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राजेश शर्मा | उत्तराखंड द्वारा प्रदान की जा रही पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए ग्रीन बोनस व वनों के संरक्षण के कारण पिछले दस वर्षो के दौरान हुई क्षतिपूर्ति के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से पांच हजार करोड़ की एकमुश्त धनराशि और एक हजार करोड़ रुपये सालाना की डिमांड की है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरुवार को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को भेजे एक पत्र में यह मांग की है। पत्र में डा. निशंक ने अक्टूबर 2009 में अर्जेटीना के ब्यूनस आयर्स में आयोजित विश्व वानिकी कांग्रेस का हवाला देते हुए कहा है कि इसमें प्रस्तुत एक शोधपत्र में उत्तराखंड द्वारा दी जा रही पर्यावरणीय सेवाओं का वैज्ञानिक मूल्यांकन 31,294 करोड़ रुपये सालाना बताया गया। इस शोध पत्र में यह भी बताया गया कि भारतीय वानिकी प्रबंधन संस्थान तथा केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन द्वारा वर्ष 2005-06 में कराए गए अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड के वनों द्वारा प्रतिवर्ष 17,312 करोड़ रुपये मूल्य की पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। वन क्षेत्र के कारण हानि का केंद्रीय योजना आयोग द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार राज्य को प्रतिवर्ष 1110 करोड़ रुपये की अनुमानित कृषि उत्पाद हानि हो रही है।
पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि उत्तराखंड के वनों द्वारा जल उपलब्धता सुनिश्चित करने, कार्बन संतुलन स्थापित करने तथा वैकल्पिक आर्थिक उपयोग का त्याग करने की ऐवज में यहां की जनता को कोई प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है। साथ ही वन संरक्षण अधिनियमों के प्रावधानों के कारण तमाम विकास योजनाएं विलंबित और लागत वृद्धि से प्रभावित होती हैं। उल्लेखनीय है कि ब्यूनस आयर्स के विश्व वानिकी कांग्रेस में प्रस्तुूत शोधपत्र में उत्तराखंड की पर्यावरणीय सेवाओं के वैज्ञानिक मूल्यांकन में जलवायु नियमन के लिए 3501 करोड़, असंतुलन नियमन के लिए 77.06 करोड़, जल नियमन के लिए 92.47 करोड़, जलापूर्ति के लिए 124 करोड़, भू संरक्षण नियंत्रण के लिए 3818.30 करोड़, प्राकृतिक पौष्टिक तत्वों के परिक्रमण समेत विविध पारिस्थितिकीय सेवाओं का कुल मूल्य 31294 करोड़ रुपये आंका गया है।
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