गिरीश जोशी । हमारे देश में सरकारी विभाग अक्सर अपने आलसीपन और कामचोरी के लिए सुर्खिया में रहते हैं । लेकिन पिछले दिनों अल्मोड़ा का एक ऐसा मामला सामने आया जिसने देश के दो सरकारी विभागों की पोल खोल कर रख दी। देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले एक सैनिक की 63 वर्षीय विधवा को अपने जायज हक के लिए दो विभागों की मनमानी झेलनी पड़ रही है। उसका कसूर सिर्फ इतना ही है कि उसके पति ने पहले देश के दुश्मनों से अपने देश की रक्षा की और बाद में सेना से सेवानिवृत होने पर वन विकास निगम में नौकरी कर ली। अब दो विभागों के फेर में पेंशन का मामला फंस गया है। अल्मोड़ा के थामफुली (जैती) गांव निवासी धनुली देवी के पति स्व. बची सिंह भारतीय सेना के बंगाल इंजीनियर्स में कार्यरत थे। 15 वर्ष की सेवा के उपरांत जब वे सेवानिवृत हुए तो उत्तराखंड वन विकास निगम में नौकरी कर ली। निगम में चौकीदार के पद कार्य करने के बाद वे वहां से 31 अगस्त 2001 को सेवानिवृत हो गये। इस दौरान वर्ष 2008 में उनकी मौत हो गई।
दिलचस्प बात यह है कि उन्हें दोनों ही विभागों ने नियमानुसार पेंशन दी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उक्त पेंशन उनकी पत्नी को जारी रहनी चाहिए थी। दुर्भाग्य से दोनों ही विभागों ने पत्नी की पेंशन पर रोक लगा दी। दुर्गम पहाड़ के गांव में रहने वाली धनुली के भरण-पोषण का एक मात्र जरिया पति की पेंशन ही थी, वह भी नहीं मिल रही है। उसके हालत इतने ख़राब हो गए हैं कि अब भुखमरी की नोबत आ गयी है । जीवकोपार्जन के लिए उसने हल्द्वानी में अपने एक रिश्तेदार के घर शरण ले रखी है। वह तीन साल से सेना व वन विकास निगम के अधिकारियों की चौखट के चक्कर लगा रही है, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। हल्द्वानी के मानपुर पश्चिम निवासी एसएस राणा ने उसे सहारा दिया है। लेकिन अब सवाल यह उठता है की आखिर क्यों एक विधवा औरत के साथ इस तरह का बेहूदा खेल खेला जा रहा है ।
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