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Saturday, February 20, 2010

घट रहा है हिमालयी क्षेत्र का औसत तापमान

घट रहा है हिमालयी क्षेत्र का औसत तापमान


देहरादून। धरती गरम हो रही है और हिमालय 'ठंडा'। ग्लोबल वार्मिग पर छिड़ी गरमागरम बहस के बीच यह तथ्य किसी ईधन से कम नहीं। पिछले सौ साल के आंकड़ों के आधार पर विशेषज्ञों का दावा है कि हिमालयी क्षेत्र के औसत तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं वैज्ञानिक ग्लेश्यिरों के सिकुड़ने के दावों की भी बखिया उधेड़ रहे हैं।

गुरुवार को केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से आयोजित कार्यक्रम में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डा. एके दुबे ने ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के सिद्धांत पर पैने सवाल किए। उन्होंने कहा कि अल्मोड़ा के मौसम केंद्र के 100 साल के आंकड़े बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्र का औसत तापमान पिछले एक सदी में घटा है। उन्होंने कहा कि 1920-30 में ग्लोबल वार्मिग की हवा चली थी, लेकिन 1970 में ग्लोबल कूलिंग और हिमयुग की वापसी की बात होने लगी। डा. दुबे ने कहा कि दरअसल विदेशी शक्तियां ग्लोबल वार्मिग के बहाने हमारे देश के नीति नियंता बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि धरती के गर्म या ठंडा होने में सौर गतिविधि व उसके धब्बों की महत्वपूर्ण भूमिका है, मगर इस तथ्य को दरकिनार कर सारा जिम्मा मानवीय गतिविधियों पर डाला जा रहा है। ग्लेशियरों के सिकुड़ने की रिपोर्टो पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि वो लोग ग्लेशियर विशेषज्ञ बने बैठे हैं, जिन्होंने कभी ग्लेशियर नहीं देखे। भूगर्भीय साक्ष्य बताते है कि आज से 2000 साल पहले गंगोत्री ग्लेशियर आज की स्थिति से एक किलोमीटर पीछे था। यही नहीं एक जमाने में हिमालयी ग्लेशियर श्रीनगर गढ़वाल तक भी बढ़ आए थे। ग्लेशियर में कितनी बर्फ है इसका पता उसके मास बैलेंस अध्ययन से चलता है। ग्लेशियर के सिकुड़ने का पता उसके आकार या लंबाई से नहीं, बल्कि उसमें मौजूद बर्फ के आयतन से चलता है। हिमालय के 5575 ग्लेशियरों में से केवल 11 का ही मास बैलेंस अध्ययन हुआ है। इनमें से तीन का अध्ययन वाडिया इंस्टीट्यूट ने तो आठ का जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने किया है। इस अध्ययन की शुरुआत भी 1991 में ही हुई। उन्होंने कहा कि हिमालयी ग्लेशियर 4000 मीटर से ऊंचे क्षेत्रों में हैं जहां तापमान शून्य से 20 या 30 डिग्री नीचे रहता है ऐसे में 0.8 डिग्री तापमान बढ़ने से उन पर क्या असर पड़ेगा। अगर ग्लोबल वार्मिग है तो उसका असर एक सा होना चाहिए। क्या वजह है कि काराकोरम के जिन 33 ग्लेशियरों का अध्ययन हुआ है उसमें से 21 बढ़ रहे हैं।


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