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पौड़ी: उत्तराखंड में पैराग्लाइडिंग की अपार संभावनाओं को देखते हुए पर्यटन विभाग ने पौड़ी, मसूरी और पिथौरागढ़ में पैराग्लाइडिंग शुरू तो कराई, लेकिन पौड़ी में अन्य सरकारी योजनाओं की तरह ही यह योजना भी 2010 में बंद करा दी गई।
कई किलोमीटर में फैली पौड़ी की गगवाडस्यूं और पैडुलस्यूं घाटी पैराग्लाइडिंग के लिए माकूल परिस्थितियों और हवा के बेहतर दबाव के लिए जानी जाती हैं। 1994 में हिमालयन फ्लाइंग स्कूल के मनीष जोशी ने ट्रायल के तौर पर पैडुलस्यूं की कंडारा घाटी में कुछ उड़ाने भर कर पहली दफा घाटी में पैराग्लाइडिंग के लिए बेहतर परिस्थितियों का खुलासा किया। आसमान में उड़ते पैराग्लाइडर के रोमांच और साहस को देखने घाटी में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। 1995 में कंडारा वैली में 12 नौजवानों ने आसमानी रोमांच की पहली उड़ान भरी। कम प्रशिक्षण के बाद ही पहली उड़ाने भरने से अन्य युवाओं में भी रोमांच बढ़ा। 1989 में पैराग्लाइडिंग की बदौलत मनीष लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। बकौल मनीष घाटी में हवा का दबाव उम्दा है और हवा के मंद मंद झोंके पैराग्लाइड़र को आसमान की ऊंचाई से रूबरू कराने के लिए मुफीद हैं।
इसके बाद मनीष ने आसमान के इस रोमांच को पर्यटन विभाग के साथ मिलकर एक बार फिर वर्ष 2008, 2009 औ 2010 में घाटी में जीवंत किया। छोटी ढ़लवा पहाडियों के चलते कंडारा वैली प्रशिक्षुओं के लिए ऊंची चोटियों के मुकाबले जोखिम भरी नहीं थी। इस दौरान तकरीबन 80 युवाओं ने पैराग्लाइडिंग का बेसिक प्रशिक्षण भी लिया। लेकिन, 2010 के बाद से घाटी में पर्यटन विभाग की उपेक्षा के चलते पैराग्लाइडिंग दोबारा शुरू नहीं हो पाई।
in.jagaran.yahoo.com से साभार
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