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Saturday, July 3, 2010

युवक-युवतियों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण पर बीस दिवसीय प्रशिक्षण

रुद्रप्रयाग। सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरप्रेन्योरशिप व हिमालयन ग्रामोद्योग देहरादून की ओर से जिला उद्योग केंद्र के सहयोग से जिले में युवक-युवतियों को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खाद्य प्रसंस्करण पर बीस दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ। जिसमें प्रशिक्षण प्रमाण पत्र वितरित करने के साथ ही प्रशिक्षण का लाभ उठाने का आह्वान किया गया। मंगलवार को सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज में आयोजित शिविर के समापन समारोह में जिला उद्यान अधिकारी आरएल शाह ने कहा कि बेरोजगार युवक-युवतियों को स्वरोजगार अपनाने हेतु विभिन्न विभागों के माध्यम से विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही है। उन्होंने आठ महिला व 22 पुरुष प्रतिभागियों को उद्यमिता विकास प्रशिक्षण प्रमाणपत्र भी वितरित किए। हिमालयन ग्रामोद्योग के सचिव विनय पांडेय ने कहा कि प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग स्थापना तथा व्यवसायिक पहलुओं पर विस्तृत जानकारियां दी गई है। प्रशिक्षक रघुवीर सिंह धम्र्वाण ने कहा कि प्रशिक्षण से प्रशिक्षार्थियों में अपना स्वरोजगार प्रारम्भ करने की इच्छा शक्ति का विकास होगा और प्रशिक्षण से प्रेरणा लेकर अपने क्षेत्र में उद्योग लगाकर लाभ उठाएं तभी इस प्रशिक्षण के प्रमाण पत्रों की सार्थकता सिद्ध होगी। इस अवसर पर प्रशिक्षणार्थी उपस्थित थे
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Tuesday, June 29, 2010

मशरूम उत्पादन से सुधरी महिलाओं की आर्थिकी

मशरूम उत्पादन से सुधरी महिलाओं की आर्थिकी

श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। पहाड़ की महिलाओं विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के आर्थिक विकास में मशरूम उत्पादन का महत्वपूर्ण योगदान है। कम समय में उत्पादित होने वाली मशरूम नगद फसल भी है।
शोध प्रसार केन्द्र श्रीनगर में बौद्धिक विकास और उद्यान प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. रोहतास कुंवर (मृदा) ने मृदा परीक्षण, मृदा उर्वता प्रबंधन की विभिन्न विधाओं से भी कार्यक्रम में शामिल महिलाओं को विशेष रूप से अवगत कराया। गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के श्रीनगर स्थित औद्यानिक शोध एवं प्रसार केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और मशरूम विशेषज्ञ डा. टीपीएस भंडारी का कहना है कि पहाड़ की गांव की महिलाओं को मशरूम उत्पादन से जोड़ा जाना चाहिए। इसके लिए एकल प्रयास के साथ ही स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से भी कार्य किया जा सकता है। डा. भंडारी ने सब्जी और फल तथा फसलों पर लगने वाले कीट रोगों की पहचान और नियंत्रण संबंधी तकनीकी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उद्यानों की उपज को संरक्षित कर फल पदार्थ बनाने का प्रशिक्षण भी इस अवसर पर दिया गया। खिर्सू की कनिष्ठ ब्लाक प्रमुख सुषमा देवी, स्वयं सहायता समूह की सावित्री देवी, कलावती देवी, पार्वती देवी, यशोदा देवी ने भी कृषि से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं की समस्याएं रखीं जिनका समाधान विशेषज्ञों ने सुझाया।

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भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया

भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया
पौड़ी गढ़वाल। राज्य सरकार भले ही गढ़वाल के करीब चालीस लाख लोगों की बोली गढ़वाली को महत्व न दे रही हो, लेकिन भारतीय साहित्य अकादमी इसे संपूर्ण भाषा मानती है। अकादमी ने इसे जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल करने का संकल्प भी व्यक्त किया है।
भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया और इस सम्मेलन का मकसद गढ़वाली भाषा के साहित्यकारों, समीक्षकों व शोधार्थियों को न सिर्फ एक मंच पर लाना था बल्कि भाषा की बारीकियों व विधाओं को समझना भी था। सम्मेलन के पहले सत्र में निराशा नजर आई और अधिकतर का मत था कि गढ़वाली भाषा को सरकार महत्व नहीं दे रही किन्तु अकादमी के उपाध्यक्ष सरदार सुतिंदर सिंह नूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि गढ़वाली संपूर्ण भाषा है और इसे जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल करने की तैयारी चल रही है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में साहित्यकारों, समीक्षकों व शोधार्थियों के वक्तव्य आए जो अकादमी के लिए भी अहम रहे। सम्मेलन के दूसरे दिन भाषा विशेषज्ञों ने गढ़वाली शब्दकोश पर भी चर्चा की। डा. नंद किशोर ढौंढियाल ने मांगल गीतों के संरक्षण पर जोर दिया। साहित्यकार प्रेमलाल भट्ट ने शिलालेखों के आधार पर गढ़वाली भाषा का सात सौ साल पुराना लिखित इतिहास मौजूद होने की बात की। शब्दकोष विशेषज्ञ भगवती प्रसाद नौटियाल ने कहा कि शब्दों की ध्वनि और व्याकरण के आधार गढ़वाली भाषा का शब्दकोश तैयार किया जा रहा है जिससे लेखकों व भाषा बोलने वालों को फायदा होगा। वरिष्ठ पत्रकार व भुवनेश्वरी महिला आश्रम के गजेन्द्र नौटियाल ने पारंपरिक लोक गायन से लोक नाटकों का उद्भव हुआ और इसने काव्य से गद्य तक का सफर किया जो गढ़वाली नाटक की समृद्ध परंपरा को दिखाता है। लोक गायक चन्द्र सिंह राही ने लोक धुनों के साथ लोक गीतों को संरक्षित करने पर जोर दिया ताकि मूल रूप में वे संरक्षित हो। पत्रकार त्रिभुवन उनियाल ने गढ़वाली पत्रकारिता के सफर पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन में खबर सार के संपादक विमल नेगी, गणेश खुगशाल गणी, समेत अन्य ने विचार व्यक्त किए।

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अनदेखी के चलते यह अव्यवस्था फैली

अनदेखी के चलते यह अव्यवस्था फैली 
पैठाणी (पौड़ी गढ़वाल)। ऊर्जा प्रदेश में ऊर्जा निगम की लापरवाही से कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण तहसील थलीसैंण कंडारस्यूं पट्टी के पैठाणी कस्बे में देखने को मिल रहा है। ऊर्जा निगम की लाइन एक मकान की छत के ऊपर से गुजर रही है। इससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
पैठाणी कस्बे में ऊर्जा निगम की लापरवाही स्पष्ट नजर आ रही है। निगम ने यहां एक आवासीय मकान की छत पर लगी लोहे के छोटे से ग्रिल पर 15 हजार वोल्ट की लाइन बनायी है। इससे भवन स्वामी को भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। ऐसा भी नहीं है कि इस विद्युत लाइन की जानकारी विभागीय अधिकारियों को नहीं है। इसके बाद भी निगम के अधिकारी आंखे मूदे बैठे है। ग्रामीण केशर सिंह रावत, आनंद सिंह, बलवंत सिंह, धर्म सिंह का कहना है कि निगम की अनदेखी के चलते यह अव्यवस्था फैली हुई है। उन्होने कहा कि दो मंजिले भवन के छत में एक लोहे के छोटे से ग्रिल से जा रही 15 हजार वोल्ट की विद्युत लाइन कभी भी बडे़ हादसे को जन्म दे सकती है। मामले में ऊर्जा निगम के एसडीओ अनूप सैनी का कहना है यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है। इसकी जांच करने के बाद ही कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।



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पानी के दबाव के चलते डैम का करीब चार मीटर हिस्सा टूटा

 पानी के दबाव के चलते डैम का करीब चार मीटर हिस्सा टूटा
श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के लिए कोटेश्वर में बनाया गया कॉफर डैम रविवार सुबह टूट गया। डैम से भारी मात्रा में पानी के बहाव से अलकनंदा में दो फुट तक पानी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। प्रशासन ने घटना की गंभीरता को देखते हुए आसपास के इलाकों में एलर्ट घोषित करने के साथ प्रमुख घाटों पर पुलिस तैनात कर दी है। डीएम के मुताबिक घटना की जांच भी कराई जा सकती है।
श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के बांध निर्माण स्थल से पहले कोटेश्वर में नदी के पानी को सुरंग में डायवर्जन करने के लिए कॉफर डैम बनाया गया है। शनिवार रात भारी वर्षा के बाद डैम से बनी झील में पानी का स्तर बढ़ गया। रविवार सुबह आठ बजे पानी के दबाव के चलते डैम का करीब चार मीटर हिस्सा टूट गया। इससे अलकनंदा नदी में दो फुट तक पानी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। नौ बजे 42 सेमी व दस बजे तीस सेमी पानी बढ़ा, पूर्वाह्न 11 बजे तक पानी का बहाव सामान्य हो गया था। डैम टूटने से झील के जलस्तर में तीन मीटर गिरावट दर्ज की गई है। जानमाल के नुकसान की कोई सूचना नहीं है। यह भी बता दें कि गत 24 जून को भी भारी वर्षा के बाद डैम से पानी ओवरफ्लो होने के बाद यह डैम आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। प्रशासन की ओर से सीडीओ सीडीओ चंद्रेश यादव और उप जिलाधिकारी श्रीनगर बीके मिश्रा सुबह ही बांध स्थल पर पहुंच गए थे। इस दौरान दोनों अधिकारियों ने डैम को हुए नुकसान समेत आसपास के इलाकों का जायजा लिया। कार्यदायी कंपनी एएचपीसी के मुख्य कार्याधिकारी संतोष रेड्डी ने कहा कि कॉफर डेम टेंपरेरी स्ट्रक्चर है। पानी के भारी दबाव से कॉफर डेम में ऐसी दिक्कतें आ जाती हैं। इसमें कोई तकनीकी कमी नहीं है।

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ब्लड न मिलने के कारण जिंदगी से हाथ धोना पड़ा

ब्लड न मिलने के कारण जिंदगी से हाथ धोना पड़ा
कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। पांच वर्षीय रिंकी के शरीर में तेजी से खून की कमी हो गई व उसकी हालत बिगड़ने लगी। परिजन उसे चिकित्सालय लेकर पहुंचे तो चिकित्सकों ने तत्काल खून चढ़ाने का सुझाव दिया। कोटद्वार में ब्लड नहीं मिला और देहरादून ले जाते हुए रिंकी ने दम तोड़ दिया। रिंकी अकेली नहीं, जिसे समय पर ब्लड न मिलने के कारण जिंदगी से हाथ धोना पड़ा, लेकिन सरकारी अमले को क्या परवाह, उसकी बला से। कोटद्वार में ब्लड बैंक के लाइसेंस के आवेदन की फाइल पिछले दो महीनों से केंद्रीय औषधि नियंत्रक के कार्यालय दिल्ली में धूल फांक रही है।
वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने जनता की मांग पर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में ब्लड बैंक निर्माण की घोषणा की थी। निर्माण कार्यो का जिम्मा ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग को सौंपा गया। कछुवा गति से कार्य करते हुए विभाग ने गत वर्ष उक्त भवन राजकीय संयुक्त चिकित्सालय प्रशासन के सुपुर्द कर दिया व चिकित्सालय प्रशासन ने भवन निर्माण पूर्ण होने के साथ ही लाइसेंस प्रक्रिया शुरू कर दी।
गत वर्ष 18 जुलाई को केंद्र व प्रदेश के औषधि नियंत्रक दल की टीम ने ब्लड बैंक का निरीक्षण किया व प्रशिक्षित लैब टेक्निशियन की तैनाती सहित कुछ अन्य कमियों को दूर करने के बाद ब्लड बैंक को लाइसेंस देने की बात कही। उत्तराखंड राज्य एडस नियंत्रण समिति ने एक पैथोलॉजिस्ट व एक लैब टेक्नीशियन को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल प्रशिक्षिण के लिए भेजा। ब्लड बैंक में प्रशिक्षित पैथोलॉजिस्ट व लैब टेक्निशियन की तैनाती के साथ ही गत 18 अप्रैल को चिकित्सालय प्रशासन ने ब्लड बैंक लाइसेंस संबंधी फाइल राज्य औषधि नियंत्रण समिति को भेज दी, 21 अप्रैल को फाइल केंद्रीय औषधि नियंत्रक कार्यालय दिल्ली भेज दी गई। सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय कार्यालय पिछले दो महीनों से इस फाइल को दबाए बैठा है। स्वयं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा.आरपी बडोनी ने दिल्ली पहुंच कर केंद्रीय औषधि नियंत्रक को कोटद्वार में ब्लड बैंक की गंभीरता से अवगत कराते हुए अविलंब लाइसेंस निर्गत करने का अनुरोध किया, लेकिन वहां से यह कहते उन्हें टाल दिया कि लाइसेंस डाक से उत्तराखंड शासन को भेज दिया जाएगा। सीएमएस डा.बडोनी ने बताया कि उनकी ओर से कई बार केंद्रीय औषधि नियंत्रक से दूरभाष पर भी लाइसेंस निर्गत कराने का अनुरोध किया गया, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। उन्होंने बताया कि लाइसेंस के तमाम प्रोसेस पूर्ण हो चुके हैं, अब इंतजार है तो मात्र लाइसेंस के जारी होने का।

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गढ़वाल के घने जंगलों में वन्य पशुओं का खूनी खेल सालों से जारी है

गढ़वाल के घने जंगलों में वन्य पशुओं का खूनी खेल सालों से जारी है
पौड़ी गढ़वाल। हिंसक वन्य जीवों के हमले में 12 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल हुए है। वन विभाग ने कागजों में घटनाएं तो दर्ज कर दी, लेकिन अभी तक मृतकों के परिजनों को मुआवजे की धनराशि नहीं बांटी गई है। वजह शासन से धनराशि जारी न किया जाना बताया जा रहा है।
गढ़वाल के घने जंगलों में वन्य पशुओं का खूनी खेल सालों से जारी है। आजादी से पहले यह खतरा कम इसलिए कम था कि लोग वन्य जीवों से स्वयं ही निपटते थे। इसके बाद वन संबंधी कड़े कानून तैयार हुए और अब वन्य पशुओं की मौत पर सीधे गैर जमानती वारंट जारी होते हैं। बाघ, भालू, तेंदुए की मौत पर 5 लाख तक का जुर्माना व 5 साल की सजा का प्रावधान है। जुर्माने की राशि वन विभाग बढ़ा भी सकता है।
वर्ष 2008 व 9 में गढ़वाल में वन्य पशुओं के निवाले बने लोगों को अब तक मुआवजा नहीं मिल पाया है। जनपद पौड़ी, रुद्रप्रयाग व चमोली में वन्य जीवों की वारदातों का 20 करोड़ रुपया मुआवजा लोगों को अभी तक नहीं मिला है। इसे लेकर कई बार वन विभाग में जनप्रतिनिधियों व जनता ने हो-हल्ला भी किया, लेकिन इसके बाद भी विभाग मुआवजे की धनराशि अदा नहीं कर रहा। मंडल मुख्यालय पौड़ी में 11 जून को हुई बैठक में प्रमुख सचिव एवं आयुक्त ग्राम्य विकास सुभाष कुमार ने वन विभाग से जब इसे लेकर सवाल किया तो मुख्य वन संरक्षक दिग्विजय सिंह ने स्पष्ट कहा कि मुआवजा वितरण के लिए वन विभाग को 60 करोड़ की आवश्यकता है। प्रमुख सचिव ने भरोसा दिया कि इस मामले को वे मुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे। बहरहाल वन विभाग की नीतियों में खामियों के चलते लोगों को मुआवजे की धनराशि नहीं मिल पा रही है। गढ़वाल सांसद से जब इसे लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस संबंध में वे शासन को पत्र भेजेंगे।
वन्य जीव हिंसा के मामले
गढ़वाल वनप्रभाग पौड़ी
मृतकों की संख्या 3, घायलों की संख्या 19, मुआवजे की राशि 4 लाख 85 हजार, पशुधन की संख्या 221 मुआवजा राशि 8 लाख 35 हजार

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