जंगल के साथ ही जल गई कई घरों की खुशियां भी
पौड़ी गढ़वाल। तमाम दावे, वनों को आग से बचाने की सारी कवायदें, पानी की तरह बहाई गई लाखों रुपये की रकम और इस मौसम में आग मुक्त जंगल के सभी वादे धरे के धरे रह गए। देखते ही देखते धुआं उठा और जंगल जलने लगे पर जिम्मेदार विभागों की नींद नहीं खुली। हाथ पर हाथ बांधे अधिकारी अपनी 'फायर लाइनों' के भरोसे बैठे रहे और आग ने जंगलों के साथ कई घरों की खुशियों को भी जलाकर राख कर दिया। शुक्रवार को पौड़ी में एक ही गांव के पांच लोगों के जंगल की आग में जान गंवाने के बाद वन विभाग की कार्यप्रणाली कठघरे में आ गई है। हादसे ने उन 'फायर लाइनों' की उपयोगिता पर भी सवाल उठा दिए हैं, जिनके भरोसे विभाग हर बार खुद अपनी पीठ थपथपाता रहा है। हर साल 14 फरवरी से वन महकमा फायर सीजन का शोर मचाता है। लाखों रुपये पानी की तरह बहाकर जंगलों में जर्मन पैटर्न पर 'फायर लाइन' बनाई जाती हैं। दावे किए जाते हैं कि इससे जंगल में आग एक क्षेत्र विशेष से आगे किसी सूरत में नहीं फैलेगी, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दावा धुआं हो रहा है। फायर लाइनें आग पर काबू पाने में बिलकुल नाकाम साबित हो रही हैं। ऐसे में इनकी उपयोगिता पर भी सवाल उठने लगे हैं। इसके बावजूद महकमा इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा। हर बार बस आग पर काबू की कोशिश की की बात कह अधिकारी समस्या से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, लेकिन शुक्रवार को हुए हादसे ने महकमे की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठा दिए हैं। शुक्रवार को गगवाड़ा गांव में हुए हादसे ने छह लोगों की जान लेली और सात लोगों को गंभीर रूप से झुलसा दिया। गांव से केवल पांच किलोमीटर दूरी पर कमिश्नरी मुख्यालय और वन महकमे के सिविल सोयम व फारेस्ट विभाग स्थित है, लेकिन फायर लाइन के भरोसे बैठा कोई भी अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। महकमे की उदासीनता देख ग्रामीणों ने खुद ही आग पर काबू पाने का प्रयास किया, लेकिन उनकी इसी कोशिश ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया। यहां सवाल उठ रहा है कि अगर विभाग ने यहां फायर लाइन बनाई थी, तो आग बेकाबू क्यों हो गई और लाइन आग को आगे बढ़ने से क्यों नहीं रोक सकी। और अगर लाइन नहीं बनाई गई थी, तो फिर इस हादसे की जिम्मेदारी किसकी है। हादसे के बाद गगवाड़ा के ग्रामीणों से लेकर पौड़ी तक के लोग इन सवालों के जवाब मांगने लगे हैं। वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन जब घटना के बाबत डीएम समेत वन विभाग के उच्चाधिकारियों से संपर्क की कोशिशें की गई, तो सभी के फोन आउट आफ कवरेज चल रहे थे। अपणि-बोली-भाषा का बगैर न त अपणि उन्नति हवै कद और न ही समाज की। जु समाज अपणि-बोली भाषा-अर-रिती-रिवाज से शर्म करदू ऊ वैकू पतन कू सबसे बडू कारण छ। r.p. chamoli |
Saturday, May 2, 2009
Thursday, April 30, 2009
है अगर बिश्वास तो मंजिल मिलेगी, शर्त ये बिन रुके चलना पडेगा । १९३८ से पहले गोरखो के आक्रमण व उनके द्वारा किये अत्याचरो से अन्ग्रेजी शाशन द्वारा मुक्ति देने व बाद मे अन्ग्रेजो द्वारा भी किये गये शोषण से आहत हो कर उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियो मे इस क्षेत्र के लिये एक प्रथक राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई गठित करने पर गम्भीरता से सहमति घर बना रही थी. समय-समय पर वे इसकी माग भी प्रशासन से करते रहे.१९३८ = ५-६ मई, को कान्ग्रेस के क्षीनगर गढ्वाल सम्मेलन मे क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये एक प्रथक प्रशासनिक व्यवस्था की भी माग की गई. इस सम्मेलन मे माननीय प्रताप सिह नेगी, जवहरलाल नेहरू व विजयलक्षमी पन्डित भी उपस्थित थे.१९४६: हल्द्वानी सम्मेलन मे कुर्मान्चल केशरी माननीय बद्रीदत्त पान्डेय, पुर्णचन्द्र तिवारी, व गढ्वाल केशरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिये प्रथक प्रशासनिक इकाई गठित करने की माग की किन्तु इसे उत्तराखण्ड के निवासी एवम तात्कालिक सन्युक्त प्रान्त के मुख्यमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अस्वीकार कर दिया. १९५२: देश की प्रमुख राजनैतिक दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम महासचिव, पी.सी.. जोशी ने भारत सरकार से प्रथक उत्तराखण्ड राज्य गठन करने का एक ग्यापन भारत सरकार को सोपा. पेशावर काण्ड के नायक व प्रसिध्द स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्र सिह गढ्वाली ने भी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष प्रथक पर्वतीय राज्य की माग क एक ग्यापन दिया. १९५५: २२ मई नई दिल्ली मे पर्वतीय जनविकास समिति की आम सभा सम्पन्न. उत्तराखण्ड क्षेत्र को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश में मिला कर ब्रहद हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग.१९५६: प्रथक हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा ठुकराने के बाबजूद ग्रहमन्त्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अपने बिशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुये हिमाचल प्रदेश की मांग को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया. किन्तु उत्तराखण्ड के बारे में कुछ नहीं किया. १९६६: अगस्त माह में उत्तरप्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने प्रधानमन्त्री को ग्यापन भेज कर प्रथक उत्तरखण्ड राज्य की मांग की.१९६७: (१० - ११ जून) : जगमोहन सिंह नेगी एवम चन्द्र भानू गुप्त की अगुवाई में रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिये प्रथक प्रशासनिक आयोग का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा. २४-२५ जून, प्रथक पर्वतीय राज्य प्राप्ति के लिये आठ पर्वतीय जिलों की एक ’पर्वतीय राज्य परिषद का गठन नैनीताल में किया गया जिसमें दयाक्र्ष्ण पान्डेय अध्यक्ष एवम ऋशिबल्लभ सुन्दरियाल, गोविन्द सिहं मेहरा आदि शामिल थे. १४-१५ अक्टूबर: दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्टी का उदघाटन तत्कालिन केन्द्रिय मन्त्री अशोक मेहता द्वारा दिया गया जिसमें सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह ने क्षेत्र के पिछडेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की.१९६८: लोकसभा में सांसद एवम टिहरी नरेश मान्वेन्द्र शाह के प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला. १९७०: (१२ मई) तात्कालिक प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से करने की घोषणा की.१९७१: मा० मान्वेन्द्र शाह, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, इन्द्रमणि बडोनी और लक्क्षमण सिंह जी ने अलग राज्य के लिये कई जगह आन्दोलन किये.१९७२: क्ष्री रिषिबल्लभ सुन्दरियाल एवम पूरण सिंह डंगवाल सहित २१ लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर बोट क्लब पर गिरफ़्तारी दी.१९७३: पर्वतीय राज्य परिषद का नाम उत्तरखण्ड राज्य परिषद किया गया. सांसद प्रताप सिंह बिष्ट अध्यक्ष, मोहन उप्रेती, नारायण सुंदरियाल सदस्य बने.१९७८: चमोली से बिधायक प्रताप सिंह की अगुवाई में बदरीनाथ से दिल्ली बोट क्लब तक पदयात्रा और संसद का घेराव का प्रयास. दिसम्बर में राष्त्रपति को ग्यापन देते समय १९ महिलाओं सहित ७१ लोगों को तिहाड भेजा गया जिन्हें १२ दिसम्बर को रिहा किया गया. १९७९: सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेत्रत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद का गठन. ३१ जनवरी को भारी वर्षा एवम कडाके की ठंड के बाबजूद दिल्ली में १५ हजार से भी अधिक लोगों ने प्रथक राज्य के लिये मार्च किया.१९७९: (२४-२५ जुलाई) मंसूरी में पत्रकार द्वारिका प्रसाद उनियाल के नेत्रत्व में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन. इसी में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना. सर्व क्ष्री नित्यानन्द भट्ट, डी.डी. पंत, जगदीश कापडी, के. एन. उनियाल, ललित किशोर पांडे, बीर सिंह ठाकुर, हुकम सिंह पंवार, इन्द्रमणि बडोनी और देवेन्द्र सनवाल ने भाग लिया. सम्मेलन में यह राय बनी कि जब तक उत्तराखण्ड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप एकजुट नहीं हो जाते, तब तक उत्तराखण्ड राज्य नहीं बन सकता अर्थात उनका शोषण जारी रहेगा. इसकी परिणिति उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना में हुई. १९८०: उत्तराखण्ड क्रांति दल ने घोषणा की कि उत्तराखण्ड भारतीय संघ क एक शोषण बिहीन, वर्ग बिहीन और धर्म निर्पेक्ष राज्य होगा.१९८२: प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बद्रीनाथ मे उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ ४५ मिनट तक बातचीत की. १९८३: २० जून को राजधानी दिल्ली में चौधरी चरण सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग राष्त्रहित में नही है. १९८४: भा.क.पा. की सहयोगी छात्र संगठन, आल इन्डिया स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन ने सितम्बर, अक्टूबर में पर्वतीय राज्य के मांग को लेकर गढवाल क्षेत्र मे ९०० कि.मी. लम्बी साईकिल यात्रा की. २३ अप्रैल को नैनीताल में उक्रान्द ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर प्रथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया. १९८७: अटल बिहारी बाजपायी, भा.ज.पा. अध्यक्ष ने, उत्तराखण्ड राज्य मांग को प्रथकवादी नाम दिया. ९ अगस्त को बोट क्लब पर अखिल भारतीय प्रवासी उक्रांद द्वारा साम्केतिक भूख हडताल और प्रधान्मन्त्री को ग्यापन दिया. इसी दिन आल इन्डिया मुस्लिम यूथ कांन्वेन्सन ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्थन दिया. २३ नबम्बर को युवा नेता धीरेन्द्र प्रताप भदोला ने लोकसभा मे दर्शक दीर्घा में उत्तरखण्ड राज्य निर्माण के समर्थन में नारेबाजी की. १९८८: २३ फ़रवरी : राज्य आन्दोलन के दूसरे चरण में उक्रांद द्वारा असहयोग आन्दोलन एवम गिरफ़्तारियां दी. २१ जून: अल्मोडा में ’नये भारत में नया उत्तराखण्ड’ नारे के साथ ’उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी’ का गठन. २३ अक्टूबर: जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में हिमालयन कार रैली का उत्तराखण्ड समर्थकों द्वारा बिरोध. पूलिस द्वारा लाठी चार्ज. १७ नबम्बर: पिथौरागड मे नारायण आक्ष्रम से देहारादून तक पैदल यात्रा.१९८९: मु.मं. मुलायम सिह यादव द्वारा उत्तराखण्ड को उ.प्र. का ताज बता कर अलग राज्य बनाने से साफ़ इन्कार. १९९०: १० अप्रैल: बोट क्लब पर उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के तत्वाधान में भा.ज.पा. ने रैली आयोजित की.१९९१: ११ मार्च: मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मांग को पुन: खारिज किया. १९९१: ३० अगस्त: कांग्रेस नेताओं ने "ब्रहद उत्तराखण्ड" राज्य बनाने की मांग की.१९९१: उ.प्र. भा.ज.पा. सरकार द्वारा प्रथक राज्य संबंधी प्रस्ताव संस्तुति के साथ केन्द्र सरकार के पास भेजा. भा.ज.पा. ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी प्रथक राज्य का वायदा किया
writer hitesh
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