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Wednesday, December 1, 2010

आयुर्वेद के बेहतर प्रयोगों में जुटे हैं प्रो.पाण्डेय

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आयुर्वेद के बेहतर प्रयोगों में जुटे हैं प्रो.पाण्डेय

रानीखेत के मूल निवासी प्रो.रमेश सी पाण्डेय आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। जो आयुर्वेद पर 20 सालों से अमेरिका में नये प्रयोग कर रहे हैं। अमेरिका में स्थापित जीडीपी आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के चेयरमैन प्रो.पाण्डेय ने प्रयोगों के जरिये आनुवंशिक बीमारी सिकल सेल की दवा का परिमार्जित रूप बाजार में उतारा है। उन्होंने बताया कि भारत भी इस बीमारी से अछूता नहीं है।
भारत में छत्तीसगढ़ के रायपुर में गत 22 से 27 नवम्बर तक हुई एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में भाग लेने के बाद अपने गृह क्षेत्र के दौरे पर पहुंचे प्रो.पाण्डेय ने जागरण से बातचीत में उन्होंने सिकल सेल नामक बीमारी के बारे में बताते हुए कहा कि विश्व के अमेरिकन व अफ्रीकी देशों में इस रोग से पीडि़त लोगों की कई मिलियन है, लेकिन भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में करीब 15 से 20 फीसदी लोग इस बीमारी से ग्रसित पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि यह आनुवंशिक बीमारी है, जिसे पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इस बीमारी की दवा नाइजीरिया में वर्ष-2006 में लांच हुई और उन्होंने नाइजीरिया से लाइसेंस लेकर इस दवा पर काम करके परिमार्जित रूप निकोसान नामक दवा बाजार में उतारी है। उन्होंने इस दवा को काफी कारगर बताया है। प्रो.पाण्डेय के अनुसार यह दवा सिर्फ बीमारी को नियंत्रण में रखती है। इसका एक कैप्सूल रोज लेने से मरीज का जीवन काल लंबा खिंचता है और यह दवा बीमारी का असर बढ़ने नहीं देती।
उल्लेखनीय है कि न्यू जर्सी अमेरिका में रह रहे प्रो.रमेश सी पाण्डेय मूल रूप से उत्तराखंड के चौखुटिया के पास नौगांव तड़ागताल के निवासी हैं। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा चौखुटिया, द्वाराहाट व रानीखेत से ली, जबकि इलाहाबाद व गोरखपुर से उच्च शिक्षा पाई। इसके बाद अमेरिका चले गए। जहां इन्होंने 45 सालों में कई वैज्ञानिक शोध किए और 20 साल से आयुर्वेद पर काम कर रहे हैं। विशिष्ट कार्य के लिए देश-विदेश में कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं। वर्तमान में वह न्यू ब्रसविक जर्सी अमेरिका में स्थापित जीडीपी आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी के चेयरमैन हैं और कई उच्च स्तर की संस्थाओं के सदस्य हैं। प्रो.पाण्डेय सन् 1966 में अमेरिका चले गए किंतु इससे पहले नेशनल कैमिकल प्रयोगशाला पूना में रहे।
बातचीत के दौरान वह उत्तराखंड के पिछड़ेपन से चिंतित दिखे और कहते हैं कि उत्तरांचल व छत्तीसगढ़ हर्बल स्टेट हैं, लेकिन यहां जरूरत ठोस कार्ययोजना की है, ताकि किसान औषधी पौध उगा सकें और यहां दवाएं बन सकें। जिसे एक्सपोर्ट कर यहां की आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिल सके। इस मौके पर उनके परिजन कर्नल भुवन चंद्र पांडे, दीप पांडे व निधि पांडे भी मौजूद थीं।
बाक्स-क्या है सिकल सेल
रानीखेत: प्रो.रमेश सी पाण्डेय बताते हैं कि सिकल सेल खून की आनुवंशिक बीमारी है। जो खासकर मलेरिया से ज्यादा प्रभावित रहने वाले क्षेत्र में पाई जाती है। इसे गरीबों की बीमारी भी कहा जाता है। यह बीमारी रक्त में लाल कणों में हुए जन्मजात परिवर्तन के कारण होती है। जिसमें लाल रक्त कण गोलाई के बजाय हॉसिये के आकार में परिवर्तित हो जाते हैं। सिकल सेल रक्त कण 15-20 दिन में नष्ट हो जाते हैं। इसलिए सिकल रोगियों में सदैव रक्त की कमी रहती है और रक्त प्रवाह व अंगों के विकास प्रभावित होता है। जो बाद में नुकसानदेह बन जाता है।

in.jagran.yahoo.com se sabhar

1 comment:

thank for connect to garhwali bati

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