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Wednesday, April 20, 2011

बुजुर्ग उपेक्षित व अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर

(सुदर्शन सिंह रावत ) माता-पिता अपने बच्चो को लाड प्यार से पालते है यदि बचपन में बच्चे को गलती से खरोच आजाय तो माँ अपने बच्चे के दुःख तकलीफ नहीं देख सकती यहाँ तक की माँ अपने बच्चे के लिये खाना तक छोड देती है माता-पिता अपने बच्चों को पाल-पोसकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर अपनी जिमेदारी निभाते ह्वए उनकी शादी कर देते थे हमारी संस्कृति में माता-पिता को देवतुल्य माना जाता है। परन्तु आज की भागम-भाग जिंदगी व पाश्चात्य सभ्यता ने हमारे संस्कार तथा मानवता को लगभग खो दिया है। 
बुजुर्गो के साथ होने वाला व्यवहार किसी से छिपा नहीं है। बुजुर्ग उपेक्षित व अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर हैं। या तो वह अपने घर में घुट-घुटकर जीते हैं या उन्हें बहू-बेटों द्वारा किसी वृद्धाश्रम में भेज दिया जाता है। ताकि रोज की टोका-टाकी से बचा जा सके। यही हालत है शहरी भागम-भाग जिंदगी में अक्षर सुनने व देखने को मिलता है और यही कारण कि शहरों से बुजुर्ग बुढ़ापे में गावं की तरफ आते है परन्तु अब उन लोगो को दुःख होगा कि गावं में भी बुजुर्गो की बहुत हाल बेहाल है हालत यह है कि कई महीनों से बैठी वृद्ध महिला अल्मोड़ा के विकास भवन को जाने वाली सड़क किनारे सफेद बाल, धंसी हुई आंखें आने-जाने वाले लोगों को टकटकी लगाकर देखती रहती है। बस उसके मुंह से यहीं निकलता है कि यह तो मेरे पूर्व जन्म के कर्म हैं। 
अगर मेरी किस्मत अच्छी होती तो मुझे यह दिन नहीं देखने पड़ते महीनों से बैठी अपना नाम वृद्धा गोविंदी देवी (गोपूली) व अपना घर बागेश्वर जनपद के भराड़ी बताती है। बुजुर्ग महिला अपने बच्चो का नाम बताने को राजी नहीं है उनका कहना है की कलयुगी बच्चों ने उससे अपना नाता-रिश्ता तोड़कर घर से बेघर कर दिया है। जब गोविंदी से उसके परिवार के बारे में पूछा तो वह गुस्से से बोली मेरा कोई नहीं है विकास भवन को जाने वाली सड़क से रोज नेताओं व अधिकारियों का आना-जाना होता है प्रशासन व स्वयंसेवी संस्थाओं कि लापरवाही कहा जाय कि कई महीनों से बैठी वृद्ध महिला को यहां कौन छोड़ गया अभी तक जानकारी नहीं ले पाये|
जिलाधिकारी डी एस गब्र्याल कहना है कि बेसहारा वृद्ध महिला गोविंदी को वृद्धाश्रम भेजने की कार्रवाई की जा रही है जबकि वृद्ध महिला गोविंदी पिछले कई महीनों से पांडेखोला विकास भवन को जाने वाली सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है।

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