसील स्तर पर भी भूकंपरोधी भवन निर्माण के लिये लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है'- 
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