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Saturday, October 23, 2010

हरिद्वार से पटना तक नावों से गंगा अभियान

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साहसिक खेलों को बढ़ावा देने और गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश पुलिस स्पोर्टस श्रृंखला के तहत हरिद्वार से पटना तक गंगा अभियान का आयोजन किया गया है। आगामी 24 अक्टूबर से 21 नवम्बर तक चलने वाले गंगा अभियान को उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक ज्योति स्वरूप पांडे हरिद्वार में हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे।
उत्तर प्रदेश पुलिस स्पोर्टस कंट्रोल बोर्ड के सचिव और पुलिस महानिरीक्षक (पीएसी) अरूण कुमार ने शुक्रवार को कहा कि साहसिक खेलों को बढ़ावा देने, गंगा नदी को प्रदूषण से मुक्त रखने और पर्यावरण संरक्षण इस अभियान का मुख्य लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक 11 फाइबर की बनी नावें (क्याक) और कैनों को हरी झंडी दिखाएंगे।
गंगा अभियान को (निर्मल गंगा अविरल प्रवाह) का नाम दिया गया है। हरिद्वार से शुरू होकर यह अभियान गढ़ मुक्तेश्वर, बुलंदशहर, फतेहगढ़, कन्नौज.कानपुर, उन्नाव, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, मिर्जापुर, विंध्याचल, चुनार, वाराणसी होते हुए पटना के वंशघाट पर खत्म होगा।
अरूण कुमार ने कहा कि तेरह सौ किलोमीटर की दूरी 27 दिन में गंगा के 26 घाटों पर रूकेगी। गंगा अभियान के दूसरे चरण में रोइंग नाव का इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि गंगा अभियान का दूसरा चरण वाराणसी से पटना तक का होगा। वाराणसी से अभियान की शुरूआत आगामी 16 नवम्बर को होगी। पटना में खासपुर इलाके के वंशघाट पर अभियान खत्म होगा। घाटों पर विराम में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन होगा। उन्होंने कहा कि सुरक्षा के लिए पीएसी की मोटर वोट भी साथ साथ चलेगी।
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पुलिसवालों को मिल सकता है दीवाली का तोहफा

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मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ पुलिसवालों के लिए दिल्ली पुलिस के समान वेतन और सुविधाओं की घोषणा कर सकते हैं। पुलिस मुख्यालय ने दिल्ली के समकक्ष वेतन के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा है। राज्य के 21 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को उम्मीद है कि गुरुवार को सीएम दीवाली के तोहफे के रूप में स्मृति परेड पर यह घोषणा कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके पास ऐसा प्रस्ताव आया है जिस पर विचार किया जा रहा है।

उत्तराखंड पुलिस में कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर संवर्ग तक लगभग 21 हजार पांच सौ पुलिसकर्मी हैं। इनमें सर्वाधिक 17 हजार से अधिक कांस्टेबल हैं। छठा वेतन मिलने से पहले दिल्ली और उत्तराखंड पुलिस के कांस्टेबल और इंस्पेक्टर का वेतन समान था, लेकिन इसके लागू होते ही इसमे अंतर आ गया। दोनों का पे स्केल समान है, परंतु पे बैंड में अंतर है।
हालांकि उत्तराखंड में कांस्टेबल भर्ती के लिए शैक्षिक योग्यता हाईस्कूल है, जबकि दिल्ली में इंटरमीडिएट निर्धारित है, लेकिन यह कोई बड़ा सवाल नहीं है। क्योंकि उत्तराखंड में योग्यता हाईस्कूल होने के बावजूद 90 फीसदी अभ्यर्थी इंटर, स्नातक व स्नात्तकोतर कांस्टेबल में भर्ती होते हैं। दिल्ली में सब इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर का पे बैंड अलग -अलग है, जबकि उत्तराखंड में दोनों का समान है, जिससे यहां के इंस्पेक्टर दिल्ली के पुलिस इंस्पेक्टर के कम वेतन पाता है।

इस असमानता को दूर करने के लिए पुलिस मुख्यालय ने शासन को प्रस्ताव भेजा है। इसके अलावा मुख्यालय ने ग्राम चौकीदारों का मानदेय 200 से एक हजार और थाने व चौकियों के सफाईकर्मियों का मानदेय प्रतिमाह तीन सौ से एक हजार रुपये करने का आग्रह किया है। गुरुवार को पुलिस लाइन में आयोजित स्मृति परेड पर सीएम शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि देंगे। इस मौके पर वे पिछले साल की तरह पुलिसकर्मियों को दीवाली के तोहफे के रूप में कुछ घोषणाएं कर सकते हैं।

दिल्ली पुलिस
संवर्ग पे स्केल ग्रेड पे
कांस्टेबल  5200-20200 2000
हेड कांस्टेबल 5200-20200 2400
एएसआई 9300-34800 4200
इंसपेक्टर 9300 -34800 4600

उत्तराखंड पुलिस

संवर्ग  पे स्केल ग्रेड पे
कांस्टेबल 5200-20200  1900
हेड कांस्टेबल 5200-20200 2000
एएसआई 9300-34800 4200
इंस्पेक्टर 9300-34800 4200
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Monday, October 18, 2010

आई विल मीट यू ऑन मार्स इन 2030

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'आई विल मीट यू ऑन मार्स इन 2030'। दून पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कुछ इसी तरह किया बच्चों से मंगल पर मिलने का वादा। यूनेस्को की ओर से आयोजित 'घुमक्कड़ नारायण' कार्यक्रम के समापन समारोह में पहुंचे डॉ. कलाम बच्चों के बीच भाव-विह्वल नजर आए। उन्होंने एक पिता की तरह बच्चों के साथ चर्चा की और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने बच्चों से उनकी रुचियों के बारे में पूछा तो बच्चों ने चाचा कलाम से मंगल ग्रह पर जाने की इच्छा जताई। इस पर उन्होंने कहा कि भारत इस ओर से तेजी से आगे बढ़ रहा है और अगले दो दशक में हम इसमें सफल हो जाएंगे।
रविवार को राजधानी के एक स्कूल में आयोजित समारोह में आयोजित उक्त कार्यक्रम में भाग लेने आए डॉ. कलाम बच्चों के साथ अपने पुराने रूप और चिर-परिचित अंदाज में ही दिखे। बच्चों के बीच उनके चेहरे की चमक, उत्साह और बच्चों के साथ उनके सीधे संवाद का अंदाज देखने लायक था। उन्होंने बच्चों से पूछा कि वे किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं तो बच्चों के जवाब से लगा कि अधिकांश की रुचि मेडिकल व इंजीनियरिंग में है, राजनीति में जाने वाले भी काफी छात्र हैं, पर शिक्षक बनने में किसी की रुचि नहीं है। डॉ. कलाम के एक सवाल पर पूरे पंडाल के हाथ हवा में नजर आए। यह सवाल था कि चांद व मंगल पर कितने छात्र जाने चाहते हैं तो हर किसी ने इच्छा जताई। इस सवाल पर डॉ. कलाम ने कहा कि 'आई विल मीट यू ऑन मार्स इन 2030'। इस पर पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। डॉ. कलाम ने कहा कि भारत तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है और अगले 20 वर्षो में हमारी पहुंच मंगल तक होगी।
उन्होंने बच्चों को सफलता के चार सूत्र बताए-आम आदमी की तरह जीना, लगातार ज्ञान प्राप्त करना, कठिन परिश्रम व जीतने की चाह। उन्होंने बच्चों से वादा कराया कि देश का भविष्य मजबूत बनाने के लिए छात्र इनका पालन करेंगे।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि पुस्तकें किसी भी व्यक्ति की सबसे अच्छी साथी होती हैं। उन्होंने पंडाल में मौजूद छात्र व उनके अभिभावकों को शपथ दिलाई की वे अपने घरों में कम से कम 20 किताबों की एक लाइब्रेरी स्थापित करेंगे। इस दौरान डॉ.कलाम ने बच्चों के कई सवालों के जवाब दिए, स्कूल को बच्चों के लिए किताबें भेंट कीं और कहा कि व्यक्ति, समूह, समाज या संप्रदाय से बढ़कर है देश। इसलिए आगे बढ़ो और देश के लिए काम करो।
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सुदर्शन सिंह रावत |  
शायद कम ही  लोग  जानते 1990 के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय में हरक  सिंह  रावत शिक्षक रहते ही  राजनीति को अपना पेशा बना चुके थे। तब  कवि और  पत्रकार आज के  मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक व  विपक्ष  के  नेता  हरक सिंह  रावत  में घनिष्ट  दोस्ती   होने  के कारण  कभी -कभी विपक्ष  व सत्ता  के  नेता पहले तो यह बात भाजपा और कांग्रेस के भीतर खुसफुसाहट के रुप में कही जा रही थी उनके और मुख्यमंत्री के बीच  कोई  गुप्त संधि तो नहीं  हैं राजनिती   में पुराने बातो को  खूब  उछाला  जाता  है  हरक  सिंह रावत  स्कूटर  के  आगे और उनके  पीछे की सीट पर आज के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हुआ करते थे। लेकिन वक्त ने करवट बदली और आज मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक  आगे और उनके  पीछे की सीट हरक सिंह रावत  दोनों  स्कूटरिया यार निशंक को भाजपा आलाकमान ने उत्तराखंड को चलाने का जिम्मा सौंप दिया। हरक सिंह के पास विधानसभा के भीतर कांग्रेस को चलाने का भार है। स्कूटर वाली दोस्ती कायम है। इसे कहते हैं सच्ची  दोस्ती! सीटें बदल गईं पर दोस्ती नहीं बदली। प्रदेश हैरान है। पौड़ी विधानसभा क्षेत्र से राजनीति शुरु करने वाले हरक सिंह रावत । राजनिती  के  उस्ताद माने जाते। पहले मनोहर कांत ध्यानी फिर बीसी खंडूड़ी की उंगली थाम कर भाजपा की राजनीति में ऐसे जमे कि भाजपा के भीतर कईयों को उनसे खतरा महसूस होने लगा। बीजेपी की नई पीढ़ी के नेताओं में उन्होने सबको पीछे छोड़ दिया। उनकी महत्वाकांक्षाओं को भांप रहे नेताओं ने उन्हे भाजपा से बाहर करवा दिया।भाजपा से निकलकर उन्होने सतपाल महाराज की उंगली थामी और 1996 के लोकसभा चुनाव में उनकी सोशल इंजीनियरी और चुनावी तिकड़मों ने मिलकर भाजपा के जनरल को चित कर दिया। सतपाल महाराज को राजनीति में भी चेले चाहिए या फिर भक्त। वह खुद ही गढ़वाल में ठाकुर राजनीति के कर्णधार होना चाहते थे हरक सिंह राजनीति में महाराज का संप्रदाय बनाने तो नहीं आए थे। वह गढ़वाल विवि की शिक्षक राजनीति के गुरुकुल में प्रशिक्षित थे। गुरु को गुड़ बनाए रखने व खुद शक्कर बन जाने की टेक्नोलॉजी में दक्ष हरक सिंह सतपाल के कंधे पर सवार होकर राजनीति में लंबी छलांग मारने को आतुर थे। लिहाजा ठाकुर क़ी यह हिट जोड़ी भी टूट गई। हरक सिंह बसपा में गए और वहां भी उन्होने अपना लोहा मनवाया। एक दशक से ज्यादा समय तक राजनीति में घुमक्कड़ की तरह इधर उधर आते जाते रहे हरक फिर कांग्रेस में पहुंचे तो वहां उन्होने डेरा जमा लिया।अदम्य महत्वाकांक्षा और दबंग राजनीति हरक की राजनीति की बुनियादी ताकत है। अपने समर्थकों के लिए किसी से भी भिड़ जाने की उनकी खासियत से ही उनके पास कुछ कर गुजरने वाले समर्थकों की पल्टन है। राजनीति की यह खासियत ही उनकी सीमा भी है।उनके विरोधी भी उतने ही कट्टर हैं जो किसी भी कीमत पर उन्हे आगे नहीं आने देना चाहते। इसीलिए विवादों से उनका पुराना नाता रहा है। पटवारी भर्ती कांड, जेनी कांड समेत कई विवादों से घिरे हरक अब भूमि घोटाले में घिर गए हैं। मुख्यमंत्री के सबसे तगड़े दावेदार माने जा रहे हरक सिंह रावत को दौड़ से बाहर करने के लिए इनके  विरोधी  इसे साजिस की  तरह  उछाला जा सकता  है |
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