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Saturday, March 12, 2011

विधान सभा घेरेंगे वकील : काशीपुर में उत्तराखंड अधिवक्ता महा सम्लें में हुआ फैसला


ग्रुप फोटो महिंदर पाल सिंह के साथ

मीडिया प्रभारी श्री शैलेन्द्र मिश्र का समान


किसी बात को लेकर खिल खिला कर हंस उठे काशीपुर बार अध्यक्ष उमेश जोशी
अगर इस बजट में वकीलों के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया तो वकील विधान सभा को घेरेंगे साथ में ही हाई कौर में हिंदी में भी जिरह करने के मामले को पर्मुखता से उठाया गया। मौका था काशीपुर बार ऐसोसेसन द्वारा आयोजित उत्तरखंड परदेश स्तरीय अधिवक्ता महा समेलन का और संबोधन करे रहे थे उत्तराखंड बार कौंसिल के परदेश अध्यक्ष और नैनीताल की पूर्व एम् पी डॉक्टर महिंदर पाल सिंह, वकीलों के खाचा खच भरे हाल में उत्तराखंड के हर जिले के बार पदाअधिकारी जहाँ पर मौजूद थे। स्थाई राजधानी के मुद्दे पर जम कर चर्चा हुई और यह भी कहा गया कि परदेश का कानून मंत्री एक वकील होना चाहिए। साधारण पर सधी हुई भाषा में बोलते हुए अद्वोकाते महिंदर पाल सिंह ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश रहा हो। अधिवक्ता लोगों ने ही क्रांति लाने में सहयोग किया है। उत्तराखंड आन्दोलन पर बोलते हुए महिंदर पाल ने कहा कि जब पूरा उत्तराखंड ही आन्दोलन में था यहाँ तक के माँ के पेट का बचा और हर अधिवक्ता तो किस बात के लिए चिन्हित करने का ड्रामा किया जा रहा है।
उत्तराखंड के हर व्यक्ति ने आन्दोलन किया है। बिना किसी लाग लपेटे के महिंदर पाल ने यह भी कहा का राजधानी का मसला दीख्सित आयोग न हो कर उत्तरखंड के आम आदमी का है। इस लिए बहार किसी भी व्यक्ति को राजधानी पर फैलसा देने का हक़ नहीं है।
इस मौके पर यह निर्णय लिया गया कि पहले तो परदेश के मुखमत्री से मिल कर वकीलों के लिए भी बजट की बात की जायेगी अगर नहीं माने तो विधान सभा घिराव किया जायेगा। उत्तराखंड राज्य अधिवक्ता महा संघ के परदेश अधिकाश गोविन्द सिंह भंडारी ने को मुख्मंत्री से समय ले कर बात करने की बात की गयी। श्री भंडारी ने कहा कि वोह पर्यास करेंगे वर्ना यह लड़ाई जारी रहेगी। अगला समेलन हरिद्वार में होगा इसकी घोषणा भी उत्तराखंड राज्य अधिवक्ता महा संघ के परदेश अधिकाश गोविन्द सिंह भंडारी ने की।
मीडिया परभारी श्री शैलेंदर मिश्रा ने बताया के इस अधिवेशन में उत्तराखंड के हर जिले और तहसील से अधिवक्ता प्रतिनिधि आये हुए हैं ।
मेहमानों को शाल ओदा कर स्वागत किया गया। जब कि बार के अध्यक्ष उमेश जोशी ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी का धन्यबाद दिया।
इस समेलन में हाई कोर्ट बार के अध्यक्ष बी डी कांडपाल, हल्द्वानी बार के सचिव गोविन्द सिंह बिष्ट, अध्यक्ष राम सिंह बसेड़ा, नैनीताल जिला बार के अध्यक्ष हरी शंकर कंसल, जसपुर बार के अध्यक्ष दिनेश कुमार शर्मा, पूर्व सचिव काशीपुर ॐ प्रकाश अरोरा आदि थे, संचालन सहरावत जी ने किया।
न्यूज़ से हट कर : इस प्रोग्राम की विडियो ग्राफी शिवानी फोटो स्तुदिओं काशीपुर ने की।
खाने के टाइम काफी भीड़ हो गई थी।
:: बीच बीच में रोका टोकी चलती रही
:: जापान में सुनामी में मारे गए लोंगो के लिए मौन रखा गया
:: दुसरे सेसन में सख्या कम थी
::: सजावट बहुत अच्छी थी
:: लास्ट में ग्रुप फोटो किया गया
::: कुल मिला कर प्रोग्रामी काफी सफल रहा
::: पिथोरगढ के बार अध्यक्ष शिरी भट्ट ने काफी हंसाया
::: और सबसे महत्वपूरण के इस मौके पर बार की वेबसाइट लौंच की गई
गलतियां : वेबसाइट में जन पार्टी निधिओं दुबारा दिए गए सन्देश में लिखा है बार अपनी वेबसाईड निकालने जा रही है यानी जैसे समाचार पत्र या मगज़ीन निकलती है

११.८७ लाख की लागत से सुधरेगी २३ पार्कों की दशा

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एचडीए ने शहर के विरान पड़े पार्कों की सुध ली है। इसके लिए हरितिमा मद के अंतर्गत शहर के सभी पार्कों की सूरत सुधारने की योजना बनाई गई है। इसके प्रथम चरण में पंचपुरी की विभिन्न कालोनियों के २३ पार्कों को लिया गया है।
प्रथम चरण का कार्य पूरा होने के बाद द्वितीय चरण में अन्य पार्कों को लिया जाएगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए पार्कों में पौधारोपण का कार्य भी किया जाएगा। अभी शहर में विकसित कालोनियों में बच्चों के खेलने तथा वृद्धजनों के बैठने के लिए घर के नजदीक खुला सार्वजनिक स्थान नहीं है। एचडीए ने पार्कों का सौंदर्यीकरण कर ऐसा स्थान उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है। अगले छह माह से पहले ही पार्कों का विकास कार्य पूरा करा लिया जाएगा।
एचडीए ने प्रथम चरण में जिन २३ पार्कों को हरितिमा योजना में सौंदर्यीकरण के लिए लिया है, उनमें भूपतवाला क्षेत्र में श्यामलोक कालोनी में तीन, सत्यम विहार कालोनी में दो, मध्य हरिद्वार में विवेक विहार कालोनी में चार, गोविंदपुरी में दो, शिवलोक कालोनी में दो, मीना एंकलेव में दो, बिल्वकेश्वर कालोनी, ललतारौ, नया हरिद्वार, भीमगोडा, नंद विहार कालोनी, मयूर विहार कालोनी, कनखल में गुरुबख्श विकार कालोनी एवं हिमगिरि (विष्णु गार्डन) कालोनी का एक-एक पार्क शामिल हैं। एचडीए ने पार्कों के विकास करने वाले ठेकेदारों ने से एक साल तक रखरखाव भी करने का अनुबंध करने का निर्णय लिया है।
सौंदर्यीकरण योजना में पार्कों की मरम्मत, उद्यानीकरण, लॉन, रंगाई-पुताई तथा पौधारोपण शामिल किया गया है। इसके प्रथम चरण में चयनित २३ पार्कों के विकास पर ११ लाख ८७ हजार की लागत आने का अनुमान है। चंद्रशेखर भट्ट, उपाध्यक्ष एचडीए  
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अर्थक्वेक रिकार्डर से जगी अब नई आस

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आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों की योजना परवान चढ़ी तो भविष्य में अर्थक्वेक रिकार्डर का इंडियन डाटाबेस उपलब्ध हो सकेगा। इसके लिए देशभर में संवेदी उपकरण लगाए गए हैं, जिससे पिछले तीन साल के भीतर ३०० से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। अब योजना के एक्सटेंशन से आईआईटी वैज्ञानिकों को नई आस जगी है।
अर्थक्वेक संबंधी मानकों और विभिन्न कार्यों के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को फिलहाल विदेशी डाटाबेस पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इसमें सबसे अधिक डाटाबेस जापान के पास उपलब्ध हैं, जहां दो लाख से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। इंडिया में डाटाबेस का अभी तक अभाव था। इसके लिए मिनिस्ट्री ऑफ अर्थसाइंस ने तीन साल पहले आईआईटी रुड़की अर्थक्वेक इंजीनियरिंग विभाग को प्रोजेक्ट दिया था। इसके तहत देश के विभिन्न शहरों में लगभग ३०० अर्थक्वेक रिकार्डर (संवेदी उपकरण) लगाए गए थे। जहां अब तक ३०० से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। भारत के विभिन्न स्थानों पर रिकार्ड किए गए अर्थक्वेक डाटाबेस से वैज्ञानिक भी उत्साहित है। ऐसे में मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस ने प्रोजेक्ट को एक्सटेंशन भी दे दिया है। इससे वैज्ञानिकों में भी नई आस जगी है।
प्रोजेक्ट के कोऑर्डिनेटर और आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो. अशोक कुमार का कहना है कि भारत के पास अर्थक्वेक रिकार्ड संबंधी डाटाबेस का अभाव है। ऐसे में यह प्रोजेक्ट इस दिशा में काफी अहम है। उनका कहना है कि फिलहाल हम जापान सहित दूसरे देशों के डाटाबेस पर ही कार्य कर रहे हैं, लेकिन अब इंडियन डाटा से इसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकेगा। 
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रोड़ी बेचकर रोटी की जुगत में बचपन

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यूं तो छुट्टी का दिन बच्चों के लिए मौज-मस्ती का होता है। पूरा दिन उनका उछल कूद में ही व्यतीत होता है, लेकिन मासूम अनिल, सुरेश के लिए तो यह दिन खास हो जाता है। अवकाश के दिन वह सुबह हथोड़ी लेकर घर से निकलते है और बैठ जाते है किसी गदेरे या नदी किनारे जहां वह पत्थर तोड़कर रोड़ी तैयार करते हैं। इन्हें बेचकर वह करते हैं दो जून की रोटी का बंदोबस्त। यह सिर्फ अनिल व सुरेश की कहानी नहीं, बल्कि ऐसे कई गरीब मासूमों को पत्थर तोड़ते देखा जा सकता है।
पेट की भूख बड़ों को ही नहीं छोटों को भी कड़वी हकीकत का अहसास करवा देती हैं और जब भूख होती है तो पत्थरों में भी रोटी तलाशी जाती है। नैलचामी, सौंदाणी, थाती, खरसाड़ा, धोलधार, इडियाल, कोटग आदि जगहों पर ऐसे कई मासूम आपकों नदी, गदेरों या सड़कों के किनारे पत्थर तोड़ते दिख जाएंगे। इनमें ऐसे भी हैं जिनकी उम्र महज सात-आठ साल होगी। इनमें मजदूर, अनसूचित जाति व गरीबों के बाल्य शामिल हैं। यूं तो स्कूल से छुट्टी के बाद भी वह खेलने के बजाए इस कार्य में जुट जाते हैं, लेकिन छुट्टी के दिन दिनभर वह पत्थर तोड़कर रोड़ी तैयार करते हैं। एक कट्टा रोड़ी 20 से 30 रुपये तक बिक जाता है और दिन के हिसाब से करीब 60 से 70 रुपये तक कमा लेते हैं। पत्थर तोड़ते कई बार उंगलियां भी चोटिल हो जाती है, लेकिन इसकी उन्हें परवाह नहीं। चोट पर कपड़े का टुकड़ा बांधकर फिर अपने काम में लग जाते हैं। महिलाएं व बुजुर्ग भी इस काम में लगे हैं। उन्हें अपने बच्चों से यह सब कराना अच्छा नहीं लगता है, लेकिन पेट की खातिर बच्चे अपने परिजनों का हाथ बंटा रहे हैं।
कोटगा के कक्षा नौ में पढ़ने वाला छात्र सुरेश गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है। उसके पिता मजदूरी करते हैं, जबकि घर में कुल छह सदस्य हैं। उसका कहना है कि स्कूल की फीस व घर के खर्चे के लिए यह सब करना पड़ता है। वह एक दिन में तीन कट्टा रोड़ी तोड़ लेता है। नैलचामी अनिल अभी पांचवी कक्षा में पढ़ता है। उसका परिवार गरीब है और अपने परिवार के साथ व इस कार्य में हाथ बांटता है, जबकि थाती के सुरेश का कहना है कि घर में पढ़ने वाले हैं, इसलिए फीस व कापी, किताब के लिए वह यह सब करता है।
सुरेश के पिता गबरू व मोहनलाल का कहना है कि बच्चे भी घर की परिस्थितियां समझते हैं, इसलिए उनके साथ बच्चे में इस कार्य में हाथ बाटते हैं। यह सब अच्छा नहीं लगता है, लेकिन मजबूरी उन्हें इसके लिए विवश करती है।
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