अंडा यदि एक हजार रुपये की दर से बिके तो पालक की पौ-बारह होनी तय है। जी हां, उत्तराखंड ईमू पक्षी पालन के जरिए इस संभावना को खंगाल रहा है। औषधीय गुणों की वजह से ईमू पक्षी का अंडा ही नहीं, उसके अन्य अंग भी बहुमूल्य हैं। यह कदम कारगर रहा तो पहाड़ों में बढ़ रहे पलायन को थामने में भी मदद मिलेगी।
शुतुरमुर्ग की तरह विशालकाय ईमू पक्षी उत्तराखंड में रोजगार का जरिया बन सकता है। कोलेस्ट्राल फ्री ईमू के अंडे, मांस, चर्बी और अन्य अंग लोगों की सेहत के नजरिए से लाभकारी हैं। ईमू पालन उत्तराखंड में रोजगार का अच्छा-खासा जरिया बन सकता है। मूल रूप से आस्ट्रेलियन पक्षी ईमू फिलहाल दक्षिण भारत में किसानों तथा उद्यमियों का चहेता बना हुआ है। करीब आधे किलो वजन के इसके अंडे से दस से अधिक आमलेट बन सकते हैं। कोलेस्ट्राल फ्री ईमू के अंडे की सबसे अधिक मांग फाइव स्टार समेत बड़े होटलों में है। इसका मांस भी कोलेस्ट्राल फ्री है। ईमू की चर्बी का तेल 4500 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। ईमू के नाखून, पंख, चमड़े से लेकर हर अंग कीमती और उपयोगी हैं। इस आस्ट्रेलियन पक्षी की खासियत है कि यह शून्य से 45 डिग्री तापमान में रह सकता है।
हाल में उत्तराखंड के कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महाराष्ट्र स्थित डा. गाडगे ईमू फार्म का दौरा किया था। उनके साथ उत्तराखंड मूल के उद्यमी कुंवर सिंह पंवार भी थे। कुंवर सिंह पंवार ने पाली एग्रो के जरिए पहाड़ में युवाओं को ईमू पालन से जोड़ने का लक्ष्य बनाया है। यह सोसाइटी ईमू पालक के घर से ही एक हजार रुपये प्रति अंडे की दर से खरीद लेगी। ईमू से संबंधित सभी उत्पादों की मार्केटिंग पाली एग्रो करेगी। सोसायटी ईमू का एक जोड़ा विकासनगर में पाल रही है।
जिन राज्यों में ईमू पालन उद्यम के रूप में अपनाया गया है, वहां नाबार्ड ईमू पालकों को 25 प्रतिशत की सब्सिडी दे रहा है। उत्तराखंड में यदि राज्य सरकार भी इतनी ही सब्सिडी देने को तैयार हो जाए तो पालकों के लिए यह रोजगार का बढि़या अवसर साबित हो सकता है।
ईमू पक्षी की खासियत यह है कि इसमें मुर्गी की तरह किसी बीमारी की संभावना नहीं के बराबर होती है। सिर्फ दो महीने तक बच्चे की विशेष देखभाल करनी पड़ती है, ताकि उसकी लंबी टांगें टूटने से बची रहें। डेढ़ साल की उम्र से यह अंडा देने लगती है और चालीस साल तक अनवरत देती रहती है। जहां तक दाने का सवाल है मुर्गी दाना और हरी घास आदि इसके लिए पर्याप्त है। यही वजह है कि उत्तराखंड में ईमू पालन को रोजगार के एक बेहतर आप्शन के रूप में देखा जा रहा है।
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