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Wednesday, February 3, 2010

अद्भुत! जिसने देखा, देखता ही रह गया

हरिद्वार। पहली पेशवाई जैसी आतुरता नहीं थी, लेकिन हृदय में उमड़ रहे श्रद्धा के भाव चेहरों पर साफ झलक रहे थे। चांदी के सिंहासनों में विराजमान संतों व भस्मीभूत अवधूतों की झलकमात्र पाने की अकुलाहट ऐसी थी, जिसे व्यक्त करने में समस्त अलंकार फीके पड़ जाएं। आस्था का यह रूप जिसने भी देखा, अपलक निहारता रह गया। शीश अपने आप श्रद्धा में झुक गए, नेत्र सजल हो उठे और हाथों से झर-झर झरने लगीं फूलों की पंखुड़ियां।

मंगलवार को पांडेवाला में खूब चहल-पहल है। श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़े के रमता पंच खिचड़ी का भोग लगा रहे हैं। भस्मीभूत अवधूत हाथों में त्रिशूल व दंड लिए इधर-उधर विचरण कर रहे हैं। धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है। सब नतमस्तक हैं सनातन धर्म के इन ध्वजवाहकों के सामने। भोग लगते ही शंखनाद हुआ और फिर बज उठी रणभेरी। 'हर-हर महादेव' के जयघोष के बीच अवधूतों ने कांधे पर उठा ली है अपने ईष्टदेव भगवान गणेश की पालकी। पास ही भजनलहरी गूंज रही है 'नदिया चले चले रे धारा, चंदा चले चले रे तारा, तुझको चलना होगा-तुझको चलना होगा'।

आगे-आगे विशालकाय धर्मध्वजाएं हैं और पीछे चतुरंगिणी सेना। ढोल-नगाड़ों व बैंडों की गूंज के बीच हाथी-घोड़ों पर सवार अवधूत चल रहे हैं। जिस मार्ग से पेशवाई को आगे बढ़ना है, वह मुस्लिम बहुल इलाके से गुजरता है। मुस्लिम बिरादरी के लोग छतों, गली के नुक्कड़ों, आसपास के ऊंचे स्थानों पर संतों की अगवानी में पलक-पांवड़े बिछाए बैठे हैं। कईयों के हाथों में फूलों की पंखुड़ियां हैं तो कई पुष्पहार हाथों में लिए हुए हैं। जैसे ही कोई संत पास से गुजरता है छतों से पुष्पवर्षा होने लगती है। संत के हाथ भी आशीष के लिए उठ जाते हैं और श्रद्धा में नतमस्तक हो जाते हैं भक्त। रंगोली सजी सड़कों पर जगह-जगह फूल बिछाए गए हैं। रथों पर चांदी के सिंहासनों में विराजमान संतों का काफिला चल रहा है। बैंड की धुनों के बीच गूंजती भजनलहरियों के साथ भांति-भांति के करतब दिखाते अवधूतों का साम्य कौतूहल पैदा कर रहा है। गंतव्य की ओर कदम बढ़ाते संत जब फूल मालाएं व टाफियां श्रद्धालुओं की ओर उछालते हैं, तो एक-दूसरे में होड़ सी मच जाती है उन्हें पाने को। अवधूतों के पैरों तले रौंदी हुई मालाओं को भी श्रद्धालु ऐसे मस्तक से लगाते हैं, मानो कोई पुण्य का खजाना मिल गया है। यह जरूर रहा कि पहली पेशवाई जैसा विशाल लाव-लश्कर आह्वान अखाड़े की पेशवाई में नहीं दिखाई दिया, लेकिन शाही वैभव में यह कहीं भी उन्नीस नहीं थी। जिस-जिस मार्ग से पेशवाई गुजरी सामाजिक संस्थाओं, राजनीतिक लोगों व व्यापारियों ने उसका उसी अंदाज में स्वागत किया, जैसा जूना व अग्नि अखाड़े की पेशवाई में देखने को मिला था। जितना मर्यादित पेशवाई का स्वरूप था, उतना ही सलीका सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी नजर आया। देश-दुनिया से पेशवाई के दीदार को धर्मनगरी पहुंचे मेहमानों के चेहरों की रौनक बता रही थी कि इस अनुपम दृश्य को देखकर वे अभिभूत हैं।

http://garhwalbati.blogspot.com

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