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Saturday, February 27, 2010

.करिले अपनो ब्याह देवर, हमरो भरोसे जनि करियो

चम्पावत। खुशगवार मौसम के चलते चम्पावत जनपद में होली का रंग होलियारों पर खूब चढ़ा है। फागुन की इस मस्ती में अब होली के स्वर भी उनमुक्त हो गए है। हास-परिहास, हंसी-ठिठोली के साथ ही छेड़छाड़ का रंग होली में खिलने में लगा है।

तीसरे रोज शुक्रवार को यहां की होलियों में हंसी ठिठोली का गायन चरम पर हो रहा है। घर-घर जा रही होलियों में अचला मेरो छोड़ श्याम, तेरी गऊ चली वृन्दावन को, बृजमंडल देश देखो रसिया, चल कहो तो यहीं रम जाए, गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे, चल उड़जा भंवर तो को मारेगे जैसे उन्मुक्त गीत गाकर होलियार मस्ती में झूम रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में होली का घर-घर जाकर गायन जारी है, वहीं बैठकी होली के राग भी खूब सज रहे है। चाराल क्षेत्र के अलावा चम्पावत, लोहाघाट, पाटी व बाराकोट के ग्रामीण अंचलों में होलियों के स्वर हर एक को फागुन की फगुनाहट में बौराए हुए है। हर ओर मस्ती, हुड़दंग और उल्लास का माहौल है। महिलाओं की होली भी खूब परवान चढ़ी है। बिन पिए होली को खेलें, मत मारो मोहन पिचकारी, मेरे रंगीलों देवर घर आ रौ छ, ये उभरा जोवन थमता ना, जेठानी तुमरो देवर हमसे ना बोले, पटव्वा मेरों मीत मोहन माला दे गयो, कर लो अपनो ब्याह ओ देवर हमरो भरोसो जनि करियो आदि होलियों के स्वर मदमस्त किए हुए है।

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स्वरोजगार अपना आर्थिकी सुदृढ़ करें महिलाएं

रुद्रप्रयाग। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत अगस्त्यमुनि में नवगठित स्वयं सहायता समूहो के लिए एक दिवसीय जागरूकता प्रशिक्षण अभिमुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 56 महिलाओं ने प्रतिभाग किया।

यहां ब्लाक सभागार अगस्त्यमुनि में जिला ग्राम्य विकास अभिकरण एवं मैत्री संस्था के सहयोग से महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए आयोजित प्रशिक्षण अभिमुखीकरण कार्यक्रम में वक्ताओं ने स्वयं सहायता समूहों को समूह की आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व की विशेष जानकारियां दी गई। जनपद की विषम भौगोलिक स्थिति व पारिस्थितिकीय तंत्र की विशेषताओं के अनुरूप महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन व रोजगार अपनाने के लिए उत्प्रेरित किया गया। प्रशिक्षण में महिलाओं को दुग्ध उत्पादन, सब्जी, फल, नगदी फसलें, जैविक अनाज उत्पादन के अलावा धूप-अगरबत्ती, वाशिंग पाउडर तथा मोमबत्ती बनाना सहित कई आर्थिक क्रिया कलापों को अपनाने पर जोर दिया गया। मैत्री संस्था की सचिव मीरा कैंतुरा ने कहा कि समूह को आर्थिक क्रिया कलाप के अतिरिक्त पंचायत में विभिन्न विकास योजनाओं में भी सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए। कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूहों को स्वरोजगार तथा घरेलू हिंसा संबंधी शिक्षण सामग्री वितरित भी की गई। प्रशिक्षण में महिलाओं ने अगली बैठक गांव में आयोजित करने का निर्णय लिया। इस अवसर पर खण्ड विकास अधिकारी, दीपा आर्य, रोशन रावत, स्वयं सहायता समूह की विभिन्न गांवों से 56 महिलाओं ने प्रतिभाग किया।

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स्वरोजगार अपना आर्थिकी सुदृढ़ करें महिलाएं

रुद्रप्रयाग। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत अगस्त्यमुनि में नवगठित स्वयं सहायता समूहो के लिए एक दिवसीय जागरूकता प्रशिक्षण अभिमुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें 56 महिलाओं ने प्रतिभाग किया।

यहां ब्लाक सभागार अगस्त्यमुनि में जिला ग्राम्य विकास अभिकरण एवं मैत्री संस्था के सहयोग से महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए आयोजित प्रशिक्षण अभिमुखीकरण कार्यक्रम में वक्ताओं ने स्वयं सहायता समूहों को समूह की आवश्यकता, उद्देश्य एवं महत्व की विशेष जानकारियां दी गई। जनपद की विषम भौगोलिक स्थिति व पारिस्थितिकीय तंत्र की विशेषताओं के अनुरूप महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन व रोजगार अपनाने के लिए उत्प्रेरित किया गया। प्रशिक्षण में महिलाओं को दुग्ध उत्पादन, सब्जी, फल, नगदी फसलें, जैविक अनाज उत्पादन के अलावा धूप-अगरबत्ती, वाशिंग पाउडर तथा मोमबत्ती बनाना सहित कई आर्थिक क्रिया कलापों को अपनाने पर जोर दिया गया। मैत्री संस्था की सचिव मीरा कैंतुरा ने कहा कि समूह को आर्थिक क्रिया कलाप के अतिरिक्त पंचायत में विभिन्न विकास योजनाओं में भी सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए। कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूहों को स्वरोजगार तथा घरेलू हिंसा संबंधी शिक्षण सामग्री वितरित भी की गई। प्रशिक्षण में महिलाओं ने अगली बैठक गांव में आयोजित करने का निर्णय लिया। इस अवसर पर खण्ड विकास अधिकारी, दीपा आर्य, रोशन रावत, स्वयं सहायता समूह की विभिन्न गांवों से 56 महिलाओं ने प्रतिभाग किया।

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पानी:पी-अभी यह हाल हैं बाद में क्या होगा?

गोपेश्वर (चमोली)। अभी गर्मी का मौसम शुरू नहीं हुआ, लेकिन जिला मुख्यालय में पानी की किल्लत अभी से शुरू हो गई है। पेयजल संकट का आलम यह है कि मानक के अनुरूप नगरीय क्षेत्र में 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी मिलना चाहिए, लेकिन लोगों को मात्र 70 लीटर पानी ही लोगों को उपलब्ध हो पा रहा है।

जिला मुख्यालय गोपेश्वर में पानी की आपूर्ति के लिए वर्ष 1971 में पेयजल योजना का निर्माण किया गया था। समय पर रखरखाव न होने के कारण पेयजल योजना जर्जर होने की कगार पर है। इसकी पाइप लाइन से जगह-जगह पानी का रिसाव हो रहा है, जिससे लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। मानकों के अनुसार नगर क्षेत्र में प्रति दिन प्रति व्यक्ति को 135 लीटर पानी मिलना चाहिए, लेकिन लोगों को इससे काफी कम पानी में काम चलाना पड़ रहा है। हालात ऐसे हैं कि हल्दापानी, सुभाषनगर, मंदिर मार्ग आदि मोहल्लों में तो लोगों को पीने के लिए तक पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है। नियम के मुताबिक किसी भी पेयजल योजना का उसके निर्माण के 30 वर्ष के भीतर पुनर्गठन हो जाना चाहिए, लेकिन गोपेश्वर की पेयजल योजना का अभी तक पुनर्गठन नहीं किया गया है। जर्जर पाइप लाइन लोगों की जरूरत पूरी नहीं कर पा रही है।

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चमोली से 18715 देंगे बोर्ड परीक्षा

गोपेश्वर (चमोली)। आगामी बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियों पर हुई बैठक में सभी केन्द्र व्यवस्थापकों व कस्टोडियन (सम्भारक) को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए। इसके अलावा केन्द्र व्यवस्थापकों को परीक्षा सामग्री भी वितरित की गई।

जिलाधिकारी नीरज सेमवाल की अध्यक्षता में जीआईसी गोपेश्वर के सभागार में आयोजित बैठक में आगामी बोर्ड परीक्षा की व्यवस्था का खाका तैयार किया गया। बैठक में जिला शिक्षाधिकारी मेहरबान सिंह बिष्ट ने जानकारी दी कि इस वर्ष बोर्ड परीक्षा में चमोली जनपद से कुल 18715 परीक्षार्थी शामिल होंगे, जिनमें हाईस्कूल संस्थागत 9434, इण्टरमीडिएट संस्थागत 6516, हाईस्कूल व्यक्तिगत 1674 और इण्टरमीडिएट व्यक्तिगत 1091 परीक्षार्थी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से पूरे जनपद को 6 जोन में बाटा गया है। सम्बंधित क्षेत्र के एसडीएम उस जोन के सेक्टर मजिस्ट्रेट होंगे। श्री बिष्ट ने बताया कि पूरे जिले में बोर्ड परीक्षाओं को सम्पन्न करने के लिए कुल 91 परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें से 81 मिश्रित व 10 एकल (सिर्फ हाईस्कूल) केन्द्र होंगे। इन केन्द्रों में से विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर 21 केन्द्रों को संवेदनशील घोषित किया गया है। शेष केन्द्र सामान्य की श्रेणी में है। बैठक में जिलाधिकारी नीरज सेमवाल ने सभी केन्द्र व्यवस्थापकों व कस्टोडियन को निर्देश दिए कि वे आज से लेकर परीक्षा समाप्ति की तिथि तक अपने-अपने केन्द्रों पर उपस्थित रहें। एसपी विम्मी सचदेवा रमन ने कहा कि प्रत्येक संवेदनशील बूथ पर रेग्युलर पुलिस फोर्स तैनात किया जाएगा। इसके अलावा, सभी थानों को निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी परीक्षा केन्द्र में कोई अप्रिय घटना घटने पर तत्काल मौके पर पहुंचें और आवश्यक कानूनी कार्रवाई करें। बैठक के बाद सभी केन्द्र व्यवस्थापकों को परीक्षा सामग्री वितरित की गई। बैठक में सभी उपखण्ड शिक्षाधिकारी, केन्द्र व्यवस्थापक व कस्टोडियन भी उपस्थित थे।

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हठ ऐसा कि बारह साल तक बोले ही नहीं

कोटद्वार (गढ़वाल)। मानव जीवन शैली में बदलाव या विकास की अंधी दौड़ का खामियाजा। घर-आंगन में फुदकने वाली जिस 'गौरेया' ने पक्षी विशेषज्ञ डा. सलीम अली की जीवनधारा ही बदल डाली, आज उसी 'गौरेया' का जीवन संकटों से घिर गया है। स्थिति यह है कि जो घर-आंगन कभी गौरेया की चहचहाट से गूंजते थे, आज सूने पड़े हैं।

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, देश के किसी भी कोने में चले जाइए 'गौरेया' की चहचहाट हर जगह सुनने को मिलेगी। मानव समाज के बीच रहने वाली इस नन्हीं चिड़िया के व्यवहार के कारण ही वैज्ञानिकों ने इसे 'पेशर डोमेस्टिक' नाम दिया। स्लेटी चोंच, काला कंठ, ऊपरी सीना, कत्थई गुद्दी व भूरी अग्रपीठ लिए नर गौरेया, जबकि धारियांरहित स्लेटी-सफेद अधर भाग व धारीदार भौंह लिए मादा गौरेया अब दूर-दूर तक नजर नहीं आती। कहना गलत न होगा कि कुछ वर्ष पूर्व तक घरों व खेतों में भारी तादाद में दिखने वाली गौरेया करीब-करीब विलुप्त हो चुकी है। विशेषज्ञ गौरेया की विलुप्ति के पीछे मानव जीवन शैली में आए बदलावों को सबसे अहम मानते हैं। दरअसल, पुराने भवनों में आंगन व झरोखे हुआ करते थे, जो गौरेया के वासस्थल बनते थे, लेकिन आज के भवनों में झरोखे तो दूर आंगन तक नजर नहीं आते हैं। इसके अलावा खाद्य पदार्थो में रसायनों की मिलावट, फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग ने भी गौरेया के जीवन पर संकट के बादल घेर दिए। डा. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल हिमालयन राजकीय स्नातकोतर महाविद्यालय में जंतु विज्ञान की विभागाध्यक्ष डा. कुमकुम रौतेला की मानें तो गौरेया की विलुप्ति में सबसे बड़ा योगदान मानव समाज का ही है। उन्होंने बताया कि 'गौरेया' लोगों के घर-आंगन अथवा घरों से सटे पेड़ों पर अपना घोंसला बनाती थी। साथ ही घरों व खेतों से दाना भी चुगती थी लेकिन आज भवनों की निर्माण शैली बदल गई है। साथ ही खेतों के स्थान पर मकान खड़े हो गए हैं। खेतों में भी कीटनाशक का प्रयोग हो रहा है, जो कि 'गौरेया' के लिए घातक है।

लैंसडौन वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी नरेंद्र सिंह चौधरी भी स्वीकारते हैं मानव को ऋतुओं व मौसम परिवर्तन की जानकारी देने वाली 'गौरेया' मानव की अपनी कमियों के चलते विलुप्ति के कगार पर खड़ी है। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते 'गौरेया' के संरक्षण को प्रयास न किए गए, तो वह दिन दूर नहीं जब 'गौरेया' कहानियों में सिमट कर रह जाएगी। उन्होंने लोगों से घरों में छांव वाले स्थान पर मिट्टी के चौड़े मुंह वाले बर्तन में पानी रखने व लकड़ी के घोंसले टांगने की अपील की।

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बजट में आम आदमी के साथ खिलवाड़: निशंक

देहरादून। मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि बजट में आम आदमी के साथ खिलवाड़ किया गया है। इससे भविष्य में महंगाई और बढ़ने की आशंका है। दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि बजट से गरीब, मध्यम, ग्रामीण व शहरी लोगों को विशेष सौगात मिली है। मंहगाई पर भी अंकुश लगाने का प्रयास किया गया है।

बजट को लेकर भाजपा और कांग्रेस की अलग-अलग प्रतिक्रिया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बजट को उत्ताराखंड विरोधी करार दिया है और औद्योगिक पैकेज की अवधि नहीं बढ़ने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने पैकेज की अवधि के संबंध में आश्वस्त किया था पर इस पर कोई पहल नहीं की गई। महंगाई को नियंत्रित करने में भी बजट में कोई प्रावधान नहीं है। इससे महंगाई और बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है। वित्ताीय घाटे को नियंत्रित करने में भी केंद्र सरकार असफल रही है। हिमालयी राज्यों के लिए बजट में ग्रीन बोनस की बात नहीं है, जबकि इस मामले में वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने घोषणा भी की है। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने कहा कि औद्योगिक पैकेज बंद होने से राज्य के विकास एवं रोजगार को झटका लगेगा। भाजपा इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाएगी। उन्होंने कहा कि पेट्रोल व डीजल की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी। एक तरह से बजट पूरी तरह निराशाजनक है। राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य सलाहाकार परिषद के अध्यक्ष अजय भंट्ट ने कहा कि राज्य से लोकसभा में कांग्रेस के पांच सांसद होने के बावजूद केंद्र ने उत्ताराखंड के मामलों में विचार तक नहीं किया। उत्ताराखंड वन विकास निगम के अध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला तथा भाजपा के प्रदेश सह प्रवक्ता सतीश लखेड़ा ने बजट को जनविरोधी करार दिया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि बजट में महंगाई से राहत देने की कोशिश है। बीपीएल के लिए अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। गंगा की सफाई के लिए विशेष वित्ताीय व्यवस्था की गई है। राज्य को भी अधिक धनराशि देने का रास्ता खोला गया है। बजट जनता को राहत देने वाला है। प्रवक्ता राजीव महर्षि ने बजट को जनता के हित में बताया है। पूर्व मुख्य प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार ने कहा कि बजट से देश के आर्थिक व सामाजिक विकास का ताना-बाना मजबूत होगा। पूर्व मेयर मनोरमा शर्मा ने कहा कि बजट में महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक व्यवस्थाएं की गई हैं। यदि भाजपा समर्थित पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट में न गई होती तो उत्ताराखंड के लिए औद्योगिक पैकेज की अवधि आसानी से बढ़ सकती थी। इसके बावजूद पैकेज बढ़ाने के प्रयास जारी रहेंगे।

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Tuesday, February 23, 2010

बीएड अभ्यर्थियों का इंतजार खत्म, आठ से होगी काउंसिलिंग

जागरण कार्यालय, नैनीताल: कुमाऊं विश्र्वविद्यालय की बीएड प्रवेश परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों के इंतजार की घडि़यां समाप्त हो गयी हैं। विश्र्वविद्यालय प्रशासन ने अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ तथा एमबी डिग्री कालेज हल्द्वानी की सामान्य शुल्क की सीटों समेत अन्य नौ राजकीय महाविद्यालयों की स्ववित्त पोषित सीटों पर प्रवेश के लिए 8 मार्च से काउंसिलिंग कराने का निर्णय लिया है। कुमाऊं विवि से सम्बद्ध सभी निजी बीएड कालेजों की सरकारी व मैनेजमेंट सीटों के लिए काउंसिलिंग प्रक्रिया इसके बाद शुरू होगी। इसके लिए विवि प्रशासन द्वारा अलग से तिथि निर्धारित की जाएगी। इस बार काउंसिलिंग प्रक्रिया कुमाऊं विवि प्रशासनिक भवन के समीप हर्मिटेज भवन में आयोजित की जाएगी। 8 मार्च को कला व वाणिज्य वर्ग के (361-260) तक की कट-आफ मैरिट में शामिल सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों की काउसिंलिंग होगी। सामान्य श्रेणी (259-250), सामान्य विकलांग (349-217), स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित (251-218), सामान्य सेवानिवृत्त सैनिक स्वयं (243-182) की काउसिंलिंग 9 मार्च को होगी। अनुसूचित जाति (331-238), अनुसूचित जाति-विकलांग (236-234), अनुसूचित जनजाति (320-235), अन्य पिछड़ा श्रेणी (339-236) की काउंसिलिंग 10 मार्च को होगी। विज्ञान वर्ग के सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों की काउसिंलिंग (350-255), सामान्य-विकलांग (284-182), अनुसूचित जाति (287-200) की काउंसिलिंग 11 मार्च को होगी, जबकि अनुसूचित जनजाति (275-192) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (328-220) की काउंसिंलिग 12 मार्च को सम्पन्न होगी। कुलसचिव सुधीर बुड़ाथोकी ने अभ्यर्थियों से अपने मूल शैक्षिक प्रमाण पत्रों के अलावा जाति,स्थायी निवास व अधिमान से संबंधित प्रमाण पत्र साथ लाने को कहा है। सामान्य व अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए काउंसिलिंग शुल्क 500 रुपए तथा एससी एसटी के लिए 300 रुपए निर्धारित किया गया है। उपरोक्त कट आफ मैरिट लिस्ट में शामिल अभ्यर्थी के काउंसिलिंग में अनुपस्थित रहने पर उससे अगले योग्यतांक वाले अभ्यर्थी को प्रवेश दे दिया जाएगा।

VIVEK PATWAL,
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Sunday, February 21, 2010

बचपन पहाड की पथरीली राहों पर बीता, मां को अभावों से लोहा लेते


बचपन पहाड की पथरीली राहों पर बीता, मां को अभावों से लोहा लेते देखा, असुविधाओं के साथ-साथ किताबें भी पढीं, शायद यही था अनुकूल तापमान, जिसमें डा. रमेश पोखरियाल निशंक में रचनाशीलता पैदा हुई।

राजनीति की ऊसर और पथरीली भूमि और साहित्य के सौम्य सागर में एक साथ विचरण करना समुद्र से गंगा-यमुना के पानी को अलग-अलग करना असंभव कार्य है, लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. निशंक इस भूमि को भी उर्वरा बना रहे हैं और सागर से मोती भी चुन रहे हैं। उनकी कृतियां स्त्री के पुरुषार्थ की हिमायती हैं। राजनीति में रहकर भी सतत् साहित्य साधनारत डा. निशंक से डा. वीरेंद्र बत्र्वाल की बातचीत के प्रमुख अंश-

-[पहला स्वाभाविक प्रश्न, राजनीति व साहित्य दोनों में संतुलन कैसे बना लेते है आप?]

-दरअसल मेरे लिए दोनों का उद्देश्य एक ही है। दोनों के माध्यम से समाज को जगाना चाहता हूं, आम आदमी को आगे बढते देखना चाहता हूं, नारी में पुरुषार्थ जगाना चाहता हूं, राष्ट्र के लिए समर्पण भाव चाहता हूं। इसीलिए दोनों विधाओं में संतुलन बना रहता है।

-[लिखने की प्रेरणा कहां से मिली?]

-देखिए, किसी कलाकार-रचनाकार में बाहर से हुनर स्थापित नहीं किया जा सकता। जब भावनाएं शब्दों का रूप लेती हैं तो कविता-कहानी तो खुद ही बन जाती हैं।

-[आपने कठिनाइयों देखी हैं, शिक्षा व साहित्य रचना में बाधाएं आई होंगी?]

-यह सवाल अतीत में ले गया मुझे। दसवीं तक किसी तरह गांव में पढाई, इसके बाद बाहर निकला। खुद परिश्रम कर और व्यवस्थाएं जुटाकर बारहवीं, बीए, एमए और पीएचडी तक की पढाई की। शिक्षा हो या साहित्य मैंने कठिनाइयों को अपनी ताकत बनाया कमजोरी नहीं। मेरे लिए साहित्य समर्पण नहीं संघर्ष की प्रेरणा है।

-[आप सक्रिय राजनीति में हैं और सक्रिय साहित्य में भी, कैसे?]

-मैं तो राजनीति को साहित्य का पूरक मानता हूं। मैंने अनेक गंभीर सवाल जो अपनी रचनाओं में उठाएं हैं, उनका समाधान राजनीति में रहते हुए खुद कर रहा हूं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने भी मेरी रचनाओं पर कहा था कि निशंक एक दिन तुम अपने साहित्य में उठाए गई समस्याओं का समाधान खुद करोगे।

-[आपकी कुछ रचनाएं अधूरी हैं, मुख्यमंत्री बनने के बाद आपकी व्यस्तता और बढी है, इन रचनाओं को पूरा करने को समय कैसे निकाल पाते हैं?]

-इतनी व्यस्तता के बाद भी मेरा लेखन नहीं छूटा है। मेरा साहित्य सृजन अनवरत जारी है। रात को करीब एक घंटे जब तक कुछ लिख-पढ न लूं, तब तक नींद ही नहीं आती। सोने से पहले मैं कुछ न कुछ लिखता जरूर हूं।

-[आपकी रचनाओं के नायक विवश, हालात के मारे हैं। विकट परिस्थितियों में अचानक कोई मसीहा बनकर प्रकट होता है और उन्हें लक्ष्य तक पहुंचाता है। एन ओरडियल के प्रदीप के लिए भुवन लाला और एक और कहानी में प्रकाश के लिए रामप्रसाद ऐसे ही फरिश्ते दिखाई दिए हैं। इससे क्या संदेश देने का प्रयास किया आपने?]

-इसका संबंध अप्रत्यक्ष तौर पर मेरे जीवन से जुडा है। मैं सोचता हूं कि ऐसे फरिश्ते मुझे जिंदगी की राह में मिलते तो कई बार उन निराशाओं का सामना नहीं करना पडता, जो मेरे मार्ग में आई। मैंने इससे संदेश देने का प्रयास किया कि समाज के समृद्ध वर्ग के लोगों को जरूरतमंदों और मजबूर लोगों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।

-[निर्धनता के मामले में आपके पात्र प्रेमचंद की रंगभूमि के सूरदास, पूस की रात के हल्कू जैसे हैं। किन परिस्थितियों ने आपसे इन पात्रों की सृष्टि करवाई?]

-झकझोरने वाला प्रश्न है। आपको बताऊं, मुझसे ज्यादा गरीबी शायद ही किसी ने देखी हो। जब पांचवीं मेंपढता था तो पैरों में जूते नहीं होते थे, तन पर पूरे कपडे नहीं होते थे। इसके बाद की पढाई के दौरान भी स्थिति अच्छी नहीं रही। मैंने खेतों में हल चलाया, गोबर डाला, जंगल से लकडियां लाया। जिसने इस घोर गरीबी और अभाव का जीवनयापन किया हो, उस कवि-लेखक के पात्रों में तो गरीबी झलकेगी ही न?

-[आपका प्रतीक्षा खंडकाव्य देशभक्ति, एक मां की आशा-निराशा और विछोह की पीडा पर केंद्रित है। इसकी जमीन कहां से तैयार की?]

-कारगिल की लडाई से। उत्तराखंड में अनेक फौजियों की माताओं का अहसास ही इसकी जमीन है।

-[पहाडी समाज में महिला का हल चलाने और चिता को मुखाग्नि देने पर कठोर वर्जना है, फिर भी प्रतीक्षा में दीपू की मां को हल चलाते हुए दिखाकर आप लिखते हैं-तब कंधे पर हल को रखकर बैलों के संग खेत गई, खेत जोतकर सीर चलाना जीवन की दशा नई?]

-मैंने इसमें महिला के पुरुषार्थ को दिखलाया है। पहाड की नारी में इतनी हिम्मत-हौसला है कि वह कठिन सा कठिन कार्य कर सकती है। वह परिस्थितियों के अनुसार थोथी वर्जनाओं को तोड सकती है। मेरी मां ने भी हल चलाया है।

-[हिंदी देश की शान में आपने हिंदी का यशोगान किया है। अब हिंदी के लिए कोई खास पहल?]

-की है, कर रहा हूं। महत्वपूर्ण यह है कि मैं प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को हिंदी में ही पत्र भेजता हूं और वहां से अब उत्तर हिंदी में ही आते हैं।

-[मां-भाई को एकाकी परिवार में रखने पर पति-पत्नी के बीच खटपट को आपने खासा उकेरा है?]

-संयुक्त परिवार के महत्व को देखते हुए उस प्रथा को अपनाने की प्रेरणा दी मैंने।

-[अनुभव शेष रहे में आप लिखते हैं- कौन कष्ट है शेष जगत में जो नित मैंने नही सहा आपने ऐसे कौन से भीषणतम कष्ट झेले, जो कविता के आखर बन गए?]

-गिनती नहीं है। मौत तक के संघर्ष झेले हैं मैंने। मौत कई तरह की होती है, भावनाओं की भी तो मौत होती है। ऐसी ही परिस्थितियों से ये कविताएं फूटी हैं।

-[शहरी जीवन को आडंबर युक्त बताते हुए आप गांव जाने की प्रेरणा देते हैं। क्या इसके लिए खुद समय निकाल पाते हैं?]

-इस व्यस्तता में भी समय निकालकर जरूर गांव जाता हूं। कुछ ही दिन पहले मैं गांव गया था।

-[आज के युवा पैसे और सुख-सुविधा की होड में अपने परिवार से दूर होते जा रहे हैं और पत्नी बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। चक्रव्यूह में इसका आपने एक प्रकार से विरोध किया है, क्यों?]

-पैसा अपनी जगह है, परिवार अपनी जगह। विशेषकर संयुक्त परिवार, जिनसे हमें संस्कार मिलते हैं। और पत्नी-बच्चों को भी तो उनका वांछित प्यार मिलना चाहिए

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