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Monday, March 9, 2009


होली का धमाल: बैठकी व खड़ी होली की धूम, महिलाएं भी खूब थिरकीं

Posted: 07 Mar 2009 11:24 PM PST



,नैनीताल: सरोवर नगरी में चीर बंधन के साथ रविवार से बैठकी होली के साथ-साथ अब खड़ी होली की धूम भी शुरू हो गई। इसी क्रम में युगमंच के होली महोत्सव का भी आगाज हो गया है। महोत्सव में चम्पावत से आए होल्यारों ने शहर में खड़ी होली की धूम मचाई। इसके अलावा कई स्थानों पर बैठकी होली का भी आयोजन हुआ, जिनमें महिलाओं ने होली गीतों के साथ खूब नृत्य किया। खड़ी होली में होल्यारों ने फाल्गुन की फुहारों से माहौल को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया। मल्लीताल श्रीराम सेवक सभा प्रांगण में रविवार को युगमंच संस्था के तत्वावधान में चंपावत जिले के कानीकोट से गुमान सिंह के नेतृत्व में पहुंचे दो दर्जन से अधिक होल्यारों ने- होली खेलें कुंजन में जा गोरी, लपटी-झपटी चल आ गोरी..खड़ी होली प्रस्तुत कर दर्शकों की वाहवाही लूटी। इससे पूर्व होल्यारों ने नयना देवी मंदिर प्रांगण में गिरिजा सुत गणपति विघ्न हरो.. आदि होली गीतों के साथ महोत्सव का आगाज किया। नयना देवी मंदिर परिसर में आयोजित महिला होली में होली गीतों पर महिलाओं ने खूब नृत्य किया।
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तीर्थो-मंदिरों में पत्तल और दोने में ही मिलेगा प्रसाद

Posted: 07 Mar 2009 11:19 PM PST

हल्द्वानी महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए एक नयी योजना शुरू की गयी है। इसके अंतर्गत राज्य के चार धामों व अन्य तीर्थो से लेकर विभिन्न मंदिरों में प्रसाद के लिए पत्तल और दोनों का ही इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। बाल विकास व महिला सशक्तिकरण विभाग ने इसका खाका तैयार कर लिया है। राज्य के चार धामों, तीर्थो समेत विभिन्न मंदिरों में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां पर पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है, जिसे रखने के लिए प्राय: गत्ते के डिब्बे, दोने व पत्तलों का इस्तेमाल किया जाता है। नयी योजना के अनुसार अब केवल पत्तल और दोनों का ही इस्तेमाल किया जायेगा। योजना को सफल बनाने के लिए महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस योजना की तैयारी चल रही है पर लागू किया जायेगा आचार संहिता का बंधन खत्म होने के बाद। बाल विकास व महिला सशक्तिकरण राज्यमंत्री बीना महाराना ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि राज्य में महिला सशक्तिकरण पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। दोना व पत्तल बनाने की इस योजना का लाभ आम महिलाओं को मिलेगा
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संघर्ष स्वभाव है पर्वतीय नारी का

Posted: 07 Mar 2009 11:16 PM PST

: देश-दुनिया के लिए आठ मार्च का दिन महिलाओं के संघर्ष को याद करने का दिन है, लेकिन देवभूमि का तो अस्तित्व ही महिलाओं पर टिका है। सामाजिक सरोकारों से जुड़ा शायद ही कोई क्षेत्र होगा, जहां उत्तराखंडी महिलाओं ने प्रतिमान न स्थापित किए हों। पर्वतीय नारी के लिए संघर्ष कोई तमगे हासिल करने का जरिया नहीं है। संघर्ष तो उसके स्वभाव में है और इसी जुझारू प्रवृत्ति ने उसे दुनियाभर में अलग पहचान दी है। पहाड़ का भूगोल जितना जटिल है, अन्य परिस्थितियां भी उसी के अनुरूप जटिल रही हैं। यही वजह है कि यहां ऐतिहासिक घटनाओं की जानकारी लोकगीतों व पंवाड़ों में ही ज्यादा मिलती है। इतिहास में पहले-पहल जिस वीर नारी का उल्लेख मिलता है, वह है रानी कर्णावती, जिसने मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना से लोहा लिया। वीरबाला तीलू रौतेली, मालू रौतेली आदि वीरांगनाओं का इतिहास को भी कालांतर में प्रचलित लोक गाथाओं से ही लिपिबद्ध किया गया। वर्ष 1805 से लेकर 1815 तक उत्तराखंड के अधिकांश हिस्से में गोरख्याणी का राज रहा और इसकी सर्वाधिक त्रासदी यहां महिलाओं ने ही झेली। गोरखा आक्रमण में अपनी जान देकर लोगों की जान बचाने वाली कोलिण जगदेई तो आज लोकदेवी के रूप में पूजी जाती हैं। आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली बिशनी देवी शाह को कौन भुला सकता है। यह वह महिला हैं जिन्होंने आजादी के लिए जेल जाने वाली उत्तराखंड की प्रथम महिला बनने का गौरव हासिल किया। चिपको आंदोलन की सूत्रधार रैणी गांव की गौरा देवी का नाम तो पूरी दुनिया में आदर के साथ लिया जाता है। उन्होंने स्वयं स्कूल का मुंह नहीं देखा, लेकिन दुनिया के लिए उनका पूरा जीवन ही एक किताब बन गया।साठ के दशक में गढ़वाल के शराब विरोधी आंदोलन को स्वर देने वाली टिंचरी माई स्वयं में संघर्ष की अनूठी मिसाल हैं। 19 साल की उम्र में विधवा होने पर भी वह टूटी नहीं। टिंचरी माई ने शराब की दुकानें जलाकर इसके खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। जेल होने पर भी उन्होंने ऐलान किया मैं यहीं रुकने वाली नहीं हूं। पहाड़ी महिला जानती है कि जल, जंगल, जमीन के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। इसीलिए वह पहाड़ी समाज के घर यानि जल, जंगल और जमीन की लड़ाई में पहली पांत में रही है। नशा नहीं रोजगार दो, टिहरी के विस्थापितों के पुनर्वास का आंदोलन बगैर महिलाओं की भूमिका के शायद ही मुकाम हासिल कर पाते। उत्तराखंड आंदोलन में तमाम घरेलू कार्यो के बावजूद महिलाओं की भागीदारी अविश्र्वसनीय है। सबसे पहले शहीद होने वालों में बेलमती चौहान, हंसा धनाई की बहादुरी भला भुलाई जा सकती है। यह तो सिर्फ बानगी है। पहाड़ी महिला का संघर्ष तो कभी न खत्म होने वाली गाथा है। वह सिर्फ घर-परिवार में ही नहीं जूझती, खेतों में हल भी चलाती है। जंगलों में गुलदार, बाघ, भालू, सूअर जैसे हिंसक जीवों से संघर्ष तो मानो उसकी जीवनचर्या का हिस्सा बन गया है। फिर भी लगता है कि पर्वतीय नारी आज भी वहीं खड़ी है, जहां वह दशकों पहले थी। लड़ के लेंगे, भिड़ के लेंगे, छीन के लेंगे उत्तराखंड का नारा बुलंद करने वाली पहाड़ी महिला का असमानता मुक्त बेहतर समाज का सपना अभी भी दूर है।
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पहाड़ की बेटी

Posted: 07 Mar 2009 11:15 PM PST

देहरादून/रुद्रप्रयाग, मृगा सकलानी, टीवी शो डांसिंग क्वीन में अपने नृत्य के जलवे बिखेरती इस युवती को देख शायद ही कोई अंदाजा लगाए कि वह ऐसी जगह से आई है, जहां न तो सुविधाएं हैं और न ही माडलिंग जैसे करियर को प्रोत्साहन देने वाला कोई साथी। यह मृगा का जुनून ही था, जो उसे रुद्रप्रयाग के चोपता से मुंबई ले गया और पहुंचा दिया डांसिंग क्वीन के टॉप टू तक। भले ही मृगा शो में पहला स्थान प्राप्त न कर पाई हो, लेकिन उसने साबित कर दिया की पहाड़ की बेटी जो ठान ले, उसे पूरा करने से पीछे नहीं हटती। ढाई माह पूर्व जब कलर्स चैनल पर डांसिंग क्वीन की शुरुआत हुई थी तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि मृगा का सफर फाइनल तक पहुंचेगा, लेकिन मृगा ने अपनी मेहनत के बल पर खुद को साबित करके दिखा दिया। आज भले ही वह डांसिंग क्वीन का खिताब न जीत पाई हो, लेकिन उसके फ‌र्स्ट रनर अप बनने पर ही उत्तराखंडवासी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। रुद्रप्रयाग के एक छोटे से कस्बे चोपता में शिक्षक माता-पिता बीना और गोपालकृष्ण सकलानी के घर जन्मी मृगा बचपन से ही मायानगरी मुंबई जाने के सपने देखा करती थी। शांत मिजाज की मृगा ने छोटी उम्र से ही अपने सपने को पूरा करने की ठान ली थी। यही वजह है कि पिता के इंजीनियर बनाने की इच्छा के विपरीत उसने माडलिंग को करियर के तौर पर चुन लिया। इसके लिए उसने बीएससी की पढ़ाई भी अधूरी छोड़ दी। बेटी की ललक को देख माता-पिता ने भी उसे इजाजत दे दी और करीब चार साल पहले मृगा जा पहुंची मुंबई। मृगा की मां बीना सकलानी बताती हैं कि उसने जो मुकाम हासिल किया है उस पर वह बेहद गर्व महसूस करती हैं। आज वह पूरे देश में इस छोटे से क्षेत्र का नाम रोशन कर रही हैं। वह आगे कहती हैं कि मृगा के अंदर प्रतिभा कूट-कूट कर भरी है, जिसका नतीजा सबके सामने है। वहीं, पिता गोपालकृष्ण सकलानी भी बेटी की सफलता पर बेहद खुश हैं। हालांकि, इलाके में कलर्स चैनल का प्रसारण न होना उन्हें काफी खला। वह कहते हैं, जिले के साथ ही राज्य के अधिकांश क्षेत्र में केबल डिस्क से कलर्स टीबी का प्रसारण न होने से ही उनकी बेटी को नुकसान हुआ। प्रसारण न होने से मृगा को अपेक्षा के अनुरूप वोटिंग नहीं हो सकी। हालांकि, उनका कहना था कि बेटी ने आज जो मुकाम हासिल किया वही उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।
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उत्तराखंड लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय फलक पर कामयाबी का झंडा गाड़ने से चूका

Posted: 07 Mar 2009 11:13 PM PST

पहले कपिल थापा और अब मृगा सकलानी, एक ही हफ्ते में उत्तराखंड लगातार दूसरी बार राष्ट्रीय फलक पर कामयाबी का झंडा गाड़ने से चूक गए। इंडियन आइडल में कपिल थापा के बाद डांसिंग क्वीन में मृगा को भी दूसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। शो के दौरान जजों और अन्य प्रतिभागियों की चहेती बनी रही मृगा की नाकामयाबी के पीछे भी कम वोटिंग ही वजह बनी। कपिल थापा, प्रियंका नेगी और मृगा सकलानी ये नाम उस युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि के तौर पर उभरे हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड की दमदार उपस्थिति दर्ज कराने का माद्दा रखते हैं, लेकिन क्षेत्रवासियों की उदासीनता के कारण उनका सफर कामयाबी के मुकाम तक पहुंच नहीं पा रहा। इंडियन आइडल के बाद डांसिंग क्वीन में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यहां कम वोटिंग के चलते उत्तराखंड की मृगा को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। रविवार को कलर्स चैनल के रियलिटी शो डांसिंग क्वीन का ग्रैंड फिनाले प्रसारित किया गया। करीब ढाई माह पूर्व शुरू हुए शो में जोड़ीदार सनोबर कबीर के साथ मृगा ने कड़ी मेहनत के बल पर टॉप टू में जगह बनाई। शो के जज जितेंद्र और हेमामालिनी भी मृगा के डांस जलवे के मुरीद थे, लेकिन, अंतिम क्षणों में वोटिंग ने बाजी पलट दी और प्रतिद्वंद्वी शमाएल ने डांसिंग क्वीन का खिताब कब्जा लिया।
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गबन में फंसे छह अभियंता

Posted: 07 Mar 2009 11:12 PM PST

लोहाघाट : लघु सिचाई विभाग के छह अभियंताओं के खिलाफ सरकारी धन के दुरूपयोग का मामला लोहाघाट थाने में दर्ज किया गया है। मामला दर्ज होने के बाद विभाग में हड़कंप मच गया है। सभी आरोपियों के खिलाफ आईपीएस की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गई है। सीडीओ बीएस रावत की ओर से लघु सिंचाई खंड चंपावत के वर्तमान अधिशासी अभियंता जेपी भास्कर, पूर्व सहायक अभियंता विनय कुमार, पूर्व अधिशासी अभियंता बीके तिवारी, पूर्व अवर अभियंता आरएस यादव, आरवी त्रिवेदी एवं राजेंद्र सिंह के विरुद्ध सरकारी धन का दुरूपयोग करने के मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है। मामला राजस्व पुलिस का होने के कारण इसे पाटी तहसील में विवेचना के लिए भेजा गया है। पाटी के तत्कालीन एसडीएम जेसी कांडपाल को डीएम ने लघु सिंचाई विभाग के कार्यो की जांच सौंपी थी।
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भाजपा नेताओं को तीन करोड़ रुपये की थैली

Posted: 07 Mar 2009 11:11 PM PST

देहरादून प्रदेश भाजपा ने आखिरकार थैली के लिए तीन करोड़ का इंतजाम कर ही लिया। रकम एकत्र करने के मामले में दायित्वधारी भाजपाई फिसड्डी साबित हुए तो काबीना मंत्री डा.रमेश पोखरियाल निशंक अव्वल रहे। भाजपा की कल रविवार को प्रस्तावित विजय संकल्प रैली में लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह भी शामिल होने वाले हैं। इन नेताओं को तीन करोड़ रुपये की थैली भेंट करने का निर्णय प्रदेश भाजपा ने लिया था। इस फैसले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम किया गया। पचास रुपये से लेकर एक हजार तक के कूपन छपवाए गए जबकि मंत्रियों के लिए पांच से दस हजार रुपए तक के कूपन छपवाए गए। बताया जा रहा है कि ये कूपन पांच करोड़ के छपवाए गए थे। माना गया था कि इसमें से अगर कुछ वापस भी आते हैं तब भी तीन करोड़ तो जुटा ही लिए जाएंगे। कार्यकर्ताओं ने इन कूपनों को बेचने के साथ ही लोगों से भाजपा के पक्ष में मतदान का आश्वासन भी लिया। सूत्रों ने बताया कि भाजपा को अपने लक्ष्य में सफलता भी मिली है। जिलों से मिली सूचना के आधार पर प्रदेश भाजपा को भरोसा है कि एकत्र राशि तीन करोड़ से भी ज्यादा हो सकती है। सूत्रों ने बताया कि जिलों के लिहाज से बात करें तो देहरादून जनपद इस मामले में सबसे आगे रहा है। इसके बाद नंबर हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर का है। संगठन की इकाई के लिहाज से देहरादून महानगर ने सबसे ज्यादा राशि एकत्र की है। विधायकों ने भी इसमें योगदान किया पर उनके बारे में ब्योरा मिल नहीं सका। चंदा जुटाने के इस मामले में दायित्वधारी भाजपाई फिसड्डी साबित हुए हैं। यहां बता दें कि प्रदेश भाजपा के तीन करोड़ की थैली के फैसले पर इन दायित्वधारियों ने शुरुआती दौर में ही अपना दुखड़ा सुनाया था। राशि जुटाने में मंत्रियों ने भी योगदान किया है पर डा. निशंक सबसे आगे रहे हैं। इसके बाद नंबर आबकारी, शिक्षा और गन्ना व चीनी जैसे बड़े विभाग संभालने वाले मदन कौशिक का रहा। कृषि और लघु सिंचाई मंत्री त्रिवेंद्र रावत भी इस मामले में आगे रहे हैं।

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