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Saturday, July 2, 2011

आगामी कांवड़ मेले की पार्किंग होगी आइडीपीएल

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सावन में शुरू होने वाले  कांवड़ मेले की पार्किंग के लिए  इस बार आइडीपीएल को चुना गया  है। पशुलोक में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निर्माण का कार्य होने के चलते इस बार कांवड़ मेले की पार्किंग का इंतजाम आइडीपीएल में  किया गया है। स्थानीय प्रशासन ने कांवड़ मेले को लेकर कमर कस ली है। तमाम व्यवस्थाओं के संबंध में पुलिस व प्रशासन ने बैठक में चर्चा की।
शुक्रवार को नगरपालिका सभागार में कांवड़ मेले के संबंध में एसडीएम प्रताप सिंह शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक में पुलिस प्रशासन तथा स्थानीय जनप्रतिनिधियों और व्यापारियों के बीच कांवड़ मेले की व्यवस्थाओं के संबंध में चर्चा हुई। प्रशासन ने व्यापारियों और परिवहन संस्थाओं के प्रतिनिधियों से कांवड़ मेले के दौरान सहयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि कांवड़ मेला लगातार एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में बिना एक दूसरे के सहयोग से इसे शांतिपूर्ण संपन्न किया जाना इतना संभव नहीं है। पुलिस प्रशासन ने यात्रा के दौरान नगर क्षेत्र को भारी वाहनों की आवाजाही से मुक्त रखने का निर्णय लिया। वाहनों के लिए ट्रैफिक रूट भी तय किया गया है, इस बार पार्किंग को लेकर प्रशासन के समक्ष बड़ी समस्या थी। जिसे अब हल कर दिया गया है। पशुलोक बैराज में बनने वाली अस्थाई पार्किंग में एम्स का निर्माण कार्य प्रगति पर होने के चलते प्रशासन ने आइडीपीएल टाउनशिप में कांवड़ मेले के लिए तीन अस्थाई पार्किंग बनाई है। एसडीएम ने बताया कि दस जुलाई से पहले डीएम देहरदून इस मुद्दे पर अंतिम बैठक करेंगे। तब तक उन्होंने सभी विभागों को व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं। 

प्रदेश में बढ़ती निजी विद्यालयों की निरंकुशता

पिछले चार दिनों से लगातार हो रही भारी वर्षा व बागेश्वर के सुमगढ़, अल्मोड़ा के बल्टा व देवली की घटनाओं को देखते हुए जिलाधिकारी ने गुरुवार को सभी विद्यालयों को बंद रखने के निर्देश दिए थे।
 लेकिन प्रदेश के कुछ इलाको में निजी विद्यालयों की निरंकुशता इतनी बढ़ गयी है की अब वह डीएम  तक के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं। जिलाधिकारी के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए अनेक निजी विद्यालयों ने स्कूल बंद करने के आदेश  होने के बावजूद स्कूलो को खोला।
जहाँ  कुछ विद्यालयों ने जिलाधिकारी के आदेश को स्वीकार  किया तो कुछ ने आदेश हुक्मअदुली कर अपने आपको प्रशासन से ऊपर दिखाने की कोशिश की।
नगर के अनेक विद्यालय प्रात: तो खुले, जिनमे  अधिकांश ने बच्चों को वापस घर भेज दिया, लेकिन खत्याड़ी स्थित होली एंजिल व आर्मी स्कूल खुले रहे। जबकि जिला शिक्षाधिकारी ने जिलाधिकारी के आदेश से जिले के सभी विद्यालयों को अवगत करा दिया था। इस मसले पर  जिला शिक्षाधिकारी राम हरिओम चतुर्वेदी का कहना है कि जिन निजी विद्यालयों ने आदेशों की अवहेलना की है, जांच के बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।
उनका कहना है कि उत्तराखण्ड बोर्ड के विद्यालयों के अतिरिक्त सीबीएसई व आईसीएसई बोर्ड पर जिला शिक्षा विभाग का कोई अंकुश नहीं है। यही कारण है कि वह मनमानी करते हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए वह अपने उच्च अधिकारियों से कार्रवाई का आग्रह करेंगे।
इस संदर्भ में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी राजीव गुरूरानी ने ऐसे विद्यालयों की मान्यता रद्द करने की मांग की है, जो प्रशासन के आदेशों की अवहेलना करते हैं।

Friday, July 1, 2011

संकट के द्वार पर कुमाऊं के 170 गांव

उत्तराखंड राज्य में बरसात के दौरान भूस्खलन, बाढ़ व भूकटाव जैसी परेशानियों से अक्सर ग्रामीणों को 
दो चार होना पड़ता है। लेकिन  समय के साथ साथ अब यह  एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। बरसात के दौरान प्रदेश के कई गाँव में खतरा मंडराने लगता है। ऐसा ही कुछ हाल है कुमाऊं के उन 170 गांवों का जहाँ  बरसात शुरु होते तबाही के आसार  बन जाते हैं।   

खतरे के मुहाने पर बसे इन गांवों के लिए बरसात किसी खौफ से कम नहीं है। ये वही इलाके हैं जो हर साल भू-स्खलन, बाढ़ व भू-कटाव की विभीषिका झेलते आ रहे हैं। ऐसे में बाढ़ सुरक्षा व आपदा प्रबंधन के काम चलाओ  इंतजामों के बीच मूसलाधार वर्षा में ग्रामीण खौफ के साए में जी रहे हैं।
बाढ़ व भूकटाव की दृष्टि से जहां तक भाबर का सवाल है, पूरा गौलापार क्षेत्र, शांतिपुरी, बिंदूखत्ता व कोटखर्रा का इलाका गौला नदी के मुहाने पर बसा है।

यहां बाढ़ हर साल कहर बरपाती है। कोसी नदी से भरतपुरी, पंपापुरी, चुकुम मुहान, कुनखेत, बेतालघाट व ऊधम सिंह नगर का जोगीपुरा भी बेहद संवेदनशील है। इधर निहाल नदी का पानी नैनीताल जिले के ढापल गांव में तांडव मचाता हुआ हरिपुराव बौर जलाशय में मिलता है। बौर नदी का पानी कालाढूंगी बंदोबस्ती में हलचल मचाते हुए बौर में पहुंचता है। इसी तरह ढैला नदी नैनीताल जिले के ढैला गांव व ऊधम सिंह नगर के नवलपुर आदि गांवों में कहर ढाता है।

फीका नदी में आने वाला उफान जसपुर क्षेत्र को उजाड़ता है, बैगुल नदी सितारगंज व झाली नंबर नौ इलाके को हर साल की तरह इस बार भी अपना निशाना बना सकती है। देवहा नदी नानक सागर बांध के निचले हिस्से में बस गांवों को प्रभावित करने के साथ ही मोहम्मदपुर और मझगमी क्षेत्र में जबरदस्त तबाही मचाती है। कामिनी नदी ऊधम सिंह नगर के दिया गांव समेत कई प्रमुख मार्गो के लिए खतरनाक साबित होती है।

यही स्थिति पहाड़ की है। कौसानी से निकलने वाली कोसी नदी सोमेश्वर व कनौदा के आसपास जबरदस्त भू-कटाव करते हुए गुजरती है तो रामगंगा का पानी चौखुटिया, मासी, भिकियासैड़ और मारचूला तक कटाव करता है। सरयू नदी बागेश्वर जिले के कपकोट को निशाना बनाती है तो गोमती नदी में आने वाले उफान से बैजनाथ क्षेत्र में कटाव होता है। गोरी गंगा के निशाने पर पिथौरागढ़ का मदकोट इलाका रहता है।

नैनीताल-ऊधमसिंहनगर क्षेत्र के अधीक्षण अभियंता डीसी सिंह और अल्मोड़ा परिक्षेत्र के अधीक्षण अभियंता वीके पंत का कहना हैं की, पूरे कुमाऊं में करीब 170 प्रभावित इलाके हैं। जिनमें नैनीताल व ऊधमसिंहनगर क्षेत्र में सर्वाधिक करीब सवा सौ गांव हैं।

अधिकारियो  के मुताबिक प्रभावित इलाकों में बाढ़ सुरक्षा योजनाएं काफी पहले तैयार कर भेज दी गई थीं। पर अधिकांश योजनाएं मंजूरी न मिलने से क्रियान्वित नहीं हो सकी। नतीजतन प्रभावित क्षेत्रों को बचाने के लिए विभाग वैकल्पिक व्यवस्था तैयार कर रहा है।

Thursday, June 30, 2011

ग्रामीणों में बढ़ रही है बाहरी लोगों की दहशत

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उत्तराखंड के चमोली जिले के ग्रामीण  पिछले कुछ समय से  डर के साये में जी रहे हैं। दरअसल उनके  डर की वजह जिले में  संदिग्ध परिस्थितियों में घूम रहे बाहरी लोग हैं। अब जब स्कूल खुलने वाले  हैं तो ग्रामीणों की चिंता और भी बढ़ गई है कि वह अपने नौनिहालों को अकेले स्कूल कैसे भेजें।
गौरतलब  है कि बीते एक माह से चमोली जिले में बच्चा चोर गिरोह को लेकर गहमागहमी है। प्रशासन जहां इन बातों को महज अफवाह मान रहा है वहीं ग्रामीण डरे हुए  हैं।

खैनोली गांव के पूर्व प्रधान गजपाल सिंह ने बताया कि पच्चीस जून को जब एक स्थानीय युवती अपने बगीचे में काम कर रही थी तो वहां साधू के वेश में पहुंचे एक  बदमाश ने लड़की को उठाने का प्रयास किया गनीमत है  कि लड़की के हो हल्ला करने पर वह संदिग्ध वहां से भाग निकला।

उनका कहना है कि क्षेत्र घुरखेत, घनियालीसैंण, भेला, अंगोठ, सहित दर्जनों गांवों में लोग बाहरी लोगों की संदिग्धता से सहमे हुए हैं। उन्होंने इस आशय का पत्र जिलाधिकारी को भी देकर जिले में बढ़ रहे संदिग्ध व बाहरी लोगों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।

हिमपात वाले गांवों को मिलेगी आधी दरों पर बिजली!

प्रदेश  में हिमपात वाले गांवों वालो  के लिए यह खबर किसी खुशखबरी से कम नहीं की  अब जल्द ही उन्हें  बिजली आधी  दरो  पर  मिलेगी। 
 अगर विद्युत विभाग की पहल रंग लायी तो जल्द ही चमोली जिले के बर्फीले क्षेत्रों में विद्युत दरों पर आधे की छूट मिलेगी। विद्युत विभाग ने जिला प्रशासन से हिमपात वाले गांवों की सूची मांगी है, लेकिन प्रशासन निर्वाचन कार्यालय की सूची को ही फिलहाल आधार मान रहा है।

चमोली जिले में कुल 56 हजार विद्युत उपभोक्ता हैं, अगर हिमपात वाले गांवों का सही सर्वे हुआ, तो पांच हजार से अधिक उपभोक्ताओं को इस छूट का लाभ मिलेगा। इस दायरे में न केवल घरेलू, बल्कि कॉर्मिशियल उपभोक्ता भी हैं। ऐसे में लघु उद्योगों को तो दूरस्थ क्षेत्र में यह सुविधा किसी संजीवनी से कम साबित नहीं होंगी। हालांकि, इससे विद्युत विभाग को मोटे राजस्व की हानि उठानी पडे़गी ।

विद्युत विभाग द्वारा प्रशासन से मांगी गयी सूची में प्रशासन निर्वाचन सर्वे को ही आधार मान रहा है, अगर यही मानक लागू हुए तो जोशीमठ व कर्णप्रयाग के गांवों को छोड अन्य प्रभावितों को लाभ से वंचित होना पड़ेगा, हालांकि अब प्रशासन भी इस खामी को मानते हुए स्नो लाइन के ऊपर के गांवों का पृथक सर्वे की बात कर रहा है।

इस सूची में शामिल गांव

जोशीमठ के सुरांई ठोटा, पगरासू, सुभाई, डुमक, कलकोट, माणा, नीति, घमसाली, कैलाशपुर , झेलम, कोसा, जुम्मा, द्रोणागिरी, मलारी, भरकी, पुल्ना, उर्गम ,ल्यारी थैणा क्षेत्र के गांव। कर्णप्रयाग विकासखण्ड में बरतोली, दुआ, सकंड गांव है।

-थराली, घाट, दशोली, नारायण बगड़, गैरसैंण, पोखरी के दर्जनों गांव हिमाच्छादित हैं  'नियामक आयोग के निर्देशों पर हिमाच्छादित क्षेत्र के उपभोक्ताओं के लिए विद्युत दर में छूट है। इसे क्रियान्वित करने के लिए डीएम से स्नोबाउण्ड एरिया के गांवों की सूची मांगी गई है। जिसके आधार पर उपभोक्ताओं को 35 से 50 प्रतिशत की बिलों में छूट दी जायेगी।
'प्रशासन के पास हिमाच्छादित गांवों की सूची है, मिनिस्ट्रीयल कर्मियों की हड़ताल खत्म के बाद यह सूची विद्युत विभाग को सौंप दी जायेगी। प्रशासन ने चुनाव को लेकर हिमप्रभावित क्षेत्रों का सर्वे भी  किया है।

Wednesday, June 29, 2011

जगह की तलाश में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की प्रतिमा

भारत के वीर सपूतो में से एक  वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के बलिदान के लिए
उन्हें आज भी याद किया जाता है। लेकिन समय की विडंबना तो देखिये,  पेशावर कांड के इस  महानायक  की स्मृति में बनायी गयी उनकी प्रतिमा आज अपने लिए एक स्थान ढूंढ रही है।
तहसील परिसर में स्थित वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की आदमकद प्रतिमा, प्रख्यात मूर्तिकार डॉ.अवतार सिंह पंवार की नायाब कला का बेमिसाल नमूना है। वर्ष 1997 में तत्कालीन रेल राज्य मंत्री सतपाल महाराज ने मूर्ति का अनावरण किया। मूर्ति को तहसील परिसर में स्थापित किया गया।
वर्ष 2009-10 में तहसील को नये भवन मे शिफ्ट किया गया और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड की स्थानीय इकाई ने पुराने स्थान पर एक पार्क बनाने का निर्णय किया। तहसील प्रशासन ने स्व.गढ़वाली की मूर्ति की सुध लेते हुए भाइलि प्रशासन से उक्त मूर्ति को पार्क के भीतर स्थापित करने का अनुरोध किया, जिस पर भाइलि प्रशासन ने सहमति भी जता दी। भाइलि ने पार्क निर्माण तो पूरा कर दिया, लेकिन अभी तक मूर्ति को पार्क के भीतर शिफ्ट करने की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

दूसरी ओर, स्व.गढ़वाली की इस आदमकद प्रतिमा के समक्ष फैली गंदगी उन  तमाम लोगों के लिए सबक भी है, जो 'विशेष' मौकों पर स्व.गढ़वाली के आदर्शो को आत्मसात करने को 'संकल्प' लेते हैं।
शायद प्रशासन भारत माँ के इस वीर सपूत के बलिदान को भूल रहा, तभी तो स्व.गढ़वाली की इस प्रतिमा  को अभी तक सही स्थान नहीं मिल पाया है।

Tuesday, June 28, 2011

अब टिहरी के गरीब परिवारों को भी मिलेगा सस्ता राशन

दिन प्रतिदिन बढ रही मैहगाई से जहाँ एक तरफ आम आदमी काफी परेशान है,
वहीँ दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगो का हाल तो और भी बुरा है। लेकिन अब खबर है की  जुलाई माह के अंत में देश के सबसे गरीब 150 जिलों में शामिल टिहरी के 12588 बीपीएल आइडी धारक परिवारों को जल्द बीपीएल परिवारों की भांति सस्ते दरों पर राशन उपलब्ध हो सकेगा। एक साल तक के लिए जारी की गई इस व्यवस्था से जिले के कमजोर वर्गो को अब सस्ता राशन उपलब्ध हो सकेगा। जिला प्रशासन की ओर से सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केन्द्र सरकार को खराब हो रहे राशन को देश के सबसे गरीब जिलों को अतिरिक्त आवंटन के निर्देश दिए गए थे, जिसके बाद पिछले दिनों कोर्ट की लीगल कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज डीपी बांदवा के नेतृत्व में जिले के कई ब्लॉकों का भ्रमण कर रिपोर्ट तैयार की थी। इससे पूर्व जिलाधिकारी राधिका झा ने जिले में कमजोर वर्ग को लेकर रिपोर्ट उन्हें सौंपी। जिला प्रशासन की ओर से तैयार उक्त रिपोर्ट का संज्ञान लेने के बाद टीम ने जिले को अतिरिक्त राशन आवंटन की संस्तुति दी।
23 जून को दिल्ली में इस संबंध में आयोजित बैठक से लौटने के बाद जिलाधिकारी राधिका झा ने बताया कि अब तक जिले में 49750 बीपीएल राशन कार्ड धारक परिवारों को सस्ते दरों पर राशन मिल पा रहा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की लीगल टीम की ओर से जिले के भ्रमण व इस संबंध में जिला प्रशासन के प्रस्तुतीकरण को देखते हुए 12588 और बीपीएल आईडी धारक जिन्हें एपीएल की दरों पर राशन मिलता था, अब बीपीएल की भांति सस्ते दरों पर राशन मिल पाएगा। उन्होंने बताया कि जिले में अब कुल 62308 परिवारों को सस्ते दरों पर राशन मिल पाएगा।
अब तक चयनित 12588 परिवारों के अलावा जिला प्रशासन ने तीन माह के भीतर ग्राम पंचायतों की खुली बैठक में सर्वे कराने का निर्णय लिया है, ताकि कोई भी कमजोर वर्ग का परिवार सस्ते राशन लेने से वंचित न रहे। फिलहाल जिले में बीपीएल आईडी धारकों को सस्ता राशन एक साल के लिए अस्थाई तौर पर दिया जाएगा। इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा 439.530 मीट्रिक टन राशन अतिरिक्त मांग की गई है।

सोने से भरा घड़ा ले लो, दाम जो चाहे दे दो

नैनीताल जिले के रामनगर इलाके में आज कल एक फ़ोन कॉल कई लोगो को चौका रहा है। दरअसल फ़ोन पर कोई व्यक्ति  यह कहता है की  खुदाई में उसे  सोने का घड़ा मिला है, जिसमे  कई स्वर्ण बिस्किट हैं। बिस्किट का आधा टुकड़ा उसने सुनार को दिखाया, सुनार ने भी सोना असली होने की पुष्टि की है,  लेकिन  उन्होंने  को घड़ा मिलने की बात सुनार को नहीं बताई। पुलिस के डर से वो  सोना बाहर नहीं बेच पा रहे हैं। इसलिए आप मनमाफिक दाम में सोना खरीद लो..।'

पुलिस के मुताबिक इस  कॉल के पीछे किसी  ठग गिरोहों का शातिर दिमाग काम कर रहा है, जो आपको मनमाफिक दाम पर सोना खरीदने का ऑफर दे ठगने के लिए तैयार बैठे हैं। अब तक दर्जन से ज्यादा लोगों के पास ऐसे कॉल आ चुके हैं। सोना बेचने वाला खुद को राजस्थान का प्रजापति बता रहा है।

यदि फोन रिसीव करने वाले ने इतनी दूर न आने की बात कही तो ठग बाजपुर, जसपुर आदि नजदीकी शहरों में खुद सोना लेकर आने का भरोसा भी दिलाता है। हालांकि अब तक कोई भी इस जाल में नहीं फंसा है, लेकिन मामला गंभीर है। ऐसा नहीं है कि पुलिस मामले से बेखबर है। कुछ पुलिस कर्मियों को भी मनमाफिक दाम में सोना खरीदने का ऑफर मिल चुका है। पुलिस कॉल डिटेल खंगालने में जुट गई है।

Sunday, June 26, 2011

क्या फ़ुटबाल सच में उत्तराखंड की पहचान का प्रदर्शन करता है ??



फुटबाल को स्टेट गेम बनाने की तैयारी पूरी

देहरादून: फुटबाल को स्टेट गेम बनाने को लेकर खेल विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है। संबंधित प्रस्ताव आगामी कैबिनेट बैठक में लाया जाएगा। खेलमंत्री ने विभागीय प्रमुख सचिव को इस बारे में आवश्यक निर्देश दिए हैं। विभागीय समीक्षा में खेलमंत्री खजानदास ने प्रमुख सचिव खेल राकेश शर्मा से फुटबाल को स्टेट गेम घोषित करने के बारे में की गई तैयारियों की प्रगति की जानकारी ली। प्रमुख सचिव ने बताया कि इस संबंध में ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। आगामी कैबिनेट में इसे लाया जा सकता है। खेलमंत्री के मुताबिक गत अप्रैल में इस बारे में घोषणा की गई थी। सीएम ने इस बारे में तैयारियों को पूरा करने के निर्देश भी दिए हैं। काबीना मंत्री ने कहा कि विभाग की लंबित योजनाओं को शीघ्र पूरा करने को लेकर प्रभावी कार्यवाही की जानी चाहिए। काबीना मंत्री ने स्पो‌र्ट्स कालेज देहरादून में अवस्थापना सुविधाएं बेहतर बनाने को निदेशालय को प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजने को कहा।
   (दैनिक जागरण ,२६ जून २०११ )

आज ही छपी दैनिक जागरण में एक खबर के अनुसार राज्य सरकार फुटबाल को राज्यीय खेल बनाने जा रही है .परन्तु पहले ही संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्ज़ा दे और गढ़वाली और कुमाऊनी को नज़रअंदाज़  कर उत्तराखंडी जनमानस की भावनाओं पर कुठाराघात कर चुकी यह सरकार अपने फैसले में कहाँ तक साही है ? उत्तराखंड में ना जाने कितने पारंपरिक लोक खेल हैं जन्हें अनदेखा किए जाने की नीति के कारण नई पीढ़ी में कोई जानता भी नहीं ,पर हमरी हिटलरशाही सरकार है कि उसके लिए यह सारे मुद्दे अप्रासंगिक हैं ! कोई भी राज्य अपना राज्यीय खेल अपनी संस्कृति अपनी पहचान और अपने खेल इतिहास को ध्यान में रखते हुए घोषित करता है वह खेल ऐसा होता है.आज पंजाब और हरियाणा का राज्यीय खेल कबड्डी है तो यह उनकी खेल संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है . वहीं फुटबाल किस कोण से हमारी "खेल संस्कृति" का प्रतिनित्धित्व करता है भला ?  माना कि यह दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय खेलों में से एक है और हमरे राज्य में भी युवाओं के बीच इसकी क्रेज बढ़ा है पर फिर भी क्या यह खेल सच में उत्तरखंड के युवाओं के दिल की धडकन है ? अमेरिका में   बेसबाल के लिए  और कनाडा में आइस होकी के लिए जो पागलपन दिखता है क्या वही जूनून उत्तरखंड में फ़ुटबाल के प्रति है ? नहीं संभवतः क्रिकेट के लिए इससे अधिक उत्साह हों .तो क्या इसका समाधान यह है कि क्रिकेट को ही राज्यीय खेल घोषित किया जाये ? नहीं ,कदापि नहीं .संभवतः पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में फुटबाल की लोकप्रियता की देखादेखी यह कदम उठाया गया हो ,पर उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों की खेल संस्कृति में अंतर है .वहाँ के युवाओं के बीच सच में फुटबाल बसता है (क्रिकेट से भी अधिक!) ऐसा नहीं होता तो देश के अधिकतर फुटबाल क्लबों में उस क्षेत्र के खिलाड़ियो की इतनी बहुतायत ना होती.पर उत्तराखंड में ऐसी स्थिति नहीं है.  
पहले तो यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि किसी भी खेल को राज्यीय खेल घोषित करने से उसकी लोकप्रियता और खेले जाने पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला ,पर प्रभाव पड़ेगा आर्थिक पटल पर .उस खेल के लिए कुछ ना कुछ ही सही राज्य से आर्थिक सहायता तो मिलेगी ही ,उसके लिए कोई छोटी मोटी ही सही कोई स्पोट्स अकादमी तो खुलेगी, उसके लिए कुछ चुनिन्दा ही सही पर कुछ पेशेवर कोच तो तैयार किये जायेंगे ,उसे मामूली ही सही थोड़ा तो प्रचार और पब्लिसिटी मिलेगी ,कुछ गिने चुने ही सही पर कुछ युवा तो उस खेल की ओर आकर्षित होंगे ही .
तो फिर आखिर किस खेल तो राज्यीय  बनाया जाए ,उत्तर सीधा सा है पहले तो सरकार को कोई उत्तराखंडी पारंपरिक खेल चुनना चाहिए,ऐसे खेलों की यहाँ कमी नहीं है  मसलन तैराकी ,निशानेबाजी और तो और उत्तराखंड का (गढ़वाल क्षेत्र का ) तो अपना एक रग्बी का ही प्रथक संस्करण है जिसे यहाँ "गिंदी को खेल " कहते हैं जो कि काफी लोकप्रिय भी है और यदि सरकारी प्रोत्साहन मिले तो यह और लोकप्रिय हों सकता है .ऐसे ही ना जाने कितने क्षेत्रीय खेल हैं जो कि सरकार की अंधी नज़रों के आगे कभी नहीं पड़ी .नहीं तो कोई साहसी खेल (अडवेंचर सपोर्ट ) उत्तराखंड की एडवेंचर टूरिस्म में बन रही छवि को देखते हुए  राज्य का अच्छा प्रतिनिधित्व कर सकता है. राज्यीय खेल के तौर पर वाटर राफ्टिंग, कयाकिंग, माउंटेन क्लाइम्बिंग, पेराग्लैडिंग और स्कीइंग जैसे खेल राज्य के ब्रैंड एम्बेसडर के तौर पर भी काम कर सकते हैं जिनसे  "एडवेंचर टूरिस्म" ,जिसमें हमारी पहले से ही पहचान है ,उसमें उत्तराखंड  एक अग्रिणी राज्य बन सकता है
ख़ैर विकल्पों की तो कोई कमी नहीं पर यदि कोई अमल करना  चाहे तो ही यह सब लागू करना संभव है .

उत्तरखंड के पारंपरिक खेलों के लिए यहाँ देखें :

 निखिल उत्तराखंडी http://www.facebook.com/NIKHIL0UTTRAKHANDI 

























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