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Monday, October 18, 2010

 
सुदर्शन सिंह रावत |  
शायद कम ही  लोग  जानते 1990 के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय में हरक  सिंह  रावत शिक्षक रहते ही  राजनीति को अपना पेशा बना चुके थे। तब  कवि और  पत्रकार आज के  मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक व  विपक्ष  के  नेता  हरक सिंह  रावत  में घनिष्ट  दोस्ती   होने  के कारण  कभी -कभी विपक्ष  व सत्ता  के  नेता पहले तो यह बात भाजपा और कांग्रेस के भीतर खुसफुसाहट के रुप में कही जा रही थी उनके और मुख्यमंत्री के बीच  कोई  गुप्त संधि तो नहीं  हैं राजनिती   में पुराने बातो को  खूब  उछाला  जाता  है  हरक  सिंह रावत  स्कूटर  के  आगे और उनके  पीछे की सीट पर आज के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हुआ करते थे। लेकिन वक्त ने करवट बदली और आज मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक  आगे और उनके  पीछे की सीट हरक सिंह रावत  दोनों  स्कूटरिया यार निशंक को भाजपा आलाकमान ने उत्तराखंड को चलाने का जिम्मा सौंप दिया। हरक सिंह के पास विधानसभा के भीतर कांग्रेस को चलाने का भार है। स्कूटर वाली दोस्ती कायम है। इसे कहते हैं सच्ची  दोस्ती! सीटें बदल गईं पर दोस्ती नहीं बदली। प्रदेश हैरान है। पौड़ी विधानसभा क्षेत्र से राजनीति शुरु करने वाले हरक सिंह रावत । राजनिती  के  उस्ताद माने जाते। पहले मनोहर कांत ध्यानी फिर बीसी खंडूड़ी की उंगली थाम कर भाजपा की राजनीति में ऐसे जमे कि भाजपा के भीतर कईयों को उनसे खतरा महसूस होने लगा। बीजेपी की नई पीढ़ी के नेताओं में उन्होने सबको पीछे छोड़ दिया। उनकी महत्वाकांक्षाओं को भांप रहे नेताओं ने उन्हे भाजपा से बाहर करवा दिया।भाजपा से निकलकर उन्होने सतपाल महाराज की उंगली थामी और 1996 के लोकसभा चुनाव में उनकी सोशल इंजीनियरी और चुनावी तिकड़मों ने मिलकर भाजपा के जनरल को चित कर दिया। सतपाल महाराज को राजनीति में भी चेले चाहिए या फिर भक्त। वह खुद ही गढ़वाल में ठाकुर राजनीति के कर्णधार होना चाहते थे हरक सिंह राजनीति में महाराज का संप्रदाय बनाने तो नहीं आए थे। वह गढ़वाल विवि की शिक्षक राजनीति के गुरुकुल में प्रशिक्षित थे। गुरु को गुड़ बनाए रखने व खुद शक्कर बन जाने की टेक्नोलॉजी में दक्ष हरक सिंह सतपाल के कंधे पर सवार होकर राजनीति में लंबी छलांग मारने को आतुर थे। लिहाजा ठाकुर क़ी यह हिट जोड़ी भी टूट गई। हरक सिंह बसपा में गए और वहां भी उन्होने अपना लोहा मनवाया। एक दशक से ज्यादा समय तक राजनीति में घुमक्कड़ की तरह इधर उधर आते जाते रहे हरक फिर कांग्रेस में पहुंचे तो वहां उन्होने डेरा जमा लिया।अदम्य महत्वाकांक्षा और दबंग राजनीति हरक की राजनीति की बुनियादी ताकत है। अपने समर्थकों के लिए किसी से भी भिड़ जाने की उनकी खासियत से ही उनके पास कुछ कर गुजरने वाले समर्थकों की पल्टन है। राजनीति की यह खासियत ही उनकी सीमा भी है।उनके विरोधी भी उतने ही कट्टर हैं जो किसी भी कीमत पर उन्हे आगे नहीं आने देना चाहते। इसीलिए विवादों से उनका पुराना नाता रहा है। पटवारी भर्ती कांड, जेनी कांड समेत कई विवादों से घिरे हरक अब भूमि घोटाले में घिर गए हैं। मुख्यमंत्री के सबसे तगड़े दावेदार माने जा रहे हरक सिंह रावत को दौड़ से बाहर करने के लिए इनके  विरोधी  इसे साजिस की  तरह  उछाला जा सकता  है |

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