देहरादून अनिल चमोली। इतिहास में बावन गढ़ों के नाम से प्रसिद्ध गढ़वाल के वीरों की गाथाएं प्रदेश और देश की सीमाओं में नहीं बंधी हैं। गढ़ योद्धाओं की वीरता की गूंज फ्रास के न्यू चैपल समेत इटली से लेकर ईरान तक सुनी जा सकती है। क्रूर मौसम भले ही खेत में खड़ी फसलों को चौपट कर दे, लेकिन रणबाकुरों की फसल से यहा की धरती हमेशा ही लहलहाती रही है।
उत्तराखंड के टिहरी जिले के चंबा ब्लाक के गावों की भूमि इसकी तस्दीक करती है कि दुनिया के इतिहास को बदलने में इनकी कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही वह भूमि है जहा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान न्यू चैपल के नायक रहे विक्टोरिया क्रास विजेता शहीद गबर सिंह ने जन्म लिया था। चंबा कस्बे से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर बसे स्यूटा गाव को ही लें। यहा के रणबाकुरे लगभग एक सदी से लगातार विजय की नई इबारत लिख रहे हैं।
प्रथम विश्व युद्ध में गाव से 36 जाबाज शामिल हुए, जिसमें से चार शहीद हो गए थे। तब से लेकर आज तक इस गाव के अधिकाश युवक सेना में रहकर देश की सेवा में लगे हैं। वैसे तो गढ़वाल के कई क्षेत्रों से लोग प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आजाद हिंद फौज और देश स्वतंत्र होने के बाद सेना में शामिल होकर देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन स्यूटा गाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि एक ही गाव से एक बार में इतनी बड़ी संख्या में लोग युद्ध में शामिल नहीं हुए।
प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ते हुए न्यू चैपल लैंड में गाव के जगतार सिंह, छोटा सिंह, बगतवार सिंह और काना सिंह शहीद हो गए। इस गाव के जाबाज सिपाहियों ने प्रथम ही नहीं द्वितीय विश्व युद्ध में भी जर्मन सेना को धूल चटाने में कोई कमी नहीं रखी। इस युद्ध में भी स्यूटा के 10 जवान शामिल हुए, जिसमें से बैशाख सिंह और लाभ सिंह रणभूमि में काम आए।
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, 1962 के भारत-चीन युद्ध में शामिल होने वाले यहा के जाबाजों की संख्या 40 तक पहुंच गई थी। इस लड़ाई में सते सिंह पुंडीर शहीद हुए। अस्सी के दशक में तो 132 परिवार वाले गाव में हर परिवार से औसतन एक सदस्य सेना में था।
आज भी गाव में 45 लोग सेना के पेंशनर हैं और 25 लोग सेना और दूसरे सुरक्षा बलों में सिपाही से लेकर डीआईजी तक हैं। गाव के प्रधान रहे सेवानिवृत्त 80 वर्षीय कैप्टन पीरत सिंह पुंडीर बताते हैं कि 1946 में जब वे सेना में शामिल हुए तो तब तक द्वितीय विश्व युद्घ समाप्त हो चुका था। उन्होंने 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ी और इसमें भी गाव के कई लोग शामिल हुए। स्यूटा गाव से लगे मंजूड़ गाव के भी 11 जाबाज प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए।
विक्टोरिया क्रास विजेता गबर सिंह नेगी इसी गाव के थे। इसी तरह से स्यूटा से कुछ ही दूर पर स्थित बमुंड पट्टी के जड़दार गाव के 16 रणबाकुरे प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। इसलिए स्यूटा गाव को लोग आज भी फौजी गाव भी कहते हैं।
dear sir,
ReplyDeletei need the name of "baawan garh" garhwal. and there speciliaties as well
thanks
jaspal singh negi
jaspal_negi@yahoo.com