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Tuesday, June 29, 2010

भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया

भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया
पौड़ी गढ़वाल। राज्य सरकार भले ही गढ़वाल के करीब चालीस लाख लोगों की बोली गढ़वाली को महत्व न दे रही हो, लेकिन भारतीय साहित्य अकादमी इसे संपूर्ण भाषा मानती है। अकादमी ने इसे जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल करने का संकल्प भी व्यक्त किया है।
भारतीय साहित्य अकादमी ने पहली बार गढ़वाली भाषा पर दो दिनी सम्मेलन आयोजित किया और इस सम्मेलन का मकसद गढ़वाली भाषा के साहित्यकारों, समीक्षकों व शोधार्थियों को न सिर्फ एक मंच पर लाना था बल्कि भाषा की बारीकियों व विधाओं को समझना भी था। सम्मेलन के पहले सत्र में निराशा नजर आई और अधिकतर का मत था कि गढ़वाली भाषा को सरकार महत्व नहीं दे रही किन्तु अकादमी के उपाध्यक्ष सरदार सुतिंदर सिंह नूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि गढ़वाली संपूर्ण भाषा है और इसे जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल करने की तैयारी चल रही है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में साहित्यकारों, समीक्षकों व शोधार्थियों के वक्तव्य आए जो अकादमी के लिए भी अहम रहे। सम्मेलन के दूसरे दिन भाषा विशेषज्ञों ने गढ़वाली शब्दकोश पर भी चर्चा की। डा. नंद किशोर ढौंढियाल ने मांगल गीतों के संरक्षण पर जोर दिया। साहित्यकार प्रेमलाल भट्ट ने शिलालेखों के आधार पर गढ़वाली भाषा का सात सौ साल पुराना लिखित इतिहास मौजूद होने की बात की। शब्दकोष विशेषज्ञ भगवती प्रसाद नौटियाल ने कहा कि शब्दों की ध्वनि और व्याकरण के आधार गढ़वाली भाषा का शब्दकोश तैयार किया जा रहा है जिससे लेखकों व भाषा बोलने वालों को फायदा होगा। वरिष्ठ पत्रकार व भुवनेश्वरी महिला आश्रम के गजेन्द्र नौटियाल ने पारंपरिक लोक गायन से लोक नाटकों का उद्भव हुआ और इसने काव्य से गद्य तक का सफर किया जो गढ़वाली नाटक की समृद्ध परंपरा को दिखाता है। लोक गायक चन्द्र सिंह राही ने लोक धुनों के साथ लोक गीतों को संरक्षित करने पर जोर दिया ताकि मूल रूप में वे संरक्षित हो। पत्रकार त्रिभुवन उनियाल ने गढ़वाली पत्रकारिता के सफर पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन में खबर सार के संपादक विमल नेगी, गणेश खुगशाल गणी, समेत अन्य ने विचार व्यक्त किए।

http://garhwalbati.blogspot.com

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