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Thursday, May 12, 2011

पौराणिक कुंडों की नगरी है बड़कोट

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देवभूमि उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के प्रमुख नगर बड़कोट का बड़ा ही ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व है। पवित्र यमुना नदी के तट पर बसी यह नगरी जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य और स्वास्थ्यप्रद जलवायु के चलते पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, वहीं बड़कोट की धरती पर हर कहीं खुदाई के दौरान निकलते जल कुंडों इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं। नगर में भवन निर्माण के दौरान अब तक एक दर्जन से भी अधिक कुंडों के साक्ष्य मिले हैं, जबकि दर्जनों भवन स्वामियों ने कुंड निकलने पर निर्माण कार्य बंद करवा दिया। मान्यता के अनुसार नगर क्षेत्र में 360 पौराणिक कुंड मौजूद हैं, जो कि परशुराम प्रकोप के बाद बने थे।
बड़कोट नगर में निकले हुए कुंडों एवं निकल रहे कुंडों को लेकर कोई एक मत नहीं है। मान्यता है कि राजा सहस्रबाहु यहां पर अपने राज्य की अदालत लगाया करते थे। इस दौरान बड़कोट से कुछ ही दूरी पर स्थित थान गांव में यमदग्नि ऋषि का आश्रम था और ऋषि ने सहस्रबाहु को सेना सहित भोज पर बुलाया। भोज करने के उपरांत सहस्रबाहु ने यमदग्नि ऋषि से कामधेनु गाय देने की मांग की। इस पर ऋषि ने कामधेनु देने से मना कर दिया। इससे राजा ने क्रोधित होकर ऋषि को मार दिया। इसी ब्रह्महत्या का प्राश्चित करने के लिए सहस्रबाहु ने बड़कोट में एक वृहद मुख्य कुंड सहित 360 कुडों की स्थापना की थी। वहीं दूसरी मान्यता यह भी है कि सहस्रबाहु ने जब यमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी तो ऋषि पुत्र परशुराम ने 21 बार अहंकारी एवं अत्याचारी क्षत्रिय राजाओं का वध किया। इसके प्रायश्चित के लिए उन्होंने यमुना नदी के तट पर स्थित बड़कोट में एक प्रमुख कुंड सहित सैकड़ों जल कुंडों की स्थापना की। जो कि बड़कोट नगर में कहीं भी खुदाई करने पर कुछ ही गहराई में निकलने शुरू हो जाते हैं। पूर्व में निकले एक दर्जन से भी अधिक कुंड बड़कोट में आज भी विद्यमान हैं और वर्ष 2000 में नगर के बीचों-बीच स्थित आरा मशीन के पास एक साथ दो पौराणिक कुंड निकले। आरा मशीन के मालिक गोविन्द राम डोभाल का कहना है कि वे भवन निर्माण के लिए नींव खोद रहे थे। इस दौरान वहां से एक साथ दो पौराणिक कुंड निकले। इस पर उन्होंने खुदाई बंद कर उस स्थान को पूजा स्थल के रूप में बना दिया। कुंड में विष्णु की मूर्ति सहित दो द्वारपाल, एक बौखनाग और एक गणेश की मूर्ति भी क्रमवार लगी थी, जो आज भी उसी अवस्था में स्थापित है। इन कुंडों एवं मूर्तियों को देखने के लिए श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की आवाजाही बनी हुई है, लेकिन इनके संरक्षण को लेकर आज तक भी शासन-प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं की गई है।
यहां निकले हैं कुण्ड
गढ़ के पास बड़कोट गांव में - मुख्य बड़ा कुण्ड
चन्द्रेश्वर मंदिर में - एक कुंड
इंटर कॉलेज प्रांगण में - एक कुंड
डोभाल आरा मशीन के पास - दो कुंड
बस अड्डे के पास - एक कुंड
कालिका पैलेस के पास - एक कुंड
नांदिण के निकट - एक कुंड 
in.jagran.yahoo.com se sabhar

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