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Saturday, August 6, 2011

उत्तराखंड को हर्बल प्रदेश बनाने के लिए गोष्टी आयोजित

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सोनिया
रावत : उत्तरकाशी में विकास इकाई उत्तरकाशी की ओर से जड़ी बूटी दिवस पर आयोजित गोष्ठी में विशेषज्ञों ने जड़ी बूटियों से निर्मित दवाओं के उपयोग के संबंध में चर्चा की। साथ ही उनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए काश्तकारों को प्रेरित भी किया।

शुक्रवार को जिला पंचायत सभागार में आयोजित गोष्ठी का शुभारंभ जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान ने किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा में भी प्रदेश को हर्बल प्रदेश बनाने की है। उन्होंने कहा सभी काश्तकारों इस दिशा में काम करना चाहिए। अतिथि प्रदेश सह संयोजक आयुष डॉ। चंडी प्रसाद ले जड़ी-बूटी मिशन को सफल बनाने के लिए कृषकों से अनुरोध किया गया जड़ी बूटियों के संरक्षण एवं संवर्धन के संबंध में तथा जड़ी बूटियों से निर्मित दवाओं के उपयोग के बारे में जानकारी दी। इस दौरान सीडीओ ने भेषज विकास जड़ी बूटी कृषिकरण कार्य को मनरेगा के अंतर्गत कराने के लिए भेषज विकास इकाई के अधिकारियों से प्रस्ताव उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। कोट के उत्साही काश्तकार कमल सिंह को जड़ी बूटी के कृषिकरण में अच्छे योगदान के लिए एक हजार रुपये दिए गए।

बैंकों के हड़ताल से अरबों रुपये का कारोबार प्रभावित

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दीपिका जोशी | नैनीताल : यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियनों के राष्ट्रीय आह्वान पर शुक्रवार को जिलेभर में डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व सहकारी बैंकों में कामकाज ठप रहा। बैंक कर्मी निजीकरण व आउट सोर्सिग के विरोध में सड़क पर उतर आए है। हड़ताल के चलते नैनीताल जिले में अरबों रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ।
फोरम के राष्ट्रीय आह्वान पर विभिन्न बैंकों के कर्मचारी नैनीताल में मल्लीताल स्टेट बैंक की मुख्य शाखा के समीप एकत्र हुए और इसके बाद नारेबाजी के साथ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों के विरोध में जोरदार नारेबाजी की। वक्ताओं ने कहा केंद्र सरकार बैंकों के निजीकरण पर आमादा है। उन्होंने बैंकों के निजीकरण पर पूरी तरह रोक लगाने तथा आउट सोर्सिग से नियुक्तियों पर विरोध जताया और मृतक आश्रितों व अन्य रिक्त पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की मांग उठाई।
बैंक कर्मियों ने चेताया कि यदि 22 सूत्रीय मांगों पर सार्थक कार्रवाई नहीं की गई तो बेमियादी हड़ताल शुरू कर दी जाएगी। प्रदर्शन में कर्मचारी नेता कैलाश आर्य, बलबीर सिंह, गिरीश जोशी, यूडी जोशी, पुष्पा तोमर, प्रवीण बिष्ट, उप्रेती, संतोष जोशी, केएन पंत, गोपाल जोशी समेत अन्य बैंक कर्मी शामिल थे। उत्तराखंड बैंक इंपलाइज यूनियन के प्रांतीय महामंत्री प्रवीण साह ने हड़ताल को सफल बताया। उधर स्टेट बैंक मुख्य शाखा के प्रबंधक केएस राणा के मुताबिक हड़ताल से शहर के डेढ़ दर्जन बैंक शाखाओं में करीब साढ़े तीन करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ।
उधर हल्द्वानी में भी राष्ट्रीय आह्वान पर यहां भी सार्वजनिक व ग्रामीण बैंकों की हड़ताल रही। शहर की सभी बैंकों के कर्मचारी व अधिकारी भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा के परिसर में एकत्र हुए और 20 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान महेंद्र सिंह बिष्ट, पीएनबी के आईएस भंडारी, एसबीआई के विकास जोशी, पांडे आदि ने साफ कहा कि खंडेलवाल समिति की रिपोर्ट किसी कीमत पर बर्दास्त नहीं की जाएगी और आउट सोर्सिग भर्ती का पूरा विरोध होगा। इस दौरान दिलीप कपूर, मुकेश गुरुरानी, नवीन चंद्र खुल्बे, ललित पांडे आदि मौजूद थे। कर्मचारियों के अनुसार एक दिन की हड़ताल से शहर की बैंकों में करीब 20 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ।

Wednesday, August 3, 2011

ग्रामीणों के पलायन को रोकेगी खेती

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उत्तराखंड के ग्रामीण इलाको से लोगो के लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए अब खेती एक नयी रहा देगी और यह सब कृषि नीति की बदौलत पूरा होगा।
पहली बार मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के विस्तार और उसकी जरूरतों को अलग-अलग तवज्जो दी गई है। नीति पर कारगर ढंग से अमल किया गया तो पहाड़ों से पलायन थमेगा और किसानों को अपने उत्पादों के वाजिब दाम मिलेंगे। वहीं मैदानों में खेती लाभ के मामले में उद्योग की शक्ल लेगी।
उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां कृषि नीति में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसएजेड) को शामिल किया गया।

इस नीति की खास बात यह है कि स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाली ग्राम पंचायत एसएजेड में शामिल होंगी। उन्हें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का सीधे लाभ मिलेगा। फिलहाल पौड़ी जिले की एकमात्र गांव पंचायत लखौली को इस नीति के तहत 34 लाख की परियोजनाएं मिली हैं।
सूबे की संशोधित कृषि नीति पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी। पहले प्रस्तावित नीति में कृषि भूमि खरीद पर रोक लगाई गई थी। सरकार ने फिलहाल यह रोक हटा दी है। साथ ही यह तय हुआ कि एसएजेड चिन्हित किए जाएंगे। इन क्षेत्रों में कृषि के लिए 24 घंटे बिजली मिलेगी। भूमि संरक्षण, जल संरक्षण के साथ किसान को मिट्टी की जांच की सुविधा दी जाएगी। ऐसे क्षेत्र में प्रत्येक किसान परिवार का एक सदस्य मुफ्त ट्रेनिंग पा सकेगा। नीति में पहली बार पर्वतीय और मैदानी क्षेत्र में खेती की अलग-अलग जरूरत के मद्देनजर व्यवस्थाएं की गई हैं।

कृषि सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि नीति में उत्तराखंड को बीज प्रदेश और जैव प्रदेश के रूप में स्थापित करने पर जोर है। सूबे में केवल 13।29 फीसदी भूमि खेती योग्य है। पर्वतीय क्षेत्र में चार लाख हेक्टेअर कृषि भूमि का सिर्फ 10.62 फीसदी ही सिंचित है, जबकि मैदानी क्षेत्र में सिंचित भूमि 91.93 फीसदी है। एसएजेड बनने से विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों को ज्यादा फायदा होगा। पहाड़ों में छोटी और बिखरी जोतों को समेटने के लिए स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों और किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

चकबंदी क्षेत्र में अपनी भूमि से सटी भूमि खरीदने पर किसान को तीन साल तक स्टांप ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। एसएजेड में दो फीसदी भूमि सार्वजनिक उपयोग के कार्यो में इस्तेमाल होगी। इनके लिए खेती का प्लान जलागम निदेशालय तैयार करेगा।
नीति के तहत मैदानी क्षेत्र में खेती से लंबे समय तक लाभ दिलाने तो पर्वतीय क्षेत्र में लंबे समय तक खाद्यान्न जरूरत, पोषण और आजीविका सुरक्षा पर फोकस किया गया है। नीति को दस अध्यायों में बांटकर पीपीपी मोड में खेती, कांट्रेक्ट फार्मिग के साथ ही उसे बाजार से जोड़ने की विशेष व्यवस्था की जाएगी। दीर्घकालिक योजना के तहत सूबे का लक्ष्य अपनी करीब 18.85 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न और सवा तीन लाख मीट्रिक टन दलहन-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का है। उम्मीद की जा रही है की यह निति कारगर साबित होगी और पहाड़ी इलाको से ग्रामीणों के पलायन को रोका जा सकेगा।

Tuesday, August 2, 2011

अजीबोगरीब हरकतों से स्कूल छात्राओं ने डरा दिया सबको


अचानक क्या हो गया था इंटर कॉलेज की छात्राओ को जो वह चीखने चिल्लाने लगी

और अजीबोगरीब हरकते करने लगी, यह उपरी हवा का असर था या छात्राएं नाटक कर रही थी।

घटना विकासनगर के होशियार सिंह बुद्धूमल जैन बालिका इंटर कॉलेज की है जहाँ अचानक एक के बाद एक छात्राएं अजीब हरकतें करने लगीं। छात्राएं विद्यालय में चिल्लाती और कूदती रहीं। छात्राओं की अजीबोगरीब हरकतों से स्कूल प्रशासन परेशान हो गया।


दरअसल सोमवार को मध्याह्न 12 बजकर 20 मिनट पर 12वीं की एक छात्रा अचानक अजीब सी हरकत करने लगी। यह छात्रा काफी देर केवल सिर हिलाती रही। इसके बाद इसी कक्षा की एक अन्य छात्रा भी चिल्लाने और कूदने लगी, जिससे स्कूल में अफरा-तफरी मच गई। कुछ देर बाद दो अन्य छात्राएं भी अजीब हरकतें करने लगीं। स्कूल प्रशासन ने इसकी सूचना उनके अभिभावकों को दी। इस दौरान एक छात्रा का अभिभावक भी चिल्लाने लगा और उसने खिड़की के शीशों को पीटना शुरू कर दिया, जिससे वह टूट गए। अजीब सी इन हरकतों से अन्य छात्राएं भी बुरी तरह से डर गई। इसके बाद स्कूल प्रशासन ने देव माली को बुलाया। बाद में मामला शांत हो गया। इस दौरान काफी लोग विद्यालय में एकत्रित हो गए।

इस घटना पर विद्यालय के प्रधानाचार्य सूर्य त्यागी, का कहना था की 'मुझे इस विद्यालय में 35 वर्ष शिक्षण कार्य करते हुए हो गया, लेकिन आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ। पहली बार विद्यालय में इस प्रकार की घटना हुई है।


इस अजीबोगरीब घटना को लेकर जब एक मनोचिकित्सक, डॉ. जेएस बिष्ट से पूछा गया

तो उन्होंने बताया की 'ये लक्षण हिस्टीरिया के लक्षण प्रतीत होते हैं। लड़कियों और महिलाओं में हिस्टीरिया की समस्या ज्यादा होती है। तनाव या पढ़ाई की समस्या के चलते ऐसा होता है। तनाव को मौखिक रूप से व्यक्त न कर पाने पर वह सिर हिलाने, चिल्लाने या नाचने जैसे रूपों में प्रकट होता है। ऐसे में एक की ओर जब ज्यादा लोगों का ध्यान केंद्रित होने लगता है तो दूसरी छात्राएं भी इस प्रकार की हरकत करने लगती हैं। '

Monday, August 1, 2011

अधर में लटका पुस्तकालय अधिनियम

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उत्तराखंड सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपने आप को चाहे जितना भी प्रगतिशील कहे लेकिन सचाई तो यह है की राज्य सरकार राज्य निर्माण के दस साल बाद भी पुस्तकालय अधिनियम तैयार नहीं कर पाई। ऐसे में परिनियमावली नहीं बनी और न ही पद सृजन हो पाया। अब हाल यह है कि राज्य के नब्बे फीसदी कॉलेज लाइब्रेरियन विहीन हैं। इतना ही नहीं राज्य की विधानसभा और सचिवालय तक के पुस्तकालयों में पर्याप्त स्टाफ नहीं है। वहीं, जिला व राज्य स्तर पर शुरू किए जाने वाले पुस्तकालय भी अधिनियम नहीं होने के कारण आज तक स्थापित नहीं हो पाए।



उत्तराखंड को शिक्षा के हब के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत पर गौर करें तो उच्च शिक्षण संस्थानों की अहम कड़ी पुस्तकालयों के लिए कोई अधिनियम तक राज्य में नहीं है। बिना लाइब्रेरियन के नब्बे फीसदी कॉलेजों में पुस्तकों का रखरखाव व ऑटोमेशन भगवान भरोसे है। राज्य के छात्र इसके खामियाजा भुगत रहे हैं।


विषयों की पुस्तकों समेत शोध छात्रों को संदर्भ ग्रंथों तक के लिए भटकना पड़ता है। आम आदमी व छात्रों के लिए जिला व राज्य स्तर पर शुरू किए जाने वाले पुस्तकालयों की स्थापना का रास्ता भी इसी के चलते नहीं खुल पाया है। स्थिति का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि माननीयों के सबसे नजदीकी ठिकानों विधानसभा और सचिवालय के पुस्तकालय भी कर्मचारियों की राह तक रहे हैं।


परेशानी जो हो रही हैं



पुस्तकों के रखरखाव में दिक्कत व पुस्तकालयों को ऑटोमेशन ।
कॉलेज व शोध छात्रों को भी पुस्तकें मिलने में आती हैं दिक्कत।
प्रावधान के तहत जिला व राज्य स्तर पर समृद्ध पुस्ताकलयों की कमी।
यूजीसी व नैक आदि के निरीक्षण में भी करना पड़ रहा परेशानी का सामना।
आम आदमी के लिए पुस्तकें पढ़ने की सुविधा नहीं होने से भी परेशानी।



'राज्य के नब्बे फीसदी कॉलेजों में लाइब्रेरियन नहीं हैं। पहले इन पदों को मिनिस्टीरियल कैटगरी के तहत भरा जाता था, लेकिन यूजीसी ने बाद में इन्हें शैक्षणिक श्रेणी में शामिल किया। ऐसे में नीति नहीं बन पाने के कारण नियुक्तियों पर रोक लगी है। शासन व सरकार को इस बारे में कई बार कह चुके है, लेकिन अभी तक कोई व्यवस्था नहीं हुई है।'

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