(दैनिक जागरण ,२६ जून २०११ )फुटबाल को स्टेट गेम बनाने की तैयारी पूरी
देहरादून: फुटबाल को स्टेट गेम बनाने को लेकर खेल विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है। संबंधित प्रस्ताव आगामी कैबिनेट बैठक में लाया जाएगा। खेलमंत्री ने विभागीय प्रमुख सचिव को इस बारे में आवश्यक निर्देश दिए हैं। विभागीय समीक्षा में खेलमंत्री खजानदास ने प्रमुख सचिव खेल राकेश शर्मा से फुटबाल को स्टेट गेम घोषित करने के बारे में की गई तैयारियों की प्रगति की जानकारी ली। प्रमुख सचिव ने बताया कि इस संबंध में ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। आगामी कैबिनेट में इसे लाया जा सकता है। खेलमंत्री के मुताबिक गत अप्रैल में इस बारे में घोषणा की गई थी। सीएम ने इस बारे में तैयारियों को पूरा करने के निर्देश भी दिए हैं। काबीना मंत्री ने कहा कि विभाग की लंबित योजनाओं को शीघ्र पूरा करने को लेकर प्रभावी कार्यवाही की जानी चाहिए। काबीना मंत्री ने स्पोर्ट्स कालेज देहरादून में अवस्थापना सुविधाएं बेहतर बनाने को निदेशालय को प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजने को कहा।
आज ही छपी दैनिक जागरण में एक खबर के अनुसार राज्य सरकार फुटबाल को राज्यीय खेल बनाने जा रही है .परन्तु पहले ही संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्ज़ा दे और गढ़वाली और कुमाऊनी को नज़रअंदाज़ कर उत्तराखंडी जनमानस की भावनाओं पर कुठाराघात कर चुकी यह सरकार अपने फैसले में कहाँ तक साही है ? उत्तराखंड में ना जाने कितने पारंपरिक लोक खेल हैं जन्हें अनदेखा किए जाने की नीति के कारण नई पीढ़ी में कोई जानता भी नहीं ,पर हमरी हिटलरशाही सरकार है कि उसके लिए यह सारे मुद्दे अप्रासंगिक हैं ! कोई भी राज्य अपना राज्यीय खेल अपनी संस्कृति अपनी पहचान और अपने खेल इतिहास को ध्यान में रखते हुए घोषित करता है वह खेल ऐसा होता है.आज पंजाब और हरियाणा का राज्यीय खेल कबड्डी है तो यह उनकी खेल संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है . वहीं फुटबाल किस कोण से हमारी "खेल संस्कृति" का प्रतिनित्धित्व करता है भला ? माना कि यह दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय खेलों में से एक है और हमरे राज्य में भी युवाओं के बीच इसकी क्रेज बढ़ा है पर फिर भी क्या यह खेल सच में उत्तरखंड के युवाओं के दिल की धडकन है ? अमेरिका में बेसबाल के लिए और कनाडा में आइस होकी के लिए जो पागलपन दिखता है क्या वही जूनून उत्तरखंड में फ़ुटबाल के प्रति है ? नहीं संभवतः क्रिकेट के लिए इससे अधिक उत्साह हों .तो क्या इसका समाधान यह है कि क्रिकेट को ही राज्यीय खेल घोषित किया जाये ? नहीं ,कदापि नहीं .संभवतः पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में फुटबाल की लोकप्रियता की देखादेखी यह कदम उठाया गया हो ,पर उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों की खेल संस्कृति में अंतर है .वहाँ के युवाओं के बीच सच में फुटबाल बसता है (क्रिकेट से भी अधिक!) ऐसा नहीं होता तो देश के अधिकतर फुटबाल क्लबों में उस क्षेत्र के खिलाड़ियो की इतनी बहुतायत ना होती.पर उत्तराखंड में ऐसी स्थिति नहीं है.
पहले तो यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि किसी भी खेल को राज्यीय खेल घोषित करने से उसकी लोकप्रियता और खेले जाने पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला ,पर प्रभाव पड़ेगा आर्थिक पटल पर .उस खेल के लिए कुछ ना कुछ ही सही राज्य से आर्थिक सहायता तो मिलेगी ही ,उसके लिए कोई छोटी मोटी ही सही कोई स्पोट्स अकादमी तो खुलेगी, उसके लिए कुछ चुनिन्दा ही सही पर कुछ पेशेवर कोच तो तैयार किये जायेंगे ,उसे मामूली ही सही थोड़ा तो प्रचार और पब्लिसिटी मिलेगी ,कुछ गिने चुने ही सही पर कुछ युवा तो उस खेल की ओर आकर्षित होंगे ही .
तो फिर आखिर किस खेल तो राज्यीय बनाया जाए ,उत्तर सीधा सा है पहले तो सरकार को कोई उत्तराखंडी पारंपरिक खेल चुनना चाहिए,ऐसे खेलों की यहाँ कमी नहीं है मसलन तैराकी ,निशानेबाजी और तो और उत्तराखंड का (गढ़वाल क्षेत्र का ) तो अपना एक रग्बी का ही प्रथक संस्करण है जिसे यहाँ "गिंदी को खेल " कहते हैं जो कि काफी लोकप्रिय भी है और यदि सरकारी प्रोत्साहन मिले तो यह और लोकप्रिय हों सकता है .ऐसे ही ना जाने कितने क्षेत्रीय खेल हैं जो कि सरकार की अंधी नज़रों के आगे कभी नहीं पड़ी .नहीं तो कोई साहसी खेल (अडवेंचर सपोर्ट ) उत्तराखंड की एडवेंचर टूरिस्म में बन रही छवि को देखते हुए राज्य का अच्छा प्रतिनिधित्व कर सकता है. राज्यीय खेल के तौर पर वाटर राफ्टिंग, कयाकिंग, माउंटेन क्लाइम्बिंग, पेराग्लैडिंग और स्कीइंग जैसे खेल राज्य के ब्रैंड एम्बेसडर के तौर पर भी काम कर सकते हैं जिनसे "एडवेंचर टूरिस्म" ,जिसमें हमारी पहले से ही पहचान है ,उसमें उत्तराखंड एक अग्रिणी राज्य बन सकता है
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ख़ैर विकल्पों की तो कोई कमी नहीं पर यदि कोई अमल करना चाहे तो ही यह सब लागू करना संभव है .
उत्तरखंड के पारंपरिक खेलों के लिए यहाँ देखें :
निखिल उत्तराखंडी http://www.facebook.com/NIKHIL0UTTRAKHANDI
http://garhwalbati.blogspot.com
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