उत्तराखंड पृथक राज्य आन्दोलन के समय ना जाने कितने वीरो ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। राज्य तो बन गया लेकिन शायद राज्य सरकार उन वीरो के बलिदान को भूल गयी है। जिसका ताज़ा उधाहरण है सीओ स्व. उमाकांत त्रिपाठी की पत्नी यशोदा त्रिपाठी। कहते है उत्तराखंड देव भूमि है, अगर यह बात सच है तो फिर यह अन्याय क्यों ?
सत्रह साल हो गए इंसाफ मांगते हुए , लेकिन राज्य आंदोलन के दौरान शहीद पति को न शहीद का दर्जा मिला और न सम्मान। तत्कालीन सरकार ने शहीद का दर्जा देने का वादा तो किया, लेकिन आज तक किया कुछ भी नहीं। विडंबना देखिए मुख्यमंत्री का आंदोलनकारी के रूप में चिह्नीकरण हो चुका है, पर जिन्होंने आंदोलन में शहादत दी उनको पूछने वाला कोई नहीं है। यशोदा डीजीपी तक से इस बारे में गुहार लगा चुकी हैं लेकिन मिला है तो सिर्फ आश्वासन। वो कहती हैं मुझे रुपये नहीं, न्याय चाहिए।
बीती दिनों की बातों को याद करते हुए दो दिसंबर 1994 को मसूरी में शहीद हुए तत्कालीन सीओ स्व। उमाकांत त्रिपाठी की पत्नी यशोदा त्रिपाठी की आंखें नम हो उठती हैं। उन्होंने बताया कि स्व। त्रिपाठी की मृत्यु के बाद उनको सम्मान देने की घोषणाएं हुई थीं। उत्तर प्रदेश के समय में तेजी से काम हुआ, लेकिन जब से राज्य बना तब से वे भुला दिए गए हैं। शुरूआत में काफी अर्जी दी, पर कुछ नहीं मिला। हर पुलिस दिवस पर पुलिसकर्मियों को सम्मानित किया जाता है, लेकिन स्व. त्रिपाठी का नाम कभी नहीं आया। गत वर्ष डीजीपी से मुलाकात की थी उन्होंने आश्वासन तो दिया, पर कार्रवाई नहीं हुई वह सिर्फ आश्वासन ही रह गया। आश्चर्य है कि मुख्यमंत्री डॉ. निशंक को आंदोलनकारी का दर्जा दे दिया गया, लेकिन उस दौर में कई अन्य लोग जो संघर्ष कर रहे थे उनका नाम कहीं नहीं आया।
यशोदा चाहती हैं कि स्वर्गीय त्रिपाठी को सम्मानपूर्वक शहीद का दर्जा दिया जाए। जब सारे अधिकारी भाग गए थे तब वे घायल आंदोलनकारियों की सहायता कर रहे थे। याशोदा त्रिपाठी कहती हैं की उन्हें रुपया नहीं चाहिए। उनके बच्चे काबिल हैं। वे तो सिर्फ अपने पति स्व. त्रिपाठी का सम्मान और न्याय चाहती हैं ।