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Thursday, June 25, 2009

थाली में सजी गहथ की दाल-मंडुवे की रोटी

, उत्तरकाशी सौड़ उत्तराखंड का पहला ऐसा गांव बन गया है जो पर्यटकों को न सिर्फ होम स्टे व्यवस्था उपलब्ध करवा रहा है, बल्कि गढ़वाली व्यंजन व रात्रि में स्थानीय लोक नृत्य व संगीत की महफिल भी सजा रहा है। प्रकृति की सबसे सुंदर घाटी हरकीदून मार्ग पर उत्तरकाशी से 176 किमी दूर उत्तराखंड के सपनों को सजाने वाला गांव सौड़ बसा है। इस गांव से उच्च हिमालय क्षेत्र की हिमाच्छादित चोटी स्वर्गारोहणी, कालानाग, बंदरपूंछ व रंगलाना जैसी सुंदर चोटियां का खूबसूरत रास्ता गुजरता है। ये सभी चोटियां 6,100 से 6,387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढ़की चोटियों के साथ इस गांव से हरकीदून घाटी के सम्मोहन सा असर करने वाले पर्यटक स्थलों का रास्ता है। केदारकांठा, भारड़सर, चांगसील, मांजीवण, देवक्यारा जैसे पर्यटक स्थलों पर दूर तलक फैले हरी मखमली घास पर फूलों की खूशबू से महकते बुग्यालों का नजारा देखने के लिए इसी गांव से आगे कदम पर्यटकों के कदम बढ़ते हैं। एक साल पहले तक गांव में पर्यटकों व प्रकृति प्रेमियों को सिर्फ रास्तों से गुजरते हुए देखा जा सकता था, लेकिन अब ग्रामीणों ने पर्यटकों को अपने घरों में रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध करवानी शुरू कर दी है। गांव को यह प्रेरणा गांव के ही युवक चैन सिंह ने दी। हरकीदून संरक्षण एवं पर्वतारोहण समिति से जुड़े चैन सिंह ने सबसे पहले अपने घर में विश्राम गृह बनाया और पर्यटकों को आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाई। रात्रि व दोपहर के भोजन में गढ़वाली व्यंजन फाफरे की पोली, कंडाली की सब्जी, गहथ की दाल, मडुवे की रोटी और जागला परोसना शुरू किया। इससे उन्हें प्रति दिन चार से पांच हजार रुपए की आमदनी हुई। गांव के कुल 75 परिवारों में से अब तक इस व्यवसाय से दस परिवार जुड़ चुके हैं। गांव के प्रदीप रावत, बलवीर रावत, शूरवीर रावत, वचन रावत, भरत रावत, विजेन्द्र रावत, राजमोहन रावत, रजन सिंह, बर्फिया लाल व गंगा सिंह इससे जुड़ चुके हैं। पहले पर्यटकों को सिर्फ होम स्टे व्यवस्था दी जाती थी, अब गांव में हर शाम सांस्कृतिक संध्या भी पर्यटकों के आने की खुशी में आयोजित की जाती है। हर रात यहां ढोल-बाजों व रणसिंगे की टंकार पर गांव की महिलाएं व पुरुष स्थानीय लोककला का प्रदर्शन करते हैं। गांव को कांग्रेस सरकार में पर्यटन गांव भी घोषित किया, घोषणा के बाद सरकार गांव को भूल गई। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आरएस यादव का कहना है कि गांव को लेकर अब योजना तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि अब तक विभागीय स्तर पर फिलहाल कोई कार्य नहीं हुआ है।


निशंक होंगे उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री

-विधायक दल की बैठक में मतदान से चुने गए नेता -निशंक को 23, पंत को मिला 13 विधायकों का समर्थन -खंडूड़ी, कोश्यारी के नाम मतदान से अलग रखा गए पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा विधायक दल की बैठक में उनका चुनाव बहुमत के आधार पर हुआ। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी गुरुवार को प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत के साथ राज्यपाल को नए नेता के नाम के साथ अपना इस्तीफा सौंपेंगे। सूत्रों के अनुसार बैठक में अधिकांश विधायकों ने खंडूड़ी व भगत सिंह कोश्यारी का नाम लिया, लेकिन केंद्रीय पर्यवेक्षक वेंकैया नायडू ने साफ किया कि कोश्यारी व खंडूड़ी को छोड़कर बाकी लोगों में से ही नया नेता चुनना है। इसके बाद निशंक व प्रकाश पंत के बीच मतदान हुआ। उत्तराखंड में भाजपा को नया नेता चुनने के लिए चार घंटे तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। भाजपा मुख्यालय में दोपहर 11 बजे शुरू हुई बैठक साढ़े तीन बजे जाकर समाप्त हुई। बैठक के बाद नायडू ने सर्वसम्मति वे निशंक के नए नेता चुने जाने का ऐलान किया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शुरुआत में वेंकैया नायडू ने विधायकों को अनुशासन की घुट्टी पिलाई और उसके बाद नया नेता चुनने को कहा। पहले तो अधिकांश विधायकों ने खंडूड़ी को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने की बात कही, तो कुछ ने बदलाव कर कोश्यारी को बनाए जाने की बात रखी। इस पर नायडू ने साफ किया कि खंडूड़ी व कोश्यारी को छोड़कर बाकी नामों पर बात करनी है। इसके बाद प्रकाश पंत ने अपनी दावेदारी की तो खंडूड़ी ने निशंक का नाम आगे बढ़ाया। कुछ विधायकों ने यह भी कहा कि केंद्र ही निर्णय कर सकता था, उनको क्यों बुलाया। इसके बाद दोनों पर्यवेक्षकों ने सभी विधायकों से अलग-अलग बात की। आखिर में मतदान का सहारा लेना पड़ा। बैठक में मौजूद सभी 36 विधायकों (दो मनोनीत विधायकों सहित) ने पर्चियों से मतदान कर अपनी-अपनी पसंद बताई। सूत्रों के अनुसार निशंक के पक्ष में 23 व पंत के पक्ष में 13 विधायक रहे। इसके बाद एक बार सभी विधायक साथ बैठे जिसमें मुख्यमंत्री खंडूड़ी ने निशंक के नाम का प्रस्ताव रखा व प्रकाश पंत, त्रिवेंद्र रावत आदि ने उसका समर्थन किया। नेता चुने जाने के बाद भाजपा संसदीय दल के नेता लालकृष्ण आडवाणी व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने निशंक को बधाई दी। कोश्यारी इस बैठक में तो आए ही नहीं थे, जब निशंक को नेता बनाए जाने की घोषणा की गई वे तब भी नहीं थे। उनके नाम का समर्थन करने वाले पंत व रावत वहां से चले गए। ऐसे में खंडूड़ी खेमे की मौजूदगी में निशंक के नाम की घोषणा की गई। कोश्यारी समर्थक मतदान में हार के बाद उत्तराखंड निवास गए और वहां पर कोश्यारी के साथ सारी स्थिति पर विचार विमर्श किया। इधर बैठक में निशंक व खंडूड़ी साथ-साथ एक ही गाड़ी में आए थे और गए भी साथ। नेता चुने जाने के बाद निशंक ने खंडूड़ी की शान में जमकर कसीदे काढ़ते हुए कहा कि वे खंडूड़ी के विकास के काम को ही आगे बढ़ाएंगे। बैठक के बाद अधिकांश विधायक उत्तराखंड के लिए रवाना हो गए, लेकिन खंडूड़ी व पंत गुरुवार सुबह देहरादून जाएंगे।

खंडूड़ी का इस्तीफा:

भाजपा आलाकमान ने आखिरकार उत्तराखंड में मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी का इस्तीफा मंजूर कर लिया है।बुधवार को दिल्ली में होने वाली विधायक दल की बैठक में नए नेता का चुनाव होगा। सूत्रों के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने रमेश पोखरियाल निशंक के नाम पर मन बना लिया है। निशंक उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की भाजपा सरकारों में भी मंत्री में रह चुके हैं। इधर कोश्यारी लाबींग में जुटे हैं तो प्रकाश पंत का नाम भी चर्चा में है। उत्तराखंड में सत्ता में आने के बाद से ही अंदरूनी असंतोष से जूझते रहे मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को आखिरकार इस्तीफा देना ही पड़ा है। राज्य में लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद गत 19 मई को दिल्ली में हुई वरिष्ठ नेताओं की बैठक में उन्होंने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दिया था। इसके बाद भी भाजपा आलाकमान क शुतुरमुर्गी रवैया जारी रहा। इससे भन्नाए कोश्यारी ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया और एक दर्जन विधायकों ने दिल्ली आकर सरकार गिराने की धमकी दी थी। दरअसल उत्तराखंड में भाजपा का संकट तभी से बढ़ना शुरू हुआ था, जबकि इस नाजुक राज्य का संगठन प्रभारी दिल्ली के डॉ अनिल जैन को बनाया गया था। जैन की अनुभवहीनता से समस्याएं सुलझने के बजाए बढ़ती ही गई। वे न तो राज्य का मिजाज जान सके और न ही केंद्रीय नेतृत्व तो सही जानकारी दे सके। इधर खंडूड़ी के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर घमासान शुरू हो गया है। केंद्रीय नेतृत्व राज्य मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ सदस्य रमेश पोखरियाल निशंक को नया नेता बनाने के पक्ष में हैं। वे न केवल पार्टी के जातीय समीकरण में फिट बैठते हैं, बल्कि राजनीतिक लिहाज से दुनियादारी को भी बखूबी समझते हैं। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने अभी भी हथियार नहीं डाले हैं। विधायक दल की बैठक के लिए दिल्ली पहुंच रहे विधायकों की अलग-अलग बैठकों के दौर में शुरू हो गए हैं। बुधवार को होने वाली इस बैठक में वेंकैया नायडू व थावरचंद गहलौत केंद्रीय पर्यवेक्षक होंगे।

न संस्कृति सुरक्षित रही, न परंपराएं ही

उत्तराखंडी समाज जिस तरह अपने रीति-रिवाज, परंपराओं, यहां तक कि खान-पान को भी भूल रहा है,उससे आशंका बन रही है कि कहीं इस समाज को भविष्य में अस्तित्व न तलाशना पड़े। गुजरात के लोग भले ही ढाल में चीनी, केरल के नारियल व मछली, बंगाली माछ-भात, राजस्थानी मट्ठा व मकई की रोटी, पंजाबी सरसों का साग खाना नहीं भूलते, लेकिन उत्तराखंडी कोदा-झंगोरा को बिसरा चुके हैं। यह कैसी विडंबना है कि पहाड़ के लोगों को ही उनके परंपरागत व्यंजनों से परिचित कराने के लिए स्टाल लगाने की जरूरत पड़ रही है। जरा उस दौर को याद करें, जब पूरा पहाड़ी जनमानस सड़कों पर उमड़ पड़ा था। हर ओर एक ही आवाज थी कि कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे, लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद शायद ही किसी ने सोचा हो कि पारंपरिक अनाजों से तैयार व्यंजन इस पर्वतीय राज्य की पहचान बन सकते हंै। किसी क्षेत्र का खानपान वहां का भौगोलिक परिवेश निर्धारित करता है। संबंधित इलाके में किसी खास तरह के अनाज को अपनाने के पीछे मुख्य वजह है, वहां इसकी ज्यादा पैदावार। वहां की जलवायु, लोगों का जीवन स्तर, काम करने की शैली व प्रवृत्ति, लोगों की रुचि खान-पान की एक खास परंपरा को जन्म देती है। उत्तराखंड की बात करें तो यहां परंपरा में कोदा-झंगोरा, गहथ, उड़द व तोर मिली हुई है और इसी से मिली है फाणू, थिंचौणी, कफली जैसे स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन बनाने की शैली। रोट, अरसा, खटाई, तिलों की चटनी, पतूड़, उड़द के पकवान जैसे व्यंजनों को बनाने की विधि भी पहाड़ की विरासत का हिस्सा है। इन सभी व्यंजनों का महत्व पहाड़ में सिर्फ स्वाद के लिए नहीं है, बल्कि ये यहां की जलवायु व परिस्थिति के अनुसार भी हैं। पहाड़ की ठंडी जलवायु में कोदा और फाणू का महत्व सहज समझा जा सकता है। दिल्ली में उत्तराखंडी सरोकारों से जुड़े मौल्यार संस्था के जयपाल सिंह रावत व नत्थीप्रसाद सुयाल कहते हैं कि हम आखिर कब तक स्टाल लगाकर अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों का मातम मनाते रहेंगे। वह कहते हैं कि जब गुजराती ढेकुली दुकानों में सज सकती है तो फिर कोदे की पेस्टी क्यों नहीं। बिहार का सत्तू सजीले पैकेट में बंद होकर मुंबई की दुकानों की शोभा बढ़ा सकता है तो टिहरी की सिंगोरी व अल्मोड़ा की बाल मिठाई बड़े-बड़े शहरों में क्यों नहीं जा सकती। होटल व्यवसाय से जुड़े कमलेश जोशी कहते हैं उत्तराखंडी व्यंजनों को यदि प्रोत्साहन मिले तो यह आर्थिकी संवारने का मजबूत जरिया बन सकते हैं। लेकिन, सरकारी स्तर पर इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए। व्यावसायिक नजरिए से इन्हें प्रचार मिले तो इनके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगा। इधर, जीएमवीएन के जीएम युगल किशोर पंत का कहना है कि निगम के मीनू में पारंपरिक व्यंजन भी शामिल हैं, लेकिन इन्हें डिमांड पर ही तैयार किया जाता है। निगम के कुछ होटलों में जरूर पारंपरिक व्यंजन तैयार मिलते हैं। इन्हें प्रोत्साहित करने को निगम के स्तर पर क्या प्रयास हो रहे हैं, इस सवाल को वह टाल गए।

कांग्र्रेस नेता व पूर्व दर्जा मंत्री चंद्रमोहन गिरफ्तार, जेल भेजा

कांग्र्रेस नेता व पूर्व दर्जा मंत्री चंद्रमोहन गिरफ्तार, जेल भेजा -ज्ञापन देकर लौटते वक्त पुलिस ने किया नाटकीय अंदाज में गिरफ्तार -कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में भेजा बेस अस्पताल में चिकित्सक के साथ मारपीट व अभद्रता करने के आरोपी कांग्रेसी नेता एवं पूर्व दर्जा मंत्री को आखिरकार सोमवार को पुलिस ने गिरफ्तार कर ही लिया। कोर्ट के आदेश पर पूर्व मंत्री को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। पुलिस ने डाक्टर से मारपीट व अभद्रता करने के आरोपी पूर्व दर्जा मंत्री ठा.चंद्रमोहन सिंह को नाटकीय अंदाज में थाने के ठीक सामने से गिरफ्तार किया। सोमवार को पूर्वाक्ष पूर्व दर्जा मंत्री ठा.चंद्रमोहन सिंह अपनी तहरीर पर मुकदमा दर्ज नहीं होने के बाबत सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन देकर लौट रहे थे। इसी दौरान थाने के सामने से गुजर रहे ठा. चंद्रमोहन को सीओ देवेंद्र पींचा ने भारी पुलिस बल के साथ गिरफ्तार कर लिया। यह सब इतना अचानक हुआ कि पूर्व मंत्री के साथ चल रहे समर्थक भी कुछ समझा नहीं पाए। इधर पुलिस ने भी कांग्र्रेसियों के बवाल की आशंका के चलते पूर्व मंत्री को कोतवाली में न रोककर सीधे न्यायालय में पेश कर दिया। वकीलों की लम्बी जिरह के बाद न्यायालय ने आरोपी पूर्व मंत्री को न्यायिक हिरासत में भेज दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। पुलिस अब इस मामले के अन्य आरोपियों के बारे में भी पूछताछ कर रही है। गौरतलब है कि शनिवार को एसएस जीना बेस अस्पताल हल्द्वानी में मरीज को भर्ती कराने को लेकर पूर्व दर्जा मंत्री व कांग्रेसी नेता ठा. चंद्रमोहन सिंह व डाक्टर बीएन सिंह के बीच कहासुनी हो गयी। विवाद बढऩे पर दोनों पक्षों में मारपीट की नौबत आ गयी थी। इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से कोतवाली में मामला दर्ज कराया गया था। पुलिस ने डाक्टर की तहरीर के आधार पर ठा. चंद्रमोहन व दो अन्य के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली। जबकि चंद्रमोहन की तहरीर तो ले ली गई, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। इधर, प्रांतीय चिकित्सक संघ ने डाक्टर से अभद्रता के मामले में आरोपी की 72 घंटे के भीतर गिरफ्तारी न होने पर प्रदेशव्यापी हड़ताल की चेतावनी दे दी थी। इससे पुलिस पर भी दबाव बढ़ गया था। हालांकि सीओ देवेंद्र पींचा का कहना है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज है, जिसके चलते गिरफ्तारी की गई है।

देवभूमि में लहलहाई 'असलहों की फसल'

- छह जिलों में 15 हजार से अधिक लाइसेंसी शस्त्रधारक -पहाड़ में असलहे बने स्टेटस सिंबल देवभूमि के कुमाऊं अंचल में भी 'असलहों की फसल' लहलहा रही है। राज्य गठन के बाद आठ साल में ही कुमाऊं मंडल में कुल लाइसेंस धारकों की संख्या 15 हजार का आंकड़ा पार कर गयी है, जबकि हजारों शौकीन असलहा लाइसेंस के स्वीकृत होने के इंतजार में हैैं। इससे यहां की शांत वादियों में अपराधों के ग्र्राफ मेें जबरदस्त इजाफा हुआ है। एक समय था जब पहाड़ की सुरम्य व शांत वादियों में असलहे या अपराध जैसे शब्द सुनने को भी नहीं मिलते थे, लेकिन अब यह आम बात हो गयी है। पहले कुछ लोग भले ही अपनी सुरक्षा व सतर्कता की दृष्टि से लाइसेंसी असलहे लेते थे, लेकिन पहाड़ के नव धनाढ्यों के लिए अब यह दिखावे की वजह भी बन गये हैं। कुछ जगहों पर इससे अपराध का ग्राफ भी बढ़ा है। पुलिस आंकड़ों पर नजर डालें तो कुमाऊं के छह जिलों में कुल 15957 लाइसेंसी शस्त्र धारक हैं। इनमें ऊधमसिंह नगर 8198 असलहाधारियों के साथ शीर्ष पर है। नैनीताल में इनकी संख्या 4499 है। पहाड़ के चार जिलों में पिथौरागढ़ 1020 शस्त्रधारकों के साथ सबसे आगे है। जबकि अल्मोड़ा में 807, चम्पावत में 850 व बागेश्वर में 583 लाइसेंसी असलहे हैं। इनमें अधिकांश असलहे राज्य गठन के बाद बने हैं। हालांकि कुछ को यह पारिवारिक विरासत में भी मिले हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में असलहों के शौकीन लाइसेंस लेने के लिए अभी कतार में हैं। वहीं हाल के कुछ वर्षों में हत्या जैसे अपराधों पर नजर डालें तो भयावह स्थिति सामने आती है। प्रतिवर्ष लगभग 50-60 से अधिक हत्याएं आपसी रंजिश में हो रही हैं। पिछले तीन वर्षों में मंडल में दो सौ से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है। इसमें अकेले 100 से अधिक हत्याओं के साथ ऊधमसिंह नगर सभी छह जिलों में अव्वल है। पर्यटन के लिए विश्व प्रसिद्ध नैनीताल में पिछले तीन सालों में हत्याओं का ग्राफ 60 से उपर पहुंच चुका है। अमूमन शांत रहने वाले पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा व बागेश्वर जिलों में भी हत्याओं के तीन साला आकड़े दो दर्जन से अधिक हैं। पहाड़ में असलहों व अपराधों के साल दर साल बढ़ते जा रहे यह आंकड़े समाज के साथ पुलिस के लिए भी चिंता का कारण बनती जा रही है।

=दून में दिखी मिनी इंडिया की झालक

-नेहरू युवा केंद्र का राष्ट्रीय एकता शिविर - लोकसंस्कृतियों का आदान-प्रदान कर रहे पांच राज्यों के युवा - शिविर में सम-सामयिक विषयों पर हो रहा है गहन मंथन अनेकता में एकता का दर्शन सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही समाहित है। सूबे की राजधानी देहरादून में भी इन दिनों पांच राज्यों के युवा ऐसी ही झालक पेश कर रहे हैं। ये युवा संस्कृतियों का ही आदान-प्रदान नहीं कर रहे, बल्कि राष्ट्रीय एकता और मजबूत कैसे हो, देश कैसे विकसित व संपन्न बने, इस पर भी गहन मंथन कर रहे हैं। राजधानी में इन दिनों न केवल उत्तराखंड, बल्कि मणिपुर, उत्तर प्रदेश, झाारखंड व मध्य प्रदेश की लोक संस्कृति के तमाम रंग बिखर रहे हैं। नेहरू युवा केंद्र संगठन की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय राष्ट्रीय एकता शिविर में मणिपुर का लयमा जगोई, लहरवबा जगोई, उत्तर प्रदेश के बृज क्षेत्र का लांगुरिया, झाारखंड का कर्मा, असारी, सरहुलजैमा, मध्य प्रदेश का मालवा, उत्तराखंड के नंदा राजजात, पांडव नृत्य जैसे पारंपरिक लोकगीत-लोकनृत्य की धूम है। शिविरार्थी पारंपरिक वेशभूषा में न सिर्फ प्रस्तुतियां दे रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे की संस्कृति, बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन को समझाने व सीखने की ललक उनमें देखते ही बनती है। ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में ये दल एक-दूसरे के राज्यों की लोकसंस्कृति की झालक अपने-अपने क्षेत्रों में बिखेरेंगे। मध्य प्रदेश की टीम लीडर लता श्रीवास कहती हैं कि यह एक ऐसा मंच है, जिससे संस्कृतियों के आदान-प्रदान का मौका मिलता है। युवाओं में समझा विकसित होने के साथ ही व्यक्तित्व का विकास होता है। वह बताती हैं कि इस शिविर में न केवल संस्कृतियों का ही आदान-प्रदान हो रहा है, बल्कि युवाओं में सम-सामयिक विषयों पर समझा विकसित भी हो रही है। लता का कहना है कि भारत गांवों का देश है और ग्रामीण भारत की सही तस्वीर व वहां की समस्याओं को समझाने को ऐसे शिविर दूरस्थ गांवों में भी लगने चाहिए। मणिपुर के टीम लीडर चितरंजन, उत्तराखंड के प्रेमचंद, उप्र के केके शर्मा, झाारखंड के पार्वती व संजय, मध्य प्रदेश के अजय ने कहा कि अनेकता में एकता देश की विशेषता है। युवाओं की सकारात्मक सोच और कठिन परिश्रम की मदद से राष्ट्रीय एकता ही हमारे देश को विकसित व संपन्न राष्ट्र बना सकती है। उनका कहना है कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण, गरीबों के उत्थान, युवाओं के अधिकार, युवाओं को स्वतंत्र पहचान के लिए उन्हें नया हिंदुस्तान चाहिए।

='जख्म' को हाईकमान ने ही बनाया 'नासूर'

उत्तराखंड: भाजपा नेतृत्व की टालमटोल नीति से ही सूबे में अस्थिरता का माहौल नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी दिया गया खासा महत्व देवभूमि की जनता को भुगतना पड़ रहा खामियाजा प्रदेश भाजपा में उपजे विवाद के 'जख्म' को पार्टी हाईकमान ने हमेशा ही 'नासूर' बनने की हद तक पकने दिया। हालात इतने बिगड़े कि अब पार्टी 'सेप्टिक' की स्थिति में है। नेतृत्व भले ही इसके उपचार में सफल हो जाए पर इससे देवभूमि में माहौल पूरी तरह से अस्थिर हैै और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सत्ता संभालने के बाद से मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को 'अपनों' के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आज हालात उनके इस्तीफे की नौबत तक आ गए। खास बात यह है कि भाजपा हाईकमान ने यहां उपजे विवाद को थामने में जो रणनीति अपनाई उस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैैं। माना जा रहा है कि या तो नेतृत्व इस सूबे के सियासी हालात को समझाने में असफल रहा या फिर 'जख्म के नासूर बनने के बाद ही इलाज' की दिशा में काम शुरू किया गया। यूं तो सरकार विरोधी स्वर कई बार उठे पर आवाज दिल्ली तक नहीं गई। छह माह पहले 17 विधायकों ने एक साथ दिल्ली जाकर नेतृत्व परिवर्तन की मांग की। नेतृत्व ने लगभग एक सप्ताह तक मौन रहकर मानों इस विवाद को हवा ही दी। ज्यादा फजीहत होने के बाद ही हाईकमान ने कड़ी फटकार लगाकर विधायकों को उत्तराखंड रवानगी की नसीहत दी। बाद में कई बार लगा कि सत्ता संघर्ष जारी है पर नेतृत्व मौन रहकर तमाशा देखता रहा। लोससभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के हाथ से पांचों सीटें फिसलने के बाद सीएम विरोधी खेमे को एक बार फिर मौका मिला। सूबे में नेतृत्व परिवर्तन की मांग फिर से उठी। खास बात यह रही कि दिल्ली में तमाम झांझाावात झोल रहे पार्टी हाईकमान ने यहां के असंतोष को थामने की बजाय यहां दो पर्यवेक्षक भेजकर 'चिंगारी' को 'शोला' बना दिया और विधायकों की महत्वकांक्षाएं फिर से जाग्र्रत हो गईं। दिल्ली में हाईकमान ने रिपोर्ट पर चर्चा न हो पाने की बात करके तो मानो विरोधी खेमे को संजीवनी दे दी गई। बात आगे बढ़ी तो हर किसी को सीएम की कुर्सी नजर आने लगी। अब भाजपा ने नासूर बन चुके जख्म का इलाज शुरू किया तो पता चला कि इसमें जहर फैल चुका है। एक तरफ खाई है तो दूसरी तरफ कुआं। अब भाजपा के सामने इस सूबे में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को बचाने की चिंता सताने लगी है। देखना है पार्टी हाईकमान के इस टालमटोल वाले रुख का नतीजा किस करवट जाता है। हो सकता है कि भाजपा अपने नासूर का इलाज करने में सफल हो जाए पर इसके चलते सूबे में फैली अस्थिरता के लिए आखिर किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। पहले वाले घटनाक्रम की तरह इस बार भी बीते छह रोज से राजधानी में न तो कोई विधायक दिख रहा है और न ही कोई मंत्री। खुद सीएम भी दिल्ली में ही जमे हैैं। सचिवालय में सन्नाटा है और सरकारी दफ्तरों में कोई काम नहीं हो रहा है। आम लोग भटक रहे हैैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। वक्त आने पर जनता भाजपा इस स्थिति पर जवाब जरूर मांगेगी।

=पीसीएस परीक्षा: पेपर रद्द, पैनल ब्लैक लिस्ट

सामाजिक कार्य विषय का पुराना पेपर रिपीट होने के बाद आयोग ने उठाया कदम -निरस्त प्रश्नपत्र की परीक्षा 26 जुलाई को दोबारा होगी देहरादून, जागरण संवाददाता: आखिरकार उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की समझा में आ ही गया कि पीसीएस की हालिया परीक्षा में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई। सामाजिक कार्य विषय का पुराना पेपर रिपीट होने को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने इस पेपर को रद्द कर दिया। इसे तैयार करने वाले पैनल को भी ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो इसके लिए आयोग ने सख्त कदम उठाए हैैं। इन दिनों चल रही प्रोवेंसियल सिविल सर्विसेज(पीसीएस) परीक्षा-2006 की मुख्य परीक्षा में इसी 17 जून को सामाजिक कार्य विषय का पुराना प्रश्नपत्र रिपीट कर दिया गया था। दैनिक जागरण ने 20 जून के संस्करण में इस गड़बड़ी को प्रमुखता से उजागर किया था। पहले तो आयोग पल्ला झााडऩे के मूड में दिखा, लेकिन बाद में गंभीरता समझा में आने पर मंगलवार को इस मसले पर आयोग की बैठक बुलाई गई। आयोग मुख्यालय में हुई बैठक में इस साल की सामाजिक कार्य विषय की परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया गया। अब यह परीक्षा 26 जुलाई को होगी। पूर्व में सामाजिक कार्य का प्रश्नपत्र तैयार करने वाले पैनल को भी आयोग ने डीबार कर दिया है। आयोग के सचिव चंद्रशेखर भट्ट ने स्पष्ट किया कि तय हुआ कि भविष्य में उक्त पैनल को आयोग की किसी भी परीक्षा के कार्यों में शामिल नहीं किया जाएगा। इस प्रकार की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आयोग ने अन्य विषयों के प्रश्नपत्र तैयार करने वाले पैनल्स को भी सख्त निर्देश जारी किए हैैं। आयोग की बैठक में सामान्य अध्ययन विषय के प्रश्नपत्र में दिए गए सवालों के गलत विकल्पों के मामले में (इस समाचार को भी दैनिक जागरण ने 23 जून को प्रकाशित किया था) भी निर्णय लिया गया। श्री भट्ट ने बताया कि परीक्षा के संपन्न होने के बाद छात्रों से आपत्तियां मांगी जाएंगी। परीक्षण के बाद गलत सवालों को प्रश्नपत्र में शामिल नहीं माना जाएगा। बैठक में आयोग के अध्यक्ष एसके दास, सचिव चंद्रशेखर भट्ट और सदस्य डा. डापी जोशी व डा. मंजूला जोशी मौजूद थे। --- कापी लेकर भागने वाले छात्र पर भी हुई कार्रवाई सामान्य अध्ययन की परीक्षा में परीक्षा केंद्र से कापी लेकर भागने वाले छात्र पर कार्रवाई का निर्णय भी बैठक में लिया गया। सचिव चंद्रशेखर भट्ट ने बताया कि राजकीय कन्या इंटर कालेज, ज्वालापुर (हरिद्वार) स्थित परीक्षा केंद्र से कापी लेकर एक-डेढ़ घंटे के लिए फरार होने वाले छात्र रमेश चंद्र शुक्ला को आगामी एक वर्ष तक के लिए आयोग की किसी भी परीक्षा में शामिल नहीं किया जाएगा।


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