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प्रदेश का प्रख्यात क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल आज कल भारी संकट से जूझ रहा है, दरसल उत्तराखंड प्रदेश में एक मात्र मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल, यानि उक्रांद के लिए आने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दल की मान्यता को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती होगी। एक तरफ चुनाव आयोग ने मान्यता के लिए मत प्रतिशत बढ़ा दिया है, दूसरी तरफ दल के अंदर विभाजन और कमजोर संगठन की वजह से स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो गई है।
उत्तराखंड में क्षेत्रीय दल के तौर पर सिर्फ उक्रांद को चुनाव आयोग से मान्यता मिली है। अब तक मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल के लिए छह प्रतिशत मत या तीन विधानसभा सीटें दल के पास होने की बाध्यता थी। अब भारत निर्वाचन आयोग ने मान्यता के लिए मत प्रतिशत बढ़ा दिया है। आठ प्रतिशत मत प्राप्त करने वाले दल को ही क्षेत्रीय दल की मान्यता मिलेगी।
2007 के चुनाव में उक्रांद को छह प्रतिशत से कुछ कम मत मिले थे। दल को मत प्रतिशत के आधार पर नहीं, बल्कि तीन विधान सभा सीटें जीतने की वजह से क्षेत्रीय दल की मान्यता मिली थी। सवाल उठ रहा है कि यदि पिछले चुनाव में छह प्रतिशत वोट भी उक्रांद हासिल नहीं कर पाया तो क्या इस बार आठ प्रतिशत वोट हासिल कर मान्यता बरकरार रख सकेगा जबकि इस बार उक्रांद एक और विभाजन की त्रासदी से गुजरा है। उक्रांद के तीन विधायक भी एक साथ नहीं रह पाए हैं। दो विधायक एक साथ हैं तो एक उनसे अलग हैं।
सबसे बड़ी समस्या दल के सामने खड़ी है कि विभाजित हुए दल के दो धड़ों की लड़ाई निर्वाचन आयोग तक पहुंच गई है। असली कौन, की इस लड़ाई का अभी नतीजा आना बाकी है। चुनाव आयोग यदि चुनाव चिन्ह सीज कर देता है तो यह उक्रांद के अस्तित्व के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। इस स्थिति में दोनों धड़ों में से किसी एक को आठ प्रतिशत मत लाकर आगे के लिए उक्रांद की मान्यता बरकरार रखने की कोशिश करनी होगी।
वास्तविकता यह है कि संगठन के मामले में उक्रांद आज भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। उत्तराखंड की मांग को मौलिक रूप से उठाने वाले उक्रांद के प्रति राज्य में आज भी सहानुभूति बची है, लेकिन संगठन के अभाव में उक्रांद उस सहानुभूति को अपने पक्ष में भुनाने में विफल होता रहा है।