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Wednesday, August 12, 2009

राफ्टिंग: 35 करोड़ के व्यवसाय पर विवाद का साया

देहरादून। गंगाघाटी में व्हाइट वाटर राफ्टिंग के जरिए हर साल होने वाले करीब 35 करोड़ रुपये के व्यवसाय पर विवाद का साया मंडराने लगा है। एक सितंबर से शुरू होने वाले राफ्टिंग सीजन से ऐन पहले इस व्यवसाय से जुड़ी 109 निजी कंपनियों ने सरकार की मौजूदा राफ्टिंग नीति के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया है। कंपनियों का कहना है कि गंगा नदी में राफ्टिंग के लिए पर्यटन विभाग से मिलने वाले लाइसेंस की अवधि कम से कम पांच वर्ष होनी चाहिए। कैंपिंग के लिए गंगातटों के आवंटन हेतु प्रस्तावित नीलामी प्रक्रिया तत्काल रोकी जाए। साथ ही, ऋषिकेश-कौडियाला इको-टूरिज्म जोन में वन विभाग द्वारा वसूले जा रहे राजस्व का उपयोग भी सिर्फ पर्यटक सुविधाओं के लिए किया जाए।

ऋषिकेश-कौडियाला इको-टूरिज्म जोन में राफ्टिंग व्यवसाय से जुड़ी 109 कंपनियों ने तीन नीतिगत सवालों को लेकर संघर्ष की राह अख्तियार की है। सीजन शुरू होने से ऐन पहले उन्होंने राफ्टिंग उपकरणों की जांच के लिए ऋषिकेश पहुंची टेक्निकल कमेटी को निरीक्षण किए बगैर ही बैरंग लौटा दिया, जिसके चलते किसी भी कंपनी को सितंबर से शुरू हो रहे सीजन के लिए अभी तक लाइसेंस नहीं मिल पाया है। राफ्टिंग कंपनियों का तर्क है कि जब तीन माह पूर्व उनके उपकरणों का निरीक्षण हो चुका है, तो दुबारा निरीक्षण का क्या मतलब है। तकनीकी निरीक्षण के नाम हो रहे उत्पीड़न को राफ्टिंग कंपनियां अब बर्दास्त करने में मूड में नहीं हैं। साहसिक पर्यटन संघर्ष समिति के बैनर तले एक मंच पर जुटी इन कंपनियों ने स्पष्ट चेतावनी दी है, कि यदि 20 अगस्त तक लाइसेंस जारी नहीं हुए, तो राफ्टिंग व्यवसाय से जुड़े करीब पांच हजार लोग 21 अगस्त को बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग को अनिश्चितकाल के लिए जाम कर देंगे। ऋषिकेश-कौडियाला के बीच महज 20 किलोमीटर के दायरे में स्थित इस इको-टूरिज्म जोन में 109 कंपनियां राफ्टिंग-कैंपिंग व्यवसाय से जुड़ी हैं। स्थानीय लोगों की कई दशक की मेहनत के बूते 35 करोड़ रु. सालाना टर्नओवर तक पहुंचे इस व्यवसाय से करीब पांच हजार लोग सीधे तौर पर जुड़े हैं, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से भी सैकड़ों परिवारों की आर्थिकी इस पर टिकी हुई है। अब जबकि तीन नीतिगत सवालों पर सितंबर से शुरू होने वाले राफ्टिंग सीजन पर विवाद का साया मंडराने लगा है, तो व्यवसाय से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी पर भी संकट गहराने लगा है। संघर्ष के संयोजक दीपक भट्ट का कहना है कि स्थानीय लोगों की दशकों की मेहनत के बूते ही गंगाघाटी में यह उद्योग स्थापित हुआ है। साथ ही, राफ्टिंग से जुड़ी कंपनियां सरकार को हर साल लाखों रुपये का राजस्व भी कमा कर दे रही हैं। इसके बावजूद तकनीकी निरीक्षण, लाइसेंस और बीच आवंटन की नीलामी प्रक्रिया के नाम पर उनका आर्थिक व मानसिक उत्पीड़न कहां तक जायज है। समिति की मांग है कि राफ्टिंग के लिए सरकार ठोस व सर्वमान्य नीति घोषित करे, ताकि सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी व्यवसाय का पूरा लाभ मिले।

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