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Monday, November 22, 2010

मनरेगा नहीं अफसरों की मलाई

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मनरेगा नहीं अफसरों  की  मलाई
सुदर्शन सिंह रावत | पौड़ी गढ़वाल  नैनीडांडा प्रखंड के अंतर्गत ग्रामपंचायत को  मनरेगा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। जिन ग्रामीणों ने कार्य किया भी, कई माह बीतने के बाद भी उन्हें मजदूरी भुगतान नहीं हो पाया है। ग्रामीणों ने खंड विकास अधिकारी से मनरेगा के तहत वर्ष भर रोजगार उपलब्ध कराने व पूर्व में किए गए कार्यो की मजदूरी का भुगतान करने की मांग की है  अधिकारियों  कि  लापर वाही है ! कि  मनरेगा  कानून को लागू हुए इतना समय हो गया है कि कई गरीब मजदूरों की मौत भूख से हो गई तो कई ने इसे पाने के लिए अपनी जिन्दगी ही गवां दी बाकी बचे भी तो, इसे प्रधान की रहमत ही समझते हैं । क्योंकि मजदूर/ग्रामीण लोग आज भी इस कानून से अनजान हैं और इसे अन्य योजनाओं की तरह ही समझते हैं जो सिर्फ ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव की झोली तक ही सिमट कर रह जाती है। इनकी झोली तक जिसका हाथ पहुंच गया वही पा सकता है  नैनीडांडा  ग्राम विकास के  कई  गांव के ग्रामीण/ मजदूरों के साथ एक बैठक करने का मौका मिला जिसमें मनरेगा  के मुद्दे पर चर्चा हुयी । लोगों के दिलों में तमाम सवाल थे जैसे-
१-  जॉबकार्ड प्रधान नहीं बना रहे हैं तो हम क्या करें ?
२- जॉबकार्ड बन भी जाता है तो काम नहीं मिलता है क्योंकि प्रधान जिसको चाहते हैं उन्हीं लोगों को काम देते हैं।
३-  काम करते हैं तो मजदूरी नहीं मिलती है इसके लिए किसके पास जाये या शिकायत करें ?
४- अगर प्रधान काम भी देते हैं तो ऐसे मौके पर जब हम अपने कृषि   कामों को कर रहे होते हैं ?
५- जॉबकार्ड कहाँ और कैसे बनवायें ?
६- काम पाने के लिए हम क्या करे ?
7 जॉबकार्ड प्रधान अपने पास ही रखे है ?
८- ग्राम पंचायत मित्र बिना प्रधान के कोई काम नहीं करते हैं ? इसकी शिकायत किससे करें ?
९- हम तो अनपढ़ हैं तो हम अपने जॉबकार्ड बनवाने के लिए कैसे आवेदन लिखें ?
१०- अगर हम गरीबी रेखा के नीचे नहीं है तो क्या हम काम नहीं कर सकते हैं ? हमारा जॉबकार्ड नहीं बनेगा ?
इन तमाम सवालों के जवाब में मैंने बताया कि पहली बात तो यह है कि यह कोई योजना नहीं है कि सरकार की तरह नहीं है कि बनती बिगड़ती रहती है बल्कि यह एक कानून है जो सरकारें बदलने पर भी नहीं बदलेगा ।इसमें किसी गरीब और अमीर का भेदभाव नहीं है भेदभाव है तो ! बस, इस बात का , कि कौन काम करेगा और कौन नहीं करेगा, जो काम करेगा उसे काम मिलेगा तथा जो नहीं करना चाहता है उसे काम नहीं मिलेगा । प्रधानों, ग्राम पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, सरकारी अफसर, सरकारें जरूर एक न एक दिन चली जानी हैं लेकिन यह कानून को कहीं नहीं जाना है सिवाय ग्रामीण/ मजदूरों के पास ।
रही बात कि जॉबकार्ड बनने कि तो यह प्रधान के घर का कागज नहीं है और न ही उसकी रबड़ स्टैम्प है जो उसकी मर्जी के बिना नहीं लगेगी ! यदि प्रधान आपका जॉबकार्ड नहीं बना रहे हैं तो आप एक सादे कागज पर जॉबकार्ड बनवाने का आवेदन लिखें और उस पर उन मजदूरों का नाम और हस्ताक्षर करायें जो जॉबकार्ड बनवाना चाहते है। फिर इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को दें । आवेदन पत्र देने की रसीद जरूर ले लें । यदि आप आवेदन लिखना नहीं जानते हैं तो यह जिम्मेदारी खण्ड विकास अधिकारी की है कि वह स्वयं या अपने सहयोगी से आपका जॉबकार्ड बनाने का फार्म भरे और फोटो खिचवाकर लगवाये । आपको अपने पास से फोटो का पैसा नहीं देना होगा । आपका जॉबकार्ड जब बन जायेगा तो आपको सूचित या आपके घर पहुंचा दिया जायेगा ।
जॉबकार्ड बनने के बाद आप एक आवेदन काम के लिए लिखें और उस पर भी उन मजदूरों का नाम, हस्ताक्षर समेत लिखें जो काम करना चाहते हैं और इसे ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र, ग्राम सचिव, या खण्ड विकास अधिकारी को प्राप्त करा दें साथ में प्राप्ति रसीद जरूर ले लें यह रसीद आप को काम न मिलने के बाद मजदूरी भत्ता दिलाने के लिए मदद करेगी। यदि आपको काम का आवेदन देने के 15 दिनों तक काम नहीं मिलता है तो आप मजदूरी भत्ता पाने के हकदार उस तारिख से हो जायेगें जिस तारीख में आपने काम के लिए आवेदन/अर्जी दी है । यह भत्ता मजदूरी का एक चैथाई यानी 25 रूपये 30 दिनों तक मिलेगा इसके बाद भी काम न देने पर यह भत्ता एक चैथाई से बढ़कर मजदूरी का आधा यानी 50 रूपये प्रतिदिन हो जायेगा और यह तब तक मिलेगा जब तक काम नहीं मिलता है । इस कानून में यह भी प्रावधान है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूर अपने खेतों को सुधारने के लिए भी आवेदन कर सकते हैं और उन्हें भी पूरी मजदूरी यानी 100 रूपये मिलेंगें । इसमें महिला, पुरूष, विकलांग, बृद्ध भी काम कर सकते हैं और उन्हें भी 100 रूपये ही मजदूरी मिलेगी । इसमें अन्य योजनाओं की अपेक्षा अनेक सुविधाएं भी हैं जो मजदूरी करने वाले मजदूर के लिए उपयोगार्थ हैं जैसे-छाया, पानी, आंगनबाड़ी, चिकित्सा, मुआवजा आदि ।
 कुछ ग्रामीण ने  सवाल  किया   कि जॉबकार्ड तो प्रधान जी के पास है उन्हें हम कैसे लें ।  जॉबकार्ड प्रधान, ग्राम पंचायत मित्र, सचिव या कोई अन्य व्यक्ति बिलकुल नहीं रख सकता है सिवाय मजदूर के ! और अगर आपके जॉबकार्ड प्रधान के पास हैं  और देने  के लिए  मना करता  है !  तो आप धारा 25 के तहत प्रधान के खिलाफ एफ0आई0आर0 कर सकते हैं । रही बात काम के समय की तो आप जब अपने कृषि कामों से खाली हों तो आप काम का आवेदन देकर काम मांग सकते हैं और आपको काम मिलेगा । अब मजदूरी का पैसा आपके बैंक खाते में आयेगा अगर मजदूरी नहीं मिलती है तो आप सीधे ग्राम्य विकास आयुक्त से इसकी शिकायत कर सकते हैं। बस जरूरत है तो सिर्फ हौसला आफजाई करने वालों की, समाजसेवियों की, समाज के जागते हुए लोगों की, जो इनकी दिमाग  और दिल से यह भरम निकालें कि यह कानून नेताओं, सरकारी कर्मचारियों का नहीं जो हमारे नौकर हैं बल्कि काम करने वाले मजदूरों का हक है न कि प्रधान की रहमत?
नरेगा के लिए टॉल फ्री सहायता सेवा
        * नई दिल्‍ली में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा के अंतर्गत आने वाले परिवारों और अन्‍य के लिए एक राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन सेवा शुरू की है जिससे ये लोग कानून के तहत अपने अधिकारों के संरक्षण और कानून के समुचित क्रियान्‍वयन व योजना संबंधी मदद ले सकें।
        *    टॉल फ्री हेल्‍पलाइन नबंर है: 1800110707

Sunday, November 21, 2010

हाथियों के डर से सहमा दूरदर्शन केंद्र

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 हाथियों के डर से सहमा दूरदर्शन केंद्र
आए दिन हाथियों के उत्पात से जूझ रहे ग्रास्टनगंज स्थित दूरदर्शन रिले केंद्र को अन्यत्र विस्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। इसके लिए क्षेत्र में उपयुक्त भूमि की तलाश भी जोरों पर है।
क्षेत्रीय जनता की मांग पर वर्ष 1994 में यहां ग्रास्टनगंज स्थित खाम बंगले के समीप कोटद्वार में दूरदर्शन रिले केंद्र की स्थापना की गई। पिछले 15 वर्षो से सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन पिछले छह माह से केंद्र में हाथियों का उत्पात जोरों पर है।

वर्तमान में दूरदर्शन रिले केंद्र में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब हाथी केंद्र में न घुसते हों। गत 12 नवंबर की शाम हाथियों ने केंद्र में घुसकर न सिर्फ जमकर तोड़फोड़ की, बल्कि केंद्र के चारों ओर लगी तारों को उखाड़ फेंका। केंद्र में मौजूद कर्मचारियों ने किसी तरह कमरों में दुबक कर अपनी जान बचाई।

केंद्र में हाथियों के लगातार बढ़ रहे उत्पात के चलते अब केंद्र के अधिकारियों ने दूरदर्शन केंद्र को अन्यत्र शिफ्ट करने की योजना बनाई है। सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में मुख्यालय को प्रस्ताव भी भेज दिया गया है। साथ ही क्षेत्र में केंद्र स्थापना के लिए भूमि की तलाश भी की जा रही है।

कार्बेट नेशनल पार्क व राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के मध्य में अवस्थित होने के कारण लैंसडौन वन प्रभाग की कोटड़ी, कोटद्वार व लालढांग रेंज को हाथी बतौर कॉरीडोर प्रयोग करते हैं। दूरदर्शन रिले केंद्र जंगल में स्थित है, इसलिए वहां हाथियों की आवाजाही को नहीं रोका जा सकता है। ऐसे में केंद्र को अन्यत्र विस्थापित करना ही एकमात्र विकल्प है। ..नरेंद्र सिंह चौधरी, प्रभागीय वनाधिकारी, लैंसडौन वन प्रभाग
केंद्र में हाथियों का आतंक बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे कर्मचारियों की जान को भी खतरा पैदा हो चला है। केंद्र में हाथियों के उत्पात के संबंध में मुख्यालय को सूचना भेज दी गई है। मुख्यालय से जारी निर्देशों के आधार पर आगे की कार्यवाही की जाएगी|

 jagran se sabhar
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