भारत के वीर सपूतो में से एक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के बलिदान के लिए
उन्हें आज भी याद किया जाता है। लेकिन समय की विडंबना तो देखिये, पेशावर कांड के इस महानायक की स्मृति में बनायी गयी उनकी प्रतिमा आज अपने लिए एक स्थान ढूंढ रही है।
तहसील परिसर में स्थित वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की आदमकद प्रतिमा, प्रख्यात मूर्तिकार डॉ.अवतार सिंह पंवार की नायाब कला का बेमिसाल नमूना है। वर्ष 1997 में तत्कालीन रेल राज्य मंत्री सतपाल महाराज ने मूर्ति का अनावरण किया। मूर्ति को तहसील परिसर में स्थापित किया गया।
वर्ष 2009-10 में तहसील को नये भवन मे शिफ्ट किया गया और भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड की स्थानीय इकाई ने पुराने स्थान पर एक पार्क बनाने का निर्णय किया। तहसील प्रशासन ने स्व.गढ़वाली की मूर्ति की सुध लेते हुए भाइलि प्रशासन से उक्त मूर्ति को पार्क के भीतर स्थापित करने का अनुरोध किया, जिस पर भाइलि प्रशासन ने सहमति भी जता दी। भाइलि ने पार्क निर्माण तो पूरा कर दिया, लेकिन अभी तक मूर्ति को पार्क के भीतर शिफ्ट करने की दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।
दूसरी ओर, स्व.गढ़वाली की इस आदमकद प्रतिमा के समक्ष फैली गंदगी उन तमाम लोगों के लिए सबक भी है, जो 'विशेष' मौकों पर स्व.गढ़वाली के आदर्शो को आत्मसात करने को 'संकल्प' लेते हैं।
शायद प्रशासन भारत माँ के इस वीर सपूत के बलिदान को भूल रहा, तभी तो स्व.गढ़वाली की इस प्रतिमा को अभी तक सही स्थान नहीं मिल पाया है।
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