हरिद्वार। रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर सरकारी उदासीनता किसी से छिपी नहीं है। इन सरकारी महकमों को अब 'जंगल' की योजना आइना दिखाने जा रही है। हालांकि बजट का अड़ंगा जंगल के प्रोजेक्ट पर है, लेकिन नीयत जंगल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को फलीभूत करने की है। जंगल में जो कवायद की जा रही है, वह रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से कुछ जुदा है। बावजूद इसके जंगल की भूमि और वन्य जीवों की तपती गर्मी में प्यास बुझाने को यह कवायद नि:संदेह मील का पत्थर साबित होगी।
रेन वाटर हार्वेस्टिंग का नाम जुबान पर आते ही सरकारी फाइलों और भवनों की याद आती है। यह बात अब पूरी तरह जाहिर हो चुकी है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नियम कानून सिर्फ कागजों पर ही दौड़ रहे हैं। धरातल पर यहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग कहीं लागू होता नहीं दिखता। राजाजी के जंगल में पहली बार रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के तहत जल संचय की बात सोची गई है। इसमें अंग्रेजों के जमाने में तैयार कुएं की मदद ली जाएगी। राजाजी के दो रेंज हरिद्वार और बेरीवाड़ा में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू करने की योजना बनी है। राजाजी के जिन दोनों रेंजों में प्रोजेक्ट बनाया गया है, उसके तहत सबसे पहले तालाब की खुदाई की जाएगी। खुदाई उन जगहों पर होगी, जहां पर अंग्रेजों के जमाने में जंगल में कुएं बनाए गए थे। ऐसा इसलिए किया जाएगा क्योंकि यह माना जाता है कि कुंए में वर्षो पानी कभी खत्म नहीं होता। कुंआ की गहराई की वजह से वह भूमि से पानी की कमी की पूर्ति करता रहता है। जंगल में कुंआ के बगल में बने तालाब में पानी का संकट होने पर जनरेटर सेट लगाकर कुंए के पानी को खींचकर तालाब में भर दिया जाएगा। प्राकृतिक स्त्रोत के माध्यम से कुएं से निकाला गया जल खुद-ब-खुद भर जाएगा। निरंतर यह प्रक्रिया चलती रहेगी और तपती गर्मी में भी जंगल के रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से वन्य जीवों की प्यास बुझती रहेगी। वर्षा जल का संरक्षण भी इस तालाब में बड़ी तादाद में हो सकेगा
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