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Friday, March 25, 2011

‘शराब की दुकानों को हटाओ,उत्तराखंड बचाओ’ ?

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(सुदर्शन सिंह रावत) उत्तराखंड की स्थिति आज बहुत चिंता जनक है कभी अपने ईमानदारी और मेहनत के नाम से से जानने वाले लोग आज शराबियों के नाम से भी जानने लगे है यहाँ तक की आम मैदानी क्षेत्र के लोगो का कहना है कि जैसे पहाड़ो में सूर्य अस्त होता है वैसे ही उत्तराखंड के लोग दारू में मस्त होते है कभी पहाड़ो में शराब पीना महापाप समझा जाता था। जब मैदानी क्षेत्र में भूलवश या शौकिया तौर पर कोई शराब पी लेता था तो पहाड़ में प्रवेश से पहले उसका चांद्रायण होता था परन्तु जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे लोगो कि मानसिकता भी बदली आज यदि कोई भी काम आप को गावं में जाकर करना है तो संभल कर चलना आज गावं में दारू और दवा, इसी की हवा' चल रही और ' घर में शादी हो या जागर ,आए दिन लोगों की शराबियों से झड़प होने आम बात है एक समय था जब वर्ष १९९३ में तत्कालीन मुलायम सरकार के समय पहाड़ में द्वार -द्वार शराब पहुंचाई गई। भाजपा नेताओं ने तब इसका खासा विरोध किया और शराब के पाउच (पव्वे) तथा अध्धे को ही मुलायम सिंह नाम दे दिया परन्तु आज भाजपा सरकार ने मोबाइल वाइन वैन (चलती-फिरती शराब की गाड़ी) का नया चलन शुरू किया है यह चलन उत्तराखंड के पहाड़ो में देखने को मिल रहा है भाजपा सरकार का शराब को प्रचलित करने का नया माध्यम माना जा रहा है। 
मोबाइल वैन के जरिए बेची जा रही इस शराब का ग्रामीणों ने पुरजोर विरोध किया। बावजूद इसके धड़ल्ले से शराब की होम डिलिवरी जारी है। शराब पीकर महिलाओं पर छिटाकशी और छेड़खानी घटनां आम बात हो गई है अब महिलायें खुद को असुरक्षित महसूस करने लगीं शराबियों का आतंक नहीं थमा तो लोग आंदोलन करने को मजबूर हुए। अल्मोड़ा के बसौली-ताकुला, पट्टी मल्ला स्यूनरा के २६ से अधिक गांवों का केन्द्र है। यहां शराब के ठेकों के आसपास कई शिक्षण संस्थाएं, बैंक, अस्पताल पॉलीटेक्निक आदि हैं। खरीदारी एवं अन्य कई कार्यों के लिए भी लोग बसौली-ताकुला ही जाते है। जहां आए दिन लोगों की शराबियों से झड़प होने लगी। तंग आकर अब इस मुद्दे पर बसौली में शराब विरोधी रैली का आयोजन किया गया शीशी-बोतल तोड़ दो, दारू पीना छोड़ दो’, ‘शराब दुकान हटाओ,उत्तराखंड बचाओ’, ‘सरकार को जगाना है, नशामुक्त समाज बनाना है ।'जैसे कई नारे लगाते हुए सैकड़ों महिलाएं शराब दुकान बंद कराने सड़क पर उतर आईं। समाज सेवी और नेताओं के समाज सुधार के प्रयासों पर यह सवालिया निशान है जो 'नशा नहीं, रोजगार दो' आंदोलन के अगुआ हुआ करते थे। अगर आज उत्तराखण्ड की वर्तमान स्थिति को देखें तो अब 'रोजगार नहीं, नशा लो' जैसी स्थिति हो गई है भाजपा सरकार अपनी नाकामी को ढकने कि लिये गावं में द्वार द्वार शराब पहुंचाई जा रही है

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