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Thursday, April 28, 2011

मुनाफा नहीं, कमाया 1367 करोड़ लॉस

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सूबे के सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयूज) मुनाफा कमाने और बेहतर प्रबंधन की अपेक्षा के मोर्चे पर नाकाम साबित हो रहे हैं। हाल के वर्षो में इन्होंने मुनाफे के नाम पर 1367.95 करोड़ लॉस कमाया। लाभांश नीति पर सरकार के कुंडली मारकर बैठने से लाभ वाले उपक्रमों भी घाटे वाले साथियों के साथ कतार में हैं। राज्य बनने के दस साल बाद भी किसी भी उपक्रम के विनिवेश और पुनर्गठन की ठोस योजना पर अमल नहीं हुआ।
पीएसयूज और घाटा दोनों शब्द एकदूसरे के पूरक बन गए हैं। सरकारी उपक्रमों के लगातार घाटे से उबरने को कार्ययोजना की अनदेखी कोई और नहीं, बल्कि सरकार कर रही है। नतीजतन आम जनता को तमाम जरूरी अवस्थापना सुविधाएं समयबद्ध और तुरंत पेशेवर अंदाज में मिलें, यह अब भी ख्वाब सरीखा है। इसकी तस्दीक सरकारी आंकड़े और स्पेशल ऑडिट रिपोर्ट कर रही है। विकास गतिविधियों में पीएसयू की भूमिका का अंदाजा इससे लग सकता है कि पांच वर्ष की अवधि में 31 मार्च, 2010 तक इनमें पूंजी और लंबी अवधि के ऋण के तौर पर कुल निवेश 5783.88 करोड़ हुआ। इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। वर्ष 2004-05 में निवेश ने 1551.09 करोड़ से बढ़कर 5783.88 करोड़ का आंकड़ा पार किया। इसमें मुख्य निवेश तकरीबन 57.44 फीसदी विद्युत क्षेत्र में हुआ। अवस्थापना क्षेत्र पर जोर रहने की वजह से इस क्षेत्र का अंश वर्ष 2004-05 में 2.16 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2009-10 में 37.11 फीसदी पहुंच गया। सितंबर, 2010 तक पीएसयूज ने 1722.95 करोड़ का व्यवसाय कर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.68 फीसदी हो गया।
आश्चर्यजनक ढंग से सरकार की इस मेहरबानी के नतीजे चिंता की शक्ल में सामने आ रहे हैं। वजह व्यावसायिकता और जवाबदेही के मोर्चे से पलायन है। कुछ वर्षो के भीतर पीएसयूज 1367.95 करोड़ की लॉस उठा चुके हैं। इसके लिए प्रबंधन में खामी को जिम्मेदार माना गया है। वर्ष 2004-05 में 37.87 करोड़ से बढ़ते हुए लॉस वर्ष 2009-10 में 79.66 करोड़ हो गया। लॉस में ऊर्जा से जुड़े निगम आगे रहे। 30 सितंबर, 2010 तक ऊर्जा निगम ने 144.02 करोड़, पारेषण निगम (पिटकुल) ने 19.16 करोड़ लॉस झेला। परिवहन निगम ने 10.29 करोड़ हानि उठाई। 11 पीएसयूज ने 191.69 करोड़ का घाटा उठाया। राहत यह रही कि आठ पीएसयूज ने 112.3 करोड़ का लाभ कमाया तो सरकार ने लाभांश घोषणा से ही कन्नी काट ली। इससे राजस्व नहीं मिलने के रूप में घाटा सरकार के पल्ले ही पड़ा है।
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सच हुआ ग्रामीणों का सपना

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कोटद्वार : लंबे इंतजार के बाद लोक निर्माण विभाग ने ऐता-उमरैला-चरेख मोटर मार्ग पर पिछले चार वर्षो से अधर में लटके पुल का निर्माण कार्य पूर्ण कर दिया। पुल निर्माण होने के साथ ही ऐता-उमरेला-चरेख मोटर मार्ग पर वाहनों की आवाजाही शुरू होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
बताते चलें कि 'दैनिक जागरण' ने अपने 25 फरवरी के अंक में '..तो यह है विकास की गति' शीर्षक से प्रकाशित समाचार में ऐता-उमरेला-चरेख मोटर मार्ग पर पिछले छह वर्षो से अधर में लटके पुल का जिक्र किया था। बताते चलें कि वर्ष 2005 में शासन ने ऐता-उमरैला-चरेखमोटर मार्ग को स्वीकृति प्रदान कर दी। विभागीय लचरता के चलते स्वीकृति के अगले दो वर्षो तक अधिकारियों ने मार्ग की सुध नहीं ली। जनता के विरोध के उपरांत वर्ष 2007 में सड़क कटान का कार्य शुरू हुआ। साथ ही खोह नदी पर पुल निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। शासन ने पुल निर्माण को करीब सवा सौ करोड़ की धनराशि स्वीकृत की, जो बाद में बढ़कर पौने दो करोड़ तक पहुंच गई, लेकिन पुल निर्माण फिर भी अधर में रहा।
'दैनिक जागरण' में खबर प्रकाशित होने के बाद लोक निर्माण विभाग हरकत में आया व पुल निर्माण कार्य शुरू हो गया। अब पुल का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है , साथ ही पुल के दोनों ओर एप्रोच रोड बनाने का कार्य भी अंतिम चरण में है। एप्रोच रोड बनने के साथ ही पिछले छह वर्षो से सड़क की बाट जोह रहे ग्रामीणों को राहत मिल जाएगी।
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