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Saturday, August 28, 2010

नहरें होंगी भूमिगत

http://garhwalbati.blogspot.कॉम
कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। यदि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चला, तो जल्द ही नगर व इससे जुड़े क्षेत्र में सिंचाई विभाग की तमाम नहरें भूमिगत हो जाएंगी। नहरों के भूमिगत होने से नगर की विभिन्न सड़कों की चौड़ाई बढ़ जाएगी। इससे यातायात व्यवस्था भी सुचारु हो जाएगी। विभाग ने मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की घोषणा के अनुरूप नगर व आसपास के क्षेत्रों से गुजर रही चार नहरों के करीब दस किमी. हिस्से को भूमिगत करने के लिए 827.74 का प्रस्ताव शासन को भेज दिया है।
नगर व आसपास के क्षेत्रों में घनी आबादी के चलते क्षेत्र की नहरें कूड़ा निस्तारण का जरिया बनकर रह गई हैं। काश्तकार लंबे समय से नहरों को भूमिगत करने की मांग करते आ रहे थे। मुख्यमंत्री ने गत 24 मई को कोटद्वार भ्रमण के दौरान जीर्ण-शीर्ण नहरों की मरम्मत के साथ ही नहरों को भी भूमिगत करने की घोषणा की। घोषणा के अनुरूप सिंचाई विभाग की ओर से नगर व आस-पास के क्षेत्रों की नहरों को भूमिगत करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर शासन में भेजा जा रहा है। इसके तहत दायीं खोह नहर में 0.846-1.18 किमी तक आरसीसी ह्यूम पाइप डालने, 1.18 किमी. से 2.57 किमी. के हिस्से में आरसीसी कवरिंग करने व 2.57 से 5.77 किमी. तक आरसीसी ह्यूम पाइप डाला जाना है। कौड़िया माइनर में 1.35 किमी तक, सुखरो नहर में 1.40 किमी. से 3.40 किमी. तक और शिवपुर माइनर में 1.65 किमी. तक आरसीसी ह्यूम पाइप डालकर भूमिगत किए जाने की योजना है। इसके अलावा नहर/ माइनर से जगह-जगह निकाले गए कुलाबों के सुलभ संचालन, सफाई, व परिचालन हेतु 50-50 मीटर की दूरी पर संपवैल बनाने की योजना भी है। कुलावों पर जल वितरण हेतु मुख्य लाइन से सड़क के किनारे तक जीआई पाइप व गेट वाल्व बनाने व कुलाबों की अतिरिक्त बढ़ी लंबाई में आरसीसी ह्यूम पाइप डालकर भूमिगत करने की योजना बनाई गई है।
जागरण.याहू.कॉम से साभार 

बच्चे एक-एक रोटी के मोहताज हो गए

बच्चे एक-एक रोटी के मोहताज हो गए
खटीमा(ऊधमसिंहनगर)। डेढ़ साल से पति का इंतजार करते-करते हीरा शर्मा की आंखें पथरा गई हैं। खेवनहार के लापता हो जाने से बच्चे एक-एक रोटी के मोहताज हो गए हैं। उन्हें पेट पालने के लिए दूसरों का मुंह देखना पड़ रहा है। घर भी ढहने की कगार पर पहुंच गया है। अब तो सिर छुपाने की भी जगह नहीं बची है। ये दुख भरी कहानी असम राईफल्स के जवान अशोक चंद्र शर्मा परिवार की है। वो डेढ़ वर्ष पूर्व घर में छुट्टी बिताने के बाद ड्यूटी के लिए रवाना हुआ था। तभी से वो लापता हो गया था। लापता होते ही उसका खुशहाल परिवार कंगाल हो गया है। दुर्भाग्य यह है कि सैनिक बाहुल्य क्षेत्र में इस परिवार की सुध लेने वाला तो दूर, इनके दर्द को सुनने वाला भी कोई नहीं है।
खटीमा शहर से आठ किलोमीटर दूर चकरपुर क्षेत्र के पचौरिया गांव के सैनिक अशोक चंद्र शर्मा का परिवार बहुत खुशहाल था। वह आसाम राईफल्स में तैनात था। उसके परिवार में पत्नी हीरा शर्मा व चार बच्चे मनीषा बारह, रीया छह, कल्पना चार व आयूष ढाई वर्ष के हैं। मां-बाप छोटे भाई के साथ रहते हैं। अशोक अपने परिवार से काफी खुश था। बारह साल नौकरी के हो गए थे। उसका जल्द ही नया घर बनाने का सपना था। वह 3 मार्च 2009 को चालीस दिन की छुट्टंी लेकर घर आया था। और छुट्टिंयों के दौरान बच्चों के साथ खुशी के पल बिताए थे। 8 अप्रैल 2009 को वह ड्यूटी पर जाने के लिए यूनिट के लिए घर से निकला। उसने जल्द ही दोबारा घर आने की बात कही थी। आठ दिन बाद परिजनों ने कुशलक्षेम के लिए यूनिट में अशोक को फोन किया। लेकिन यूनिट के अधिकारियों ने छुट्टी के बाद उसके वापस न लौटने की बात कही। यह सुनते ही पत्नी हीरा की पैरो तले जमीन खिसक गई। और घर में कोहराम मच गया। आखिर यह क्या हुआ। रिश्तेदार सैनिक की ढूंढखोज में निकल पड़े। खटीमा कोतवाली में इसकी गुमशुदगी भी दर्ज कराई। कुछ दिनों तक तो पति के लापता होने के वियोग में पत्नी बेसूध रही। समय बीतता गया और बच्चों के भरण पोषण में दिक्कतें बढ़ने लगी। इसके बाद पत्नी ने कई बार आसाम राईफल्स यूनिट के अधिकारियों से पति के जानकारी के लिए संपर्क साधा। और परिवार को पालने के लिए मिलने वाली सहायता मांगी। लेकिन मामला दूरभाष तक ही सीमित रह गया।
जागरण ने जब उसके हाल पूछे तो रुधें गले से हीरा शर्मा ने बताया कि उसका परिवार बेहद खुशहाल था। पता नहीं किस की इस घर पर बुरी नजर लग गई। इस वक्त हालात यह है कि दो वक्त की रोटी के लिए लाले पडे़ हुए हैं। अभी तक बच्चे दूसरों की दया पर जी रहे हैं। बच्चे छोटे हैं, इनका दुखदर्द नहीं देखा जा रहा है। वह लोगों के खेतों में काम काज करके पेट पाल रही है। लेकिन उसे बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। उसने बताया कि एक ही कमरा है जो बरसात में टपक रहा। अब सर छुपाने के लिए भी जगह नहीं है। इतना कहते ही वो फफक-फफक कर रो पड़ी। हीरा को आज भी पति के सकुशल लौटने का इंतजार है। वो टकटकी लगाकर आज भी गांव के गलियारे की ओर देखा करती है।
साभार जागरण.याहू.कॉम 

Friday, August 27, 2010

वर्षों से लंबित पड़ा पर्यटन आवास गृह अधिकारियों की लापरवाही का भेट चढ़ा

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वर्षों से लंबित पड़ा पर्यटन आवास गृह अधिकारियों की लापरवाही का भेट चढ़ा 
सुदर्शन सिंह रावत | पौढ़ी गढ़वाल | उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल नैनिडाडा विकास खंड के अंतर्गत बनने वाली पर्यटन आवास गृह का वर्ष 2006 में शिलान्यास होने के बाद  भी अधिकारियों के लापरवाही के कारण अधर में लटका पड़ा है. ग्राम सभा उठिडा गाँव के ज़मीन पर बनने  वाले पर्यटन आवास पर्यटन मंत्री श्री तेजपाल सिंह रावत पूर्व उर्जा मंत्री अमृता रावत  वर्त्तमान सांसद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सतपाल महाराज की उपस्थिती में खाली ढयां  उठिडा गाँव में किया गया था. कई वर्ष  बीत  जाने के बाद शिलान्यास स्थल पर कोई कार्य नहीं हुआ जबकि उत्तराखंड सरकार के ग्रामीण अभियत्रण विभाग ने भवन  निर्माण का पैसा भी आवंटित भी किया जा चुका है. सेवानिवृत अधिकारी श्री विक्रम  सिंह रावत का कहना है कि रोज़गार के लिए सपने पाले स्थानीय ग्रामीण बेरोजगार युवकों में कार्य ना होने के कारण असंतोष पैदा होने लगी है. अधिकारी इस क्षेत्र का विकास नहीं होने दे रही है. पूर्व पंचायत सदस्य भी चंदर सिंह रावत ने ग्रामीण अभियत्त्ना  विभाग व जिला पर्यटन विभाग के अधिकारियों से बातचीत की तो चौकाने वाली बातें अधिकारियों द्वारा कही गयी कि जिस भूमि  पर शिलान्यास किया गया उस भूमी को स्वीकृति नहीं मिली विस्तृत विवरण के लिए सक्रीय लोकसूचना कार्यकर्त्ता व समाज सेवी यशपाल सिंह रावत द्वारा जिला विकास अधिकारी पौड़ी गढ़वाल से सूचना मांगी गयी जिससे विभाग द्वारा पलाक संख्या 105 / लो. सू. अ./ पौड़ी 08 / 09 के द्वारा सूचना दी गयी पर्यटन विकास अधिकारी पौड़ी द्वारा पत्र के माध्यम से बताया गया कि ग्राम सभा उठिडा गाँव में पूर्व चयनित स्थल पर पानी उपलब्ध न होने के कारण योजना को श्री टी. पी. एस  रावत पूर्व विधायक द्वारा नैनिडाडा में अस्पताल के निकट राजस्व भूमी पर पर्यटक आवास गृह निर्माण के निर्देश दिये गए तथा योजना स्थल को विभाग के नाम हस्तांतरण व ग्राम सभा से अनापत्ति प्रमाण पत्र की कार्यवाही चल रही है. ग्राम सभा  प्रधान वीरा देवी रावत से बातचीत की गयी तो उनका कहना है कि आनापत्ति प्रमाण पत्र ग्राम सभा द्वारा 2009 में ही विभाग को दे दिया गया. स्थल पर निरिक्षण के दौरान जाँच कि गयी तो किसी भी तरह का कार्य विभाग द्वारा नहीं कराया गया है जबकि जिला पर्यटन अधिकारी द्वारा सूचना के तहत मार्च 2009 तक कार्य पूर्ण करने का वादा किया गया. अब इसे विभाग की लापरवाही कहे या कुछ और? 

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