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गोपेश्वर : सरकार ने गैस के दाम कुछ ऐसे बढ़ाए कि लोगों को गैस की आंच अब खटकने लगी है। कुछ तो ऐसे हैं जो अब गैस की आंच को भुला, फिर से चूल्हे की आंच पर भोजन पकाने की तैयारी में है। अब नंदप्रयाग के तेफना गांव के लोगों को ही लीजिए। यहां के लोग गैस कीमत की वृद्धि के कारण अब फिर से चूल्हे का दामन थाम रहे हैं। ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि सभी आयोजनों में लकड़ी से रसोई जलाई जाएगी। यही नहीं गांव का हर परिवार घर में फिर से चूल्हे पर ही भोजन पकाएगा।
लगभग 500 की आबादी वाले विकासखंड कर्णप्रयाग का तेफना गांव बदलते जमाने के साथ लकड़ी के परंपरागत चूल्हों से हटकर गैस की हाईटेक रसोई तक पहुंच गए थे। एकाएक गैस की बढ़ी कीमतों ने इन्हें फलैश बैक में जाने को मजबूर कर दिया। ग्रामीणों ने अतिरिक्त बोझ से निपटने के लिए बैठक कर फिर से परंपरागत लकड़ी जलाकर रसोई को चलाने का निर्णय लिया है। गांव के आसपास चीड़ का जंगल है। एक दशक से संपन्न लोग लकड़ी की रसोई का प्रयोग नहीं कर रहे थे। गांव के गरीब लोगों के घर पर ही लकड़ी का चूल्हा जलता था। अब ग्रामीणों ने निर्णय लिया है कि शादी हो या अन्य समारोह, सभी में लकड़ी के चूल्हे जलाए जाएंगे। अगर कोई इस निर्णय की अवहेलना करता है तो उस पर मामूली अर्थदंड भी लगाया जाएगा। जिन लोगों के पास जंगल जाने का समय नहीं, उन्हें जरूरतमंद ग्रामीण जंगल से लाकर लकड़ी बेचेंगे। इससे एक ओर घर बैठे रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, वहीं गांव की एक सामूहिक परंपरा का भी निर्वहन होगा।
तेफना निवासी वीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि लकड़ी में पकाया भोजन पौष्टिक होता है। ग्राम प्रधान शरादू लाल का कहना है कि जंगल से लकड़ियां लाना गांवों में परंपरागत कार्य रहा है। ऐसे में हमारा गांव उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक मार्गदर्शक बनेगा।
in.jagran.yahoo.com se sabhar











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