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Saturday, February 5, 2011

कालागढ़ क्षेत्र में विद्युत वितरण करेगा कोटद्वार

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राजेश शर्मा | कोटद्वार | उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन की कोटद्वार इकाई अब कालागढ़ क्षेत्र में विद्युत वितरण का कार्य संभालेगी। शासन ने धनारीगाढ़ उप संस्थान के साथ ही कालागढ़ व खटीमा के जल विद्युत गृहों से संबंधित तमाम वितरण प्रणाली उत्तराखंड जल विद्युत निगम से लेकर उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन को हस्तांतरित कर दी है। साथ ही कारपोरेशन की कोटद्वार इकाई ने भी कालागढ़ क्षेत्र में विद्युत वितरण की व्यवस्था संभालने के लिए कर्मचारियों की भी व्यवस्था करनी शुरू कर दी है।
लाइसेंस न होने के बावजूद राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर जलविद्युत परियोजनाओं से उत्पादित विद्युत वितरण का कार्य उत्तराखंड जल विद्युत निगम देख रहा था, लेकिन गत वर्ष शासन ने विद्युत वितरण का पूरा जिम्मा उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन के सुपुर्द कर दिया। शासन की ओर से गत वर्ष जारी एक पत्र में उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन व उत्तराखंड जल विद्युत निगम के प्रबंध निदेशकों को भेजे गए पत्रों में धनारीगाढ़ विद्युत उप संस्थान के साथ ही कालागढ़ व खटीमा के जल विद्युत गृह का सर्वे कर 'जहां है-जैसा है' के मूल्यांकन के आधार पर तत्काल उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन को हस्तांतरित करने के निर्देश दिए गए थे। शासन की ओर से जारी इन निर्देशों के बाद उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने धनारीगाढ़ उप संस्थान के साथ ही खटीमा व कालागढ़ क्षेत्रों में विद्युत वितरण व्यवस्था उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन को सौंप दी।
शासन की ओर से जारी निर्देशों के लंबे समय बाद आज भी कालागढ़ में विद्युत वितरण का कार्य उत्तराखंड जल विद्युत निगम ही देख रहा है। सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन ने कोटद्वार इकाई को कालागढ़ क्षेत्र में वितरण का जिम्मा सौंपा था, लेकिन इकाई के पास इतने कर्मचारी नहीं थे कि कोटद्वार के साथ ही कालागढ़ क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति का जिम्मा उठाए।
कालागढ़ जल विद्युत गृह से वितरण का अधिकार गत वर्ष ही उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन को दे दिया गया था, लेकिन उनकी ओर से अभी तक विद्युत वितरण के लिए कालागढ़ में कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है। इस संबंध में शासन को पत्र भी भेज दिया गया है।
विमल कुमार, ईई, कालागढ़ इकाई, उत्तराखंड जल विद्युत निगम
कालागढ़ क्षेत्र में विद्युत वितरण के लिए 'उपनल' से कर्मचारियों की मांग की गई है। साथ ही शासन से कालागढ़ क्षेत्र में एक अवर अभियंता की तैनाती को भी लिखा गया है। अवर अभियंता के साथ ही अन्य कर्मचारियों के मिलते ही विद्युत वितरण की व्यवस्था संभाल ली जाएगी। एसके सहगल, ईई, कोटद्वार विद्युत वितरण खंड

Friday, February 4, 2011

विदेशी पर्यटकों ने फेंरा मुंह

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जनपद में विदेशी पर्यटकों को जरूरत के अनुसार सुविधाएं न मिलने से उनकी आमद घटने लगी है, इससे सरकार की पर्यटन नीति पर प्रश्नचिह्न लगना स्वाभाविक है।
उच्च व मध्य हिमालय में स्थित कई पर्यटन स्थलों के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारने देशी ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी आते हैं, लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि पर्यटकों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जिले में तुंगनाथ -चोपता तीन किमी, सारी-गौण्डार-मद्महेश्वर, त्रिजुगीनारायण-पंवालीकांठा-बूढ़ाकेदार आदि ट्रैकिंग रूटों पर प्रतिवर्ष हजारों देशी विदेशी पर्यटक आते हैं। कई सुंदर बुग्याल भी इन ट्रैक रूटों में पड़ते हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
झरने, रंग-बिरंगे फूल, दुर्लभ जड़ी बूटियों के साथ आसमान छूती पर्वत श्रृंखलाएं भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से यहां ट्रैकिंग के प्रति पर्यटकों का रुझान घटता जा रहा है। ऐसे में सरकार की पर्यटन के बढ़ावा देने की नीति पर सवाल उठना स्वाभाविक है। वन विभाग ने भी अप्रैल 2010 से पर्यटकों से लिए शुल्क में बढ़ोतरी की। देशी पर्यटकों से जहां पहले 50 रुपये लिए जाते थे, अब 150 रुपये लिए जाते हैं, जबकि विदेशी पर्यटकों के शुल्क में छह गुना बढ़ोतरी की गई है। इसके अलावा टै्रक रूटों पर रैन सेंटर, पेयजल, विद्युत, संचार, शौचालय के साथ जरूरी वस्तुओं का भी अभाव होने से इन रूटों पर विदेशी पर्यटक आने से कतरा रहे हैं। पिछले छह वर्षो के आंकड़ों पर गौर करे तो 6388 देशी व 2178 विदेशी पर्यटक ही यहां टै्रकिंग के लिए पहुंचे। इनसे 757125 रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ।
वर्ष देशी विदेशी राजस्व
2005-06 880 249 156920
2006-07 796 280 176950
2007-08 1098 649 91015
2008-09 1131 388 99970
2009-10 1615 348 99970
2010-11 868 264 106700
अधिकारियों का तर्क
पर्यटन को बढ़ावा देने तथा ट्रैक रूटों के विकास के लिए लगातार पर्यटन विभाग प्रयास कर रहा है। आने वाले समय में रूटों के विकसित होने से अधिक से अधिक संख्या में विदेशी पर्यटक यहां आएंगे, ऐसी संभावना है। सीमा नौटियाल
प्रभारी जिला पर्यटन अधिकारी, रुद्रप्रया
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सेवाओं के संरक्षण के लिए पांच हजार करोड़ की मांग

पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण  के लिए पांच हजार करोड़ की मांग
देहरादून  उत्तराखंड ने केंद्र सरकार से  पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए ग्रीन बोनस व  पिछले दस वर्षो के दौरान हुई क्षतिपूर्ति के रूप में पांच हजार करोड़ की एकमुश्त  धनराशि और एक हजार करोड़ रुपये सालाना की मांग  की है प्रदेश के   मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को भेजे एक पत्र में यह मांग की है। पत्र में डा. निशंक ने अक्टूबर 2009 में अर्जेटीना के ब्यूनस आयर्स में आयोजित विश्व वानिकी कांग्रेस का हवाला देते हुए कहा है कि इसमें प्रस्तुत एक शोधपत्र में उत्तराखंड द्वारा दी जा रही पर्यावरणीय सेवाओं का वैज्ञानिक मूल्यांकन 31,294 करोड़ रुपये सालाना बताया गया। इस शोध पत्र में यह भी बताया गया कि भारतीय वानिकी प्रबंधन संस्थान तथा केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा वर्ष 2005-06 में कराए गए अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड के वनों द्वारा प्रतिवर्ष 17,312 करोड़ रुपये मूल्य की पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।केंद्रीय योजना आयोग द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार राज्य को प्रतिवर्ष वन क्षेत्र के कारण  1110 करोड़ रुपये की अनुमानित कृषि उत्पाद हानि हो रही है। पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि उत्तराखंड के वनों द्वारा जल उपलब्धता सुनिश्चित करने, कार्बन संतुलन स्थापित करने तथा वैकल्पिक आर्थिक उपयोग का त्याग करने की ऐवज में यहां की जनता को कोई प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। साथ ही वन संरक्षण अधिनियमों के प्रावधानों के कारण तमाम विकास योजनाएं विलंबित और लागत वृद्धि से प्रभावित होती हैं। उल्लेखनीय है कि ब्यूनस आयर्स के विश्व वानिकी कांग्रेस में  प्रस्तूत  शोधपत्र में उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं के वैज्ञानिक मूल्यांकन में जलवायु नियमन के लिए 3501 करोड़, असंतुलन नियमन के लिए 77.06 करोड़, जल नियमन के लिए 92.47 करोड़, जलापूर्ति के लिए 124 करोड़, भू संरक्षण नियंत्रण के लिए 3818.30 करोड़, प्राकृतिक पौष्टिक तत्वों के परिक्रमण समेत विविध पारिस्थितिकीय सेवाओं का कुल मूल्य 31294 करोड़ रुपये आंका गया है।

मेले को और अधिक भव्य रूप देने के लिए जिला पंचायत ने तैयारियां शुरू की

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सोनिया रावत | उत्तरकाशी | गंगानी बसंतोत्सव मेले के पारंपरिक स्वरूप को बनाये रखने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय लिया गया है कि  13 फरवरी से आयोजित कुंड की जातर  को भव्य रूप दिया जायेगा साथ ही स्थानीय लोक संस्कृति को पूरा महत्व दिया जाएगा। मेले को बहुद्देशीय बनाने के लिए विभिन्न विभागों के स्टाल एवं शिविरों का भी आयोजन किया जाएगा।  
वर्षो से चली आ रही यमुना घाटी की प्रसिद्ध पौराणिक कुंड की जातर को बीते नौ साल से जिला पंचायत उत्तरकाशी द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इस बार इस मेले को और अधिक भव्य रूप देने के लिए जिला पंचायत ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। गुरुवार को नगर पंचायत सभागार बड़कोट में आयोजित बैठक में मेले को परंपरागत स्वरूप के साथ ही बहुद्देशीय बनाने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान ने सभी के सकारात्मक सहयोग की अपील की। सीडीओ एमएस कुटियाल ने कहा कि मेले में विभिन्न विभागों के स्टालों के साथ ही बहुद्देशीय शिविर भी लगाए जाएंगे। साथ ही प्रतियोगितात्मक प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जायेगा।
वहीं, गंगानी मेला प्रांगण के संचुचित होने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद रावत ने कहा कि मेला प्रांगण में अतिक्रमणकारी काफी समय से सक्रिय हैं, लेकिन प्रशासन और जिला पंचायत ने आज तक कोई भी कार्रवाई नहीं की, जबकि हर साल भारी संख्या में मेलार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
बैठक में सांस्कृतिक, स्वागत, क्रीड़ा, यातायात आदि समितियों का गठन कर मेले को सफल बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस दौरान एसडीएम परमानन्द राम, अपर मुख्यअधिकारी जिला पंचायत सोहन गैरोला, सूचनाधिकारी एचएम घिल्डियाल, भरत सिंह रावत, संजय डोभाल, जयमाला चौहान, भरत सिंह चौहान, संजय खत्री, वीरेंद्र राणा, हंसपाल बिष्ट, रणवीर रावत, संदीप डोभाल आदि उपस्थित थे।

वनों के संरक्षण के लिए मांगे ५ हजार करोड़

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राजेश शर्मा | उत्तराखंड द्वारा प्रदान की जा रही पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए ग्रीन बोनस व वनों के संरक्षण के कारण पिछले दस वर्षो के दौरान हुई क्षतिपूर्ति के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से पांच हजार करोड़ की एकमुश्त धनराशि और एक हजार करोड़ रुपये सालाना की डिमांड की है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को भेजे एक पत्र में यह मांग की है। पत्र में डा. निशंक ने अक्टूबर 2009 में अर्जेटीना के ब्यूनस आयर्स में आयोजित विश्व वानिकी कांग्रेस का हवाला देते हुए कहा है कि इसमें प्रस्तुत एक शोधपत्र में उत्तराखंड द्वारा दी जा रही पर्यावरणीय सेवाओं का वैज्ञानिक मूल्यांकन 31,294 करोड़ रुपये सालाना बताया गया। इस शोध पत्र में यह भी बताया गया कि भारतीय वानिकी प्रबंधन संस्थान तथा केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा वर्ष 2005-06 में कराए गए अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड के वनों द्वारा प्रतिवर्ष 17,312 करोड़ रुपये मूल्य की पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। वन क्षेत्र के कारण हानि का केंद्रीय योजना आयोग द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार राज्य को प्रतिवर्ष 1110 करोड़ रुपये की अनुमानित कृषि उत्पाद हानि हो रही है।
पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि उत्तराखंड के वनों द्वारा जल उपलब्धता सुनिश्चित करने, कार्बन संतुलन स्थापित करने तथा वैकल्पिक आर्थिक उपयोग का त्याग करने की ऐवज में यहां की जनता को कोई प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। साथ ही वन संरक्षण अधिनियमों के प्रावधानों के कारण तमाम विकास योजनाएं विलंबित और लागत वृद्धि से प्रभावित होती हैं। उल्लेखनीय है कि ब्यूनस आयर्स के विश्व वानिकी कांग्रेस में प्रस्तुूत शोधपत्र में उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं के वैज्ञानिक मूल्यांकन में जलवायु नियमन के लिए 3501 करोड़, असंतुलन नियमन के लिए 77.06 करोड़, जल नियमन के लिए 92.47 करोड़, जलापूर्ति के लिए 124 करोड़, भू संरक्षण नियंत्रण के लिए 3818.30 करोड़, प्राकृतिक पौष्टिक तत्वों के परिक्रमण समेत विविध पारिस्थितिकीय सेवाओं का कुल मूल्य 31294 करोड़ रुपये आंका गया है।

Thursday, February 3, 2011

मडुवा, भट्ट, गहत और सोयाबीन से बने कुमाऊं नमकीन





मडुवा, भट्ट, गहत और सोयाबीन से बने कुमाऊं नमकीन
सुदर्शन सिंह रावत | उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रो की महिलाओं की हर क्षेत्र में बड़ी भागीदारी रही है। यहां सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करने से लेकर व कई आंदोलनों की शुरुआत करने और उन्हें सफल बनाने का श्रेय भी महिलाओं कि अग्रणी भूमिका रही हैं। जब आर्थिक स्वावलंबन की बात आती है तो पुरुष रोजगार की तलाश में शहरों में पलायन कर जाते है वही महिलाएं घर व खेत खलियान तक ही सीमित होकर रह जाती हैं। अब पहाड़ की महिलाओं में एक मिसाल पिथौरागढ़ जिले के सिलौनी-लांगड़ी गांव की रहने वाली देवकी देवी ने पहाड़ के परंपरागत खाद्य पदार्थों को देशी स्वाद के साथ मडुवा, भट्ट, गहत और सोयाबीन से बने कुमाऊं नमकीन नाम से देवकी ने उत्तराखंड की महिलाओं में एक नई पहचान बना दी है 20 साल पूर्व महज कुछ सौ रुपये से शुरू किया गया यह लघु उद्योग आज लाखों रुपये का कारोबार कर रहा है तथा महानगरों में अप्रवासी जीवन जी रहे और अपनी मिट्टी के साथ यहां के खानपान मडुवा, भट्ट, गहत, सोयाबीन के स्वाद को लगभग भूल चुके ऐसे लोगों के लिए कुमाऊं नमकीन किसी तोहफे से कम नहीं है जिसमें केवल पहाड़ के परंपरागत अनाजों को तरजीह दी गई है। शुरू - शुरू में देवकी देवी को काफी परेशानी उठानी पड़ी गांवों से मडुवा, भट्ट, गहत और सोयाबीन लाने लगे नमकीन बनाकर उनके चारों बच्चे कंधे पर झोला टांगकर एक शहर से दूसरे शहर नमकीन बेचते। देखते ही देखते दुकानदारों ने पहाड़ी अनाजों से बनी इस परंपरागत नमकीन को हाथों हाथ लिया और इसे खूब सराहा जाने लगा। कहते हैं कि समय बलवान होता है आज देवकी देवी के पीएचडी और एमबीए कर रहे पुत्रों ने जब इस नमकीन को देश के बड़े शहरों में पहुंचाया तो इसे कई पुरस्कार भी मिले। आज यह लघु उद्योग से देवकी देवी अपने परिवार के अलावा १० अन्य परिवारों को भी रोजगार का माध्यम बन गया है। साथ ही नमकीन में प्रयोग होने वाले पर्वतीय अनाज को उपजाने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहा है देवकी देवी इस प्रयास से आज सीमांत क्षेत्र के उन लोगों में नई उम्मीद जगी है जो रोजगार की तलाश में पलायन को मजबूर होते हैं।देवकी देवी का यह मेहनत उस समय और सुर्खियों आय जब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' सहित पेयजल एवं श्रम मंत्री प्रकाश पंत, भाजपा अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल, बीना महाराना, अजय टम्टा आदि की मौजूदगी में एक कार्यक्रम के जरिए इसे अंतरराज्यीय बाजार में उतारा गया दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले ट्रेड फेयर में कुमाऊं नमकीन ने काफी ख्याती अर्जित कर ली। कुमाऊं नमकीन को पर्वतीय अनाज के इस्तेमाल में सर्वश्रेष्ठ मानते हुए कई अवार्ड भी मिले हैं। वर्ष २००४ में 'नेशनल माइक्रो इंटरप्रेन्योर अवार्ड' से देश के तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सम्मानित किया। वर्ष २००५ में जिला उद्योग केन्द्र द्वारा 'सर्वोत्तम लद्घु उद्योग का प्रदत्त अवार्ड' तथा २००८ में उत्तराखण्ड सरकार का प्रतिष्ठित 'तीलू रौतेली' पुरस्कार से समानित किया गया।






गो सदन के अभाव में परेशान बेजुबान आखिर कहां जाएं

गो सदन के अभाव में परेशान बेजुबान आखिर कहां जाएं 

(सुदर्शन सिंह रावत)  पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन अपने पीछे उन बेजुबान व 'इन निरीह पशुओं को शहर में या जंगलो में छोड़कर शहरो में पलायन कर रहे हैं एक ओर जहां सर्द मौसम ने लोगों को घरों के भीतर कैद करके रख दिया है, वहीं दूसरी ओर यह जानवर पेट भरने की चाह में दिन रात सड़कों पर टहलते हुए देखे जा सकते हैं।

शहर में इस वक्त करीब सौ से अधिक छोटे-बड़े आवारा गो वंशीय पशु घूम रहे हैं। इनके कारण क्षेत्र में आए दिन छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। वहीं कूड़े के ढेरों, सड़कों और गलियों पर मंडराते इन पशुओं के कारण गंदगी भी फैलती है। कई बार इनके कारण शहर में जाम की स्थिति भी पैदा हो जाती है।

पालिका और प्रशासन की ओर से आवारा पशुओं के लिए गोशाला इत्यादि की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ऐसे में दिन-रात इन पशुओं को सड़कों और सब्जी मंडी क्षेत्र के आस-पास मंडराते हुए देखा जा सकता है ।

प्रशाशन की लापरवाही ही कहा जाय कि अभी तक कोई भी कदम नहीं उठाए गये है उच्च अधिकारी को कहना है कि 'गो सदन की स्थापना की प्रक्रिया चल रही है। इसका प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जा चुका है। जिलाधिकारी ने भी आवारा पशुओं के लिए गो सदन की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। शासन से स्वीकृति मिलते ही इस पर काम शुरु कर दिया जा रहा है 

उत्तराखंड पुलिस के हाथ बड़ी सफलता

उत्तराखंड पुलिस के हाथ बड़ी सफलता
हल्द्वानी पुलिस तथा जीआरपी संयुक्त अभियान में  जहरखुरानों के अंतर्राज्यीय गिरोह के  सरगना को  गिरफ्तार कर एक  बड़ी सफलता हाथ लगी है। उसके पास से भारी मात्रा में नशीली गालियां भी बरामद हुई हैं। इसी सरगना  के इशारे पर गैंग के सदस्य उत्तराखंड व यूपी में रोडवेज बसों व  ट्रेन  में यात्रियों को निशाना बनाते थे। अब पुलिस उसके अन्य गुर्गो तक पहुंचने के लिए गहन पूछताछ में जुट गई है। पुलिस व जीआरपी के लिए जहरखुरानी गिरोह एक बड़ा सिरदर्द बन चुके थे। चूंकि अधिकांश यात्री दिल्ली के इर्दगिर्द, गजरौला या मुरादाबाद में जहरखुरानों का शिकार बनते थे, लिहाजा बदमाशों को पकड़ना टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। इधर जहरखुरानों की सुरागरसी में जुटे स्पेशल क्राइम सेल व जीआरपी पुलिस ने काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर अंतर्राज्यीय जहरखुरानी गैंग के सरगना को दबोच लिया। हत्थे चढ़ा बदमाश मझोला लाइन का मुरादाबाद का प्रीतम सिंह है। उसके पास से भारी मात्रा में नशीली गोलियां भी बरामद हुई हैं। वह अपने गुर्गो को साथ लेकर उत्तराखंड व यूपी में अलग-अलग ट्रेन तथा बसों में यात्रियों को नशीला पदार्थ खिलाकर लूटता था। अंतर्राज्यीय बदमाश को पकड़ने वाली टीम में जीआरपी प्रभारी एससी जोशी, स्पेशन क्राइम सेल के प्रकाश भगत, घनश्याम सिंह, मुजफ्फर अली आदि शामिल हैं। शातिर किस्म का प्रीतम सिंह पूर्व में भी मुरादाबाद जीआरपी के हत्थे चढ़ चुका है। करीब चार महीने पहले ही वह जेल से छूटा मगर दोबारा गिरोह खड़ा कर लिया। उसके गिरोह के सदस्य देहरादून में भी पकड़े जा चुके हैं। जहरखुरानों के अंतर्राज्यीय सरगना प्रीतम सिंह के कुछ रिश्तेदार भी उसके गिरोह में शामिल हैं। रेल व बस यात्रियों से दोस्ती गांठ उन्हें बिस्कुल, नमकीन व चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर शिकार बनाने में सभी को महारथ हासिल है। पुलिस ने उन सभी के बारे में अहम सुराग जुटाने में लगी है।

Wednesday, February 2, 2011

टिहरी बाँध से बिजली के साथ अब नौकायन भी

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सुदर्शन सिंह रावत | अब पर्यटन के साथ-साथ नौकायन आदि से रोजगार भी मिलेंगे 42 वर्ग किमी की टिहरी बांध झील से । फरवरी के पहले सप्ताह में झील में आयोजित होने वाले वाटर स्पो‌र्ट्स के कार्यक्रम इसके विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। जिला प्रशासन की पहल पर यह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
करीब एक दशक से एशिया के सबसे बड़े टिहरी बांध की झील को पर्यटन से जोड़ने के लिए हो हल्ला तो किया जाता रहा है, पर इस दिशा में कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा सके। यही कारण है कि झील बनने के करीब डेढ़ दशक बाद अभी तक इसको पर्यटन व रोजगार से नहीं जोड़ा जा सका। इस बीच अब जिला प्रशासन द्वारा टिहरी महोत्सव के दौरान झील में वाटर स्पो‌र्ट्स व नौकायन आदि का आयोजन कर इस क्षेत्र में काम करने वाले बेरोजगार युवकों के लिए पहल की है। हालांकि यह शुरुआती दौर है और बहुत बड़े पैमाने पर यह आयोजन नहीं किया जा रहा है, लेकिन सांकेतिक ही सही आने वाले समय में झील में वाटर स्पो‌र्ट्स की अपार संभावनाओं को बल मिलेगा। साथ ही यहां पर राष्ट्रीय स्तर के वाटर स्पो‌र्ट्स के कार्यक्रम आयोजित करने की राह प्रशस्त हो सकेगी। यहां यह भी बता दें कि जिला प्रशासन नानकमत्ता व केएमवीएन के सहयोग से वाटर स्पो‌र्ट्स के कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। इसमें प्रतिस्पर्धा कम और यहां के लोगों को झील को पर्यटन व रोजगार से जोड़ने के लिए यह किसी प्रेरणा से कम न होगा।
गौरतलब है कि टिहरी बांध झील के विकास को झील विकास प्राधिकरण का गठन तो करीब पांच वर्ष पूर्व किया गया, लेकिन यह प्राधिकरण भी अब तक अपने अस्तित्व में नहीं आ पाया है। इस संबंध में जिलाधिकारी राधिका झा ने बताया कि स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने व झील को पर्यटन से जोड़ने के लिए वाटर स्पो‌र्ट्स व नौकायन का आयोजन किया जा रहा है। पहली बार हो रहे इस आयोजन पर काफी पैसा खर्च होने की संभावना है, ऐसे में इस कार्यक्रम को फिलहाल बड़े पैमाने पर आयोजित नहीं किया जा रहा है, पर इसे पर्यटन सर्किट से जोड़ने के लिए पूरी मदद मिल सकेगी।

विज्ञान मेले में भाष्कर, प्रकाश, विनीता, नेहा ने बाजी मारी

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जूनियर हाईस्कूल बाल शिक्षा सदन में आयोजित दो दिवसीय बाल विज्ञान मेला रंगारंग कार्यक्रमों के साथ संपन्न हो गया है। प्रतियोगिता में भाष्कर, प्रकाश, विनीता, नेहा व भावना ने अव्वल स्थान प्राप्त किया।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि विद्यालय के संरक्षक भगवान बल्लभ जोशी ने कहा कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच पैदा करने के लिए विज्ञान प्रतियोगिताओं का आयोजन जरूरी है। कहा कि समाज में व्याप्त अज्ञानता को वैज्ञानिक सोच से ही दूर किया जा सकता है। विशिष्ट अतिथि चंद्रशेखर बड़सीला ने कहा कि प्रतियोगिताएं बच्चों में आत्मविश्वास की वृद्धि के साथ साथ प्रतियोगी भावना का भी विकास करते हैं। विज्ञान माडल प्रतियोगिता में भाष्कर गोस्वामी, निबंध में विनीता भाकुनी, भाषण प्रतियोगिता में भावना गुरुरानी ने बाजी मारी। जूनियर वर्ग निबंध प्रतियोगिता में प्रकाश पांडे, भाषण में नेहा लोहनी, अंताक्षरी में मीनाक्षी व कविता ने बाजी मारी। उक्त सभी को पुरस्कार प्रदान किये गये। समारोह की अध्यक्षता प्रधानाचार्य केवलानंद लोहनी व संचालन गोपाल दत्त जोशी ने किया। इस मौके पर मदन मोहन जोशी, मदन मोहन पांडे, हरीश पांडे, संजय बड़सीला, चंद्रशेखर त्रिपाठी, चंद्रा कांडपाल, कला जोशी आदि मौजूद थे।
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