ढोल को सम्मान मिलने लगा है
अंगरेजी साहित्य के प्रो. दाताराम पुरोहित लोककलाओं पर शोध में ऐसे खोए कि ढोल गले में डाल लिया। आज पहाड़ के तमाम लोकवाद्य उनसे बातें हैं और वह उन बातों को देश दुनिया को सुनाना चाहते हैं। पहाड़ के मेले, उत्सवों को वे नन्हें बच्चे के भोले कौतुक के साथ देखते हैं और दिखाना चाहते हैं। चाहते हैँ कि यहां नए नए प्रयोग हों। 1000 ही क्यों, अपने ढोल से और ताल निकलें। जब किसी एक कलाकार की मौत होती है ये शख्स बहुत टूटता है, क्योंकि वह उसकी कीमत जानता है। मेरी लोग ढ़ोल बजाने वाला कहकर मजाक बनाते मैं इससे और उत्साहित होता। आज गढ़वाल विश्वविद्यालय में ढ़ोल बजाने वाला गांव का कलाकार फैकल्टी है। विदेश से लोग उसको पूछने आ रहे हैं। ढ़ोल को सम्मान मिलने लगा है।
- ढोल को लेकर उनके इस प्रयास पर हुई हमारी बातचीत - ..... उत्तराखंड की संस्कृति पर अध्ययन करते हुए, कया समझा आया? इसको दो रूपों में देख सकते हैं। भौतिक व अध्यात्मिक। सामान्यतया उत्तराखंड की संस्कृति से आशय यहां की भौतिक संस्कृति से है। इसका उदभव जीवन की विविधता व दिनचर्या से हुआ है। इतिहास के विकास क्रम में कई चीजों का समागम हुआ है। इनके बारे में बहुत जानकारी नहीं है। पांडवों के हिमालय आगमन पर उत्सव संकेत से इसे समझा सकते हैं। बाद में मध्य एशिया से आये खस, कत्यूरी, नाग आदि का उस पर प्रभाव पड़ा। पूरब में काली नदी व पश्चिम में यमुना नदी के मार्ग से यहां प्रवेश बड़ा। मध्यम में स्थित गंगा की दुर्गम घाटियों में प्रवेश शंकराचार्य के आगमन के बाद ही संभव हो सका। निचोड़ के रूप में कहूं तो लोकधारा की संस्कृति व शास्त्रीयता की संस्कृति दोनों ने अपना स्थान बनाया। पर चाहे चितई के गोलू देवता हों या भगवान बद्रीनाथ इनके उत्सवों में परफार्मिंग आटर्स के कलाकार हावी हैं। यूं कह सकते हैं कि तमाम कठिनाईयों के बीच जो लोग कला को आगे बढ़ाते रहे कैसे देखते हैं इस योगदान को?
औरों की बनिस्पत इस वर्ग का श्रम से सबसे करीबी नाता रहा है। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता। धरती, भूगोल व हिमालय की जटिलताओं के सर्वाधिक भुक्तभोगी वहीं हैं। इसलिए इस खंड की संस्कृति उनकी सांसों व पसीने से निकली। इस वर्ग को अब जाति की जगह कलाकार के रूप में देखना शुरु करें। जिस कला को हम उत्तराखंड की कला के रूप में प्रचारित करते हैँ उसके कलाकारों को सम्मान देना सीखें। हमने श्रीनगर विश्वविद्यालय में रंगमंडल बनाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है। 15 लोक कलाकारों का रंगमंडल बने। उसमें ढ़ोली, हुड़किया, जगरिया आदि के उस्तादों को शामिल करें। उनहें पेशेवर बनाकर उन्हें सम्मानित करें। प्रोफेसरों की तरह उनहें तनख्वाह दें। नहीं तो कलाकारों की नई पीढ़ी इस कला को नहीं छुएगी7 मैंने देखा है पढ़े लिखे लोग इस कला से दूर भाग रहे हैं, जिसमें सम्मान नहीं है। न जीने लायक आजीविका। क्यों जीवित रहनी चाहिए यह कला? ऐसा कहा जा सकता है जो हवा है उसमें ऐसा लग सकता है। लेकिन यह अदभुत कला है। इसे किसी भी हाल में जीवित रखना होगा। मैंने इस पर इतने साल खपाए। मैँ ईमानदारी से कहता हूं। यह बेहद खूबसूरत है। हमारा ढोल से 600 से 1000 तक ताल निकलते हैं। जबकि तबले पर 300 ही बजते हैं। तबला पंडितों के हाथ में कोडिफाईड हो गया। लेकिन ढोल तो जनता का क्रिएशन है। आपको जैसे आनंद दे वैसे बजाओ। यहां नहीं के इस तरफ कुछ बजता है दूसरी तरफ कुछ और। भूगोल की विविधता से इसका प्रसार बढ़ता गया।अभी हम केवी छह जगह के ढ़ोल ही लिपिबद्ध कर पाये हैं। बहुत जगह के होने बाकी हैं। यह अंतरराष्ट्रीय क्षमता की कला है। मैँ अगर यहां का नहीं भी होता तो भी मेरा यही निरपेक्ष मूल्यांकन होता। धीमे स्वर में गायी जाने वाली सघई तो अदभुत है। हमें इस पर बहुत सीरियस एक्सपेरिमेंट भी करने हैं। पर कला के पारखी ही करें। रिसर्च करनी होगी। मछली मारने का उत्सव मौण कितना गजब है। पुरोला में इसमें हजारों लोग शामिल होते थे। 30 हजार लोग मछली मारने का दुनिया में ऐसा कोई उत्सव नहीं है। इसकी बुराईयां निकालकर इसे फिर शुरु किया जाए। गांव से कस्बों में आ गए लोग भी अपनी संस्कृति में लौटें तो उन्हें बाड़ा आनंद आएगा। संयोगवश गिर्दा ने झाूसिया दमाई का रिकार्ड बना लिया। नहीं तो भड़ गायन की यह महान कला कोई नहीं जान पाता। पीपलकोटी का नंदा सिंह नेगी मर गया। मैंने सरकार के पास पास बार बार प्रस्ताव भेजे कुछ नहीं हुआ। खुद भ नहीं कर पाया कुछ। लेनिक कई कलाओं का ज्ञाता यह कलाकार चल दिया। हर दिन कोई न कोई कला मर रही है। हजारों सालों की विरासत गुम हो रही है। युद्धस्तर पर काम करना होगा। हम डाक्यूमेंटेंशन तो कर ही सकते हैं। अगस्त्यमुनि के लोक महाभारत गायन का 100 घंटे का रिकार्ड किया हमने।ऐसे ही काम। केरल के कलाक्षेत्रम व राजस्थान के रूपायन की तरह। राजस्थान का फोक आज अंतरराष्ट्रीय मांग है, लेकिन जब कोमल कोठारी जैसे लोग आगे आये तब। राज्य की संस्कृति को उभारने व मंचों पर लाने के प्रयासों पर आपका मूल्यांकन ? सिर्फ नाज गाना करके कला जीवित नहीं रखी जा सकती। दूसरी तरफ इन प्रयासों का महत्व भी ळे। नए लड़के लड़कियों की अभिरुचि बनाए रखने में इन आयोजना की भूमिका रही है। इन्हें ट्रेनिंग मिली होती तो ये और अच्छा करते। लेकिन मैं कहूंगा संस्कृति चैंतोल व महासू जैसे मेलों ने सुरक्षित रखी है। महासू मंदिर में जब देवता एक जगह से दूसरे जगह प्रस्थान करता है तो एक करोड़ खर्च आता है। नंदा देवी में पिछली बार 56 करोड़ रुपये खर्च हुढ। छह छह मकहीने अलकनंदा की घाटियों में यात्राएं होती हैं। यह सब जनता के सामूहिक प्रयासों से होता है। सरकार आयोजनों के बदले इन गांव से निकले कर्मचारियेां को थोड़े दिन की छुट्टी दे दे। इसी से संस्कृति बचेगी। डंगारियों को गांव जाना ही पड़ेगा ना। मैकाले की शिक्षा पाये लोग आम लोगों की संस्कृति या लोक संस्कृति से नाक भौं सिकोड़ते हैं। आप तो फिर अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे, क्या जरूरत लगी ऐसी? बचपन से रंगमंच में रुचि रही। रामलीला में बहुत रोल किया। फिर रंगमंच से जुड़ गया थोड़े समय बाद महसूस हुआ कि लोक पर प्रो। मेहन उप्रेती व बृजेंद्रलाल साह के अलावाकिसी ने कोई काम नहीं किया। उनसे प्रभावित होकर मैंने 1985 से काम करना शुरु कर दिया। पिुर मेरी पीझएचडी का विष मध्यकालीन इंग्लैंड व गढ़वाल की लोकसंस्कृति का तुलनात्मक अध्ययन था। मैंने इसे पूरा करने में जल्दी नहीं की। पूरे आठ साल लगाए। उसे एमझा। 1996 में मेरे काम से प्रभावित होकर बृजेंद्रलाल साह ने मुझासे नैनीताल में कहा बाबा तू बहुत आगे जाएगा। मेरे बाद तू ही इस काम को संभालेगा। मेरी लोग ढ़ोल बजाने वाला कहकर मजाक बनाते मैं इससे और उत्साहित होता। आज गढ़वाल विश्वविद्यालय में ढ़ोल बजाने वाला गांव का कलाकार फैकल्टी है। विदेश से लोग उसको पूछने आ रहे हैं। ढ़ोल को सम्मान मिलने लगा है। सम्पकॅ-प्रो. (अंगरेजी) दाताराम पुरोहित गढवाल विश्वविद्यालय -श्रीनगर गढवाल इस साक्षात्कार के बारे में अपनी राय दीजिएगां-jaydeo34@gmail.com
धधकते अंगारों पर नाचते हैं जाख देवता
केदारनाथ और मंदाकिनी घाटी में बैसाख माह विशेष रूप से पौराणिक मेलों के लिए जाना जाता है। गुप्तकाशी के जाखधार में लगने वाले जाख मेले की अलग ही पहचान है। इसके लिए नारायणकोटि, देवशाल और कोठेड़ा गांवों के लोग मेला शुरू होने के दस दिन पूर्व ही तैयारियों में जुट जाते हैं। मेले में प्रसिद्ध जाख देवता के पश्वा (जिस व्य1ित पर देवता अवतरित होता है।) मेले के दिन जलते आग के अंगारों में प्रविष्ठ होकर अद्भुत नृत्य प्रस्तुत करते हैं। बैसाख माह की दो गते यानि १५ अप्रैल को मेले का भव्य आयोजन होता है। देवशाल गांव के प्रसिद्ध विंधनिवासिनी मंदिर में जाख देवता के आचार्य देवशाली ब्राह्मण, कोठेड़ा के पुजारी और नारायणकोटि गांव के लोग सेवक के रूप में मां जगदंबा की पूजा-अर्चना करते हैं। इसी दौरान क्षेत्र में धान की बुआई का दिन भी तय किया जाता है। इस वर्ष २६ गते (८ अप्रैल) बुआई, २९ गते (११ अप्रैल) को पापड़ी त्यौहार और ३० गते (१२ अप्रैल) को अग्निकुंड हेतु लकड़ी लाने का दिन निश्चित किया गया है। देवशाल गांव में उपल4ध भोजपत्र पर अंकित लेखों में इस मेले की परंपरा का निर्वहन ग्रामीणों द्वारा वर्ष ११११ से करने का उल्लेख मिलता है। मेले के एक दिन पूर्व संक्रांति के दिन विधि-विधान और मंत्रोच्चारण के साथ अग्निकुंड में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। बाद में मेले के दिन जाख देवता के पश्वा इन धधकते अंगारों में अद्भुत नृत्य करते हैं। इस देवीय शक्ति को देखने के लिए दूर-दराज के गांवों से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़कर आती है। बाद में अग्निकुंड की अवशेष राख को लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
हेलीकॉप्टर से एक साथ होगी चार धाम की यात्रारुद्रप्रयाग।
इस वर्ष उ8ाराखंड के चारों धामों गंगोत्री, यमनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ में आने वाले तीथयात्रियों की यात्रा आसान होने जा रही है। इसके लिए पवन हंस हेलीकॉप्टर लिमिटेड देहरादून और फाटा से चारों धामों के लिए हेलीकॉप्टर सेवा शुरू करने जा रही है। हालांकि लोक सभा चुनाव होने के चलते सेवा १८ मई से शुरू होगी।२६ मई २००३ को अगस्त्यमुनि में स्थित अस्थाई हैलीपैड से पवन हंस के हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी थी। कंपनी इस बार देहरादून और फाटा से केदारनाथ धाम के साथ ही तीन अन्य धामों के लिए भी सेवा शुरू कर रही है। कंपनी ने फाटा से केदारनाथ धाम के यात्रा भाड़े को भी कम कर सात हजार रुपये कर दिया है। तीर्थयात्रियों के रुझाान को देखते हुए इस बार कंपनी द्वारा छह सीटर हैलीकॉप्टर की व्यवस्था की जा रही है। कंपनी के जनरल मैनेजर संजीव कुमार ने बताया १५ मई तक लोक सभा चुनाव होने के कारण सेवा देर से शुरू की जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि मौसम ने साथ दिया तो इस बार फाटा के साथ ही देहरादून और अगस्त्यमुनि से भी सेवा शुरू की जाएगी। हालांकि इसके लिए अभी किराया तय नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि यात्रियों के रुझाान को देखते हुए फाटा से दो और देहरादून से एक हेलीकॉप्टर सेवा देगा। ज्ञात हो कि केदारनाथ धाम के कपाट ३० अप्रैल को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुल जाएंगे।
यात्रा से पहले जगमग होगा बदरीधामगोपेश्वर।
चमोली जिले में कम हिमपात के चलते इस बार जहां सीमा सड़क संगठन को बदरीनाथ तक पहुंचने के लिए राजमार्ग से ग्लेशियर नहीं हटाने पड़ेंगे, वहीं विद्युत लाइन को भी कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है। जिससे बदरीनाथ में १५ से २० अप्रैल के बीच विद्युत आपूर्ती सुचारू कर दी जाएगी।जिले में हर साल भारी हिमपात के चलते यात्रा सीजन शुरू होने से पहले सीमा सड़क संगठन को राजमार्ग में कई स्थानों पर आए बड़े ग्लेशियरों को हटाने में काफी पसीना बहाना पड़ता था, लेकिन बताया गया है कि इस बार राजमार्ग में बदरीनाथ तक ग्लेशियर नहीं है। जबकि, विद्युत लाइन को भी कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है। विद्युत लाइन का जायजा लेकर बदरीनाथ से लौटे अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खंड गोपेश्वर नंदन सिंह खाती के अनुसार इस बार कम हिमपात के चलते विद्युत लाइन को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है। विद्युत लाइनें ठीक हैं केवल हनुमानचट्टी के पास विद्युत विभाग के तीन पोल क्षतिग्रस्त हुए हैं। जिसे शीघ्र ठीक कर १५ से २० अप्रैल के बीच बदरीनाथ धाम में विद्युत आपूर्ति सुचारू कर दी जाएगी। राजमार्ग में ग्लेशियर के बारे में श्री खाती ने बताया कि जोशीमठ से बदरीनाथ तक राजमार्ग में कम हिमपात के चलते ग्लेशियर नहीं है। उधर, अन्य विभागों जल संस्थान, स्वास्थ्य विभाग आदि ने भी यात्रा सीजन शुरू होने से पहले अपनी ओर से की जाने वाली तैयारियां शुरू कर दी हैं।
चौदह सौ जवान मेडिकल के लिए चयनितगौचर। तीन दिनों तक चली सेना की भर्ती रैली में चौदह सौ नौजवान मेडिकल के लिए चयनित किए गए। भर्ती निर्देशक एके चौहान के अनुसार आठ अप्रैल तक गौचर में युवाओं का मेडिकल होगा।मेडिकल के बाद चयनित नौजवानों की २६ अप्रैल को लैंसडाउन में लिखित परीक्षा आयोजित होगी।तीन दिन तक चली थलसेना की भर्ती में २७ हजार से अधिक युवाओं ने भाग लिया। इतनी अधिक सं2या में भर्ती के लिए नौजवानों के पहुंचने से भर्ती अधिकारी भी हैरान दिखे। पुलिस और प्रशासन द्वारा भर्ती के दौरान रहने खाने और शांति सुरक्षा के प्रयासों के बावजूद भी अव्यवस्थाएं व्याप्त रही। स्थानीय जनप्रतिनिधियों, व्यवसायियों और सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य द्वारा किए गए रहने खाने की व्यवस्थाओं से कुछ युवाओं को राहत मिली। भर्ती में शिरकत करने वाले युवाओं में से अधिकांश ने भर्ती के दौरान सेना के जवानों द्वारा बदसलूकी और लाठियां भांजने की शिकायत की। कुछ नौजवान भीड़ में अपना सामान और शैक्षिक प्रमाण पत्र खोने से भी परेशान दिखे। तमाम अव्यवस्थाओं, मुसीबतों और हादसों के बावजूद भर्ती के लिए उमड़ी युवाओं की भीड़ ने पहाड़ के शिक्षित नौजवान की बेरोजगारी, मजबूरी और बेकारी की दास्तां बयां की है।
(पदम विभूषण से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद्) हमें यह गर्व होना चाहिए कि हम लोकतांत्रिक प्रणाली के अंग हैं। लोकतंत्र में एक-एक वोट का अपना महत्व है। संविधान जनता को अपना नेता चुनने का अधिकार देता है। इस लोक जागरण का सबसे बड़ा पर्व चुनाव है। ऐसे में लक्ष्य यह होना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति की इस पर्व में भागीदारी हो। नागरिकों को उनके कत्र्तव्यों व अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाए। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन भय और लालच ताकतवर हो चुके हैं। राजनीतिज्ञों से अपेक्षाएं बेमानी हैं, लिहाजा प्राय: तटस्थ रहने की मनोवृत्ति वाले लोगों को अपनी भूमिका समझानी होगी और 'पीपुल मेनिफेस्टो' बनना चाहिए। राजनैतिक पार्टियों के घोषणा पत्र महज वोट जुटाने के लिए तैयार किए जाते हैं। पीपुल मेनिफेस्टो में जनपक्षीय सवालों को उठाकर प्रत्याशियों से पूछा जाना चाहिए कि वह आम आदमी के लिए क्या करेंगे। विश्व के कई देशों में चुने हुए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार जनता के पास है। हमारे देश में भी यह अधिकार जनता को मिलना चाहिए। होता यह है कि जीतने के बाद प्रतिनिधि के मन में यह बात घर कर जाती है कि पांच साल तक उसे कोई नहीं हटा सकता। इसलिए लोकतंत्र की मजबूती के लिए जनता को 'रिकाल का अधिकार' जरूरी हो गया है। तभी लोकतंत्र सही मायने में सफल होगा। नीतिनियंता जिस बात को समझाने के बावजूद अंजान बन रहे हैं, वह है भविष्य में होने वाला गंभीर जल संकट। देश को बचाने के लिए मैं लंबे समय से हिमालय नीति बनाने की मांग कर रहा हूं। दुर्भाग्य यह है कि अभी तक इस मामले में खास प्रगति नहीं हुई। हमारा स्लोगन है- 'धार ऐंच पाणी ढाल पर डाला, बिजली बनाओ खाला-खाला'। इससे पर्वतीय क्षेत्र के लोग संपन्न होंगे और देश के अन्य क्षेत्रों को जरूरत का पानी मिल पाएगा। बड़े बांध कभी पेयजल संकट का स्थायी हल नहीं हो सकते। ऐसे बांध बेहद खतरनाक हैं। जर्मनी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। गंगा को अविरल बहने देने व हिमालय नीति का मसला इस चुनाव में बतौर मुद्दा उठना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर लडऩे से बेहतर है कि बुनियादी सवालों को उठाया जाए। इसलिए चुनाव ही वह मौका है और मेरी सबसे अपील है कि वोट अवश्य दें।
ढोल को सम्मान मिलने लगा है।
जुनून है पहाड़ की लोककलाओं को देश-विदेश में एक अलग सम्मान मिले
गढ़वाल विश्वविद्यालय में अंगरेजी साहित्य प्रोफेसर अंगरेजी साहित्य के प्रो. दाताराम पुरोहित लोककलाओं पर शोध में ऐसे खोए कि ढोल गले में डाल लिया। आज पहाड़ के तमाम लोकवाद्य उनसे बातें हैं और वह उन बातों को देश दुनिया को सुनाना चाहते हैं। पहाड़ के मेले, उत्सवों को वे नन्हें बच्चे के भोले कौतुक के साथ देखते हैं और दिखाना चाहते हैं। चाहते हैँ कि यहां नए नए प्रयोग हों। 1000 ही क्यों, अपने ढोल से और ताल निकलें। जब किसी एक कलाकार की मौत होती है ये शख्स बहुत टूटता है, क्योंकि वह उसकी कीमत जानता है। .......ढोल को देश व विदेश में एक अलग पहचान दिलाने वाले प्रो. दाताराम पुरोहित से हुई सीधी बात शीघ्र ही पहाड़ 1 पर -
छात्रों का किया जा रहा मार्गदर्शन देहरादून, : करियर को लेकर चिंतित छत्रों को परेशान होने की जरूरत नहीं। इसका निदान परेड ग्राउंड में चल रहे दून फेयर-2009 में हो जाएगा। फेयर में तमाम शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थानों की ओर से विभिन्न कोर्सेज की जानकारी देने के साथ ही काउंसिलिंग भी की जा रही है। इसे देखते हुए शनिवार को भी फेयर में जबरदस्त भीड़ उमड़ी रही। निदान शिक्षा एवं जन कल्याण समिति के तत्वावधान में चल रहे दून फेयर-2009 में न केवल दून, बल्कि देश के अन्य क्षेत्रों के भी नामी-गिरामी शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान भाग ले रहे हैं। इन संस्थानों के स्टालों में उनके द्वारा संचालित कोर्सेज की जानकारी दी जा रही है, ताकि विद्यार्थी इन्हें करने के बाद भविष्य संवार सकें।
विश्र्व में सबसे सस्ती कार हल्द्वानी में उपलब्ध होगी।
आ ही गयी आम आदमी के सपनों की कार हल्द्वानी: आखिर इंतजार खत्म हुआ,टाटा की ड्रीम कार नैनो शनिवार को हल्द्वानी पहुंच गयी। गोला गणपति मोटर के स्वामी राजेश अग्रवाल व अंकित अग्रवाल ने बताया कि बुकिंग फार्म आ गए है, बुकिंग नौ अप्रैल से शुरू होगी। उसी दिन इसे लांच किया जायेगा। कार की खूबियों को बताते हुए श्री अग्रवाल ने कहा कि इसमें पांच लोगों के बैठने के साथ ही सामान रखने के लिए भी पर्याप्त जगह दी गई है। यह लाल, सफेद, नीले, पीले, ग्रे व गोल्डन छह रंगों में उपलब्ध होगी। नैनो का बेस माडल जहां एक लाख बारह हजार सात सौ का होगा वहां टाप माडल की कीमत करीब एक लाख 70 हजार होगी। कम्पनी के दावों को सच माने तो सस्ते दामों के साथ ही कार काफी किफायती साबित होगी। कम्पनी ने कार के 23.6 किमी प्रति लीटर के माइलेज का दावा किया है। उनका कहना है कि देश ही नहीं विश्र्व में सबसे सस्ती कार हल्द्वानी में उपलब्ध होगी। क्योंकि ट्रांसपोर्ट का खर्चा व टैक्स यहां कम पड़ेगा। इन खूबियों व कम दाम के चलते इस कार के प्रति लोगों में जबरदस्त क्रेज है। अबतक ढाई हजार लोगों ने इसके बारे में इंक्वायरी की है।
कुमाऊं में भी थ्रीजी सेवा शुरू
हल्द्वानी: देहरादून के बाद बीएसएनएल ने हल्द्वानी में थ्री जी सेवा शनिवार को लांच कर दी। इसे एक साल के भीतर राज्य के सभी पर्यटन स्थलों तक विस्तार कर दिया जाएगा। लांचिंग के साथ बीएसएनएल ने वीडियो कांफ्रेंसिंग शुरू की है। इसमें उपभोक्ता थ्री जी सेवा के किसी उपभोक्ता को फोन करते हैं, तो संपर्क होने पर आपको पता चल जाएगा। वह उपभोक्ता कहां खड़ा है और उसके आस-पास किस तरह की गतिविधियां हो रही हैं। साथ ही आप एक-दूसरे को अपने मोबाइल के स्क्रीन पर देखकर बातचीत का सिलसिला जारी रख सकेंगे।
राज्य में सबसे कम शहरी बेरोजगार
Apr 06, देहरादून। इस चुनाव में बेरोजगारी कम से कम उत्तराखंड में अहम मुद्दा नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक ताजा रिपोर्ट 'इंडियन लेबर मार्केट रिपोर्ट -2009' के मुताबिक उत्तराखंड के शहरी क्षेत्र में देश के सबसे कम बेरोजगार हैं। देश के जाने-माने संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज की इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में शहरी बेरोजगारी देश में सबसे कम यानी उसकी आबादी के 0.5 प्रतिशत है। इसके बाद छत्तीसगढ़ का नंबर है, जहां महज 0.8 प्रतिशत शहरी बेरोजगार हैं। भारत सरकार के नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक गोवा में सबसे ज्यादा यानी 11.4 प्रतिशत और उसके बाद केरल में 9.1 फीसदी शहरी बेरोजगार हैं। देश के स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी महिलाएं ज्यादा बेरोजगार हैं। ग्रामीण 7.31 फीसदी की तुलना में 9.2 प्रतिशत शहरी महिलाएं बेरोजगार हैं। गांवों में जहां 60-70 फीसदी महिलाएं श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं, शहरों में यह 70-80 प्रतिशत हैं। वैसे रिपोर्ट कुल मिलाकर यह कहती है कि देश में शहरी बेरोजगारी ग्रामीण बेरोजगारी से ज्यादा भयावह है। रिपोर्ट के मुताबिक जो प्रदेश ज्यादा पिछड़े हैं वहां के ज्यादा लोग स्वरोजगार में जुटे हैं। इतना ही नहीं आज खुदरा बाजार रोजगार देने में सबसे बड़े क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। जिसके बाद निर्माण क्षेत्र और फिर हास्पिटैलिटी, ट्रांसपोर्ट, कम्यूनिकेशन, माइनिंग, वित्त बाजार आदि के क्षेत्र अस्थायी रोजगार देने में सफल हुए हैं। ईमेल
पर्यटकों के लिए निगम को मिलीं सात बसें
हल्द्वानी : टूरिस्ट सीजन में पर्यटकों को पर्यटन स्थलों तक पहुंचाने के लिए उत्तराखंड परिवहन निगम के बेड़े में सात और बसें शामिल हुई हैं। यह पर्यटकों को विभिन्न पर्यटन स्थलों का भ्रमण कराएंगी। घाटे से जूझ रहे उत्तराखंड परिवहन निगम को उबारने के लिए पर्यटन सीजन बेहतर मौका है। इसको लेकर मुख्यालय कुमाऊं मंडलीय दफ्तर को सात बसें सौंपी हैं। यह बसें कल सांय तक देहरादून से चल कर हल्द्वानी पहुंच जाएंगी। अगले दिन से इन बसों का संचालन नैनीताल, भीमताल, भवाली, सूखाताल, खुर्पाताल, रानी खेत जैसे पर्यटन स्थलों के लिए शुरू कर दिया जाएगा। काफी लग्जरी बतायी जा रही इन बसों को विशेष तौर से पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है। इन बसों में चालक-परिचालक सहित कुल 32 यात्री यात्रा कर सकते हैं। बहरहाल संचालन की दिशा में अभी यह नहीं तय हो सका है कि इन बसों का टाइम टेबल क्या होगा? किस डिपो से कितनी बसें चलायी जाएंगी। निगम के प्रबंधक संचालन मुकुल पंत ने बताया कि टूरिस्ट सीजन को देखते हुए इनमे से अधिकांश बसों का संचालन नैनीताल डिपो से किया जाएगा। श्री पंत के मुताबिक एक-दो बसें हल्द्वानी डिपो से भी चलायी जाएंगी। इन बसों की खासियत यह है कि छोटी होने की वजह से पहाड़ पर यह आसानी से घूम जाएंगी। डीजल की खपत कम होगी और पर्यटक भी काफी आराम महसूस करेंगे।
सूबे के वन बरसाएंगे धन
देहरादून उत्तराखंड को जल्द ही अपने विस्तृत वन क्षेत्र का आर्थिक फायदा मिल सकेगा। केंद्र सरकार ने उन राज्यों को आर्थिक मदद देने की योजना बनाई है, जिन्होंने अपना वनावरण राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने में कामयाबी हासिल की है। इस योजना के तहत अगले वित्तीय वर्ष यानी 2009-10 से वित्तीय मदद मिलने की उम्मीद है। योजना आयोग के फार्मूले के हिसाब से उत्तराखंड सभी राज्यों को मिलने वाले धन का सबसे ज्यादा हिस्सा पाने वाले राज्यों में से एक रहेगा। पिछले हफ्ते यानी 23 मार्च को देहरादून में भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई)में आयोजित बैठक में योजना आयोग की सदस्या इंद्राणी चंद्रशेखर ने यह आश्वासन दिया है। बैठक में आईसीएफआरई के महानिदेशक जगदीश किशवान, एफआरआई के निदेशक डा. एसएस नेगी, विस्तार प्रभाग व शताब्दी वन विज्ञान केंद्र के निदेशक ओमकार सिंह, उत्तराखंड वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डा. आरवीएस रावत, हिमाचल, अरुणाचल, असोम, छत्तीसगढ़, समेत उन राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जहां वन क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। मालूम हो कि अब तक देश में कोई ऐसी व्यवस्था नहींहै, जिसके तहत वन संरक्षण की दिशा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को किसी तरह से आर्थिक लाभ दिए जा सके। केंद्र सरकार देश में कुल वन क्षेत्र कम से कम 33 फीसदी करना चाहती है। उत्तराखंड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. आरवीएस रावत ने बताया कि भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग की वन स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के पास देश के कुल वन क्षेत्र का 1.6 प्रतिशत वन हैं। प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 45.70 प्रतिशत वनावरण है। इनमें 7.48 प्रतिशत अत्यंत सघन वन, 26.92 फीसदी सामान्य सघन वन, 11.30 प्रतिशत खुले वन हैं। प्रदेश के 19 फीसदी क्षेत्र में बर्फ, हिमनद या तेज ढाल हैं जहां वृक्ष उगाना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में उत्तराखंड कुल आवंटित धन का तीन से चार प्रतिशत तक धन पा सकेगा। एफआरआई के निदेशक डॉ. एसएस नेगी ने बताया कि यह धन, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिए मिलेगा। एक बार वित्तीय मदद शुरू हो जाने पर वह लगातार आठ वर्ष तक जारी रहेगी।
बीएड काउंसलिंग की कराएगी सरकार
नैनीताल: राजकीय महाविद्यालय राठ (पौड़ी गढ़वाल) को राज्य कोटे की बीएड सीटों की काउंसलिंग का रास्ता खुल गया है। सरकार की सहमति के बाद इस संबंध में महाविद्यालय प्रशासन द्वारा दायर अवमानना याचिका को हाईकोर्ट ने निस्तारित कर दिया है। राजकीय महाविद्यालय राठ (पौड़ी गढ़वाल) को राज्य कोटे की 50 सीटों का आवंटन सरकार द्वारा किया गया था, जिसकी काउंसलिंग पर सरकार द्वारा रोक लगाई गई थी। इसके बाद महाविद्यालय प्रशासन ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने आवंटित सीटों पर काउंसलिंग कराने के निर्देश पारित किए थे। जिसका सरकार द्वारा अनुपालन न होने पर महाविद्यालय प्रशासन ने पुन: हाईकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की गई थी। याचिका कर्ता द्वारा कहा गया था कि पूर्व में कोर्ट ने सरकार को महाविद्यालय को आवंटित 50 सीटों पर बीएड काउंसिलिंग कराने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद काउंसलिंग नहीं कराई जा रही है। सरकार की ओर से 3 मार्च 09 को अदालत में उच्च शिक्षा सचिव अंजली प्रसाद का एक हलफनामा दायर किया गया। जिसमें बताया गया कि सरकार स्टेट कोटे की 50 सीटों की काउंसिलिंग कराने जा रही हैं। उक्त प्रतिशपथ पत्र से संतुष्ट होकर हाईकोर्ट ने अवमानना याचिका को निस्तारित कर समाप्त कर दिया।
भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने पार्टी को अलविदा कह ही दिया।
देहरादून, कभी हां, कभी ना के बाद आखिरकार आज भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने पार्टी को अलविदा कह ही दिया। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर को विधानसभा सदस्यता से भी इस्तीफा सौंप दिया है। श्री कपूर ने इस्तीफे के परीक्षण के उपरांत कार्यवाही की बात कही। शुक्रवार शाम करीब साढ़े सात बजे विधायक मुन्ना सिंह चौहान विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर से उनके आवास पर मिले। करीब 48 मिनट तक श्री चौहान अध्यक्ष के कक्ष में बैठे। बाहर निकलने के बाद श्री चौहान ने पार्टी व विधानसभा सदस्यता से इस्तीफे की घोषणा की।
अरमान पर भाड़ी न पड़ जाए फरमान
गढ़वाल विवि ने स्ववित्त पोषित कालेजों में प्रवेश पर फिलहाल लगाई रोक देहरादून, : गढ़वाल विश्वविद्यालय की ओर से हाल में जारी किए गए फरमान से यूपीएमटी की प्रवेश परीक्षा प्रभावित हो सकती है। प्रदेश के ग्यारह मेडिकल कालेजों में विभिन्न स्नातक उपाधियों के लिए यूपीएमटी के जरिए छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। इनमें नौ कालेज गढ़वाल विवि से संबद्ध हैं। विवि ने पिछले सप्ताह एक फरमान में सभी स्ववित्त पोषित कालजों में प्रवेश पर रोक लगाई है। अभी यह साफ नहीं है कि इन कालेजों में कब तक प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो पाएगी। प्रदेश में एमबीबीएस, बीडीएस, बीएएमएस व बीएचएमएस की उपाधियों के लिए सरकारी, सहायता प्राप्त और स्ववित्त पोषित संस्थानों की संख्या ग्यारह है। इन कालेजों में सरकारी कोटे की सीटों पर प्रवेश के लिए शासन यूपीएमटी के जरिए छात्र चुनता है। ग्यारह कालेजों में से तीन सरकारी, एक सहायता प्राप्त और सात स्ववित्त पोषित हैं। इनमें से नौ कालेज गढ़वाल विवि से और दो कुमाऊं विवि से संबद्ध हैं। इन कालेजों की कुल 760 सीटों में से 505 सरकारी कोटे की हैं। इनमें से 610 सीटों पर प्रवेश देने वाले कालेज गढ़वाल विवि से संबद्ध है। गढ़वाल विवि से संबद्ध स्ववित्त पोषित कालेज में एमबीबीएस की 35, बीएएमएस की 50, बीडीएस की 100 सीटों के लिए छात्र प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं। वहीं, कुमाऊं विवि से संबद्ध सहायता प्राप्त एक कालेज में एमबीबीएस की 85 और स्ववित्त पोषित एक कालेज में बीएचएमएस की 25 सीटों के लिए छात्र यूपीएमटी की परीक्षा में शामिल होते हैं। सरकारी कालेज की बात करें तो प्रदेश में एमबीबीएस के लिए एकमात्र श्रीनगर स्थित कालेज ही है, जो अभी मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया से अनुमति मिलने का इंतजार कर रहा है। बीएएमएस के लिए हरिद्वार स्थित दो सरकारी कालेज हैं, जिनमें 110 छात्रों को प्रवेश मिलेगा। बीडीएस और बीएचएमएस के लिए कोई सरकारी कालेज नहीं है, इसमें प्रवेश लिए छात्रों के पास स्ववित्त पोषित कालेजों का ही विकल्प है। गढ़वाल विवि ने 24 मार्च को स्ववित्त पोषित कालेजों व संस्थानों को पत्र जारी कर कहा कि उनकी संबद्धता रखने या न रखने को लेकर दिशा निर्देश तय किए जाने तक कोई भी कालेज या संस्थान नए सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू नहीं करेगा। विवि द्वारा जारी पत्र मेडिकल की शिक्षा देने वाले संस्थानों को भी मिले हैं। उधर, शासन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार 31 मई से पहले यूपीएमटी की परीक्षा कराने जा रहा है। ऐसे में जब केवल सरकारी या अन्य विवि से संबद्ध कालेजों में ही प्रवेश संभव होगा तो इसका प्रवेश परीक्षा पर प्रभाव पड़ना तय है। उधर, उत्तरांचल आयुर्वेदिक कालेज के निदेशक अश्वनी कांबोज का कहना है कि विवि परीक्षा का आयोजन करता है, प्रवेश शासन और कालेज के बीच का मामला है। उन्होंने कहा कि प्रवेश परीक्षा पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा। यदि गढ़वाल विवि संबद्धता नहीं देता है तो किसी अन्य विवि से सरकार संबद्ध कराएगी। छात्रों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
ग्रामीण महिलाओं ने स्थानीय उत्पादों से किया तैयार किया
ग्यारवे ज्योतिर्लिग भगवान केदारनाथ के दर्शनाथ पंहुचने वाले लोगों को इस बार केदारनाथ में लीचीदाना ,दाल,चने की बजाय ग्र्रामीण महिलाओं द्वारा तैयार स्थानीय उत्पादों के पंचामृत को प्रसाद के रुप में चढाएंगे। खाद्य प्रसंसकरण विभाग की लाइसेंस अथॉरटी सीएफटीआई मैसूर द्वारा प्रमाणित इस प्रसाद को स्वराज सहकारी समिति मस्ता के स्वयं सहायता समूहोंकी महिलाओं द्वारा तैयार किया गया हैैं
दोहन से बुरांश का अस्तित्व खतरे में
Apr 03, नई टिहरी (टिहरी गढ़वाल)। अपनी खूबियों व औषधीय गुणों के कारण राज्य वृक्ष बुरांस का अस्तित्व खतरे में है। लगातार दोहन से बुरांस के जंगल धीरे-धीरे सिमटते जा रहे है। बुरांस के फूलों से बने जूस में अनेक औषधीय गुण मौजूद है। इन्हीं गुणों के कारण बुरांस के जूस की मांग बढ़ती जा रही है। इससे जहां बुरांस के फूलों का अनियंत्रित दोहन हो रहा है, वहीं इसके लिए अभी तक कोई नीति नहीं बनी गई है। लगातार फूलों की दोहन से जहां नई पौध उगना बंद हो गई है, वहीं पेड़ों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पहाड़ में भले ही बुरांस से लोगों की आजीविका बढ़ी हो पर इसके दोहन से पर्यावरणीय खतरा पैदा हो गया है। पादप विशेषज्ञों प्रेम सिंह चौहान का कहना है कि बुरांस की पूरी दुनिया में 850 प्रजातियां है, जिनमें से भारत में 80 प्रजातियां है। पांच प्रजातियां हिमालयी क्षेत्र में उगती है। बुरांस की सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति रोडो डेनड्रोन आरपोरिया है। अपने गुणों और औषधीय उपयोगिता के चलते इसका लगातार दोहन हो रहा है। बुरांस के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए समय-समय पर वन विभाग व मंत्रालय को भी लिखा गया, लेकिन वन अधिनियम में फूलों के दोहन को रोकने का प्रावधान न होने से इसका गलत फायदा उठाया जा रहा है।
जयहरिखाल: रोशनी पर मंडराए संकट के बादल
Apr 03, लैंसडौन (पौड़ी गढ़वाल)। विवादों के चलते जयहरिखाल प्रखंड के मेंटेनेंस फ्रैंचाइजी ने विद्युत व्यवस्था से अपने हाथ खींच लिए हैं। फ्रैंचाइजी ने विद्युत विभाग की रसीदों समेत अन्य जरूरी दस्तावेज विभाग में जमा करवा दिए हैं। साथ ही फ्रैंचाइजी ने अधिशासी अभियंता कोटद्वार समेत विभाग के आला अधिकारियों को भी इसकी सूचना दे दी है। फ्रैंचाइजी का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों के उपेक्षात्मक बर्ताव के चलते यह कदम उठाया गया है। वहीं, इसके बाद से जयहरिखाल क्षेत्र पर विद्युत संकट मंडराने की आशंका बढ़ गई है।
उक्रांद: नैनीताल से जंतवाल प्रत्याशी
Apr 03, देहरादून। उक्रांद ने नैनीताल से पार्टी अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल को प्रत्याशी घोषित किया है। साथ ही पांचों सीटों पर चुनाव प्रबंधन को प्रभारी बनाए हैं। कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट ने आज पत्रकार वार्ता में कहा कि उक्रांद पांचों सीटों पर चुनाव लड़ेगा। उन्होंने नैनीताल सीट से पार्टी अध्यक्ष को उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही प्रभारियों के नाम भी घोषित किए। हरिद्वार सीट पर दिवाकर भट्ट, अल्मोड़ा पर काशी सिंह ऐरी, नैनीताल पर लक्ष्मण सिंह चुफाल, पौड़ी पर पीएस कठैत और टिहरी पर बीडी रतूड़ी को बतौर प्रभारी नियुक्त किया गया है। श्री भट्ट ने कहा कि भाजपा समझौते को तैयार नहीं हुई। अब उक्रांद पांचों सीटों पर चुनाव लड़ेगा। समर्थन जारी रखने बिंदु पर उन्होंने कहा कि उक्रांद इस समय सरकार को अस्थिर करने को तैयार नहीं है। राजधानी आयोग की रिपोर्ट गैरसैंण के पक्ष में आई तो ठीक है, अन्यथा उक्रांद गैरसैंण राजधानी के लिए संघर्ष जारी रखेगा।
बीएसएनएल ने पेश किए स्पेशल टैरिफ वाउचर
Apr 03, देहरादून। बीएसएनएल उत्तरांचल परिमंडल ने घटी कॉल दरों वाले स्पेशल टैरिफ वाउचर पेश किए हैं। ये वाउचर 90 दिनों तक उपलब्ध रहेंगे। महाप्रबंधक महेन्द्र कुमार के मुताबिक 60 रुपये टैरिफ वाउचर का उपयोग करने पर लोकल कॉल 30 पैसे प्रति मिनट, 130 रुपये के वाउचर पर लोकल कॉल 10 पैसे प्रति मिनट, 35 रुपये के वाउचर पर एसटीडी कॉल एक रुपये प्रति मिनट, 95 रुपये के वाउचर पर लोकल कॉल 30 पैसे व एसटीडी काल 60 पैसे प्रति मिनट तथा तीन सौ रुपये के वाउचर पर मुफ्त लोकल काल का लुत्फ लिया जा सकता है। स्पेशल टैरिफ वाउचर की वैधता अवधि 30 दिन होगी। बीएसएनएल के नार्मल प्रीपेड प्लान के ग्राहक इसका लाभ सी टॉपअप के जरिए ले सकते हैं।
Apr 03, देहरादून। परिवहन निगम ने चंडीगढ़ के बाद अब सात पर्वतीय मार्गो के लिए भी रिजर्वेशन व्यवस्था शुरू कर दी है। पर्वतीय मार्गो पर यात्रा करने वाले यात्री एक सप्ताह पूर्व आरक्षण करा सकते हैं। उत्तराखंड परिवहन निगम अब दिल्ली व चंडीगढ़ के बाद पर्वतीय मार्गो पर भी आरक्षण व्यवस्था लागू कर दी है। इसके तहत उत्तरकाशी, बड़कोट, पुरोला, बागेश्वर, गोपेश्वर, तिरपाली सैंण व बीरोंखाल जाने वाले यात्री एक सप्ताह पूर्व बसों के लिए रिजर्वेशन करा सकते हैं। यह बुकिंग फोन पर अथवा रेलवे स्टेशन के पास स्थित मसूरी बस डिपो में की जा सकती है। परिवहन निगम के उप महाप्रबंधक संचालन दीपक जैन ने बताया कि यात्रियों को बेहतर सुविधा देने के उद्देश्य से निगम ने यह कदम उठाया है।
आस्था का केंद्र है मां कोट भ्रामरी मंदिर
Apr 03, गरुड़ (बागेश्वर)। कत्यूर घाटी के बीचों बीच स्थित मां कोट भ्रामरी मंदिर श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्व का प्रमुख क्षेत्र है। मां नंदा सुनंदा के इस धार्मिक केंद्र में शुक्रवार को चैत्राष्टमी का विशाल मेला लगता है तथा श्रद्धालुओं द्वारा विशेष पूजा अर्चना की जाती है। समझा जाता है कि 2500 वर्ष ईसा पूर्व से लेकर वर्ष 700 तक यहां पर कत्यूरियां का शासन रहा। इस बीच काशगर, खोतान में दर्रो से भारत की सीमा में होने वाले लकुलीश, खस, कुषाण आदि वंशवलियों के साथ यहां प्रविष्ट हुए। इसी कत्यूरी राजाओं ने महत्वपूर्ण स्थानों में किले व गढ़ी की स्थापना की जिसमें कत्यूर घाटी में भी एक किला यहां स्थापित है। यहीं पर स्थित है मां भगवती मंदिर जिसमें मां नंदा की मूर्ति स्थापित है जो कि श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में मां नंदा की मूर्ति किसने स्थापित की यह इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। परंतु जन श्रुतियों के अनुसार कत्यूरी राजाओं की कुल देवी भ्रामरी व चंद वंशावलियों की प्रतिस्थापित नंदा देवी की पूजा अर्चना इस मंदिर में की जाती है। मंदिर में भ्रामरी रूप में देवी की पूजा अर्चना मूर्ति के रूप में नहीं बल्कि मूल शक्ति के अनुसार की जाती है। जबकि नंदा के रूप में इस स्थल पर मूर्ति पूजन, डोला स्थापना व विसर्जन का प्राविधान है। बुजुर्गो के अनुसार कोट के मंदिर में तोपाकार लोहे के टुकड़े यहां पर पड़े मिले। मंदिरों की देखरेख के लिए तत्कालीन राजाओं द्वारा यहां पर पुजारी व महंत नियुक्त किए गए थे जिनके वंशज आज भी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते है। यहां पर चैत्राष्टमी व भादो मास की अष्टमी में मेला लगता है जिसमें दूर दराज से श्रद्धालु मां की विशेष पूजा अर्चना करते हुए मन्नतें मांगते है तथा मन्नतें पूरी होने पर पुन: यहां पर पूजा अर्चना के लिए आते है।