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Friday, October 21, 2011

ठंड के आते ही सुने हो गए बुग्याल

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बुग्याल पहाड़ी इलाको के वह क्षेत्र जहाँ गावो वाले अक्सर अपने भेड़ बकरियों को चराने के लिए ले जाते हैं और शीतलहर के आते ही वहां से चाले जाते हैं। चमोली जिले के ऊंचाई वाले स्थानों में छह माह तक भेड़-बकरियों की आमद से गुलजार रहने वाले यह बुग्याल शीतलहर शुरू होते ही वीरान होने लगते हैं। अब तो आलम यह है कि एक के बाद एक भेड़-बकरियों के जत्थों निचले स्थानों में आने लगे हैं।


चमोली जिले में वर्षो से भेड़पालन व्यवसाय यहां के कई क्षेत्रों में लोगों की आजीविका से जुड़ा हुआ व्यसाय रहा है। इतना ही नहीं इसके चलते ही वे लोग न केवल भेड़ बकरियों की ऊन बेचते हैं, बल्कि वह इससे हस्त निर्मित ऊनी परिधान भी बनाते है। मई-जून में जिले के निचले स्थानों में गर्मी शुरू होते ही इस व्यवसाय से जुडे लोग अपने मवेशियों को चुगान के लिये ठंडे बुग्याली क्षेत्रों में चले जाते है। वर्ष में छह माह तक यहीं रहते हैं। खास बात यह है कि इन मवेशियों की चहलकदमी से तब जिले के मलारी, नीति, कैलाशपुर, बाम्पा, रूद्रनाथ सहित भारत-तिब्बत सीमा से सटे बुग्याली क्षेत्रो की रौनक देखते ही बनती है। इन दिनों बुग्याली क्षेत्रों में बढ़ती ठंड से यह लोग अपनी भेड़-बकरियों को लेकर निचले स्थानों में लाने शुरू हो गये हैं।


इस व्यवसाय से जुडे़ द्वारिका प्रसाद का कहना है कि बुग्यालों में ठंड को देखते हुये यहा मवेशियों का रहना ठीक नहीं है। इसलिए निचले स्थानों में ही उन्हें चुगान के लिये लाना मजबूरी हो जाती है। हां, इतना जरूर है कि जो हरी घास बकरियों को बुग्यालों में मिलती है, वह जिले के निचले स्थानों में नहीं मिलती है। जिससे छह माह तक यहां चारा संकट एक बड़ी समस्या रहती है, लेकिन मवेशियों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर ही उन्हें यहाँ लाना ज़रूरी होता है।

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