ढोल और दमाउं बनाने/बजाने की परंपरा संकट में ?
(सुदर्शन सिंह रावत) उत्तराखंड के पहाड़ो में शादी कि खुशियाँ व देव पूजा या मांगलिक कार्यों में ढोल और दमाउं बजाने की परंपरा अब समाप्त होती जा रही है ढोल बजाने वाले दलित वर्ग व कई पिछड़े और विकास से दूर की आवाज है उनको राज्य में कोई सम्मान नहीं दिया जा रहा है। ढोल दमाऊं उत्तराखण्ड के परंपरागत वाद्य हैं और इसको केवल दलित वर्ग के ही लोगों द्वारा बजाया जाता है आज धीरे- धीरे ढोल और दमाउं बनाने/बजाने की परंपरा समाप्त होती जा रही है। इस परंपरा को जीवित रखने के लिये राज्य सरकार द्वारा अभी तक कोई भी कदम इनके विकास व इस कला के संरक्षण के लिए कोई भी कदम नहीं उठाये गई है इस कला के संरक्षण को जीवित रखने के लिये सरकार को कुछ न कुछ करना ही होगा जैसे पेंशन की व्यवस्था व नये तकनिकी के माध्यम से विकास करना यहाँ तक कि राज्य आन्दोलन दौरान और रैली मे इन ढोल वादकों की पूरी भागीदारी रहती थी। लोग इनके ढोल दमाऊं की थापों पर राज्य बनाये जाने के गीतों को गा-गा कर जन जागरण करते थे। लेकिन राज्य बनने के बाद इन ढोल वादकों को एकदम से भुला दिया गया !
Collaboration request
4 months ago
No comments:
Post a Comment
thank for connect to garhwali bati