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Thursday, December 23, 2010

प्रसाशन पर भारी पड़ा आस्था

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 (सुदर्शन  सिंह  रावत  की रिपोर्ट ) उत्तराखंड के पौड़ी जिले में ख्यातिलब्ध बूंखाल कालिका मंदिर में  2000 किलोमीटर दायरे में रहने वाले लोगों की मंदिर में होने वाले इस मेले के प्रति अटूट आस्था है। लोग पूरे साल अपनी तरह तरह की मनौतियां मानते हैं और उसके पूरा होने पर मंदिर में आकर वर्ष में एक ही दिन पशु बलि करते हैं। इस दिन सैकड़ों की तादाद में प्रसिद्ध काली देवी के मंदिर में देवी के सामने नर भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है, जनश्रुतियों के अनुसार चार सौ साल पहले चोपड़ा गांव में कन्या का जन्म हुआ और कन्या को गांव के ही बच्चों ने खेल-खेल में एक गड्ढे में दबा दिया और गड्ढे में बकरों व भेंड़ों के कान काट कर डाल दिए। तब कन्या ने सपने में गांव के लोगों को दर्शन देकर बताया कि मैं वहां जमीन के नीचे दबी हूं और अब यहां हर साल बलि दी जाए। यूं तो बूंखाल में हर शनिवार को बकरों की बलि चढ़ाई जाती है किंतु विशेष उत्सव पर सैकड़ों की संख्या में नर भैंसो व बकरों की बलि होती है सालो से  मेले में बलि समर्थकों और बलि का विरोध कर रहे सामाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं के बीच नोकझोंक भी होती थी परन्तु इस बार पीपुल फॉर एनीमल्स उत्तराखण्ड की सचिव गौरी मौलखी ने इस मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि पौड़ी जिले के बूंखाल कालिका मेले में लगभग पांच हजार से अधिक निरीह पशुओं को समारोहपूर्वक मारा जाता है। इन जानवरों को मारने के बाद उनकी लाशों को वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसलिए पशुओं की इस प्रकार होने वाली नृशंस हत्या पर रोक लगनी चाहिए। गौरी मौलखी की इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने सात दिसंबर को पशुबलि पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए थे। आदेश में यह भी कहा गया था कि जो व्यक्ति पशुबलि देगा उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह एवं प्रमुख सचिव पशुपालन समेत सदस्य सचिव उत्तराखण्ड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तीन हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को भी कहा है हाईकोर्ट के पिछले सप्ताह दिए गए आदेश का पालन करते हुए प्रशासन को इस पर पूर्णतः रोक लगाना था जिसमें वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। हां इस बार बलि चढ़ने वाले पशुओं की संख्या में पहले के मुकाबले कमी जरूर आई।   मेले में पशुबलि को रोकने के लिए पुलिस, पीएसी और होमगार्ड के करीब डेढ़ हजार जवान तैनात किए गए थे लेकिन गांवों में एक दिन पहले से ही मेले की तैयारियां शुरू हो गई थीं। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी  दूर कुई, डुमलोट, चोपड़ा, मथिगांव, बहेड़ी बजवाण आदि गांवों में इसकी तैयारी देखी जा सकती थी। ग्यारह दिसंबर की सुबह चार बजे से ही बलि समर्थक नर भैंसों और बकरों को लेकर बूंखाल के लिए रवाना हो गए। दूसरी ओर करीब पांच बजे कोटद्वार के उपजिलाधिकारी गिरीश चंद्र के नेतृत्व में प्रशासन की एक टीम बलि के लिए जा रहे पशुओं को रोकने के लिए बेला बाजार पहुंची। स्थानीय लोगों ने बताया 'थलीसैंण के बलेख गांव के लोगों ने प्रशासन की कार्रवाई का विरोध किया। बलि समर्थकों ने प्रशासन की ओर से लगाए गए आधे दर्जन बैरियरों को तोड़ दिया। इसके बाद तीन और नर भैंसों को लेकर ग्रामीण बेला बाजार से आगे चले गए।' इसी बीच बेला बाजार से तीन किमी ऊपर चौड़ीखाल नामक स्थान पर जिलाधिकारी दिलीप जावलकर एवं पुलिस अधीक्षक पुष्पक ज्योति ने भी तीस नर भैंसों को रोकने का प्रयास किया। लेकिन ग्रामीणों की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने टकराव टाल दिया। करीब साढ़े बारह बजे से बूंखाल में नर भैंसो और बकरों की बलि चढ़नी शुरू हुई। शाम तक 70 नर भैंसे तथा 180 के करीब बकरों की बलि चढ़ाई गई। जबकि पिछले साल बूंखाल मेले में 120 नर भैंसों की बलि चढ़ाई गई थी। एक अनुमान के मुताबिक इस मेले में करीब 40 से 50 हजार श्रद्धालु मौजूद थे। मंदिर परिसर में भी पुलिस और बलि समर्थकों के बीच हल्की झड़प हुई। लेकिन बलि समर्थकों के आगे पुलिस फोर्स की एक नहीं चली।  शांतिकुंज हरिद्वार के गायत्री परिवार की ओर से बलि के विरोध में पर्चे बांटे गए पौड़ी के बुजुर्ग निवासी दुलारे सिंह बिष्ट ने बताया कि मां काली के मंदिर में पता नहीं कितने सालों से यह प्रथा चली आ रही है और इस दिन प्रशासन को भी आकर यहां का चमत्कार देखना चाहिये कि किस तरह से पशु बिना किसी की प्रेरणा से बलि स्थल पर अपने आप ही आ जाता है। उन्होंने बताया कि लोग पूरे साल अपनी मनोकामनायें देवी मां से मानते हैं और उसके एवज में श्रद्धा के साथ बलि चढाते हैं। इस दिन बलि चढ़ने वाला पशु पहाड़ की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में आने के लिये इधर उधर नहीं भागता है बल्कि वह अपने आप ही पहाड़ चढ़ जाता है और वहां पहुंच जाता है। इसे देवी मां का प्रताप ही कहना चाहिये। एक अन्य निवासी रामपाल सिंह रावत ने कहा कि देश के कई ऐसे स्थान हैं जहां पर पशु बलि दी जाती है लेकिन वहां पर कोई रोक टोक नहीं होती है तो यहीं पर क्यों इस तरह की रोक टोक की बात की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह सदियों पुरानी परम्परा है। लोग अपनी मनौती पूरा होने के बाद ही यहां पशु बलि के लिये आते हैं।रावत ने बताया कि जिस स्थान पर बलि दी जाती है, वहां न तो कोई भय का वातावरण होता है और न ही किसी प्रकार का प्रदूषण होता है। सैकड़ों की संख्या में आने वाले चील प्राकृतिक रूप से सफाई का काम करते हैं। जंगलों में रहने वाले सियार भी इस काम में सहयोग करते हैं इस साल का बूंखाल मेला ग्रामीणों, प्रशासन और सामाजिक संगठनों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं रहा 11 दिसम्बर को सम्पन्न इस एकदिनी परीक्षा में न कोई पास हुआ और न कोई फेल। नर पशुओं की बलि देकर ग्रामीणों ने सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया तो प्रशासन बलि की संख्या कम करवा कर अपनी पीठ खुद थपथपाती दिखी। सामाजिक संगठनों ने बलि प्रथा पूरी तरह बंद न करने के लिए प्रशासन को जिम्मेदार बताया। सामाजिक संगठनों के लगातार दबाव के चलते तीन दिन बाद प्रशासन को पशु बलि देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करना पड़ा।  बूंखाल पौड़ी प्रशासन के मुताबिक 31 लोगों के खिलाफ पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा 16 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ है। मामला दर्ज होने के बाद प्रशासन आगे कौन सा कदम उठायेगा यह देखना बाकी है नामजद आरोपी  ग्राम सभा  नोगांवा  से साबर सिंह  आनंद सिंह गुडवर सिंह ग्राम सभा  चोपड़ा से राजेंद्र सिंह महाबीर सिंह  नंदराम देहरादून, भूपेंद्र प्रसाद  बहेड़ी, शेर सिंह ,पंचम सिंह ,ग्राम - बमोर्थ,गोविन्द सिंह  किरसाल,रणजीत लाल सोंटी, भगत लाल कुंडी,केदार सिंह मिलई,बिनोद  सिंह कुई, दिलबर सिंह,श्याम प्रसाद सेमलत,राजेंद्र सिंह फल्दवाड़ी,दरवान सिंह धर्म सिंह मंडकोली, आनद सिंह बुरांसी, देवेंदर सिंह जवाड़ी , राम सिंह किम्डांग,सुरेश सिंह पसींडा,राम सिंह खंडोली, त्रिलोक सिंह बनेख , मनबर सिंह ओड़ागाड़,ओमप्रकाश चुफंडा ! बूखाल में नर भैंसो की बली देने वाले इन लोगो के खिलाफ  तहसील  थलीसेंण में मुकदमे  कायम  किए  हैं !

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