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Wednesday, March 10, 2010

उत्तराखण्ड से पलायन: आत्म सम्मान के लिए

दिनेश ध्यानी
28 फरवरी 2010 को गढ़वाल भवन पंचकुईया रोड़ दिल्ली में मानव उत्थान समिति के तत्वाधान में उत्तराखण्ड के महान समाज सेवी स्वर्गीय रघुनन्दन टम्टा जी की पुण्य स्मृति में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी का विषय था ’उत्तराखण्ड से पलायन’। गोष्ठी में अल्मोड़ा से सांसद श्री प्रदीप टम्टा सहित उत्तराखण्ड के कई गण्य मान्य व्यक्तियों ने शिरकत की। उक्त विचार गोष्ठी का
आयोजन श्री सत्येन्दz प्रयासी जी ने किया था। बैठक में एक विचार जो सबको छू गया कि बहुसुख्यक समाज की ज्यादतियों एवे सौतेले व्यवहार के कारण उत्तराखण्ड के अधिकांश शिल्पकार एवं हरिजन भाईयों ने पूर्ण रूप से पलायन किया। रोजी-रोटी के लिए पलायन करना दुनिया की रीति है लेकिन अगर इसके साथ-साथ आत्म सम्मान भी पलायन का कारण बने तो उसे देश और समाज को सोचना चाहिए। कम से कम आज तो उन
बिंदुआंे पर विचार किया जाना चाहिए जो समाज को तोड़ रहे हैं, आदमी को आदमी से अलग कर रहे हैं।
वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कई प्रकार के सुझाव एवं विचार इस गोष्ठी में दिये। लेकिन सबसे अधिक जो बात उभरकर आई वह विचारणीय एवं आत्मअवलोकन के लिए हमें मजबूर करती है। यों तो हम सभी जानते हैं कि भारतीय समाज रूढ़िवादी एवं जातिवादी मानसिकता से गzसित है और आज भी समाज में इस प्रकार से ये रूढ़िवादिता काफी गहरी पैंठ बनाये हुए हैं। समाज के ठेकेदार रात के अंधेरों में तो वह सब लफ~फाजी
और मनमानी करना चाहते हैं और करते हैं जिसके विरोध में दिन के उजाले में फतवे जारी करते हैं और लोगों को नैतिकता एवं रूढ़िवादिता का पाठ पढ़ाते हैं। खाने को कुछ भी मिल जाये, किसी भी प्रकार का मिल जाए खा और पचा जायेंगे लेकिन जातिवाद एवं छुआछूत इनकी रग रग में भरा है।
आज भी इनकी चाकरी हो या इनके दु:ख-सुख में काम करने हों तो इनकी नजर शिल्पकार लोगों पर ही जाती है। और शिल्पकार भाईयों को भी समझना होगा कि सदियों से इनके शादी विवाह आदि में वन्दनवार गाकर या ढ़ोल-दमाउ बजारक उनको क्या मिला? क्यों इस प्रकार की चाकरी की जाए। आज समानता के युग में और नये-नये अवसरो के बावजूद भी क्यों ढ़ोल बजाना इनका पेशा रह गया है। जब एक सवर्ण का बेटा बैंड़ बजा सकता है तो
फिर ढ़ोल और दमाउ क्यों नही बजा सकता है? कहते का मतलब रूढ़िवादी समाज तुम्हें आगे भी ऐसा ही देखना चाहेगा अपने लिए अगर कुछ मुकाम बनाना है या कुछ करना है तो सबसे पहले अपने सोच और कार्यप्रणाली को बदलना होगा।
गोष्ठी में एक बात जो साफ उभरकर आई वह है उत्तराखण्ड से एक वर्ग विशेष का आत्म सम्मान के लिए पलायन। यह बात कई वक्ताओं ने कही और यह पूरे सौ आने सच भी है। उत्तराखण्ड क्या भारतीय समाज में बहुजन हमेंशा ही अल्पसंख्यकों पर अत्याचार एवं मनमानी करते रहे हैं जहां तक भी उनका वश चलता है आज भी यह परंपरा जारी है। समाज के ठेकेदार एवं अपनी मंूछों को सवर्णता के गांेद से चिपकायें ये लोग बाहर
कुछ भी खा-पचा जायेंगे कितना भी व्यभिचार एवं कु-कृत्य कर जायेंगे सब माफ लेकिन जातिवाद और छुआछूत इनकी नश-नश में भरा है। और यही कारण रहा है कि उत्तराखण्ड के अल्पसंख्यक एवं छुआछूत का शिकार रहे काश्तकार एवं शिल्पी समाज ने जब देखा कि सदियों से यहां के रूढ़िवादी समाज में उनके आत्मसम्मान के लिए कुछ भी स्थान नही है। उन्हें आज भी हेयता से देखा जाता है तो उन लोगों के मनों में इस भूमि
से विरक्ति उपजी और उसका परिणाम हुआ कि बहुतायात में इस समाज ने यहां से स्थाई तौर पर पलायन करना ही उचित समझा। सही भी है समाज में सबको बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए। सभी भगवान की संतानें हैं लेकिन जातिवादी समाज और रूढिवादी सोच के लोग इस प्रकार की समभाव की बातें क्योंकर कहेंगे और मानेंगे।
यह भी सच है कि उत्तराखण्ड समाज में तथाकथित सवर्ण एवं शिल्पकार समाज के बीच गाzम स्तर पर आपसी संबध प्रगाढ भी रहे हैं। आपस में लोग नाते रिश्ते भी लगाते रहे हैं लेकिन जब बात आती है सम्मान एवं बराबरी की तो उन्हें आज भी अपने घर की देहरी तो दूर चौक से अन्दर भी नहीं आने दिया जाता है। जब बात आती है उनके सम्मान की तो आज भी उनको हेय एवं बेकार समझा जाता है। आज भी उनके सवर्णों की सेवा एवं
दास की मानसिकता से मुक्ति नही मिली है।
सरकारें और नेता नारे बहुत लगाते हैं कि समाज से जातिवाद, छुआछूत हटना चाहिए लेकिन सबसे अधि कइस बातों को ये ही लोग बढ़ावा देते हैं। चुनाव के समय बहुसंख्यक समाज का नेता घर-घर जाकर अपने लोगों को जाति के नाम पर वोट करने को कहता है और उसके चम्चे और छुटभैया नेता समाज को जातिवाद एवं क्षेत्रवाद के नाम पर खुब काटते और बांटते रहते हैं। उत्तराखण्ड में शिल्पकार ही क्यों जहां-जहां
बzाह~मण भी अल्पसंख्यक हैं वहंा उनका भी शोषण होता है। लगभग हर उस गांव में बzाह~मण या शिल्पकारों के साथ हमेशा से ही दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। यह बात अलग है कि बzाह~मण शिल्पकार भाईयों की तरह इतने गरीब एवं असहाय नही रहे हैं लेकिन उनको भी काफी कुछ परेशानियों एवं असुविधाओं को सामना करना पड़ता है। खासकर चुनाव के समय तो ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि लोग बाजार से राशन और
सामान भी आसानी से नही खरीद पाते हैं। लगभग आज से तीस साल पहले की बात है जब स्वर्गीय हेमवती नन्दन बहुगुणा जी गढ़वाल से मध्यवर्ती चुनाव लड़े थे। उनके खिलाफ स्वर्गीय चन्दz मोहन सिंह नेगी जी चुनाव मे कांगेzस के उम्मीदवार थे। तब हम स्कूल पढ़ते थे। खाल्यूड़ाडा जो हमारा बाजार है वहां गबर सिंह विष्ट एवं गोविन्द सिंह विष्ट इन दुकानदारों एवं ठेकेदारों ने ऐसा माहौल बनाया कि सेना का एक
भूतपूर्व हवलदार सुल्तान सिंह होटल वाला जो कि वीरोखाल ब्लाक का था और यहां चाय-खाने का होटल चलाता था। जब होटल में चाय पीने बैठो तो पूछता था कि तुम ठाकुर हो कि भटड़े हो या हरिजन हो। अगर गलती से चाय पीने वाला बzाह~मण निकला तो उसे बाजू पकड़कर होटल से बाहर कर दिया जाता था। गzाम पड़खण्डाई के तत्कालीन अध्यापक श्री सुरेशानन्द ध्यानी जो कि तब बैजरों में सेवारत थे, अपने बेटे एवं पत्नी
के साथ बैजरों से आ रहे थे। उन लेागों को पता ही नही था कि यहां इतना दूषित माहौल है। वे इस दुकानदार की होटल में चाय पीने बैठ गये। जब उसने इनसे पूछा कि तुम कौने हो। तो इन्हौंने पहले तो इस तरह से पूछने पर ऐतराज जताया। बाद में हाथापाई होने लगी और इसने इन लोगों के साथ बहुत बदतमीजी की। यह तो एक वाकया था अनेकों बार इस प्रकार की प्रताड़ना लोगों को झेलनी पड़ती है। यह बात अलग है कि तब इस
प्रकार की बातों की शिकायत शासन प्रशासन तक नहीं जाती थी। लेकिन ऐसा आज भी जारी है।
दिल्ली से एक साप्ताहिक समाचार पत्र का तथाकथित संपादक और उत्तराखण्ड आन्दोलन का ठेकेदार दिल्ली में बैठकर किस प्रकार से जातिवाद एवं क्षेत्रवाद की विषवेल फैला रहा है इसकी भी एक बानगी देखिये। यह शक्स दिल्ली से अखबार छापता है। इसकी रोजी रोटी ही जातिवाद एवं क्षेत्रवाद से चलती है। यह लिखता है कि उत्तराखण्ड में बzाह~मण अल्पसंख्यक हैं और नौकरियों से लेकर राजनीति में इनका
वर्चस्व है इनको आगे नही आने देना चाहिए। बzाह~मणों को मुखमंत्री नही बनना चाहिए। इस शक्स की हिमाकत तो देखिये यह लिखता है कि उत्तराखण्ड में अगर बzाह~मण यों ही आगे बढ़ते रहे तो वह दिन दूर नही जब बहुसंख्यक समाज उत्तराखण्ड को कश्मीर बना देगा। इस विध्वसंक मानसिकता वाले व्यक्ति को आप क्या कहेंगें? कहते का मतलब इस प्रकार की जातिवादी मानसिकता के बीमार लोग आज भी समाज में जिन्दा और
मौजूद हैं। ऐसे अपराधियों को समाज उनको दण्ड देने की बजाय एक कzांतिकारी एवं न जाने क्या-क्या कहकर विभूषित करता है। कहने का तात्पर्य है कि चाहे कोई भी हो समाज में बहुसंख्यक मानसिकता ने हमेशा से ही अपने से अल्पसंख्यकों एवं मजलूमों पर अत्याचार ही किये। आज भी पहाड़ के गांवों में राजनीति
गोष्ठी के प्रसंगवश उक्त कुछ उदाहरण दे गया। असल में हमारे समाज की सोच कितनी संकीर्ण एवं आत्म केन्दिzत है इसको बता रहा था। असल बात यह है कि आज किसी भी स्तर पर छुआछूत के लिए कोई जगह नही है। किसी भी आदमी से जाति अथवा वर्ण के आधार पर किसी प्रकार का भेद नहीं होना चाहिए। इससे हमारा आत्मबल तो कमजोर होता ही है समाज एवं देश की भी गंभीर हानि होती है। व्यक्ति को जाति अथवा वर्ण से अछूत या
बड़ा नहीं माना जाना चाहिए। उसके कर्मों एवं कृत्यों के आधार पर उसका त्याग या आत्म सम्मान परखा जाना चाहिए। न कि किसी की जाति को महान बताकर दूसरे लोगों को नीचा दिखाया जाए। आज समय बदल चुका है और उक्त गोष्ठी भी इसी तरफ इशारा करती है कि हम अपने समाज को सामुहिकता के आधार पर देखंे, पुरानी गलतियों को न दोहरायें और आगे आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए नेता और जातिवाद व
छुआछूत को नही समाज को मजबूत बनायें। जो लोग जातिवाद एवं छुआछूत करते हैं उनका सामुहिक वहिष्कार होना चाहिए। उनका दण्डित किया जाना चाहिए। और यह तब तभी होगा जब हम खुद पहले बदलने का संकल्प लें तभी हम समाज और देश को बदल सकते हैं।
एक बात और है कि आरक्षण की आड़ में नेता और राजनैतिक दल अपनी गोटियां तो फिट करते ही हैं लेकिन इसका असली फायदा कभी भी गरीब लोगों को नही मिला। पिछड़ों में भी जो अगड़े हैं उन्हौंने ही आरक्षण का फायदा उठाया है इसलिए आज समय आ गया है कि हमारी शिल्पकार भाई और हरिजन भाई इस बात को उठायें कि हमें आरक्षण का लोलीपाWप नही चाहिए। हमारे लोगों को शिक्षा और समानता सरकार दे और सबको समान रूप से
आगे बढ़ने का अवसर दे। उत्तराखण्ड सहित देश के तमाम गांवों में जाकर देखा जा सकता है कि आरक्षण से उस समाज की जीवनशैली नही बदली जिसे आरक्षण दिया गया। हां कुछ प्रतिशल लोग जो कि नगण्य हैं उनको जरूर फायद मिला अन्यथा बहुसंख्यक समाज जस का तस ही है। इसलिए शिल्पकार एवं हरिजन भाईयों को भी समय के साथ-साथ अपने लिए बराबरी की मांग करनी चाहिए और इस संघर्ष में आगे आना चाहिए।
आशा की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड की नौजवान पीढ़ी इस प्रकार की मानसिकता एवं संकीर्णता से उबरेगी । उत्तराखण्ड समाज के साथ-साथ देश के लिए सब एक साथ मिलकर कार्य करेंगे और उससे पहले अपने लोगों को अपने भाईयों को अपने समकक्ष मानकर एवं बराबरी का दर्जा देकर अपने घर से शुरूआत करेंगे। ताकि जो दर्द उक्त गोष्ठी में उभरकर आया वह आगे किसी के दिल और दिमाग को न कचोटता रहे।
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गढ़वाल की कुछ तस्बीरें




गढ़वाल के दृश्य






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badrinath


Shree BadrinathBadrinath: Also known as Vishal Badri, this temple located at a height of 3,133 nits. is the largest and most popular of the Vishnu pilgrimages among the five Badris. The original temple here is believed to be built by King Pururava and the icon of the lord carved by Vishwakarma, the creator of the gods. The idol was recovered by Adi Shankaracharya from the waters of the nearby Naradkund and consecrated once more in the temple, restored in the 19th century by the royal houses of Scindia and Holkar




Badrinath situated at an elevation of 3,133 mt is considered to be amongst the most pious.

Altitude: 3,235 mt.

Climate
Summer: Cool during the day and cold at night.
Winter: Snow-bound.Touching sub-zero.

Clothing
Summer: Light Woollens.
Place of the Week
Shree BadrinathBadrinath: Also known as Vishal Badri, this temple located at a height of 3,133 nits. is the largest and most popular of the Vishnu pilgrimages among the five Badris. The original temple here is believed to be built by King Pururava and the icon of the lord carved by Vishwakarma, the creator of the gods. The idol was recovered by Adi Shankaracharya from the waters of the nearby Naradkund and consecrated once more in the temple, restored in the 19th century by the royal houses of Scindia and Holkar.
Winter: Very Heavy Woollens.

Language: Hindi, Garhwali & English.
Imagery ©2010 DigitalGlobe, GeoEye, Map data ©2010 Mapabc, Europa Technologies - Terms of Use
Map
Satellite
Hybrid

Best Season : May to October every year the temple usually remains open from first week of May to 2nd week of November.

HOW TO REACH

* Air: Nearest airport is at Jolly Grant (315km away).
* Rail: Nearest railheads are at Rishikesh 297 km away and Kotdwara 327 km away, which are connected with major cities of North India.
Rishikesh is directly connected by rail with Howrah, Bombay, Delhi & Lucknow.

There are two routes to Badrinath from Delhi:

* Route 1 : Delhi-Rishikesh : 287 km by rail, Rishikesh-Badrinath :297 km by road.
* Route 2 : Delhi-Kotdwara-300 km by rail, Kotdwara-Badrinath-327 km by road.

ACCOMMODATION

* Andhra Bhawan 08 Beds
* Jhun Jhunwala Cottage 04 Beds
* Modi Bhawan I 12 Beds
* Modi Bhawan II 12 Beds
* Modi Bhawan III 24 Beds
* Mittal Cottage 06 Beds
* Chand Cottage 24 Beds
* Shankaracharya Sadan 20 Beds
* Badrish Sadan 22 Beds
* Gujarat Bhawan 04 Beds

Place of the Week
Shree BadrinathBadrinath: Also known as Vishal Badri, this temple located at a height of 3,133 nits. is the largest and most popular of the Vishnu pilgrimages among the five Badris. The original temple here is believed to be built by King Pururava and the icon of the lord carved by Vishwakarma, the creator of the gods. The idol was recovered by Adi Shankaracharya from the waters of the nearby Naradkund and consecrated once more in the temple, restored in the 19th century by the royal houses of Scindia and Holkar.

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Sunday, March 7, 2010

UTTARAKHAND

UTTARAKHAND
Area : 53,484 sq km
Population : 8 4 , 8 9 , 3 4 9
Capital : D e h r a d u n
Principal Languages : Hindi, English, Garhwali, Kumauni

HISTORY AND GEOGRAPHY

Uttarakhand finds mention in the ancient Hindu scriptures as Kedarkhand, Manaskhand and Himavant. The Kushanas, Kunindas, Kanishka, Samudra Gupta, the Pauravas, Katuris, Palas, the Chandras and Panwars and the British have ruled it in turns. It is often called the Land of the Gods (Dev Bhoomi) because of its various holy places and abundant shrines. The hilly regions of Uttarakhand offer pristine landscapes to the tourists.

The State of Uttarakhand was earlier a part of the United Province of Agra andAwadh which came into existence in 1902. In 1935, the name of State was shortened to the United Province. In January 1950, the United Province was renamed as UttarPradesh and Uttaranchal remained a part of Uttar Pradesh before it was carved out ofUttar Pradesh on 09 November 2000. It is incepted as the 27th State of India.

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