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Thursday, February 4, 2010

सूर्य के प्रताप से पक रहा मिड-डे मील

देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में भगवान सूर्यदेव का 'प्रताप' स्कूली बच्चों के मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) को पकाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह चमत्कार नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005-06 में शुरू की गई उस योजना से संभव हो पाया है, जिसके अंतर्गत राजकीय प्राथमिक विद्यालयों को डिश-टाइप सोलर कुकर निशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

पहाड़ी सूबे के राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की मिड-डे मील पर जब से सूर्यदेव की 'कृपा' शुरू हुई है, उन्हें भोजन पकाने के लिए न तो जंगल से लकड़ी लानी पड़ रही और न ही कई किमी दूर से रसोई गैस सिलेंडर ढोकर लाना पड़ रहा है। भोजन माताओं को भी जलावन के धुंए से निजात मिल रही है। कारण यह है कि सूबे के करीब 800 विद्यालयों में लगभग 1870 डिश-टाइप सोलर कुकर से मध्याह्न भोजन पकाया जा रहा है। इसमें जलावन या रसोई गैस की बजाय सिर्फ सौर-ऊर्जा के इस्तेमाल से ही चावल व दाल पकाई जाती है। जिन क्षेत्रों में एलपीजी नहीं पहुंच पाती, वहां तो राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण की यह कोशिशें मिड-डे मील योजना के लिए भी वरदान साबित हुई है। दरअसल, 2005-06 में उरेडा व शिक्षा विभाग के साझे प्रयास से विद्यालयों में पैराबोलिक सोलर कुकर संयंत्रों की आपूर्ति व स्थापना का कार्य शुरू हुआ। कुल 6900 रुपये कीमत के इस संयंत्र के लिए राज्य सरकार ने 5400 रुपये व केंद्र ने 1500 रुपये का अनुदान किया। इसमें जहां कम तापमान पर खाद्य सामग्री आधे से एक घंटे के भीतर पक जाती है, वहीं उसके पोषक तत्व भी नष्ट नहीं होते। प्रदूषण से भी निजात मिलती है, तो बच्चे भी स्कूल के आंगन में ही रोज सौर ऊर्जा के महत्व को देख और महसूस कर रहे हैं। वित्त वर्ष 2008-09 के अंत तक जहां 694 स्कूलों में 1670 सोलर कुकर स्थापित किया जा चुके थे।

वहीं चालू वित्त वर्ष में भी अब तक 100 से अधिक स्कूलों में करीब 200 सोलर कुकर मिड-डे मील पकाने के काम आने लगे हैं। उरेडा के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी एलडी शर्मा बताते हैं इस वर्ष मार्च तक कुल 341 सोलर कुकर स्थापित करने का लक्ष्य पूर्ण कर लिया जाएगा। ऊर्जा बचत के साथ ही यह संयंत्र स्कूलों में बच्चों को सौर ऊर्जा के महत्व को समझाने में भी बेहद सहायक सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह सोलर कुकर आम जनता के लिए भी उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें इसकी पूरी कीमत स्वयं ही वहन करनी होगी।

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