Movie Download

Ghaur Bati Search

image ad

Chitika

Monday, December 27, 2010

ईमू के अंडे से रोजगार का फंडा

http://garhwalbati.blogspot.com
अंडा यदि एक हजार रुपये की दर से बिके तो पालक की पौ-बारह होनी तय है। जी हां, उत्तराखंड ईमू पक्षी पालन के जरिए इस संभावना को खंगाल रहा है। औषधीय गुणों की वजह से ईमू पक्षी का अंडा ही नहीं, उसके अन्य अंग भी बहुमूल्य हैं। यह कदम कारगर रहा तो पहाड़ों में बढ़ रहे पलायन को थामने में भी मदद मिलेगी।
शुतुरमुर्ग की तरह विशालकाय ईमू पक्षी उत्तराखंड में रोजगार का जरिया बन सकता है। कोलेस्ट्राल फ्री ईमू के अंडे, मांस, चर्बी और अन्य अंग लोगों की सेहत के नजरिए से लाभकारी हैं। ईमू पालन उत्तराखंड में रोजगार का अच्छा-खासा जरिया बन सकता है। मूल रूप से आस्ट्रेलियन पक्षी ईमू फिलहाल दक्षिण भारत में किसानों तथा उद्यमियों का चहेता बना हुआ है। करीब आधे किलो वजन के इसके अंडे से दस से अधिक आमलेट बन सकते हैं। कोलेस्ट्राल फ्री ईमू के अंडे की सबसे अधिक मांग फाइव स्टार समेत बड़े होटलों में है। इसका मांस भी कोलेस्ट्राल फ्री है। ईमू की चर्बी का तेल 4500 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। ईमू के नाखून, पंख, चमड़े से लेकर हर अंग कीमती और उपयोगी हैं। इस आस्ट्रेलियन पक्षी की खासियत है कि यह शून्य से 45 डिग्री तापमान में रह सकता है।
हाल में उत्तराखंड के कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महाराष्ट्र स्थित डा. गाडगे ईमू फार्म का दौरा किया था। उनके साथ उत्तराखंड मूल के उद्यमी कुंवर सिंह पंवार भी थे। कुंवर सिंह पंवार ने पाली एग्रो के जरिए पहाड़ में युवाओं को ईमू पालन से जोड़ने का लक्ष्य बनाया है। यह सोसाइटी ईमू पालक के घर से ही एक हजार रुपये प्रति अंडे की दर से खरीद लेगी। ईमू से संबंधित सभी उत्पादों की मार्केटिंग पाली एग्रो करेगी। सोसायटी ईमू का एक जोड़ा विकासनगर में पाल रही है।
जिन राज्यों में ईमू पालन उद्यम के रूप में अपनाया गया है, वहां नाबार्ड ईमू पालकों को 25 प्रतिशत की सब्सिडी दे रहा है। उत्तराखंड में यदि राज्य सरकार भी इतनी ही सब्सिडी देने को तैयार हो जाए तो पालकों के लिए यह रोजगार का बढि़या अवसर साबित हो सकता है।
ईमू पक्षी की खासियत यह है कि इसमें मुर्गी की तरह किसी बीमारी की संभावना नहीं के बराबर होती है। सिर्फ दो महीने तक बच्चे की विशेष देखभाल करनी पड़ती है, ताकि उसकी लंबी टांगें टूटने से बची रहें। डेढ़ साल की उम्र से यह अंडा देने लगती है और चालीस साल तक अनवरत देती रहती है। जहां तक दाने का सवाल है मुर्गी दाना और हरी घास आदि इसके लिए पर्याप्त है। यही वजह है कि उत्तराखंड में ईमू पालन को रोजगार के एक बेहतर आप्शन के रूप में देखा जा रहा है।
in.jagran.yahoo.com se sabhar

बूंखाल में अब हर दिन हो रही पशुबलि

http://garhwalbati.blogspot.com
पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: पहले बूंखाल उत्सव साल में मात्र दिसंबर माह में होता था और बूंखाल के मुख्य मंदिर तक तीन महीन आवाजाही पर पाबंदी होती थी, लेकिन इस साल तो यहां हर रोज लोग बकरों की बलि देने पहुंच रहे है। बलि रोकने के लिए उप जिलाधिकारी के नेतृत्व में यहां तैनात पुलिस टीम रोज हो रही बलि से परेशान है। पशुबलि समर्थकों के मुकदमे दर्ज होने के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई है।
पौड़ी के राठ क्षेत्र के प्रमुख उत्सवों में बूंखाल कालिंका उत्सव प्रथम स्थान पर है। 11 दिसंबर को बलि के बाद परंपरा अनुसार मेला क्षेत्र में बलि बंद हो जाती थी, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई। अब मेले के बाद भी पंरपरा को तोड़ते हुए यहां लोग मनौती के बकरे और भेड़ लेकर पहुंच रहे है। 11 दिसंबर से अब तक यहां सैकड़ों बकरों की बलि दी जा चुकी है, हालांकि मुख्य उत्सव के बाद भैंसों की बलि नहीं हुई है। दरअसल बूंखाल मेले में जिला प्रशासन ने पशुबलि समर्थकों 31 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया था। इसके बाद से क्षेत्र के लोगों में आक्रोश है और वे लगातार बकरे व भेड़ की बलि देकर अपना आक्रोश जता रहे हैं।
उपजिलाधिकारी बीके मिश्रा का कहना है कि लोगों को समझाया जा रहा है कि वे पशुबलि न करे और पशुबलि रोकने के लिए फोर्स भी तैनात की गई है। 11 दिसंबर के बाद भैसों की बलि तो नहीं दी गई, किन्तु बकरों की बलि हो रही है। प्रशासन लोगों को समझा रहा है कि बकरों की भी बलि न दें और कई लोग इसे स्वीकार करते हुए पूजा के बाद बकरे वापस ले जा रहे है।

Saturday, December 25, 2010

http://garhwalbati.blogspot.com गढ़वाल बटी गूगल के १/१० वें स्थान पर

http://garhwalbati.blogspot.com
सभी उत्तराखंडी भाई बहिनों का हार्दिक धन्यवाद करती है जिनके कारण आज गढ़वाल बटी गूगल के १/१० वें स्थान पर पहुँच गयी हैं  एवं अलेक्सा के 3,065,९५८ पर पहुँच गयी है जोकि किसी गढ़वाली न्यूज़ ब्लॉग की लिए अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि हैं |

गढ़वाल बटी आप सभी उत्तराखंडी भाई बहिनों से आशा रखती है कि आगे भी सहयोग मिलता रहेगा |


Web Page URL
:
http://garhwalbati.blogspot.com
The Page Rank:


- 1/10
(the page rank value is 1 from 10 possible points)

Garhwalbati.blogspot.com's three-month global Alexa traffic rank is 3,065,958. The site has attained a traffic rank of 169,120 among users in India, where about 92% of its audience is located. The site is based in India. Garhwalbati.blogspot.com belongs to the “Blogger” category.


धन्यवाद
जयदेव कैंथोला
गढ़वाल बटी

Thursday, December 23, 2010

प्रसाशन पर भारी पड़ा आस्था

http://garhwalbati.blogspot.com

 (सुदर्शन  सिंह  रावत  की रिपोर्ट ) उत्तराखंड के पौड़ी जिले में ख्यातिलब्ध बूंखाल कालिका मंदिर में  2000 किलोमीटर दायरे में रहने वाले लोगों की मंदिर में होने वाले इस मेले के प्रति अटूट आस्था है। लोग पूरे साल अपनी तरह तरह की मनौतियां मानते हैं और उसके पूरा होने पर मंदिर में आकर वर्ष में एक ही दिन पशु बलि करते हैं। इस दिन सैकड़ों की तादाद में प्रसिद्ध काली देवी के मंदिर में देवी के सामने नर भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है, जनश्रुतियों के अनुसार चार सौ साल पहले चोपड़ा गांव में कन्या का जन्म हुआ और कन्या को गांव के ही बच्चों ने खेल-खेल में एक गड्ढे में दबा दिया और गड्ढे में बकरों व भेंड़ों के कान काट कर डाल दिए। तब कन्या ने सपने में गांव के लोगों को दर्शन देकर बताया कि मैं वहां जमीन के नीचे दबी हूं और अब यहां हर साल बलि दी जाए। यूं तो बूंखाल में हर शनिवार को बकरों की बलि चढ़ाई जाती है किंतु विशेष उत्सव पर सैकड़ों की संख्या में नर भैंसो व बकरों की बलि होती है सालो से  मेले में बलि समर्थकों और बलि का विरोध कर रहे सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं के बीच नोकझोंक भी होती थी परन्तु इस बार पीपुल फॉर एनीमल्स उत्तराखण्ड की सचिव गौरी मौलखी ने इस मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि पौड़ी जिले के बूंखाल कालिका मेले में लगभग पांच हजार से अधिक निरीह पशुओं को समारोहपूर्वक मारा जाता है। इन जानवरों को मारने के बाद उनकी लाशों को वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसलिए पशुओं की इस प्रकार होने वाली नृशंस हत्या पर रोक लगनी चाहिए। गौरी मौलखी की इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने सात दिसंबर को पशुबलि पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए थे। आदेश में यह भी कहा गया था कि जो व्यक्ति पशुबलि देगा उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह एवं प्रमुख सचिव पशुपालन समेत सदस्य सचिव उत्तराखण्ड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तीन हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को भी कहा है हाईकोर्ट के पिछले सप्ताह दिए गए आदेश का पालन करते हुए प्रशासन को इस पर पूर्णतः रोक लगाना था जिसमें वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। हां इस बार बलि चढ़ने वाले पशुओं की संख्या में पहले के मुकाबले कमी जरूर आई।   मेले में पशुबलि को रोकने के लिए पुलिस, पीएसी और होमगार्ड के करीब डेढ़ हजार जवान तैनात किए गए थे लेकिन गांवों में एक दिन पहले से ही मेले की तैयारियां शुरू हो गई थीं। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी  दूर कुई, डुमलोट, चोपड़ा, मथिगांव, बहेड़ी बजवाण आदि गांवों में इसकी तैयारी देखी जा सकती थी। ग्यारह दिसंबर की सुबह चार बजे से ही बलि समर्थक नर भैंसों और बकरों को लेकर बूंखाल के लिए रवाना हो गए। दूसरी ओर करीब पांच बजे कोटद्वार के उपजिलाधिकारी गिरीश चंद्र के नेतृत्व में प्रशासन की एक टीम बलि के लिए जा रहे पशुओं को रोकने के लिए बेला बाजार पहुंची। स्थानीय लोगों ने बताया 'थलीसैंण के बलेख गांव के लोगों ने प्रशासन की कार्रवाई का विरोध किया। बलि समर्थकों ने प्रशासन की ओर से लगाए गए आधे दर्जन बैरियरों को तोड़ दिया। इसके बाद तीन और नर भैंसों को लेकर ग्रामीण बेला बाजार से आगे चले गए।' इसी बीच बेला बाजार से तीन किमी ऊपर चौड़ीखाल नामक स्थान पर जिलाधिकारी दिलीप जावलकर एवं पुलिस अधीक्षक पुष्पक ज्योति ने भी तीस नर भैंसों को रोकने का प्रयास किया। लेकिन ग्रामीणों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने टकराव टाल दिया। करीब साढ़े बारह बजे से बूंखाल में नर भैंसो और बकरों की बलि चढ़नी शुरू हुई। शाम तक 70 नर भैंसे तथा 180 के करीब बकरों की बलि चढ़ाई गई। जबकि पिछले साल बूंखाल मेले में 120 नर भैंसों की बलि चढ़ाई गई थी। एक अनुमान के मुताबिक इस मेले में करीब 40 से 50 हजार श्रद्धालु मौजूद थे। मंदिर परिसर में भी पुलिस और बलि समर्थकों के बीच हल्की झड़प हुई। लेकिन बलि समर्थकों के आगे पुलिस फोर्स की एक नहीं चली।  शांतिकुंज हरिद्वार के गायत्री परिवार की ओर से बलि के विरोध में पर्चे बांटे गए पौड़ी के बुजुर्ग निवासी दुलारे सिंह बिष्ट ने बताया कि मां काली के मंदिर में पता नहीं कितने सालों से यह प्रथा चली आ रही है और इस दिन प्रशासन को भी आकर यहां का चमत्कार देखना चाहिये कि किस तरह से पशु बिना किसी की प्रेरणा से बलि स्थल पर अपने आप ही आ जाता है। उन्होंने बताया कि लोग पूरे साल अपनी मनोकामनायें देवी मां से मानते हैं और उसके एवज में श्रद्धा के साथ बलि चढाते हैं। इस दिन बलि चढ़ने वाला पशु पहाड़ की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में आने के लिये इधर उधर नहीं भागता है बल्कि वह अपने आप ही पहाड़ चढ़ जाता है और वहां पहुंच जाता है। इसे देवी मां का प्रताप ही कहना चाहिये। एक अन्य निवासी रामपाल सिंह रावत ने कहा कि देश के कई ऐसे स्थान हैं जहां पर पशु बलि दी जाती है लेकिन वहां पर कोई रोक टोक नहीं होती है तो यहीं पर क्यों इस तरह की रोक टोक की बात की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह सदियों पुरानी परम्परा है। लोग अपनी मनौती पूरा होने के बाद ही यहां पशु बलि के लिये आते हैं।रावत ने बताया कि जिस स्थान पर बलि दी जाती है, वहां न तो कोई भय का वातावरण होता है और न ही किसी प्रकार का प्रदूषण होता है। सैकड़ों की संख्या में आने वाले चील प्राकृतिक रूप से सफाई का काम करते हैं। जंगलों में रहने वाले सियार भी इस काम में सहयोग करते हैं इस साल का बूंखाल मेला ग्रामीणों, प्रशासन और सामाजिक संगठनों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं रहा 11 दिसम्बर को सम्पन्न इस एकदिनी परीक्षा में न कोई पास हुआ और न कोई फेल। नर पशुओं की बलि देकर ग्रामीणों ने सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया तो प्रशासन बलि की संख्या कम करवा कर अपनी पीठ खुद थपथपाती दिखी। सामाजिक संगठनों ने बलि प्रथा पूरी तरह बंद न करने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार बताया। सामाजिक संगठनों के लगातार दबाव के चलते तीन दिन बाद प्रशासन को पशु बलि देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करना पड़ा।  बूंखाल पौड़ी प्रशासन के मुताबिक 31 लोगों के खिलाफ पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा 16 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ है। मामला दर्ज होने के बाद प्रशासन आगे कौन सा कदम उठायेगा यह देखना बाकी है नामजद आरोपी  ग्राम सभा  नोगांवा  से साबर सिंह  आनंद सिंह गुडवर सिंह ग्राम सभा  चोपड़ा से राजेंद्र सिंह महाबीर सिंह  नंदराम देहरादून, भूपेंद्र प्रसाद  बहेड़ी, शेर सिंह ,पंचम सिंह ,ग्राम - बमोर्थ,गोविन्द सिंह  किरसाल,रणजीत लाल सोंटी, भगत लाल कुंडी,केदार सिंह मिलई,बिनोद  सिंह कुई, दिलबर सिंह,श्याम प्रसाद सेमलत,राजेंद्र सिंह फल्दवाड़ी,दरवान सिंह धर्म सिंह मंडकोली, आनद सिंह बुरांसी, देवेंदर सिंह जवाड़ी , राम सिंह किम्डांग,सुरेश सिंह पसींडा,राम सिंह खंडोली, त्रिलोक सिंह बनेख , मनबर सिंह ओड़ागाड़,ओमप्रकाश चुफंडा ! बूखाल में नर भैंसो की बली देने वाले इन लोगो के खिलाफ  तहसील  थलीसेंण में मुकदमे  कायम  किए  हैं !

देर आयद, दुरुस्त आयद' की तर्ज

http://garhwalbati.blogspot.com
सरकारी डिग्री शिक्षकों को दो दशक से ज्यादा खपाने के बाद आखिकार स्थायीकरण का लाभ मिल गया। 'देर आयद, दुरुस्त आयद' की तर्ज पर सरकार ने बुधवार को इस बाबत शासनादेश जारी कर दिया।
Main Te Ati Pyaru Lagdu Uttrakhandउच्च शिक्षा प्रमुख सचिव पीसी शर्मा की ओर से जारी आदेश में प्रदेश के 70 डिग्री कालेजों में कार्यरत 456 प्रवक्ताओं का स्थायीकरण किया गया। राज्य सरकारी सेवकों की स्थायीकरण नियमावली 2002 एवं उत्ताराखंड उच्चतर शिक्षा सेवा नियमावली 2003 के प्रावधानों के तहत डिग्री शिक्षकों को स्थायी किया गया। स्थायीकरण शिक्षकों के शुरुआती दो वर्ष के प्रोबेशन पीरियड के बाद से लागू होगा। इस आदेश के बाद डिग्री शिक्षकों को स्टडी लीव, प्रतिनियुक्ति पर अन्यत्र सेवा में बगैर इस्तीफा दिए जाने समेत कई अधिकारों के इस्तेमाल का रास्ता खुल गया है। यहा बता दें कि 'दैनिक जागरण' ने बीती 21 अगस्त समेत कई अंक में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। इसके बाद हरकत में आए शिक्षा निदेशालय ने शासन को प्रस्ताव सौंपा। लंबे अरसे तक शासन के गलियारों में उलझकर रह गए इस प्रस्ताव को आखिरकार उच्च शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह बिष्ट ने मंजूरी दी। मंत्री से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद स्थायीकरण का रास्ता साफ होने के बारे में ' दैनिक जागरण' ने बीते 21 दिसंबर को खबर प्रकाशित की थी। शासनादेश जारी होने से सरकारी डिग्री कालेजों में नियमित नियुक्त शिक्षकों को वर्षो खपाने के बाद अब स्थायीकरण नसीब हुआ। इस दौरान बड़ी तादाद में शिक्षक सेवानिवृत्ता हो चुके हैं। शासनादेश के बाद डिग्री शिक्षक तमाम धारणाधिकार, देयों, मृतक आश्रितों की नियुक्ति समेत समुचित सुविधाओं के विधिवत लाभ के हकदार हो गए हैं। 
in.jagran.yahoo.com se sabhar

Monday, December 20, 2010

उतराखंड राज्य विकास के साथ पहाड़ो की संस्कृति की ब्यथा

http://garhwalbati.blogspot.com

उतराखंड  राज्य विकास के साथ पहाड़ो  की संस्कृति की ब्यथा   
(सुदर्शन सिंह रावत कि रिपोर्ट )  | उत्तराखंड के पहाड़  अब बुजर्ग  हो गए हैं किसी ने ठीक ही कहा था कि  पहाड़ो का पानी और जवानी अपने जन्म भूमि के काम  नहीं  आई  आज सुंदर प्रकृति  से  भरपूर सुन्दरता व सीढ़ी नुमा खेत सब बुजर्ग हो  गए है आज  से  20 - 25  साल पहले  खेतों की उर्वरता बनाए रखने के लिए पहले गोठ लगती थी पचीस पचास पशुओं को रातभर एक ही खेत में बांधकर रखा जाता था. इस प्रकार खेत बदल बदल कर गोठ लगती थी अब गोठ प्रथा भी लगभग ख़त्म हो चुकी है. अधिक मेहनत और कम लाभ के चलते भी कुछ प्रथाएं ख़त्म हुई हैं, इसके विकल्प में मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था आ जाने से लोगों का जीवन थोड़ा आसान और आराम तलब हो गया. दिनभर खेतों में मेहनत करने के बजाय सीधे दूकान से राशन लाना सभी को अच्छा लगता है और जब आदमी के पास फ़ुर्सत ज़्यादा हो तब फ़ैशन उसके पास ख़ुद ब ख़ुद चला आता है. लेकिन यह फ़ैशन  उत्तराखंड की सांस्कृतिक ह्रास का पर्याय  बनती जा रही है पहले  गौमाता  की पूजा होती आज लोग  पशुओं को जंगलो में छोड़कर शहरो में  रोजगार के लिए  पलायन  कर रहे है   जिन लोग ने  पहाड़ो  में जन्म लिया आज  वह पलायन कर रहे है और बहार के लोग पहाड़ो में बसने के तैयार है  साठ वर्ष पूर्व उत्तराखंड में मैदानी जीवन की दस्तक बहुत कम या न के बराबर थी. नौकरियों पर तब बहुत कम लोग थे, इसलिए पहाड़ का पारंपरिक रहन-सहन और सांस्कृतिक ढांचा अपना मूल स्वरूप नहीं छोड़ पाया था. इससे पहले पहाड़ी जीवन के रहन-सहन में थोड़ी बहुत तब्दीली  धीरे धीरे होने परिवर्तन लगा बाद में जब पहाड़ के लोग मैदानों में नौकरियों पर आने लगे और मैदानों में रूखा सूखा खाकर छुट्टियों के दौरान गांवों में बन ठन कर जाने लगे. लोगों के बीच थोड़ा बहुत रहन-सहन का तौर तरीका बदलने लगा. मदानो  से आने वाला आदमी घर भर के सदस्यों के लिए नए नए कपड़े व  साबुन, तेल, टूथपेस्ट आदि भी. 1962 में भारत चीन की लड़ाई के बाद पहाड़ों पर तेज़ी से मोटर सड़कों का निर्माण शुरू हुआ. इसी बीच हिमालय के अग्रिम हिस्सों में फ़ौजी चौकियां बननी भी शुरू हुई. देश के कई हिस्सों के सैनिक पहाड़ों पर मोर्चा संभालने के लिए आए. बाहरी लोगों की आमदरफ़्त बढ़ने के साथ साथ नए नए व्यवसाय व व्यापार भी बढ़े. आज़ादी के बाद पहाड़ी कस्बों में पंजाबी शरणार्थी भी अपना कारोबार जमा चुके थे. ट्रांजिस्टर क्रांति के बाग पहाड़ी गांवों में जगह जगह फ़िल्मी गाने बजने शुरू हुए. छुट्टी से घर लौटते हुए हर पहाड़ी फ़ौजी के कंधे पर बजता हुआ ट्रांजिस्टर लटका रहता था. यही वह दौर था जब पहाड़ी घसियारिनों ने पारंपरिक लोकगीतों को छोड़कर फ़िल्मी धुनें गुनगुनानी भी शुरू की. पहाड़ और मैदान के बीच आमोदरफ़्त बढ़ने के साथ पारंपरिक पोशाकों का महत्व भी कम होने लगा.95 वर्षिया बुजुर्ग श्री शिव राज सिंह रावत ग्राम उठिंडागावं नैनीडांडा गढ़वाल के मूलनिवासी कहना है की साठ वर्ष पुर्व लोग  मिरजई, त्यूंखा, पटग्वा, अंगरखा, अचकन, फत्वी, गत्यूड़ी, तिकबंद, रेबदार अथवा चूड़ीदार पैजामा व बच्चों के सलदराज आदि का चलन था जो अब  ख़त्म हो गया और इनकी जगह कोट पैंट पतलून कमीज़ ब्लाउज़ पैजामा आदि. पहाड़ों के बहुत व्यापक और विशालकाय सांस्कृतिक परिदृश्य को टीवी के छोटे परदे   ने  एकाएक ढक दिया. सस्ते और हल्के मनोरंजन ने पहाड़ी लोक-संस्कृति के मूल रंगो को बदरंग कर दिया.  संक्रांति के दिन अब गांवों में ढोल व दमाऊ बजाने  वाले अब नहीं रहे. हुड़का प्रचलन से बाहर हो गए है  गया. ढोल सागर जानने वाले बहुत कम लोग रह गए सब दुर्लभ और शायद कुछ सालो बाद  सुनने को नहीं मिलगा महीनों तक होली गाने का रिवाज अब टूट सा गया है. पहले बसंत पचंमी के दिन से गांव के पंचायती चौक में गीतों के झुमके शुरू हो जाते थे. अब ये प्रथा कुछ अब जौनसार के इलाकों को छोड़कर और कही नहीं दिखाई देती. गर्मियों के दिनों में पहाड़ों में लगने वाले कौथीग कि जगह  ठेठ बाज़ारी मेले लगने लगे है  आज जो . आर्थिक स्तर पर जो परिवर्तन हुए उनका सीधा असर भी पहाड़ी जीवन के रहन-सहन पर पड़ा. यदि समय रहते उत्तराखंड सरकार व  हम सभी लोगो को  बिरासत में मिली सस्कृति को नहीं बचा पाए तो पश्ताचाप के अलावा हमारे पास कुछ नहीं बचेगा ?

Friday, December 17, 2010

स्कूली बच्चो के भविष्य साथ खिलवाड़

http://garhwalbati.blogspot.com


| सुदर्शन सिंह रावत की खाश रिपोर्ट्स |
उत्तराखंड अस्थाई राजधानी देहरादून से कुछ ही  किलो मीटर दूर अखंडवानी भिलंग गांव की प्राथमिक विद्यालय की जर जर स्थिती के लिए बेसिक शिक्षा विभाग पूर्ण रूप से जिमेदार है एक तरफ भारत सरकार सर्ब शिक्षा अभियान पूरे  देश में चला रही है वही दूसरी तरफ उत्तराखंड  शिक्षा विभाग इस अभियान की  धजियाँ उडाई जा रही है प्राइमेरी शिक्षा का हाल यह है कि गांव में कक्षा एक से कक्षा पांच तक कई बच्चे है  पूरा स्कूल केवल एक शिक्षा मित्र के भरोसे पर चल रहा है बच्चो के भविष्य साथ खिलवाड़ किया जा रहा है  शिक्षा मित्र  का  कहना  है कि बच्चे ज्यादा है यहां पर और टीचर का  होना  ज़रूरी है ग्रामीण  वीरेंदर सिंह कहना है कि  ग्राम सभा द्वारा काफी मस्कत करने  के बाद  मैडम की नियुक्ति ह्वई परन्तु मैडम केवल स्कूल में १० दिन आती थी और २० दिन स्कूल बंद रहता था दस दिनों में स्कूल खुलता भी था तो १२ बजे  से ३ बजे तक मैडम के इन हरकतों से तंग आकर व कई बार समझाने के बाबजूद भी कोई असर नहीं  पडा यहाँ तक कि बच्चो  का कहना कि मैडम न तो  पढ़ाती है और न ही कभी कॉपी चेक  करती. स्कूल नहीं जाऊंगा  हम गरीब लोगो का यही आस लगा कर बैठे है कि हम तो नहीं पढ़ पाए हमारे बच्चे तो पढ़े परन्तु लगता है की हम लोगो का कोई सुनने वाला नहीं है सुबह से पत्थर रेत बजरी निकालते हैं. शाम तक हार्डमांस तोड़ने के  बाद 200 रुपए मिलते है विकास तो दूर -दूर तक नहीं  दिखाई गांव में न तो कोई अच्छी रोड आई न तो कोई रोज़गार है जबकि पूरे प्रदेश में मनेरगा. का रोजगार योजना चल रही है  खेत खलियान सब बंजर पड़ गए  है  जब फसल पकने वाली होती है तो उसमें जंगली जानवर बंदर लंगूर हिरन सुअर  आकर खा जाते है यदि खेती के भरोसे रहे तो भूखे   ही रहगे  गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते सोचते हैं कि खेतो में कुछ नहीं होता दिन रात मजदूरी करते है कि बच्चे आगे पढ़ लिख जाएं स्कूल की स्थिती को देख कर लगता है कि गरीबो का कोई सुननेवाला नहीं है अब तो स्कूल की हालत को देखकर . बच्चे कहते हैं की पांच तक पढ़ लिया मैं आगे नहीं पढ़ूंगा. मैं किसी होटल में बाजार काम ढूंढता हूं  जबकि हम  सभी अभिभावक हम तो जैसे तैसे  गुजारा कर लेंगे पर हमारे बच्चे पढ़ लिख जाई

Monday, December 13, 2010

Uttrakhand ek nazar main

http://garhwalbati.blogspot.com


Famous Temples Of Uttrakhand
This peaceful land is a resort of Gods, so called Devbhoomi by people of India. Studded with some of the most renowned pilgrim spots, Uttaranchal is a Tourists paradise. Temples of uttrakhand bears the age of tradition and hindu myths.Temples and shrines of uttrakhand makes this place holy and gives a different shapes than any other hill stations of india. The holy rivers Ganga and Yamuna starts their journey from the mountain range of uttrakhand.According to Hindu Mythology after taking the retirement from family life the touristcan pulgrate themselves in the holy land with sacred water of ganga .Nirvana can be achieved very easily on the banck of the Ganga with the temples of gods and goddess. Uttrakhand hosts several numbers of temples spread all over the state. Some are located in the top of the mountains peak and some on the bank of holly rivers. all the temple hold an eminent place in the hindu mythology.The famous temples of Uttrakhand are as :

Baij Nath Temple -:
Baij Nath Temple, is situated at kausani a beautiful and charming tourist place in Uttrakhand.It is a 12th century temple on the banks of Gomti River at an elevation of 1126 mtr.
The temple holds significance because, according to Hindu mythology, Lord Shiva and Parvati were married at the confluence of River Gomati and Garur Ganga. Dedicated to SivaVaidyanatha, the Lord of Physicians, the Baijnath temple is actually a temples’ complex built by the Katyuri kings with the idols of Shiva, Ganesh, Parvati, Chandika, Kuber, Surya and Brahma.The main temple that houses a beautiful idol of Parvati is chiseled in black stone. The temple is approached from the riverside by a flight of steps made of stones constructed by the orders of a Katyuri queen

Naina Devi Temple -:
The Temple of Shri Naina Devi Ji is situated on a hilltop in the Bilaspur Distt. of Himachal Pradesh in India. This famous temple is connected with National Highway No. 21. The temple at the top of the hill can be reached via road (that curves round the hill up to a certain point) and then by concrete steps (that finally reach the top). There is also a cable car facility that moves pilgrims from the base of the hill all the way to the top.
The hills of Naina Devi overlook the Gobind Sagar lake. The lake was created by the famous Bhakra-Nangal Dama

Binsar Mahadev -:
Binsar Mahadev temple is situated at an altitude of 2,480 meters ASL. It is about 22 km from Thalisain. Binsar Mahadev temple is famous for its archeological significance, being an ancient construction of 9th century. It is believed to be constructed in just one day. Though the temple is dedicated to Lord Shiva, the sanctum also houses idols of Lord Ganesh and Goddesses Parvati and Durga
This Temple was constructed by King Kalyan Chand of Chand Dynasty.

Har Ki Pauri
Har Ki Pauri is a famous ghat on the banks of the Ganges in Haridwar in Uttarakhand state in India. This revered place is the major landmark of the holy city of Haridwar. Literally, the Har means Lord Vishnu and paudi means steps. There is a large footprint of lord Vishnu on a stone wall, and hence it came to be known as Har Ki Paudi (Vishnu's Footprint).

It is believed that it is precise spot where the Ganges leaves the mountains and enters the plains. The ghat is on the west bank of Ganga canal through which the Ganges is diverted just to the north. Har ki pauri is also the area where thousands of pilgrims converge and the festivities commence during the Kumbha Mela, which takes place every twelve years, and the Ardh Kumbh Mela, which takes place every six.
Every day, Har Ki Pauri ghat witnesses hundreds taking a dip in water of Ganga. The place is considered very auspicious. Over the years the ghats have undergone major extension and renovation as the crowds increased in subsequent Kumbh Melas. Several temples have come up on the steps, most built in late 19th century.

Nanda Devi Temple -
:
This 1000 years old temple dedicated to godesses Nanda Devi.Nanda Devi was the patron goddess of the Chand rajas of Almora.It is located in almora district of Uttrakhand.It is Built in the typical Kumaoni architectural style of stone temples, the Nanda Devi temple is a magnificent monument that has a stone amalaka or crown which is encircled by a wooden roof.
Nanda Devi is said to have been the Goddess revered by the kings of the Garhwal and Kumaon regions. She is believed to be the destroyer of evil. Fairs are held at Ranikhet, Almora and Nainital in honour of Nanda Devi and thousand of people participate in these fairs.

Tungnath Temple -:
Tungnath is one of the five and the highest Panch Kedar temples located in the Chamoli district of Uttarakhand. The Tunganath (literal meaning is lord of the peaks) mountains form the Mandakini and Alaknanda river valleys. Located at an altitude of 3,680 mtr.The Tungnath temple is the highest Hindu shrine dedicated to Lord Shiva. The temple is believed to be 1000 years old and is the second in the pecking order of the Panch Kedars.
The priest at this temple is a local Brahmin from Maku village, unlike the other Kedar temples where the priests are from South India, a tradition set by the 8th century Hindu guru Sankaracharya. It is also said that the Khasi Brahmins officiate as priests at this temple. During the winter season, the temple is closed and the symbolic image of the deity and the temple priests are moved to Mukunath.

Rudranath Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.
Surkanda Devi Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.

Mathiyana Devi Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.

Chandrabadni Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.

Mansa Devi Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.

Dhari Devi Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here.

Madmaheshwar Temple -:
Rudranath is a Hindu temple dedicated to god Shiva, located in the Garhwal Himalayan mountains in Uttarakhand, India. Located at 2,286 metres (7,500 ft) above sea level, this natural rock temple is situated within a dense forest of rhododendron dwarfs and Alpine pastures.The temple is the third temple to be visited in the Panch Kedar pilgrimage circuit, comprising of five Shiva temples in the Garhwal region. The other temples in the circuit include: Kedarnath and Tungnath to be visited before Rudranath and Madhyamaheshwar or Madmaheshwar and Kalpeshwar to be visited after Rudranath. The face (mukha) of god Shiva is worshipped as "Nilkanth Mahadeva" here
 myoruttrakhand.com se sabhar

Tuesday, December 7, 2010

उतराखंड संभागीय परिवहन निगम में बसों के संचालन का घिनोना खेल?

http://garhwalbati.blogspot.com
                            
|सुदर्शन सिंह रावत | उत्तराखंड बनने  के बाद  दिन प्रतिदिन  नए  नए  घोटाले  सुनने और देखने  को मिले  रहे है  अब ताजा घटना  उत्तराखंड  परिवहन  निगम  में  देखने  को  मिल रहा  किस तरह  से  खतरनाक पहाड़ी रूटों पर न केवल धड़ल्ले बल्कि  असुरक्षित व बिना  बीमा  बसौ व  टैक्सी    का सर्पीली सड़कों  पर संचालन  धड़ल्ले से  संचालित  हो  रहा है  किस तरह  से आम  उत्तराखंड के सीधे साधे लोगों का   शोषण और दोहन, उत्तराखंड  बनने से पहले और  उत्तराखंड  बनने के बाद पहाड़ के खेत खलियान  उजड़े  गये  और अब जिन्दगी  के साथ उतराखंड संभागीय परिवहन निगम द्वारा  खिलवाड़ किया जा रहा है  इस शोषण और दोहन की प्र
क्रिया
 को हम सब  ने नजदीक से  देखा, समझा और समझने  के बाद    भी  सबक नहीं  लिया।  सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि तमाम क्षेत्रीय ताकतों के अहम ने पहाड़ को भारी नुकसान पहुंचाया जिन पर आम जन का बिश्वास था । ऋषिकेश निवासी लाखीराम सेमवाल ने आरटीआई के तहत संभागीय परिवहन अधिकारी देहरादून से गढ़वाल के पर्वतीय मार्गो पर संचालित हो रही बसों के बारे में सूचना  मांगी थी। सूचना अधिकारी द्वारा 
उपलब्ध सूचना के मुताबिक इन रूटों पर निगम 99 बसों का संचालन कर रहा है। इनमें से 82 बसों की फिटनेस ही नहीं कराई गई है। कुछ की फिटनेस अवधि एक साल तो कुछ की छह महीने पहले खत्म हो चुकी है।जबकि 
कानूनन किसी भी वाहन को बीमित किए बगैर संचालित नहीं किया जा सकता  खतरनाक पहाड़ी रूटों   पर  होने वाले हादसों में ज्यादातर  वाहनों के फिट न होना प्रमुख कारण के रूप में सामने आ रहा है इसके  बावजूद भी  निगम  का सबक न लेना यात्रियों की सुरक्षा के प्रति खिलवाड़ कर रहा है पहाड़ की सर्पीली सड़कों पर दौड़ रही अनफिट  अधिकतर  बसें  इससे बीमित नहीं है। आम यात्रियों की सुरक्षा के प्रति 
खिलवाड़ के अलावा कर चोरी में भी निगम पीछे नहीं है यहाँ  तक  की 31 दिसंबर, 2009 के बाद निगम ने उपरोक्त बसों का टैक्स जमा ही नहीं किया एक बस का सालाना औसत रोड टैक्स 4,820 बैठता है अफसरों  कि मिलीभगत से निगम  को लगभग 
4,77,180 रुपये रोड टैक्स का  नुकसान  झेलना पड़ा  जबकि 11 माह से ये बसें यूं ही डग्गमारी में दौड़ रही है |

Friday, December 3, 2010

लाख़ो साल पूर्व पहला परमाणु बम उत्तराखंड में ही बना था निशंक ?

लाख़ो साल पूर्व पहला परमाणु बम उत्तराखंड में ही बना था  निशंक ?

 

प्रगति मैदान में उत्तराखंड मुख्य मंत्री श्री पोखरियाल

|सुदर्शन सिंह रावत | 23 नवम्बर को राजधानी दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में उत्तराखंड दिवस का आयोजन था. यूँ तो हर साल ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में उत्तराखंड दिवस आयोजित होता है. लेकिन इस बार  खास था  आखिर राज्य की दस साल की उपलब्धियों को सरकार कैसे दर्शाती है पहले भी राज्य के  स्टाल  ( पवेलियन) में शहद, जूस,  भट, गहथ, मंडुआ,(क्वाद) झंगोरा इत्यादि बेचने वालों की भरमार रहती थी  साथ में राज्य की प्रगति को दर्शाते कुछ स्टाल भी होते थे  इस बार शहद, जूस, केचप के स्टाल तो बरकरार थे   बाकी स्टाल  जो सदियाँ  से  पहाड़  की  पहचान  थी  प्रवासी  उत्तराखंड  के लोगो  की भीड़  गहथ, मंडुआ, झंगोरा   वेचने वालो  को   ढूंढे   जा  रही थी जो की  लगभग नदारद.थी लोगो को तब और निराशा हुई जब राज्य के पवेलियन में उत्तराखंड टूरिज्म, सिडकुल और उत्तराखंड जल विद्युत् निगम के स्टाल लगे तो थे मुख्यमंत्री को कार्यक्रम में शिरकत के लिए  आना था  मुख्यमंत्री  जैसे  ही  कार्यक्रम  मैं पहुचे  तो  मीडियाकर्मी  से  मोखातिब होते  ही   मुख्यमंत्री निशंक अपने बडबोलेपन से यहाँ भी नहीं चूके. महाकुम्भ की उपलब्धियों के बखान के बाद उन्होंने बताया कि किस तरह  उपब्धियों को अंकतालिका में ऊपर रखा है, उसमें वह जीएसडीपी में प्रथम, विकास दर में तीसरा स्थान, प्रतिव्यक्ति आय में सबसे आगे, कुशल आर्थिक प्रबन्धन में अग्रणी, पर्यावरण एवं जन्तु संरक्षण में प्रथम, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी को ब्रांड एम्बेसडर बनाना, बीस सूत्रीय कार्यक्रम में प्रथम, गंगा को बचाने के लिये हेमामालिनी को ब्रांड एम्बेसडर बनाना, आपातकालीन सेवा 108 में 1870 बच्चों के जन्म होने का रिकार्ड, दस साल में एक लाख नौजवानों को रोजगार दिया आदि-आदि।  हद तो तब हो गई जब निशंक साहब ने रहस्योद्घाटन किया कि  चार लाख साल पूर्व पहला परमाणु बम उत्तराखंड में ही बना था ? इसे पहले  भी  मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों पिथौरागढ़ जनपद के जौलजीवी मेले में  मुख्यमंत्री 'निशंक' ने कहा कि पलायन पहाड़ के लिये वरदान है, इसी से पहाड़ की प्रतिभायें देश-विदेश में उत्तराखण्ड का नाम रोशन कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पहाड़ में पढ़े-लिखे युवाओं को बाहर जाना चाहिये और कम पढ़े-लिखे लोग पहाड़ में रहें। क्योंकि उन्हें बाहर उस तरह के मौके नहीं मिल पायेंगे।                                                                                                      

                  

Wednesday, December 1, 2010

आयुर्वेद के बेहतर प्रयोगों में जुटे हैं प्रो.पाण्डेय

http://garhwalbati.blogspot.com
आयुर्वेद के बेहतर प्रयोगों में जुटे हैं प्रो.पाण्डेय

रानीखेत के मूल निवासी प्रो.रमेश सी पाण्डेय आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। जो आयुर्वेद पर 20 सालों से अमेरिका में नये प्रयोग कर रहे हैं। अमेरिका में स्थापित जीडीपी आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के चेयरमैन प्रो.पाण्डेय ने प्रयोगों के जरिये आनुवंशिक बीमारी सिकल सेल की दवा का परिमार्जित रूप बाजार में उतारा है। उन्होंने बताया कि भारत भी इस बीमारी से अछूता नहीं है।
भारत में छत्तीसगढ़ के रायपुर में गत 22 से 27 नवम्बर तक हुई एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में भाग लेने के बाद अपने गृह क्षेत्र के दौरे पर पहुंचे प्रो.पाण्डेय ने जागरण से बातचीत में उन्होंने सिकल सेल नामक बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि विश्व के अमेरिकन व अफ्रीकी देशों में इस रोग से पीडि़त लोगों की कई मिलियन है, लेकिन भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में करीब 15 से 20 फीसदी लोग इस बीमारी से ग्रसित पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि यह आनुवंशिक बीमारी है, जिसे पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इस बीमारी की दवा नाइजीरिया में वर्ष-2006 में लांच हुई और उन्होंने नाइजीरिया से लाइसेंस लेकर इस दवा पर काम करके परिमार्जित रूप निकोसान नामक दवा बाजार में उतारी है। उन्होंने इस दवा को काफी कारगर बताया है। प्रो.पाण्डेय के अनुसार यह दवा सिर्फ बीमारी को नियंत्रण में रखती है। इसका एक कैप्सूल रोज लेने से मरीज का जीवन काल लंबा खिंचता है और यह दवा बीमारी का असर बढ़ने नहीं देती।
उल्लेखनीय है कि न्यू जर्सी अमेरिका में रह रहे प्रो.रमेश सी पाण्डेय मूल रूप से उत्तराखंड के चौखुटिया के पास नौगांव तड़ागताल के निवासी हैं। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा चौखुटिया, द्वाराहाट व रानीखेत से ली, जबकि इलाहाबाद व गोरखपुर से उच्च शिक्षा पाई। इसके बाद अमेरिका चले गए। जहां इन्होंने 45 सालों में कई वैज्ञानिक शोध किए और 20 साल से आयुर्वेद पर काम कर रहे हैं। विशिष्ट कार्य के लिए देश-विदेश में कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं। वर्तमान में वह न्यू ब्रसविक जर्सी अमेरिका में स्थापित जीडीपी आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के चेयरमैन हैं और कई उच्च स्तर की संस्थाओं के सदस्य हैं। प्रो.पाण्डेय सन् 1966 में अमेरिका चले गए किंतु इससे पहले नेशनल कैमिकल प्रयोगशाला पूना में रहे।
बातचीत के दौरान वह उत्तराखंड के पिछड़ेपन से चिंतित दिखे और कहते हैं कि उत्तरांचल व छत्तीसगढ़ हर्बल स्टेट हैं, लेकिन यहां जरूरत ठोस कार्ययोजना की है, ताकि किसान औषधी पौध उगा सकें और यहां दवाएं बन सकें। जिसे एक्सपोर्ट कर यहां की आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिल सके। इस मौके पर उनके परिजन कर्नल भुवन चंद्र पांडे, दीप पांडे व निधि पांडे भी मौजूद थीं।
बाक्स-क्या है सिकल सेल
रानीखेत: प्रो.रमेश सी पाण्डेय बताते हैं कि सिकल सेल खून की आनुवंशिक बीमारी है। जो खासकर मलेरिया से ज्यादा प्रभावित रहने वाले क्षेत्र में पाई जाती है। इसे गरीबों की बीमारी भी कहा जाता है। यह बीमारी रक्त में लाल कणों में हुए जन्मजात परिवर्तन के कारण होती है। जिसमें लाल रक्त कण गोलाई के बजाय हॉसिये के आकार में परिवर्तित हो जाते हैं। सिकल सेल रक्त कण 15-20 दिन में नष्ट हो जाते हैं। इसलिए सिकल रोगियों में सदैव रक्त की कमी रहती है और रक्त प्रवाह व अंगों के विकास प्रभावित होता है। जो बाद में नुकसानदेह बन जाता है।

in.jagran.yahoo.com se sabhar

Monday, November 22, 2010

मनरेगा नहीं अफसरों की मलाई

http://garhwalbati.blogspot.com
मनरेगा नहीं अफसरों  की  मलाई
सुदर्शन सिंह रावत | पौड़ी गढ़वाल  नैनीडांडा प्रखंड के अंतर्गत ग्रामपंचायत को  मनरेगा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। जिन ग्रामीणों ने कार्य किया भी, कई माह बीतने के बाद भी उन्हें मजदूरी भुगतान नहीं हो पाया है। ग्रामीणों ने खंड विकास अधिकारी से मनरेगा के तहत वर्ष भर रोजगार उपलब्ध कराने व पूर्व में किए गए कार्यो की मजदूरी का भुगतान करने की मांग की है  अधिकारियों  कि  लापर वाही है ! कि  मनरेगा  कानून को लागू हुए इतना समय हो गया है कि कई गरीब मजदूरों की मौत भूख से हो गई तो कई ने इसे पाने के लिए अपनी जिन्दगी ही गवां दी बाकी बचे भी तो, इसे प्रधान की रहमत ही समझते हैं । क्योंकि मजदूर/ग्रामीण लोग आज भी इस कानून से अनजान हैं और इसे अन्य योजनाओं की तरह ही समझते हैं जो सिर्फ ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव की झोली तक ही सिमट कर रह जाती है। इनकी झोली तक जिसका हाथ पहुंच गया वही पा सकता है  नैनीडांडा  ग्राम विकास के  कई  गांव के ग्रामीण/ मजदूरों के साथ एक बैठक करने का मौका मिला जिसमें मनरेगा  के मुद्दे पर चर्चा हुयी । लोगों के दिलों में तमाम सवाल थे जैसे-
१-  जॉबकार्ड प्रधान नहीं बना रहे हैं तो हम क्या करें ?
२- जॉबकार्ड बन भी जाता है तो काम नहीं मिलता है क्योंकि प्रधान जिसको चाहते हैं उन्हीं लोगों को काम देते हैं।
३-  काम करते हैं तो मजदूरी नहीं मिलती है इसके लिए किसके पास जाये या शिकायत करें ?
४- अगर प्रधान काम भी देते हैं तो ऐसे मौके पर जब हम अपने कृषि   कामों को कर रहे होते हैं ?
५- जॉबकार्ड कहाँ और कैसे बनवायें ?
६- काम पाने के लिए हम क्या करे ?
7 जॉबकार्ड प्रधान अपने पास ही रखे है ?
८- ग्राम पंचायत मित्र बिना प्रधान के कोई काम नहीं करते हैं ? इसकी शिकायत किससे करें ?
९- हम तो अनपढ़ हैं तो हम अपने जॉबकार्ड बनवाने के लिए कैसे आवेदन लिखें ?
१०- अगर हम गरीबी रेखा के नीचे नहीं है तो क्या हम काम नहीं कर सकते हैं ? हमारा जॉबकार्ड नहीं बनेगा ?
इन तमाम सवालों के जवाब में मैंने बताया कि पहली बात तो यह है कि यह कोई योजना नहीं है कि सरकार की तरह नहीं है कि बनती बिगड़ती रहती है बल्कि यह एक कानून है जो सरकारें बदलने पर भी नहीं बदलेगा ।इसमें किसी गरीब और अमीर का भेदभाव नहीं है भेदभाव है तो ! बस, इस बात का , कि कौन काम करेगा और कौन नहीं करेगा, जो काम करेगा उसे काम मिलेगा तथा जो नहीं करना चाहता है उसे काम नहीं मिलेगा । प्रधानों, ग्राम पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, सरकारी अफसर, सरकारें जरूर एक न एक दिन चली जानी हैं लेकिन यह कानून को कहीं नहीं जाना है सिवाय ग्रामीण/ मजदूरों के पास ।
रही बात कि जॉबकार्ड बनने कि तो यह प्रधान के घर का कागज नहीं है और न ही उसकी रबड़ स्टैम्प है जो उसकी मर्जी के बिना नहीं लगेगी ! यदि प्रधान आपका जॉबकार्ड नहीं बना रहे हैं तो आप एक सादे कागज पर जॉबकार्ड बनवाने का आवेदन लिखें और उस पर उन मजदूरों का नाम और हस्ताक्षर करायें जो जॉबकार्ड बनवाना चाहते है। फिर इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को दें । आवेदन पत्र देने की रसीद जरूर ले लें । यदि आप आवेदन लिखना नहीं जानते हैं तो यह जिम्मेदारी खण्ड विकास अधिकारी की है कि वह स्वयं या अपने सहयोगी से आपका जॉबकार्ड बनाने का फार्म भरे और फोटो खिचवाकर लगवाये । आपको अपने पास से फोटो का पैसा नहीं देना होगा । आपका जॉबकार्ड जब बन जायेगा तो आपको सूचित या आपके घर पहुंचा दिया जायेगा ।
जॉबकार्ड बनने के बाद आप एक आवेदन काम के लिए लिखें और उस पर भी उन मजदूरों का नाम, हस्ताक्षर समेत लिखें जो काम करना चाहते हैं और इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को प्राप्त करा दें साथ में प्राप्ति रसीद जरूर ले लें यह रसीद आप को काम न मिलने के बाद मजदूरी भत्ता दिलाने के लिए मदद करेगी। यदि आपको काम का आवेदन देने के 15 दिनों तक काम नहीं मिलता है तो आप मजदूरी भत्ता पाने के हकदार उस तारिख से हो जायेगें जिस तारीख में आपने काम के लिए आवेदन/अर्जी दी है । यह भत्ता मजदूरी का एक चैथाई यानी 25 रूपये 30 दिनों तक मिलेगा इसके बाद भी काम न देने पर यह भत्ता एक चैथाई से बढ़कर मजदूरी का आधा यानी 50 रूपये प्रतिदिन हो जायेगा और यह तब तक मिलेगा जब तक काम नहीं मिलता है । इस कानून में यह भी प्रावधान है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूर अपने खेतों को सुधारने के लिए भी आवेदन कर सकते हैं और उन्हें भी पूरी मजदूरी यानी 100 रूपये मिलेंगें । इसमें महिला, पुरूष, विकलांग, बृद्ध भी काम कर सकते हैं और उन्हें भी 100 रूपये ही मजदूरी मिलेगी । इसमें अन्य योजनाओं की अपेक्षा अनेक सुविधाएं भी हैं जो मजदूरी करने वाले मजदूर के लिए उपयोगार्थ हैं जैसे-छाया, पानी, आंगनबाड़ी, चिकित्सा, मुआवजा आदि ।
 कुछ ग्रामीण ने  सवाल  किया   कि जॉबकार्ड तो प्रधान जी के पास है उन्हें हम कैसे लें ।  जॉबकार्ड प्रधान, ग्राम पंचायत मित्र, सचिव या कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल नहीं रख सकता है सिवाय मजदूर के ! और अगर आपके जॉबकार्ड प्रधान के पास हैं  और देने  के लिए  मना करता  है !  तो आप धारा 25 के तहत प्रधान के खिलाफ एफ0आई0आर0 कर सकते हैं । रही बात काम के समय की तो आप जब अपने कृषि कामों से खाली हों तो आप काम का आवेदन देकर काम मांग सकते हैं और आपको काम मिलेगा । अब मजदूरी का पैसा आपके बैंक खाते में आयेगा अगर मजदूरी नहीं मिलती है तो आप सीधे ग्राम्य विकास आयुक्त से इसकी शिकायत कर सकते हैं। बस जरूरत है तो सिर्फ हौसला आफजाई करने वालों की, समाजसेवियों की, समाज के जागते हुए लोगों की, जो इनकी दिमाग  और दिल से यह भरम निकालें कि यह कानून नेताओं, सरकारी कर्मचारियों का नहीं जो हमारे नौकर हैं बल्कि काम करने वाले मजदूरों का हक है न कि प्रधान की रहमत?
नरेगा के लिए टॉल फ्री सहायता सेवा
        * नई दिल्‍ली में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के अंतर्गत आने वाले परिवारों और अन्‍य के लिए एक राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन सेवा शुरू की है जिससे ये लोग कानून के तहत अपने अधिकारों के संरक्षण और कानून के समुचित क्रियान्‍वयन व योजना संबंधी मदद ले सकें।
        *    टॉल फ्री हेल्‍पलाइन नबंर है: 1800110707

Sunday, November 21, 2010

हाथियों के डर से सहमा दूरदर्शन केंद्र

http://garhwalbati.blogspot.com
 हाथियों के डर से सहमा दूरदर्शन केंद्र
आए दिन हाथियों के उत्पात से जूझ रहे ग्रास्टनगंज स्थित दूरदर्शन रिले केंद्र को अन्यत्र विस्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। इसके लिए क्षेत्र में उपयुक्त भूमि की तलाश भी जोरों पर है।
क्षेत्रीय जनता की मांग पर वर्ष 1994 में यहां ग्रास्टनगंज स्थित खाम बंगले के समीप कोटद्वार में दूरदर्शन रिले केंद्र की स्थापना की गई। पिछले 15 वर्षो से सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन पिछले छह माह से केंद्र में हाथियों का उत्पात जोरों पर है।

वर्तमान में दूरदर्शन रिले केंद्र में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब हाथी केंद्र में न घुसते हों। गत 12 नवंबर की शाम हाथियों ने केंद्र में घुसकर न सिर्फ जमकर तोड़फोड़ की, बल्कि केंद्र के चारों ओर लगी तारों को उखाड़ फेंका। केंद्र में मौजूद कर्मचारियों ने किसी तरह कमरों में दुबक कर अपनी जान बचाई।

केंद्र में हाथियों के लगातार बढ़ रहे उत्पात के चलते अब केंद्र के अधिकारियों ने दूरदर्शन केंद्र को अन्यत्र शिफ्ट करने की योजना बनाई है। सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में मुख्यालय को प्रस्ताव भी भेज दिया गया है। साथ ही क्षेत्र में केंद्र स्थापना के लिए भूमि की तलाश भी की जा रही है।

कार्बेट नेशनल पार्क व राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के मध्य में अवस्थित होने के कारण लैंसडौन वन प्रभाग की कोटड़ी, कोटद्वार व लालढांग रेंज को हाथी बतौर कॉरीडोर प्रयोग करते हैं। दूरदर्शन रिले केंद्र जंगल में स्थित है, इसलिए वहां हाथियों की आवाजाही को नहीं रोका जा सकता है। ऐसे में केंद्र को अन्यत्र विस्थापित करना ही एकमात्र विकल्प है। ..नरेंद्र सिंह चौधरी, प्रभागीय वनाधिकारी, लैंसडौन वन प्रभाग
केंद्र में हाथियों का आतंक बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे कर्मचारियों की जान को भी खतरा पैदा हो चला है। केंद्र में हाथियों के उत्पात के संबंध में मुख्यालय को सूचना भेज दी गई है। मुख्यालय से जारी निर्देशों के आधार पर आगे की कार्यवाही की जाएगी|

 jagran se sabhar

Thursday, November 18, 2010

नेगी के गीतों पर देर रात तक थिरके दर्शक

http://garhwalbati.blogspot.com

नेगी के गीतों पर देर रात तक थिरके दर्शक



शरदोत्सव २०१० की आखिरी संध्या प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी और साथियों के नाम रही। कड़ाके की ठंड के बावजूद देर रात तक दर्शकों ने प्रस्तुतियों का लुत्फ उठाया। सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत ने बतौर मुख्य अतिथि किया। उन्होंने कहा कि राज्य आंदोलन की जननी रही पौड़ी नगरी का अपेक्षित विकास अभी तक नहीं हो पाया है।
वहीं देव स्तुति ‘देवी भगवती नमो नमः ’ से शुरू हुई सांस्कृतिक संध्या में लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने ‘इखमा छवीं तखमा छुवीं’, ‘तेरा मन क्या च सलाणा स्याली सर’, ‘टिहरी डूबण लग्यूंचा बेटा डाम का खातिर’, स्याली हे बसंती स्याली, हर तोड़ी का काखड, बॉडर मा कन कै जाण आदि प्रस्तुतियां दीं। रामलीला मैदान में नेगी के गीतों पर दर्शकों ने खूब ठुमके लगाए।
गायक अनिल बिष्ट ने ‘चल बैजरो का सैणा’, ‘तुमरा हमरो माया हे कांछी लागि गयो देरादूनै मा’ तथा गायिका मंजू सुंद्रियाल ‘ब्खुनी को घाम अछले बि नीच’ आदि की शानदार प्रस्तुतियां दीं। हास्य कलाकार घनानंद ने भी दर्शकों को खूब गुदगुदाया। कोरस में कविराज नेगी, पे्रम बल्लभ, प्रशांत गगोड़िया, ऊषा नेगी, रेखा और मंजू सुंद्रियाल ने सहयोग किया। आर्गन पर विनोद चौहान, तबला सुभाष पांडे, ढोलक जयेंद्र और तपेश्वर, पैड खेमचंद्र, बांसुरी पर कैलाश ध्यानी और नृत्य में संतोष, विक्की भारद्वाज, अशोक रावत, नीलम बिष्ट और संतोष रावत थे। इस मौके पर विधायक यशपाल बेनाम, पालिका अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद टम्टा, सभासद कलम सिंह रावत, विनोद बिष्ट, संगीता रावत और कमलेश समेत हजारों की तादाद में दर्शक मौजूद थे। संचालन गणेश कुकसाल ने किया।

Wednesday, November 10, 2010

Facts About Uttarakhand

http://garhwalbati.blogspot.com






The fact that Uttarakhand is also called "Dev Bhoomi" (God's land), is no exaggeration, where nature is at its splendour and perhaps that's why God's also couldn't resist coming here. Be it "Valley of flowers" or "Queen of Hills" (Mussoorie), historical or religious places and its culture or tradition. It's a tourist's paradise! Eager to know more about Uttaranchal! Have a look at its facts.
Overview
Formation of State :
Uttaranchal became the 27th state of the Republic of India on 9th November 2000. The State is carved out of Uttar Pradesh. It occupies 17.3% of India's total land area with 51,125 sq km.
Capital: Dehradun (Interim)
Longitude: 77° 34' 27" E to 81° 02' 22" E
Latitude: 28° 53' 24" N to 31° 27' 50" N
Total Area: 53,484 sq. km.
Total Forest Area: 34,434 sq. km.
Hilly Area : 92.57%
Plains: 7.43%
Borders:
International: China, Nepal.
National: Uttar Pradesh, Himachal Pradesh.
Districts: Pithoragarh, Almora, Nainital, Haridwar, Bageshwar, Champawat, Uttarkashi, Tehri Garhwal, Udham Singh Nagar, Chamoli, Dehradun, Rudraprayag
High Court: Nainital.
Languages Spoken: Kumaoni, Garhwali, Hindi.
State Animal, Bird, Flower And Tree :
Musk Deer Monal Brahma Kamal Burans
Musk Deer
(Moschus Chrysogaster)
Monal
(Lophoorus Impejanus)
Brahma Kamal
(Saussurea Obvallata)
Burans
(Rhododendron Arboreum)


Seasons
Summer Season : March to June mid.
Rainy Season     : Mid June to mid September.
Winter Season   : Mid September to February.

Places To Visit
Tourist And Historical Places :
Nainital, Mussoorie, Pauri, Almora, Ranikhet, Khirsu, Champawat, Dayara, Auli, Khatling, Vedini Bugyal, Valley Of Flowers, Lansdown, Lakhamandal, Paataal Bhuvaneshwar, Gangolihaat, Jolljivi, Kataarmal, Kosini, Jageshwar, Dwarahaat, Someshwar, Baijnath, Pindari Glacier etc.
Mussoorie Lake Skiing at Auli
Pilgrimage Sites :
Badrinath, Kedarnath, Gangotri, Yamunotri, Panchkedar, Panchbadri, Panchprayag, Haridwar, Rishikesh, Hemkund Sahib, Purnagiri, Chittai, Kaliyar Sharif, Nanakmatta Sahib, Rettha Sahib etc.
Har Ki Pauri Hemkund Sahib


Folk Songs And Dances
Jhumallo, Thadya, Chaunfla, Rasau, Pandwana, Tandi, Bhadgeet, Jaagar, Chaanchri, Chholia etc.
Folk Dance Folk Dance
Major Rivers
Bhagirathi (Ganga), Alaknanda, Mandakani, Pindari, Tones, Yamuna, Kali, Nyaar, Bhilangana, Saryu, Ramganga etc.
Holi River Ganga
Major Crops And Fruits
Major Crops: Rice, Wheat, Barley, Corn, Mandua, Hangora etc.
Major Fruits: Apple, Leechi, Pulam, Naashpati, Maalta etc.

Mineral Deposits
Limestone, Magnesite, Gypsum etc.
 sabhar in ashu tariyal

स्वीट मैमोरी क्लब ने कब्जाया खिताब

http://garhwalbati.blogspot.com
स्वीट मैमोरी क्लब सुनारा की ओर से आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट का खिताफ मेजबान टीम ने ही कब्जाई। फाइनल मैच में स्वीट मैमोरी क्लब ने आरएनएस बड़कोट को सातवें ओवर में 35 रनों पर ही ढ़ेर कर दिया।
बुधवार को प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला आरएनएस बड़कोट और स्वीट मैमोरी क्लब के बीच हुआ। बड़कोट ने टॉस जीतकर पहले फिल्डिंग करने का निर्णय लिया। सुनारा ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 10 ओवरों में 55 रन बनाये। वहीं बड़कोट की टीम शुरू से ही लड़खड़ाने लगी। पूरी टीम मात्र 35 रनों पर ढ़ेर हो गयी। इससे पहले हुए सेमीफाइनल मैच में नेत्री ने पहले बल्लेबाजी कर दस ओवरों में मात्र 50 रन बनाए। वहीं, बड़कोट ने तीन विकेट खोकर स्कोर पूरा कर लिया। दूसरा मैच स्वीट मैमोरी और यंगस्टार क्वाड़ी के बीच खेला गया। स्वीट मैमारी ने पहले बल्लेबाजी कर 69 रन बनाकर यंगस्टार को 58 रनों पर ढ़ेर कर विजय हासिल की।
समापन अवसर पूर्व विधायक मालचंद, प्रमुख यशवंत कुमार और पूर्व प्रमुख जगवीर सिंह भंडारी ने कहा कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से ग्रामीणों क्षेत्रों में छुपी प्रतिभाएं सामने आती हैं। विजेता टीम को दस हजार, ट्राफी और उपविजेता टीम को पांच हजार व ट्राफी वितरित की गई। मैन आफ द सीरज सुनारा के पप्पू, मैन आफ द मैच अमित रमोला और बेस्ट बॉलर का खिताब गोल्डी के नाम रहा।
इस मौके पर पूर्व प्रधान मनमोहन, उपप्रधान शिशपाल असवाल, सूरत लाल, क्षेपं सदस्य मदन लाल, भरत सिंह, दीपक चंद, दीनेश चंद रावत, अजब सिंह, हरदेव, कामेन्टर हरीमोहन, तथा इम्पायर प्रमोद रावत व स्वरूपचंद ने सहयोग दिया।
jagran se sabhar

Tuesday, November 9, 2010

कितनी कारगर है उत्तराखण्ड की महिला बाल विकास योजना

http://garhwalbati.blogspot.com 
(सुदर्शन सिंह रावत) | उत्तराखण्ड में महिला सशक्तिकरण और बाल विकास योजना के तहत राज्य सरकार ने नंदादेवी कन्या योजना के तहत चालू वित्त वर्ष में करीब 16 करोड़ रुपए आवंटित किए। आँकड़े के अनुसार महिला सशक्तिकरण के नाम पर 4 हजार करोड़ रूपये खर्च किए गए। मुख्यमंत्री आर पी निशंक के द्वारा राज्य सभा में लैंगिक मामलों से संबंधित एक बजट प्रस्तुत किया गया, जिसमें बजट को 2007-08 में 333 करोड़ रु. से बढ़ाकर 1 हजार 205 करोड़ रुपये कर दिया गया। पिछले वर्ष लिंग बजट के 20 विभाग थे, परंतु इस वर्ष चार और विभाग को इसमें शामिल किया गया, जिसमें महिलाओं की सुख समृद्धि और कल्याण को प्रमुखता दी जाएगी। महिलाओं के कल्याण से सम्बंधित गौरा देवी कन्याधान योजना, नंदा देवी योजना और इस प्रकार की अन्य योजनाओं की शुरूआत की गई। इस योजना को दो वर्गो में विभाजित किया गया। पहला महिलाओं के लिए और दूसरे वर्ग में 30 प्रतिशत लाभ महिला आबादी के लिए रखा गया है। नंदादेवी कन्या योजना, बालिकाओं को आर्थिक एवं शिक्षित सुरक्षा प्रदान करने के लिए की गई। इसके अन्तर्गत लैंगिक असमानता को दूर करने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, बाल विवाह को रोकने, कन्या शिशु को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों में जन्मी लड़कियों के नाम 5 हजार रुपये का एक फिक्स डिपाजिट चैक दिया जाता है। अगर लड़की 18 साल की हो जाती है तो यह  राशि  उसके द्वारा प्राप्त की जा सकेगी। यदि 18 साल से पहले किसी कारण से कन्या की मृत्यु हो जाती है तो यह राशि वापस सरकार के खजाने में जमा करा ली जाएगी।
नंदादेवी योजना का मुख्य उदेश्य राज्य में लिंग अनुपात में आई कमी को ठीक करना है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार लिंग अनुपात की दृष्टि से उत्तराखण्ड में एक हजार पुरुषों पर वर्तमान में 962 महिलाएं है। इस योजना का उद्देश्य परिवार व समाज में बालिकाओं की स्थिति को समानता पर लाना, बाल विवाह पर रोक लगाना, कन्या की गंभीर बीमारी का इलाज कराना, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, जन्म पंजीकरण को बढ़ावा देना, टीकाकरण के प्रति जागरुकता पैदा करना और गर्भवती माहिलाओं का सौ फीसदी पंजीकरण कराना शामिल है।
महिला सशक्तिकरण के ऊपर 48.73 करोड़ रूपये खर्च किए गए। सरकार महिलाओं के विकास के लिए विशेष ध्यान दे रही है। इसके अलावा राज्य में बच्चों के विकास के लिए देव भूमि मुस्कान योजना, मोनाल परियोजनाएं भी चला रही है, इतनी कल्याणकारी योजनाएं होने के बावजूद भी दूरदराज पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली गरीब महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...