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Wednesday, August 3, 2011

ग्रामीणों के पलायन को रोकेगी खेती

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उत्तराखंड के ग्रामीण इलाको से लोगो के लगातार हो रहे पलायन को रोकने के लिए अब खेती एक नयी रहा देगी और यह सब कृषि नीति की बदौलत पूरा होगा।
पहली बार मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के विस्तार और उसकी जरूरतों को अलग-अलग तवज्जो दी गई है। नीति पर कारगर ढंग से अमल किया गया तो पहाड़ों से पलायन थमेगा और किसानों को अपने उत्पादों के वाजिब दाम मिलेंगे। वहीं मैदानों में खेती लाभ के मामले में उद्योग की शक्ल लेगी।
उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां कृषि नीति में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसएजेड) को शामिल किया गया।

इस नीति की खास बात यह है कि स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाली ग्राम पंचायत एसएजेड में शामिल होंगी। उन्हें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का सीधे लाभ मिलेगा। फिलहाल पौड़ी जिले की एकमात्र गांव पंचायत लखौली को इस नीति के तहत 34 लाख की परियोजनाएं मिली हैं।
सूबे की संशोधित कृषि नीति पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी। पहले प्रस्तावित नीति में कृषि भूमि खरीद पर रोक लगाई गई थी। सरकार ने फिलहाल यह रोक हटा दी है। साथ ही यह तय हुआ कि एसएजेड चिन्हित किए जाएंगे। इन क्षेत्रों में कृषि के लिए 24 घंटे बिजली मिलेगी। भूमि संरक्षण, जल संरक्षण के साथ किसान को मिट्टी की जांच की सुविधा दी जाएगी। ऐसे क्षेत्र में प्रत्येक किसान परिवार का एक सदस्य मुफ्त ट्रेनिंग पा सकेगा। नीति में पहली बार पर्वतीय और मैदानी क्षेत्र में खेती की अलग-अलग जरूरत के मद्देनजर व्यवस्थाएं की गई हैं।

कृषि सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि नीति में उत्तराखंड को बीज प्रदेश और जैव प्रदेश के रूप में स्थापित करने पर जोर है। सूबे में केवल 13।29 फीसदी भूमि खेती योग्य है। पर्वतीय क्षेत्र में चार लाख हेक्टेअर कृषि भूमि का सिर्फ 10.62 फीसदी ही सिंचित है, जबकि मैदानी क्षेत्र में सिंचित भूमि 91.93 फीसदी है। एसएजेड बनने से विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों को ज्यादा फायदा होगा। पहाड़ों में छोटी और बिखरी जोतों को समेटने के लिए स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों और किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

चकबंदी क्षेत्र में अपनी भूमि से सटी भूमि खरीदने पर किसान को तीन साल तक स्टांप ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। एसएजेड में दो फीसदी भूमि सार्वजनिक उपयोग के कार्यो में इस्तेमाल होगी। इनके लिए खेती का प्लान जलागम निदेशालय तैयार करेगा।
नीति के तहत मैदानी क्षेत्र में खेती से लंबे समय तक लाभ दिलाने तो पर्वतीय क्षेत्र में लंबे समय तक खाद्यान्न जरूरत, पोषण और आजीविका सुरक्षा पर फोकस किया गया है। नीति को दस अध्यायों में बांटकर पीपीपी मोड में खेती, कांट्रेक्ट फार्मिग के साथ ही उसे बाजार से जोड़ने की विशेष व्यवस्था की जाएगी। दीर्घकालिक योजना के तहत सूबे का लक्ष्य अपनी करीब 18.85 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न और सवा तीन लाख मीट्रिक टन दलहन-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का है। उम्मीद की जा रही है की यह निति कारगर साबित होगी और पहाड़ी इलाको से ग्रामीणों के पलायन को रोका जा सकेगा।

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