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Chitika

Monday, March 30, 2009

साथियो - कविताओ के लिए एक नया कालम/थ्रेड आरम्भ कर रहा हु/ आप सभी सुधि जनो से आग्रह है कि कविता पोस्ट करे/ कविता स्वरचित हो तो अछ्छा होगा/ किसी अन्य की हो तो लेखक क नाम जरूर दे / श्रीगणेश मै अपनी कविता क्लर्क से कर रहा हू :-

मै क्लर्क हू , सरकारी श्रस्टी का आधार स्तम्भ,
अनपढो के लिये पूर्ण ब्रह्म ,
अनादि काल से मेरा अस्तित्व है ,
यम राज के यहा भी ( चित्रगुप्त) मेरा प्रभुत्व है,
समय के साथ साथ मैने भी विकास किया है,
काय्स्थ , ्मुनिम , लिपिक से कलर्क तक का सफर तय किया है,
चम्चागिरी धर्म है मेरा , ओवरटाइम कर्म है मेरा,
बगल मे फाइलो की ढेरी, सामने कम्प्यूटर की भेरी,

भारतीय परजातन्त्र तेरे लिए पुन्य प्रसाद हू मै ,
लार्ड मैकाले की आखरी याद हु मै
अर्थशास्त्री मुझसे खौफ खाते है,
पन्च वर्शीय योजनाओ की विफल्ता का मुझे प्रमुख कारण ठ्हराते है.

सुबह देर से दफतर जाना, शाम को जल्दी घर आना,
आधा घन्टा चाय पीने मे तो घन्टा भर लगाना,
उस पर भी बोनस बोनस , डीए- डीए चिल्लाना

उन्हे कौन बताए मै सब कुछ कर सकता हु
क्लर्क से गवर्नर- जनरल बन सकता हू
बस की क्यू मे अडे अडे , विस्व राजनीति पर बहस कर सकता हू खडे खडे,
परमाणु कार्यकर्म , ड्ब्लूटीओ वार्ता, भारतीय हाकी - किर्केट,
कौन कैसे जीतता, कैसे हारता,

मै सब जानता हू , कैसे? चलो बताता हू, एक क्लर्क के ज्न्म की कथा सुनाता हू,

जब एक भावी क्लर्क पैदा होता है, जग हसता है वो रोता है,
माता लोरी देती है, पिता तान सुनाएगे-
हम अपने लाड्ले को डाक्टर , इन्जिनियर, आए ए एस बनाएगे,
प्बलिक स्कूल की खोज होती है,
पर उनकी जेब रोती है
हारकर- झकमारकर , सन्तोस कर लेते है,
लाड्ले को म्युनिसिप्ळ्टी के स्कूल मे डालकर
दस्वी मे साठ प्रतिसत, १२वी मे ५० और बीए मे ४५ प्रतिसत प्राप्त कर ,
वह लाल नाम कमाता है,
पढा लिखा बेरोजगार कहलाता है,
ओर दे डालता है ,
अधिकारी वर्ग की सैकडो प्रतियोगी प्ररीक्छाए ,
और वह किसी को भी लक्छ्म्ण रेखा की तरह पार नही कर पाता, और
टूटता है , वह बाद हर इम्तिहान के,
बामियान बुद्ध जैसे हाथ तालिबान के,
और तब वह सर्व ग्यानी होकर, अपना चार्म खोकर,
उतरता है स्टाफ सिलेक्स्न कमीशन के समरान्ग्न मे,
और पहूचता है, सरकारी कार्यालयो के प्रान्ग्न मे

रोज्गार पाते ही दोपाये से चौपाया होता है,
फिर सन्त्तती होती है , फिर जेब रोती है-----


और एक बार फिर वही स्ब कुछ दोहराया जाता है,
ओर तब वक्त की याज्सेना (द्रोप्दी) हस कर कह्ती है,
अन्धो के अन्धे और क्लर्को के क्लर्क

और चलता रह्ता है नियती चक्र - चलता रहता है नियती चक्र

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