उत्तरकाशी। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सीवरेज ट्रीटमेंट के लिये बना प्लांट शहर के बीचोबीच गंगा भागीरथी में गंदगी उड़ेला जा रहा है। इसे लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई व जल संस्थान की भाव शून्यता हैरान करने वाली है।
शहर में सीवरेज बनाने को भले ही नौ करोड़ रुपये की लागत का प्रोजेक्ट चल रहा है, लेकिन सात साल पहले शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। गंगा प्रदूषण व अविरल प्रवाह जुड़े आंदोलनों के प्रमुख केंद्र मणिकर्णिका घाट से करीब पचास मीटर दूरी पर सीवरेज से गंदी होती गंगा हर रोज दिखाई देती है। इस प्लांट की हालत के लिए गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई व जल संस्थान एक दूसरे की जिम्मेदारी बताते हुए अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं। बीते कई माह से यह स्थिति बनी हुई है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा तैयार की जा रही सीवर ट्रीटमेंट योजना के मुताबिक पुराने प्लांट से सीवर पंप होकर ज्ञानसू स्थित प्लांट में जाएगा, लेकिन इस योजना की कछुआ चाल से स्थानीय लोग बखूबी वाकिफ हैं। पुराना प्लांट व इसमें बना सेफ्टी टैंक फिलहाल किसी काम का नहीं है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी जल संस्थान की है, पर विभाग नई योजना के इंतजार में गंगा को प्रदूषित होने से रोकने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों व राजनीति से जुड़े लोग अपने वोट से जुड़े मुद्दों तक सीमित हैं। सामाजिक व धार्मिक संगठन भी इस पर मौन धारण किये हुए हैं। आम जनता रोज इस नजारे को देख रही है, लेकिन जिम्मेदार लोगों द्वारा अनदेखी किये जाने पर वह बेबस है। इस संबंध में गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिशासी अभियंता रकमपाल सिंह बताते हैं कि इसकी जिम्मेदारी जल संस्थान की है। यह पूरा प्लांट विभाग को ही हस्तांरित किया है, जबकि जल संस्थान के अधिशासी अभियंता आरएस नेगी के मुताबिक गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई जिस नई योजना पर काम कर रही है। उसमें काफी देरी की जा रही है। उन्होंने स्वीकार किया कि गंगा में सीवरेज घुल रहा है, इकाई जल्द ही ज्ञानसू वाला प्लांट तैयार कर देती है तो यह समस्या हल हो जाएगी।
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