अखर रहा लोगों को ट्रामा सेंटर का अभावकोटद्वार।
Posted: 06 Mar 2009 09:58 AM PST
गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार है। जिले के दूरस्थ ग्रामीण अंचलों सहित निकटवर्ती बिजनौर जिले की बड़ी आबादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कोटद्वार पर निर्भर है, लेकिन यहां आने वाले दुर्घटनाओं के अधिकांश मामलों में घायलों को रेफर करने की परंपरा के चलते सरकार के बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने की पोल खोल रहे हैं।जिले के कई 4लाकों की जनता स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए कोटद्वार पर निर्भर है, लेकिन सरकारी उपेक्षा के चलते यहां आज भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का टोटा बना हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों के अभाव के चलते सैकड़ों लोग प्रतिदिन पर्वतीय क्षेत्रों से इस उ6मीद से यहां पहुंचते हैं कि उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया होंगी, लेकिन चिकित्सालय में आने वाले मरीजों के साथ ही ज्यादातर दुर्घटना के मामलों में सिर की मामूली चोट के घायल भी बाहर भेज दिए जाते हैं।
फाइलों में उलझाा 4लड बैंक का मामलाकोटद्वार। स्वीकृत 4लड बैंक का मामला भी तकनीकी पेंचों में उलझाा हुआ है। राजकीय संयु1त चिकित्सालय परिसर में बने 4लड बैंक के भवन का गत वर्ष बाकायदा उद्घाटन तक कर दिया गया था। लेकिन केंद्रीय औषधीय नियंत्रण संगठन द्वारा लगाई गई आप8िा के चलते मामला अभी भी फाइलों में ही सिमटा है।
भूमि स्थानांतरण हो हलकोटद्वार। सीएमएस डॉ. आरएस रावत ने बताया ट्रामा सेंटर के लिए सीतापुर नेत्र चिकित्सालय परिसर में चिह्नित भूमि के स्थानांतरण का मामला राजस्व विभाग के पास लंबित है। उन्होंने इसके शीघ्र हल होने की उ6मीद जताई है।
लंबे समय से चल रही भूमि चयन की प्रक्रियाकोटद्वार। ट्रॉमा सेंटर न होने के कारण दुर्घटनाओं के अधिकांश मामलों में घायल समुचित उपचार न मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं। गत नवंबर में तत्कालीन डीएम शैलेश बगोली की अध्यक्षता में एक समिति द्वारा सीतापुर नेत्र चिकित्सालय परिसर में भूमि का सीमांकन भी किया गया था, लेकिन इस मामले में अभी तक प्रगति नहीं हुई है।
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सेम-नागराजा मंदिर भूस्खलन की जद मेंनई टिहरी।
Posted: 06 Mar 2009 09:57 AM PST
उ8ाराखंड के पांचवें धाम के रूप में प्रसिद्ध सेम-नागराजा मंदिर भूस्खलन की जद में है। मंदिर की सुरक्षा के लिए प्रयास नहीं किया गया तो आस्था एवं पर्यटन का यह स्थल कभी भी जमींदोज हो सकता है।बांज, बुरांश, खर्स और मौरू से आच्छादित एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरे प्रतापनगर प्रखंड के सेम में राज्य का सर्वोच्च नागतीर्थ सेम-नागराजा का मंदिर स्थित है। विकट भौगोलिक स्थितियों के बावजूद रामायण प्रचार समिति ने श्रमदान एवं श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर में अनेक सुविधाएं जुटाई हैं।
मार्च २००६ में नागद्वार का निर्माण, मूर्तियों की स्थापना एवं मंदिर का जीर्णोद्धार 5ाी किया गया। लेकिन भू-धंसाव से इस मंदिर को खतरा पैदा हो गया है। समिति के ऋषिराम उनियाल, वास्तुविद केसी कुडिय़ाल, संवेदना समूह के जयप्रकाश राणा का कहना है कि यदि बरसात से पूर्व मंदिर की सुरक्षा के लिए उपाय नहीं किए गए तो इसके लिए खतरा हो सकता है।
समिति के उ8ारकाशी, देहरादून एवं कोटद्वार के सदस्यों ने मंदिर की सुरक्षा के लिए जनसहयोग से आरसीसी कॉलम के सहारे ३५० फीट लंबी एवं ५० फीट ऊंची दीवार निर्माण करने का निर्णय लिया है। इस पर करीब १८ लाख रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। समिति एवं संवेदना समूह के सदस्यों ने मांग की है कि जब मंदिरों के सौंदर्यकरण के नाम पर पर्यटन विभाग लाखों रुपये खर्च कर रहा है तो आस्था एवं पर्यटन के केंद्र सेम-नागराजा मंदिर के सुरक्षा के लिए भी विभाग को ठोस कदम उठाने चाहिए। कहा गया कि इससे सुरक्षात्मक उपाय करने के साथ ही पवित्र सेम को अलग पहचान दिलाने के लिए छोटे-छोटे मंदिरों का भी निर्माण कराया जाएगा।
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भिलंगाना प्रोजे1ट को ग्रामीणों ने दी हाईकोर्ट मेें चुनौतीनैनीताल/नई टिहरी।
Posted: 06 Mar 2009 09:55 AM PST
उ8ाराखंड हाईकोर्ट ने टिहरी गढ़वाल में भिलंगना नदी पर बन रहे पावर प्रोजे1ट के खिलाफ दायर जनहित याचिका को सुनने के बाद सरकार, जिला प्रशासन और निर्माण कंपनी को तीन सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए हैं।न्यायमूर्ति पीसी पंत एवं न्यायमूर्ति बीएस वर्मा की संयु1त खंडपीठ में बृहस्पतिवार को लक्ष्मण सिंह राणा और देवलंग गांव के अन्य ग्रामीणों की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि भिलंगाना नदी पर लघु जल विद्युत परियोजना तृतीया के निर्माण के दौरान पावर प्रोजे1ट के लिए सुरंग बनाई जा रही है। यह कार्य विस्फोट के जरिए किया जा रहा है। इससे देवलंग समेत आसपास के कई गांवों के मकानों में दरारें आ गई हैं और खतरे की स्थिति बनी हुई है। याचिका में यह भी कहा गया कि इस संबंध में कई बार जिला प्रशासन एवं कंपनी से शिकायत की गई। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। याचिका में इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका को सुनने के बाद न्यायालय की संयु1त खंडपीठ ने मामले में सरकार, जिला प्रशासन और निर्माण कंपनी को तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
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अगस्त्यमुनि और बिड़ला परिसर प्रथमश्रीनगर।
Posted: 06 Mar 2009 09:55 AM PST
गढ़वाल केंद्रीय विवि की अंतर महाविद्यालय सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का छात्र-छात्राओं ने खूब लुत्फ उठाया। बृहस्पतिवार को एकांकी नाटक ने छात्रों की वाहवाही लूटी। वहीं, दूसरी ओर बुधवार को आयोजित हुई समूह गीत प्रतियोगिता में राजकीय महाविद्यालय अगस्त्यमुनि प्रथम, बिड़ला परिसर श्रीनगर द्वितीय और बालावाला देहरादून तृतीय स्थान पर रहे। जबकि कव्वाली में बिड़ला परिसर प्रथम तथा अगस्त्यमुनि द्वितीय रहा।एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के बिड़ला परिसर में आयोजित हो रही अंतर महाविद्यालय शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रतियोगिता के सुगम संगीत में बिड़ला परिसर के दीपक चमोली प्रथम, अगस्त्यमुनि के संजय द्वितीय तथा बालावाला देहरादून की पल्लवी तृतीय रही। शास्त्रीय नृत्य में बालावाला देहरादून की कीर्ति सराफ प्रथम और श्रीनगर की ऋचा भारद्वाज द्वितीय रही। शास्त्रीय गायन में श्रीनगर की अनुराधा रतूड़ी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। पोस्टर प्रतियोगिता में श्रीनगर की रोजीना अंसारी प्रथम, बालावाला देहरादून के प्रतीक द्वितीय और अगस्त्यमुनि की सुषमा तृतीय रही। कार्टून में श्रीनगर के अमित कुमार राज प्रथम रहे। बृहस्पतिवार को आयोजित प्रतियोगिताओं के उद्घाटन अवसर पर बतौर मु2य अतिथि कांग्रेस के प्रदेश मीडिया प्रभारी सूर्यकांत धस्माना ने कहा आने वाला कल युवाओं के बल पर विश्व का सर्वश1ितमान देश बनेगा। छात्र-छात्राओं से उन्होंने लक्ष्य के प्रति समर्पित भाव से कार्य करने की बात कहते हुए देश हित में अपना योगदान देने की अपील की। इससे पूर्व अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. पीएस राणा ने विवि की ओर से उनका स्वागत किया। छात्र संघ की ओर से उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। छात्र संघ अध्यक्ष अंकित रौथाण ने अंत में उनका आभार जताया।
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जर्मनी के छात्रों के साथ होगा शैक्षिक आदान-प्रदानश्रीनगर।
Posted: 06 Mar 2009 09:54 AM PST
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि के वानिकी विभाग एवं एप्लाइड फॉरेस्ट साइंसेज विवि रूटेनबर्ग जर्मनी के छात्रों के बीच शैक्षणिक आदान-प्रदान के लिए कार्यक्रमों की शुरुआत की जा रही है। इस संदर्भ में रूटेनबर्ग विवि के प्रो. रेनर लुईक, डा. 1लेमेंस हेनन, डा. रिनेट स्ट्रोबेल, डा. सैबेना लुईक, सिन शिवा ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी दिलबर सिंह परिहार और गढ़वाल विवि के वानिकी विभाग के प्रो. एनपी टोडरिया द्वारा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई। उ1त कार्यक्रम के अंतर्गत विवि के वानिकी छात्र-छात्राओं और शिक्षकों का रूटेनबर्ग विवि जर्मनी के साथ शैक्षिक आदान प्रदान होगा। साथ ही छात्र और शिक्षक जर्मनी में जाकर लघु शोध पर भी कार्य करेंगे। वानिकी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. टोडरिया ने बताया भविष्य में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ भी इस प्रकार के कार्यक्रम शुरू कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस संबंध में गत 9-12 फरवरी को श्रीलंका कैंडी में एक बैठक भी संपन्न हुई, जिसमें प्रो. टोडरिया ने भी भाग लिया।
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प्रदेश में ऐसी भी है शिक्षा की तस्वीर
Posted: 06 Mar 2009 09:52 AM PST
एक तरफ तो सीबीएसई बोर्ड से कदमताल करने की कोशिश और दूसरी तरफ ऐसी व्यवस्था की शिक्षा व्यवस्था को शर्म आ जाए। कुछ ऐसा ही हो रहा है राजधानी क्षेत्र के एक स्कूल में। मु2यमंत्री आवास से चंद दूरी पर स्थित एक राजकीय इंटर कालेज में उ8ाराखंड बोर्ड परीक्षार्थी टाट-पट्टी पर बैठकर परीक्षा दे रहे हैं।बोर्ड परीक्षा देना किसी भी छात्र के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। लेकिन परीक्षा के दौरान न सिर्फ माहौल बल्कि बैठने की भी व्यवस्था भी छात्रों के प्रदर्शन को प्रभावित करती है। वैसी स्थिति में यह सोचने की बात है कि अगर जिन परीक्षार्थियों को टाट-पट्टी पर बैठकर परीक्षा देनी पड़े तो सुविधापूर्ण ढंग से परीक्षा दे रहे परीक्षार्थियों के साथ कैसे मुकाबला करेंगे। मु2यमंत्री आवास से चंद दूरी पर स्थित राइका गजियावाला में इन दिनों उ8ाराखंड बोर्ड के १३० छात्र-छात्राएं परीक्षा दे रहे हैं। जिनमें से ३१ इंटरमीडिएट के और ९९ परीक्षार्थी १०वीं बोर्ड के। लेकिन १०वीं बोर्ड के परीक्षार्थियों को टाट-पट्टी पर बैठकर परीक्षा देना पड़ रहा है। 1योंकि इस कालेज में बेंच के मात्र इतने ही सेट हैं जिनपर अधिकतम ५० छात्र-छात्राएं बैठकर परीक्षा दे सकें। इस स्कूल में १०वीं बोर्ड की परीक्षा दे रही छात्रा कंचन मकड़ेती, रवीना मकड़ेती, सोनी, वैशाली आदि ने कहा कि जब शिक्षा विभाग द्वारा ही ऐसी व्यवस्था की गई है तो उनके सामने इसी व्यवस्था के साथ चलना मजबूरी है। इस क्षेत्र की ग्राम प्रधान गीता खत्री ने बताया कि इस समस्या से विद्यालय की ओर से खंड शिक्षा अधिकारी को सूचित भी किया जा चुका था। लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से कोई भी व्यवस्था नहीं की गई।
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सहमति पत्र मिला, हड़ताल स्थगित
Posted: 06 Mar 2009 09:46 AM PST
, नैनीताल: शासन से मांगों के संबंध में सहमति का लिखित आदेश मिलने के बाद कुमाऊं विवि प्राध्यापकों व कर्मचारियों की हड़ताल स्थगित कर दी गई है। हड़ताली कर्मचारी व शिक्षक अब शुक्रवार से काम पर लौट आएंगे। विवि कर्मियों व प्राध्यापकों की हड़ताल थमने से विवि के करीब सवा लाख छात्र-छात्राओं ने राहत की सांस ली है। विवि प्राध्यापकों को छठे वेतन आयोग, प्राध्यापकों को यूजीसी की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान व विवि की माली हालत सुधारने की मांग को लेकर विवि कर्मी व शिक्षक 12 फरवरी से आंदोलित थे। दो दिन पूर्व कुलपति प्रो.सीपी बर्थवाल तथा कर्मचारी व शिक्षक प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई वार्ता में शासन ने अधिकांश मांगों पर सहमति प्रदान की थी, लेकिन इसकी आधिकारिक जानकारी विवि प्रशासन को नहीं मिली थी। इस कारण कर्मचारी गुरुवार को भी हड़ताल पर रहे। इधर दोपहर बाद कुलपति को शासन ने मांगों से संबंधित सहमति पत्र मिल गया। इसके बाद कुलपति ने हड़ताली कर्मचारियों व शिक्षकों के बीच उसे पढ़कर सुनाया। कुलपति के अनुसार शासन चालू वित्तीय वर्ष में विवि को 5 करोड़ से अधिक की धनराशि जारी करेगा।
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विकास को तरसती भीम-सरोवर पर्यटन नगरी
Posted: 06 Mar 2009 09:45 AM PST
, भीमताल विकास मामले में भीम सरोवर पर्यटन नगरी पर किसी की बुरी नजर लग गई है। नगर पंचायत की ओर से चालू वित्तीय वर्ष में जहां कोई विकास कार्य नहीं हुए वहीं नगर पंचायत में अवस्थापना मद में पड़े लाखों रुपये लैप्स होने की कगार पर हैं। चुनाव आचार संहिता लगने के कारण अवस्थापना विकास निधि के लगभग 42 लाख रुपये बैंक खातों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 06-07 में तत्कालीन नगर पंचायत अध्यक्ष व कांग्रेस नेत्री चित्रा थापा के प्रयास से नगर में विकास कार्य के लिए अवस्थापना विकास निधि के तहत नगर पंचायत को 67 लाख रुपये शासन से मिले थे। इसमें पहली किश्त के रूप में 31 लाख तथा दूसरी में 36 लाख मिले थे। इस बीच लगभग 25 लाख रुपये की लागत से नगर में 10 विकास कार्य भी शुरू कराए गए। इसे विडम्बना की कहा जाएगा कि नगर में विकास के लिए इतना पैसा लाने के कुछ ही समय बाद अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में चेयरमैन श्रीमती थापा की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। कुछ समय बाद निकाय चुनाव हुए और उसके बाद से आज तक नगर में अवस्थापना विकास निधि से एक भी काम नहीं हो पाया। विभागीय सूत्रों के अनुसार अवस्थापना निधि में मिली 67 लाख में से केवल 25 लाख ही खर्च पाए हैं। 06-07 का पैसा होने के बावजूद पहले इसे इसी वित्तीय वर्ष में खर्च होना चाहिए था। कम समय होने बहाना मारकर पंचायत प्रशासन ने किसी प्रकार पैसा खर्च करने की अवधि 07-08 तक के लिए बढ़ा ली। इस अवधि में पैसा खर्च नहीं होने पर लम्बी जद्दोजहद के बाद अवधि 08-09 तक के लिए बढ़ाई गई। हैरानी की बात यह कि खातों में पड़े होने के बावजूद 42 लाख रुपये आज तक खर्च नहीं हो पाए। इससे नगर में विकास की धार कुंद हुई है।
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असल आंदोलनकारियों का सम्मान
Posted: 06 Mar 2009 03:27 AM PST
देहरादून, सन् 1979 को राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण का वर्ष घोषित करना उक्रांद के लिए बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि यह उक्रांद की ही मांग रही है। भाजपा द्वारा अपने सहयोगी दल को दी गई इस सौगात के कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। उक्रांद इसे असल आंदोलनकारियों का सम्मान मानता है। उत्तराखंड आंदोलनकारी कल्याण परिषद की अध्यक्ष सुशीला बलूनी कहती हैं कि इस निर्णय का बहुत अधिक फायदा नहीं होगा, क्योंकि जंगल काटने पर मुकदमा झेलने वालों को राज्य आंदोलनकारियों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। जन आंदोलन तो 1994 में ही हुआ। यह बात ठीक है कि कुछ लोगों में राज्य के प्रति जुनून था, उन्होंने उसे प्रदर्शित भी किया, लेकिन चिन्हीकरण के लिए प्रमाण भी तो देने होंगे। इसलिए लगता है कि इसका बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाएगा। सरकार की घोषणा के साथ ही कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट ने कहा था कि 1979 से आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण उक्रांद का मुद्दा है। यह उक्रांद के लिए बड़ी जीत है। श्री भट्ट के अनुसार 1994 में अचानक जन आंदोलन खड़ा नहीं हो गया। किसी भी जन आंदोलन के लिए एक बड़ी पृष्ठभूमि की जरूरत होती है, जो उक्रांद ने 1979 से बनानी शुरू की थी। उनके अनुसार कांग्रेस द्वारा किया गया आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण राजनीति से प्रेरित था। श्री भटट कहते हैं कि पेड़ों का कटान व पानी का आंदोलन इसी के हिस्से थे। उक्रांद नेता काशी सिंह ऐरी कहते हैं कि यह उक्रांद के नौ बिंदुओं में से एक है। भाजपा ने उक्रांद की एक मांग मानी है। श्री ऐरी कहते हैं कि पेड़ काटना राज्य आंदोलन का हिस्सा था। सरकार को आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण के लिए मानकों को शिथिल करना चाहिए। इससे असल आंदोलनकारियों का सम्मान हो सकेगा। उत्तराखंड राज्य के गठन की मांग को लेकर 1979 में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया था। उसके बाद राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हुए। राज्य गठन के लिए शुरू हुए इस आंदोलन के कई रूप थे। जैसे विकास कार्यो में अवरोध बने जंगलों का कटान हुआ। पानी के लिए भी आंदोलन हुआ। उक्रांद इस मांग को ठीक चुनाव से पहले मानने के सरकार के निर्णय के पीछे राजनीतिक निहितार्थ भी छिपे हो सकते हैं।
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फ्योंली के फूल अब राजधानी में भी
Posted: 06 Mar 2009 03:25 AM PST
देहरादून पर्वतीय लोकजीवन में गहराई तक रचे-बसे फ्योंली के फूल अब पहाड़ी के खेत की मेढ़ों और रास्तों में ही नहीं, राजधानी में भी मुस्कान बिखरेंगे। इसके लिए उद्यान महकमे ने मुहिम शुरू कर दी है। प्रयास सफल हुए तो फ्योंली जल्द ही तराई व भाबर के इलाकों में इठलाती नजर आएगी। इसके पीछे ध्येय है कि लोगों का पहाड़ के प्रति भावनात्मक जुड़ाव बढ़े और वे यहां की लोकसंस्कृति से रूबरू हो सकें। ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ ही पहाड़ में घर-आंगन, खेतों की मेढ़ों व रास्तों आदि में इठलाते फ्योंली के फूल बरबस ही हर किसी का ध्यान खींचते हैं। फ्योंली नई उमंग एवं उल्लास का प्रतीक हंै। ये फूल चट्टानों, पहाड़ों पर खिलकर हर स्थिति में मुस्काते रहने का संदेश देते हैं। इसका पहाड़ की लोक संस्कृति से अटूट रिश्ता है। फ्योंली के पहाड़ के लोकजीवन में गहराई तक रचे-बसे होने का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि जब भी पहाड़ के सौंदर्य की बात होती है, उसमें फ्योंली का जिक्र भी आता है। लोकगीतों में भी इसे पर्याप्त स्थान मिला है। कहना न होगा कि फ्योंली पहाड़ का प्रतिनिधि फूल है। जंगली फूलों की श्रेणी में आने वाली फ्योंली अब पहाड़ों ही नहीं, बल्कि सूबे के मैदानी इलाकों में भी आभा बिखेरेगी। इसके लिए उद्यान विभाग ने कोशिशें आरंभ कर दी हंै। पहल की गई है राजधानी के सर्किट हाउस से। प्रथम चरण में वहां दस गमलों में फ्योंली के पौधे लगाए गए हैं। जल्द ही इसे व्यापक स्वरूप देने की योजना है। यदि प्रयास रंग लाए तो एक से छह हजार फुट तक की ऊंचाई पर पाई जाने वाली फ्योंली भाबर व तराई के इलाकों में भी खिलेगी। उद्यान निदेशक डा.बीपी नौटियाल बताते हैं कि फ्योंली उन फूलों में शामिल है, जो फोक बेस्ड हैं। इसीलिए इसे सूबे के मैदानी इलाकों में उगाने का प्रयास शुरू किया गया है, ताकि अधिकाधिक लोग इसका करीब से दीदार करने के साथ ही इसके बारे में जानकारी हासिल कर सकें। यही वह फूल है जो बसंत से शुरू होकर करीब नौ माह तक जगह-जगह खिला रहता है।
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