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Tuesday, February 22, 2011

न घर आंगन सुरक्षित, न खेत खलिहान आखरी जाएं तो कहाँ

न घर आंगन सुरक्षित, न खेत खलिहान आखरी जाएं तो कहाँ 
(सुदर्शन सिंह रावत ) उत्तराखंड में वन्यजीवों के लगातार सक्रियता व उसमें भी सबसे पहले खौफ शेर हाथी और बाघ हमने पचपन से सुना था परन्तु अब सबसे ज्यादा खौफ और न जाने कब कहां से मौत की आहट सामने आ धमके न घर आंगन सुरक्षित, न खेत खलिहान आखरी जाएं तो कहाँ अब नई मुसीबत है आदमखोर गुलदारों की सक्रियता तीन साल की किशोरावस्था में ही गुलदार मानवभक्षी हो रहे हैं इधर टिहरी गढ़वाल में ग्राम अमरसर क्षेत्र पंचायत घनसाली, में शनिवार की रात गुलदार ने आंगन से उठाकर 13 वर्षीय किशोरी सुषमा को निवाला बना लिया था, किशोरी का शव रविवार को गांव के नजदीक बरामद हुआ ऐसे कई उदाहरण है जो नित नये घट रहे है मानव और गुलदार में छिड़ी जंग के चिंताजनक स्थिति में पहुंचने का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि गुलदारों के हमलों से राज्य गठन के बाद अब तक ढाई सौ से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी है। 89 गुलदार आदमखोर घोषित हुए, जिनमें से 44 को मार गिराया गया मारे गए 19 नरभक्षी गुलदारों में करीब पचास फीसदी विशेषज्ञों व डा. श्रीकांत चंदोला, प्रमुख वन संरक्षक वन्य जीव उत्तराखंड का भी कहना है कि इको सिस्टम में गड़बड़ी, फूड चेन में इनबैलेंस, पानी व शिकार की कमी जैसे कारण इसके पीछे मुख्य वजह हो सकते हैं।
A boy who was injured in a leopard attack in Dehradun in July
इस पर गंभीरता से अध्ययन की जरूरत है, ताकि समस्या से निबटने को रणनीति बन सके वन्य जीव वैज्ञानिक डा.रितेश जोशी का कहना है कि लगता है कि फ्लोरा व फोना का एसेसमेंट, जंगल में भोजन, पानी की कमी तो नहीं है इस पर पूरी तरह से अधियन के साथ ही ग्रामीणों के पारंपरिक ज्ञान का समावेश भी होना चाहिए

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