पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में गदर का नाम देकर अंग्रेजों ने कई अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को नैनीताल में फांसी पर लटका दिया था। जो ऐतिहासिक अभिलेखों में फांसी गधेरे के नाम से दर्ज है। अभिलेखों में कुमाऊं में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद संघर्ष में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी देने का उल्लेख है। साथ ही हल्द्वानी में दो बार कब्जा करने व अंग्रेजों के मैदानी क्षेत्र से जान बचाकर नैनीताल आने का भी उल्लेख स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा 1857 के संघर्ष की 150 वीं वर्षगांठ में जगह-जगह स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया गया। संस्कृति विभाग के अभिलेखागार की प्रदर्शनी में नैनीताल के फांसी गधेरे में अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी में लटकाने को लेकर अभिलेख में कहा है कि 1857 के प्रथम आजादी के संघर्ष के दौरान जब कमिश्रन्र रामजे ने उत्तर भारत का चार्ज लिया। तब स्वतंत्रता संघर्ष चरम पर था। 17 सितंबर को एक हजार लोगों ने हल्द्वानी में कब्जा कर लिया था। अंग्रेज तक मैदानों से भागकर नैनीताल आए। 18 सितंबर को मैक्सवेल ने हल्द्वानी में कब्जा किए लोगों को हराया। 16 अक्टूबर को पुन: हल्द्वानी में कब्जा कर लिया। बाद में अंग्रेजों ने छापे मारे। जेल से कैदियों को छुड़ाकर रामजे ने कैदियों से कुली बेगार का काम लिया। इस बीच कालाढूंगी में डाकुओं से संघर्ष हुआ। फांसी गधेरे में स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख है।
इसके अलावा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 14 जून से 4 जुलाई 1929 तक कुमाऊं की पहली यात्रा को लेकर भी प्रदर्शनी में पुराने फोटो व अन्य सामग्री में 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत, 18 को अल्मोड़ा, 21 को कौसानी, 4 जुलाई को काशीपुर पहुंचने व कुमाऊं की दूसरी यात्रा में 18 से 23 मई 1931 तक के भ्रमण का उल्लेख है। इसमें ताकुला में 14 जून 1929 को छोटी सभा व स्व. गोविंद लाल साह के यहां चार दिन ठहरने व 1913 में लाला लाजपत राय के सुनकिया गांव में आगमन, नैनीताल का प्रसिद्ध झंडा सत्याग्रह का उल्लेख है। इसके अलावा लाला लाजपत राय का कुमाऊँ के क्रांतिकारियों को भेजा पत्र प्रमुख है। जिसमें 4 फरवरी 23 को लिखे पत्र में कहा है कि उन्होंने जो कार्य किया है। उनको हमदर्दी है। मेरी मदद की जरुरत हो तो आप मुझे लिखना। इसके अलावा अनेक पुराने ऐतिहासिक चित्रों व अभिलेखों से स्वतंत्रता आंदोलन में कुमाऊं का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
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