प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पत्रकार मंगलेश डबराल राज्य की मौजूदा दशा और दिशा को देखकर बेहद व्यथित है। उनका कहना है राज्य में राज कर चुकी भाजपा व कांग्रेस की सरकारे उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को कोई स्वरूप नहीं दे पाई। बोले अलग उत्तराखंड में पहाड़ कहीं खो गया है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि अखबार व चैनलों की भीड़ में साहित्य का प्रतिनिधित्व ही नहीं हो सका है।
नैनीताल फिल्मोत्सव में शिरकत करने पहुंचे डबराल ने मीडिया कर्मियों से बातचीत में कहा उत्तराखंड में नई पीढ़ी अच्छा साहित्य लेखन कर रही है। बोले विजय गौड़, नवीन नैथानी, सुभाष पंत, दिनेश कर्नाटक, अल्पना मिश्र, योगेंद्र आहूजा सरीखे युवा साहित्यकारों ने उम्मीद की किरण जगाई है। राज्य के लिए खुशी की बात है कि लीलाधर जगूड़ी व विद्यासागर नौटियाल जैसे साहित्यकार अभी भी सक्रियता के साथ लेखन में जुटे है। उन्होंने कहा शिक्षा के फैलाव के बावजूद साहित्य के क्षेत्र में महिलाएं कम सामने आ रही है।
उन्होंने कहा सरकारों का एकमात्र ध्येय धार्मिक पर्यटन बढ़ाना रह गया है। जबकि उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व ही यहां का धार्मिक पर्यटन बढ़ता रहा है। उनका कहना था कि सरकार चाहती तो संचार क्रांति का उपयोग लोक कला को आगे बढ़ाने में कर सकती थीं, लेकिन राज्य की सांस्कृतिक संस्थाएं मृतप्राय पड़ी है। उन्होंने ढोल दमाऊ आदि वाद्य यंत्रों के लिए झोड़ा चांचरी सरीखे सांस्कृतिक पक्ष के संरक्षण की वकालत की।
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